खूबसूरत लड़की समझकर दरोगा ने बदतमीजी की, फिर लड़की ने जो किया..देखकर रूह कांप जाएगी!
.
.
दोपहर की तपती धूप में जब धरती जल रही थी, अनीता वर्मा और उसकी माँ सुषमा देवी अपने पुराने ट्रैक्टर पर फसल काटने के बाद घर लौट रही थीं। ट्रैक्टर की धीमी घरघराहट में भी एक सुकून था, मेहनत के बाद मिलने वाली शांति का सुकून। अनीता, जो शहर के एक प्रतिष्ठित कॉलेज की छात्रा थी, छुट्टियों में अपनी माँ का हाथ बँटाने के लिए गाँव आई हुई थी। उसके चेहरे पर शहरी चमक थी, लेकिन हाथों में मेहनत की लकीरें भी खिंचने लगी थीं। उसकी बड़ी बहन, प्रिया वर्मा, पुलिस विभाग में एक बड़ी और सम्मानित आईपीएस अफसर थी, जो परिवार के लिए गर्व का प्रतीक थी।
जैसे ही उनका ट्रैक्टर गाँव की धूल भरी पगडंडियों को छोड़कर शहर की ओर जाने वाली पक्की सड़क पर आया, आगे का नज़ारा देखकर अनीता ने ट्रैक्टर की गति धीमी कर दी। सड़क के बीचों-बीच एक पुलिस बैरियर लगा हुआ था। पास में खड़ी एक पुलिस जीप के बोनट पर एक इंस्पेक्टर अकड़कर पैर फैलाए बैठा था, जैसे सड़क उसी की जागीर हो। वह इंस्पेक्टर जावेद खान था, जिसकी क्रूरता और भ्रष्टाचार के किस्से उस इलाके में आम थे। दो हवलदार आने-जाने वाले छोटे-मोटे वाहनों, खासकर किसानों और मजदूरों को रोककर जबरन पैसे वसूल रहे थे।
जब अनीता और सुषमा देवी का ट्रैक्टर बैरियर के पास पहुँचा, तो अनीता ने धीरे से उसे पार करने की कोशिश की। तभी जीप पर बैठे इंस्पेक्टर जावेद खान ने हाथ उठाकर गरजते हुए कहा, “ऐ लड़की! ट्रैक्टर साइड में लगा। कहाँ भागी जा रही है? बहुत जल्दी है क्या तुझे?” उसकी आवाज़ में सत्ता का नशा और बदतमीज़ी साफ़ झलक रही थी।
अनीता ने तुरंत ट्रैक्टर रोक लिया और शालीनता से जवाब दिया, “जी साहब, हम फसल काटने के बाद बस अपने घर जा रहे हैं। अगर आपको कागज़ात देखने हैं, तो हमारे पास सारे कागज़ात मौजूद हैं।”
जावेद खान ने ऊपर से नीचे तक अनीता को घूरकर देखा और एक भद्दा ठहाका लगाया। “ओहो! बड़ी बहादुर बन रही है। और तेरे पीछे यह बुढ़िया कौन है?”
अनीता की आँखों में गुस्सा उतर आया, लेकिन उसने खुद पर काबू रखते हुए कहा, “यह मेरी माँ हैं।”
तभी एक सिपाही शैतानी हँसी के साथ बोला, “सर, ज़रूर कोई कांड करके आए हैं। इस बुढ़िया और लड़की की तो शक्ल ही देख लो। चोरी-चकारी की मास्टर लग रही हैं।”
‘बुढ़िया’ शब्द अनीता के दिल में किसी ज़हरीले तीर की तरह चुभ गया। उसकी माँ, जिसने उसे पाल-पोसकर बड़ा किया था, उसके लिए कोई ‘बुढ़िया’ नहीं, बल्कि उसका पूरा संसार थी। उसकी आँखें गुस्से से लाल हो उठीं। उसने एक गहरी साँस लेकर दृढ़ता से जवाब दिया, “ज़ुबान सँभालकर बात करो। यह मेरी माँ हैं। मैंने कहा न, हमारे पास सारे कागज़ात मौजूद हैं। आप सिर्फ अपना काम कीजिए। किसी के बारे में ऐसे अपमानजनक शब्द बोलना, खासकर पुलिस वालों के मुँह से, शोभा नहीं देता।”

इतना सुनना था कि इंस्पेक्टर जावेद खान गुस्से में आग-बबूला हो उठा। वह जीप से उछलकर नीचे उतरा और अनीता की ओर बढ़ा। “अबे चुप! तेरी जैसी दो टके की लड़की हमें बोलना सिखाएगी? हमें कानून मत सिखा। हमें अच्छी तरह पता है कि कौन शरीफ़ है और कौन चोर। निकाल कागज़!”
