कहानी: वर्दी की ताकत — आईपीएस अनुप्रिया सिंह की जंग

शहर की चहल-पहल से दूर, रामपुर जिले की हवा में अजीब सी शांति थी। इसी जिले में आई थी एक युवा, तेजतर्रार आईपीएस अफसर — अनुप्रिया सिंह। नाम जितना सरल, इरादे उतने ही फौलादी। पुलिस डिपार्टमेंट में हलचल थी, लेकिन आम लोगों की आंखों में उम्मीदें तैर रही थीं।

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पहला मिशन: मजदूरों का हक

एक दिन अनुप्रिया को एक गुमनाम चिट्ठी मिली —
“मैडम जी, हम बिपुर गांव के गरीब मजदूर हैं। महीनों से मनरेगा में काम कर रहे हैं, लेकिन मजदूरी नहीं मिली। प्रधान हरपाल सिंह पैसे खा रहा है। उसके गुंडे धमकाते हैं। हमारे बच्चे भूखे हैं। आप ही हमारी आखिरी उम्मीद हैं।”

चिट्ठी पढ़कर अनुप्रिया का दिल तड़प उठा।
उसने इंस्पेक्टर शर्मा को बुलाया।
शर्मा बोला, “मैडम, हरपाल सिंह बहुत पहुंचा हुआ आदमी है। सीधे जांच करेंगे तो सबूत मिट जाएंगे।”

अनुप्रिया ने फैसला किया —
“इस बार जांच मैं खुद करूंगी। मजदूर बनकर, उनके बीच रहकर।”

साधारण कपड़े, टूटी चप्पलें, चेहरे पर धूल, हाथ में तसला और फावड़ा।
अब वह अनु बन गई थी — एक बेबस मजदूर।

गांव की कच्ची सड़क पर बस से उतरी। मजदूरों की भीड़ में शामिल हो गई।
फावड़ा चलाया, तसले में मिट्टी भरी, सिर पर उठाया —
₹200 रोज़ कमाने के लिए कैसी मेहनत, कैसे छाले, कैसा दर्द।

दोपहर में राधा नाम की मजदूर औरत से दोस्ती हो गई।
राधा ने बताया —
“तीन महीने से कोई पैसा नहीं मिला। प्रधान के गुंडे धमकाते हैं।”

अनु ने गरीबों के दुख को महसूस किया, उनकी मदद की —
कभी किसी बच्चे को बिस्कुट, कभी किसी बूढ़ी को दवा।

तीसरे दिन प्रधान अपनी जीप में आया।
मजदूरों को धमकाया —
“पैसे कब मिलेंगे? जब मिलेंगे तब मिलेगा। ज्यादा सवाल मत करो।”

रात को राधा अपनी बीमार बेटी के लिए रोती आई।
अनु ने अपनी जमा पूंजी से ₹500 दिए —
“बच्ची की जान से बढ़कर कुछ नहीं।”

गांव वालों का भरोसा जीत चुकी थी।
अब आखिरी चाल थी।
राधा के घर प्रधान के गुंडे आए। अनु ने बहादुरी से उनका सामना किया।
गुंडों को मार भगाया।

सच्चाई का उजागर होना

अब अनु ने अपना असली रूप दिखाने का फैसला किया।
प्रधान की हवेली पहुंची, सबके सामने घूंघट हटाया।
इसी पल पुलिस फोर्स ने हवेली घेर ली।

“पहचाना मुझे प्रधान? मैं एसपी अनुप्रिया सिंह। तुम्हारे हर गुनाह का सबूत है मेरे पास।”

प्रधान और उसके गुंडे गिरफ्तार।
गांव में खुशी की लहर दौड़ गई।
मजदूरों की मेहनत का पैसा वापस मिला।
राधा की बेटी स्कूल जाने लगी।
गांव की तस्वीर बदल गई।

दूसरा मिशन: जहरीली शराब का जाल

कुछ महीने बाद सोहनपुर गांव में जहरीली शराब से आठ लोगों की मौत।
कमला — वही मजदूर औरत — अपने पति की लाश से लिपटकर रो रही थी।
अनुप्रिया ने कसम खाई —
“इन मौतों के जिम्मेदारों को पाताल से भी ढूंढ निकालूंगी।”

जांच शुरू हुई, लेकिन कोई गवाह नहीं।
विधायक रतन चौधरी का दबाव —
“मामला रफा-दफा कर दो।”

अनुप्रिया ने फिर वर्दी उतार दी।
इस बार ढाबा चलाने वाली भारती बन गई।
हाईवे पर ढाबा खोला।
रात में ट्रक ड्राइवरों की बातें सुनी।
अवैध शराब का नेटवर्क, कोडवर्ड, विधायक का नाम।

ढाबे में रिकॉर्डर, कैमरे लगाए।
रंगा — विधायक का खास गुंडा — ढाबे पर आने लगा।
एक रात उसने पुरानी मिल में माल ठिकाने लगाने की बात की।

अंतिम जाल और जीत

सुबह 5 बजे पुलिस ने पुरानी मिल पर रेड डाली।
विधायक, प्रधान, रंगा — सब पकड़े गए।
अवैध फैक्ट्री, जहरीली शराब, सबूत — सब सामने।
विधायक अपनी पहुंच की धमकी देने लगा।

अनुप्रिया ने वर्दी के सितारे दिखाए —
“अब आपकी विधायक उतर रही है।”

अगले दिन राज्य में भूचाल।
गांव की औरतें, कमला — सब अनुप्रिया को धन्यवाद देने आईं।

“अब अपने बच्चों को खूब पढ़ाना। ताकि उन्हें कभी यह दिन ना देखना पड़े।”

कहानी का संदेश

अनुप्रिया जानती थी —
लड़ाई लंबी है।
एक चौधरी जाएगा, दूसरा आएगा।
लेकिन वह हर बार एक नए रूप में, एक नए तरीके से अन्याय के खिलाफ लड़ती रहेगी।

वर्दी सिर्फ पहनने के लिए नहीं, उसका कर्ज चुकाने के लिए पहनी है।

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जय हिंद!