मां की ममता और वर्दी की ताकत – एसपी सौम्या शुक्ला की कहानी

एसपी मैडम सौम्या शुक्ला, अपराधियों के लिए खौफ और मासूमों के लिए ममता का चेहरा, एक दिन साधारण साड़ी पहनकर एक गांव के केस पर जा रही थीं। रास्ते में उनकी नजर एक गली के बच्चे पर पड़ी, जिसकी आंखें बिल्कुल उनके खोए हुए बेटे जैसी थीं। दस साल पहले, रेलवे स्टेशन की भीड़ में, दो साल का बेटा खो गया था। पुलिस अफसर होने के बावजूद, सौम्या उसे ढूंढ नहीं पाईं। रातों की नींदें, दिन का चैन सब खो गया। परिवार ने मान लिया कि बच्चा अब इस दुनिया में नहीं, लेकिन सौम्या ने कभी हार नहीं मानी।

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आज, जब उस बच्चे को देखा, दिल कांप उठा। वह लड़का मिट्टी में खेल रहा था, चेहरे पर धूल, आंखों में मासूमियत। सौम्या ने प्यार से पूछा – “बेटा, तुम्हारा नाम क्या है?” लड़का डर गया, चुप रहा। सौम्या ने बिस्किट दिया, भूख और प्यार ने उसकी चुप्पी तोड़ी। उसने बताया – “कोई नहीं है मेरा, कभी-कभी अम्मा आती थी, अब नहीं आती।” सौम्या को शक हुआ – कहीं यह उसका बेटा तो नहीं? उसने बच्चे को अपने साथ ले लिया, डीएनए टेस्ट कराया।

रात भर तस्वीरें देखती रहीं, शक और यकीन के बीच झूलती रहीं। अगली सुबह रिपोर्ट आई – डीएनए मैच हो गया था! खुशी के आंसू बह निकले, मां का दिल जीत गया। सौम्या ने बेटे को गले लगाया – “मैं तुम्हारी मम्मा हूं बेटा, मैंने तुझे कभी छोड़ा नहीं।” बच्चा सुबकता रहा, लेकिन अब वह सुरक्षित था।

पर कहानी यहीं खत्म नहीं हुई। सौम्या जानना चाहती थीं – उसका बेटा कैसे खोया, किसने चुराया, कितने बच्चे ऐसे हैं? उन्होंने स्टेशन से जाँच शुरू की, भिखारियों के गैंग, बच्चों की तस्करी, सबकी तह तक गईं। एक गोदाम में बच्चों की डील हो रही थी, सौम्या ने वीडियो रिकॉर्ड किया, सबूत जमा किए। राज्य के बाल अपराध शाखा तक मामला पहुंचाया। अब यह सिर्फ एक मां की लड़ाई नहीं रही – यह मिशन बन गया।

अर्जुन, अब उसका बेटा, धीरे-धीरे खुलने लगा। स्कूल जाने लगा, कहानियां लिखने लगा, मां को अम्मा कहने लगा। सौम्या ने जिले में बाल सुरक्षा प्रकोष्ठ बनवाया, हर गुमशुदा बच्चे की फाइल दोबारा खुलवाई। कई बच्चों को उनके परिवार से मिलाया। अर्जुन की कहानी अब सैकड़ों बच्चों की उम्मीद बन गई।

एक दिन सौम्या ने अर्जुन को लेकर उसी स्टेशन पर गईं, जहां से वह खोया था। अर्जुन ने कहा – “मुझे याद नहीं मां, लेकिन फर्क नहीं पड़ता, मैं मिल गया ना।” सौम्या ने उसे गले लगा लिया। अब वह सिर्फ मां नहीं, सैकड़ों बच्चों की ममता बन चुकी थी। सरकार ने उसकी पहल पर ‘गुमशुदा नहीं, जिंदा है’ योजना शुरू की। मीडिया में सौम्या और अर्जुन की कहानी छाई रही।

अर्जुन बड़ा होकर बोला – “मैं वह बच्चा हूं जिसे दुनिया ने खो दिया था, लेकिन मेरी मां ने मुझे ढूंढ लिया। अब मैं हर उस बच्चे की आवाज बनना चाहता हूं जो अब भी इंतजार कर रहा है।”
सौम्या की आंखों में चमक थी – एक मां का विश्वास, जो सिस्टम से भी बड़ा है।

सीख:
मां की ममता और वर्दी की ताकत जब एक हो जाए, तो कोई बच्चा कभी खोया नहीं रहता।
हर मां के विश्वास में दुनिया की सबसे बड़ी शक्ति छिपी है।

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हर बच्चे को उसका घर और हर मां को उसका बेटा वापस मिले – यही हमारी कोशिश है।