अनीता ने बिना डरे ट्रैक्टर का लाइसेंस और बाकी कागज़ात निकालकर जावेद खान की ओर बढ़ा दिए। जावेद खान ने कागज़ातों को बिना देखे ही हवा में उछाला और उन्हें ज़मीन पर गिराकर चिल्लाया, “अबे मूर्ख लड़की, हमें उल्लू बना रही है? ये नकली कागज़ दिखाकर सोचती है कि ऐसे ही निकल जाएगी? हमसे चालाकी कर रही है!”
अनीता को अब समझ आ गया था कि ये लोग सिर्फ बदतमीज़ी करने और पैसे ऐंठने के लिए यह सब कर रहे हैं। उसे गुस्सा आ गया और वह बोली, “सर, अगर आपको कोई समस्या लग रही है तो आप हमारा चालान काट लीजिए। इस तरह हमारे साथ बदतमीज़ी मत कीजिए। इससे बेहतर है कि आप हमारा चालान ही काट दीजिए, हम चालान भर देंगे।”
उसका इतना कहना था कि इंस्पेक्टर जावेद खान आग-बबूला हो गया। वह आगे बढ़ा और बिना किसी झिझक के, पूरी ताकत से एक ज़ोरदार थप्पड़ अनीता के गाल पर जड़ दिया। ‘चटाक’ की आवाज़ इतनी तेज़ थी कि पूरी सड़क पर एक पल के लिए सन्नाटा छा गया। अनीता का सिर घूम गया और उसकी आँखों के आगे अँधेरा छा गया। गाल पर पाँचों उँगलियों के निशान उभर आए थे और आँखों में आँसू भर आए।
उसकी माँ, सुषमा देवी, यह देखकर चीख पड़ी। वह ट्रैक्टर से उतरकर आगे बढ़ी और रोते हुए बोली, “ऐ! मेरी बच्ची को क्यों मारा तुमने? कुछ तो खुदा से डरो! क्या बिगाड़ा है इसने तुम्हारा?”
जावेद खान ने उन्हें भी घृणा से देखा और धमकाया, “चुप बुढ़िया! ज़्यादा बोलेगी तो तुझे भी ऐसे ही थप्पड़ पड़ेंगे और घसीटकर थाने ले जाऊँगा।” दोनों सिपाही भी अपनी शैतानी हँसी के साथ बोले, “बड़ी तेज़ बन रही थी। देखो, एक थप्पड़ में सारी हेकड़ी निकल गई।”
अनीता का खून खौल उठा था। वह जानती थी कि अगर उसने इन वर्दी वाले गुंडों पर हाथ उठाया तो मामला और बिगड़ जाएगा। जावेद खान चिल्लाते हुए बोला, “इन दोनों को गाड़ी के अंदर डालो और ले चलो थाने। वहाँ हम बताएँगे कि पुलिस की पावर क्या होती है। इनकी सारी अकड़ निकाल देंगे।”
सड़क पर तमाशा देखने वालों की भीड़ जमा हो गई थी। कुछ लोग डर से काँप रहे थे, तो कुछ अपने मोबाइल निकालकर चुपचाप वीडियो बना रहे थे। मगर किसी में इतनी हिम्मत नहीं थी कि आगे बढ़कर उस क्रूर इंस्पेक्टर के खिलाफ़ कुछ कह सके। उसी भीड़ में एक नौजवान लड़का भी था, जो चुपचाप इस पूरी वारदात को अपने फ़ोन में रिकॉर्ड कर रहा था। उसे उस वक्त अंदाज़ा भी नहीं था कि उसका यह वीडियो आने वाले समय में पुलिस की इस गुंडागर्दी के खिलाफ़ एक बहुत बड़ा तूफ़ान खड़ा कर देगा।
थाने पहुँचते ही जावेद खान गरजा, “अबे, हवालात में ठूँस दो इन दोनों को। सुबह तक इनकी सारी अकड़ निकाल देंगे। फिर देखेंगे इनकी औकात।”
दोनों सिपाहियों ने माँ-बेटी को धक्का देकर एक अँधेरी, बदबूदार कोठरी में बंद कर दिया। कोठरी में सीलन और पेशाब की तेज़ गंध भरी हुई थी। सुषमा देवी ने रोते हुए कहा, “बेटी, ये लोग हमें कहाँ बंद करके रख दिए? अब हमारा क्या होगा?”
अनीता ने अपनी माँ को गले लगाकर हिम्मत बँधाई, “माँ, तुम फ़िक्र मत करो। बस थोड़ी देर की बात है। सब ठीक हो जाएगा। मैं हूँ न तुम्हारे साथ।”
लेकिन सुषमा देवी को साँस की बीमारी थी। उस घुटन भरी, हवा रहित कोठरी में उनका दम घुटने लगा। वह ज़ोर-ज़ोर से खाँसने लगीं और उनकी साँसें उखड़ने लगीं। अनीता अपनी माँ की हालत देखकर बुरी तरह घबरा गई। वह दरवाज़े को पीटती हुई ज़ोर-ज़ोर से शोर मचाने लगी, “कोई है? दरवाज़ा खोलो! जल्दी मेरी माँ को यहाँ से निकालो! उनका दम घुट रहा है! वह मर जाएँगी!”
पास वाले दफ़्तर में टाँग पर टाँग रखे बैठा इंस्पेक्टर जावेद खान उसकी आवाज़ सुनकर भी नज़रअंदाज़ करता रहा। जब अनीता का चीखना बंद नहीं हुआ, तो वह गुस्से से खड़ा हुआ और कोठरी के पास आकर बोला, “ऐ लड़की! क्या बक-बक लगा रखी है? सारे सुकून की ऐसी की तैसी कर दी।”
अनीता ने गिड़गिड़ाते हुए कहा, “देखो, मेरी माँ की हालत बहुत खराब है। वह साँस नहीं ले पा रही हैं। प्लीज़, उन्हें यहाँ से निकाल दें। उन्हें अस्पताल ले जाना होगा।”
इंस्पेक्टर जावेद खान ने कोठरी के अंदर झाँककर सुषमा देवी की तड़पती हुई हालत को देखा और फिर एक क्रूर मुस्कान के साथ बोला, “यहीं मरने दे इस बुढ़िया को। वैसे भी दो-चार दिन में टपक ही जाना है। क्या करेगी इसको बचाकर?”
यह सुनकर अनीता के सब्र का बाँध टूट गया। उसकी माँ की ज़िंदगी का ऐसा मज़ाक! वह अपने आप पर काबू न रख सकी और उसने पूरी ताकत से दरवाज़े की सलाखों के बीच से हाथ निकालकर इंस्पेक्टर के मुँह पर एक ज़ोरदार थप्पड़ जड़ दिया।
इंस्पेक्टर कुछ पल के लिए सन्न रह गया। वह अपने गाल पर हाथ लगाकर खुद को देखता रहा, उसे विश्वास ही नहीं हो रहा था कि एक साधारण सी लड़की ने उस पर, इंस्पेक्टर जावेद खान पर, हाथ उठाने की हिम्मत की है। और फिर, उसका चेहरा गुस्से से तमतमा उठा। वह आग-बबूला होकर अनीता की चोटी से पकड़कर उसे घसीटते हुए दूसरी कोठरी में ले गया। “ऐ लड़की! तूने अपनी मौत को दावत दी है। ऐसा कभी नहीं हुआ कि इंस्पेक्टर जावेद खान पर किसी ने हाथ उठाया हो।”
अनीता दर्द से कराहती हुई बोली, “तुम यह एक गैर-कानूनी काम कर रहे हो! और तुमने मेरी माँ को बुरा-भला कहा, इसलिए मैंने यह किया। तुम्हें ऐसा करने का कोई हक़ नहीं है!”
जावेद की आँखें खून की तरह लाल हो गईं। उसने एक और ज़ोरदार थप्पड़ अनीता के मुँह पर मारा। “बड़ी आई तू मुझे कानून सिखाने वाली!”
वहाँ अँधेरी कोठरी से सुषमा देवी की कमज़ोर आवाज़ें आ रही थीं, “छोड़ दो मेरी बेटी को… छोड़ दो अनीता को…”
अपनी माँ की तड़प सुनकर अनीता टूट गई। वह उठकर इंस्पेक्टर के पैरों में गिर पड़ी। “देखो, तुम मेरे साथ जो मर्ज़ी कर लो। मैं कुछ नहीं कहूँगी। बस मेरी माँ को छोड़ दो। उसको अस्पताल ले जाओ। उसकी तबीयत बहुत खराब है। उसका दम घुट जाएगा, वह मर जाएगी।”
लेकिन इंस्पेक्टर जावेद खान शैतानी हँसी के साथ बोला, “मर जाएगी? मरने दे साली को। धरती से कुछ तो बोझ कम होगा।”
अपनी माँ के बारे में यह शब्द सुनकर अनीता के वजूद में जैसे बिजली दौड़ गई। वह जान गई कि यह आदमी इंसान नहीं, शैतान है। तभी उसके ज़हन में अपनी बड़ी बहन, आईपीएस प्रिया वर्मा, का ख्याल आया। अनीता एकदम से खड़ी हुई और उसकी आँखों में एक नई हिम्मत आ गई। “देखो, मेरे साथ जो करना है कर लो, लेकिन मेरी माँ को जल्दी अस्पताल ले जाओ। अगर उसको कुछ हो गया, तो तुम और तुम्हारे इस पूरे थाने के पुलिस वाले, सब के सब ज़िंदगी भर उसकी सज़ा भुगतेंगे। सब के सब की वर्दी उतरवा दूँगी!”
इंस्पेक्टर जावेद खान ने जब यह सुना तो वह ठहाके मारकर हँसने लगा। “तो दो टके की छोकरी हमारी वर्दियाँ उतरवाएगी? अब तो पक्का मरने दे इस बुढ़िया को। मैं भी देखता हूँ कि किसकी इतनी हिम्मत है जो इंस्पेक्टर जावेद खान पर हाथ उठा सके।” उसने अनीता को एक कमरे में धक्का दिया और बाहर से कुंडी लगा दी। “यह बुढ़िया इतनी जल्दी नहीं मरने वाली। पहले उसे ठिकाने लगाता हूँ, फिर देखता हूँ तुझे।”
अनीता अंदर से दरवाज़ा पीटने लगी, “खोलो दरवाज़ा! मुझे मेरी माँ के पास जाना है!” लेकिन इंस्पेक्टर अपने दफ़्तर में जाकर सुकून से बैठ गया। कुछ देर तक सुषमा देवी की खाँसने और कराहने की आवाज़ें आती रहीं, फिर धीरे-धीरे शांत हो गईं। जावेद खान ने सोचा, “पता नहीं कब मरने वाली है यह बुढ़िया, कब से चिल्ला रही है।” यह सोचकर वह वहीं कुर्सी पर आँखें बंद करके सो गया।
कुछ समय बाद जब उसकी आँख खुली तो उसे थाने में अजीब सी खामोशी महसूस हुई। “यह बुढ़िया चुप कैसे हो गई? जाकर देखता हूँ।” वह अँधेरी कोठरी की तरफ़ गया। जैसे ही उसने दरवाज़ा खोला, उसने देखा कि सुषमा देवी ज़मीन पर बेसुध पड़ी थीं। इंस्पेक्टर ने झुककर उनकी नब्ज़ और साँसें देखने की कोशिश की। लेकिन सुषमा देवी की साँसें रुक चुकी थीं।
यह देखकर जावेद खान के चेहरे पर डर की जगह एक घमंड भरी, क्रूर हँसी आ गई। “ऐ बुढ़िया, गुज़र गई क्या तू? हा हा हा! बड़ी मुश्किल से जान छोड़ी है तूने। चलो, जाकर तेरी बेटी को यह ख़बर सुनाता हूँ। देखता हूँ कि वह कैसे हमारी वर्दियाँ उतरवाती है। बहुत मज़ा आएगा उसे तड़पता देखकर।”
यह कहकर इंस्पेक्टर जावेद खान हँसते हुए उस कमरे की ओर बढ़ा जिसमें अनीता बंद थी। उसने कुंडी खोली और अंदर आते ही ज़ोर-ज़ोर से हँसने लगा। अनीता ने जैसे ही उसे देखा, वह भागती हुई उसके पास आई। “मेरी माँ की तबीयत कैसी है? मुझे उनसे मिलने दो, मैं हाथ जोड़ती हूँ।”
इंस्पेक्टर ने उसे धुतकारते हुए कहा, “तुझे उस बुढ़िया से मिलने के लिए अब अगले जन्म का इंतज़ार करना होगा।”
अनीता का दिल बैठ गया। “क्या… क्या मतलब? कहाँ है मेरी माँ? क्या हुआ उसको? वह ठीक तो है न?”
इंस्पेक्टर जावेद खान हँसते हुए बोला, “मर गई साली बुढ़िया, कोने में पड़ी-पड़ी।”

यह सुनकर अनीता के पैरों तले ज़मीन खिसक गई। वह ज़ोर-ज़ोर से “माँ! माँ!” चिल्लाती हुई अँधेरी कोठरी की तरफ़ भागी। वहाँ पहुँचकर उसने देखा कि उसकी माँ, सुषमा देवी, ज़मीन पर निर्जीव पड़ी हैं। माँ को इस तरह देखकर अनीता का दिल फटने लगा। वह उनके पास बैठकर उन्हें झिंझोड़ने लगी, “माँ! माँ, आँखें खोलो माँ! क्या हुआ तुझे माँ? देखो, मैं अनीता हूँ… मैं आ गई हूँ। कुछ तो बोलो माँ!” लेकिन वह कहाँ कुछ बोलने वाली थीं? वह तो यह ज़ालिम दुनिया छोड़कर जा चुकी थीं।
इंस्पेक्टर जावेद खान वहाँ आकर बोला, “ऐ छोकरी, बुढ़िया गुज़र चुकी है। क्या ड्रामेबाज़ी लगा रखी है तूने?” उसने कांस्टेबलों को आवाज़ लगाई। “इस बुढ़िया को यहाँ से उठाकर ले जाओ और ठिकाने लगा दो। कोई कुछ पूछे तो कहना, एक्सीडेंट में मारी गई।”
सिपाहियों ने सुषमा देवी के शव को उठाना शुरू किया। अनीता चीखने लगी, “छोड़ो मेरी माँ को! कहाँ ले जा रहे हो?” लेकिन उन्होंने एक न सुनी। जब अनीता उनके पीछे जाने लगी, तो इंस्पेक्टर ने उसका हाथ पकड़ लिया। “तू कहाँ जाने लगी है, जानेमन? तूने तो हमारी वर्दियाँ उतरवानी थीं।”
माँ के गम और गुस्से में अनीता ने अपनी पूरी ताकत से इंस्पेक्टर को गले से पकड़ लिया। “तू मेरी माँ का कातिल है! अब तुम्हारे सहित इस पूरे थाने का एक-एक बंदा इसकी सज़ा भुगतेगा! कोई नहीं बचेगा!”
जावेद खान हँसा। “अबे जा रे छुईमुई! किससे जाकर शिकायत करेगी तू? डीएम से? वे सब मेरे भाई हैं। कोई हाथ नहीं लगा सकता मुझ पर।”
अनीता ने कहा, “मैं जाकर जिससे कहूँगी, उसके बाद तुम सब उल्टे लटक जाओगे और तुम्हें तुम्हारी नानी याद आ जाएगी।”
जावेद खान ने उसे घूरते हुए कहा, “मैं जाने तो तुम्हें ज़रूर देता, अगर तुम मामूली सी भी मेरे टक्कर की होती। तुम एक खूबसूरत और जवान लड़की हो। यूँ ही बाहर जाकर किसी और का निशाना बनोगी, क्यों न मैं ही सही?”
यह सुनकर अनीता काँप गई। उसने इधर-उधर देखा और फिर एकदम तेज़ी से भागती हुई थाने से बाहर निकल आई। जावेद खान ने शोर मचा दिया, “लड़की भाग गई है! पकड़ो! पकड़ो!”
दो सिपाही उसके पीछे दौड़े। अनीता ट्रैफिक के बीच से होती हुई बड़ी मुश्किल से दौड़ रही थी। वह किसी से फ़ोन माँगकर अपनी बहन, आईपीएस प्रिया वर्मा, को सब कुछ बताना चाहती थी। तभी उसे एक बड़ी गोल्ड ज्वेलरी की दुकान दिखी। वह भागते हुए दुकान के अंदर चली गई और हाँफने लगी।
दुकान का मालिक, अजीत सेठ, एक ऊँची कुर्सी पर बैठा था। उसने अनीता को ऐसे भागते हुए देखा तो समझ गया कि वह किसी मुसीबत में है। वह कुर्सी से उठा और अनीता के पास आया। अनीता ने कहा, “मुझे एक कॉल करनी है, बहुत ज़रूरी है। मेरे पीछे पुलिस लगी है।”
अजीत सेठ ने कहा, “अच्छा-अच्छा, ठीक है। पहले तुम शांत हो जाओ। बैठो, मैं कॉल करवा देता हूँ।” उसने अनीता को पानी दिया। बाहर पुलिस वाले अनीता को ढूँढ रहे थे। अजीत सेठ ने बाहर देखा और बोला, “बाहर पुलिस आ गई है। खामोश हो जाओ।” उसने पूछा, “बताओ क्या मामला है?”
अनीता ने रोते हुए उसे सब कुछ बता दिया। यह सुनकर अजीत सेठ बोला, “ओह, बहुत बुरा हुआ तुम्हारे साथ। लेकिन वो घटिया इंस्पेक्टर कौन था?”
अनीता बोली, “जावेद खान।”
अजीत सेठ ने जैसे ही यह नाम सुना, वह एकदम चौंका। “क्या? इंस्पेक्टर जावेद खान?” उसने कहा, “तुम ज़रा यहाँ बैठो, मैं अभी आता हूँ।” वह बाहर गया, किसी को फ़ोन किया और फिर अंदर आकर बोला, “चलो, यहाँ से जल्दी निकलना होगा। पुलिस कभी भी छापा मार सकती है।”
अजीत सेठ ने उसे अपनी गाड़ी में बिठाया और तेज़ी से निकाल ले गया। लेकिन गाड़ी उसी तरफ़ जाने लगी जहाँ से अनीता भागकर आई थी। देखते ही देखते, अजीत ने गाड़ी को उसी थाने के पास लाकर खड़ा कर दिया। अनीता घबराकर बोली, “यहाँ क्यों ले आए हो?”
अजीत सेठ ज़ोर-ज़ोर से हँसने लगा। इतने में थाने से इंस्पेक्टर जावेद खान बाहर आया। अजीत सेठ गाड़ी से निकलकर बोला, “हाँ इंस्पेक्टर साहब, ले आया माल?”
जावेद मुस्कुराते हुए बोला, “क्यों नहीं, अजीत भाई। आप हमारे दो नंबर के काम में इतना साथ देते हो, तो मेरा भी कुछ फ़र्ज़ बनता है।”
अनीता समझ गई कि वह गलत आदमी के पास चली गई थी। सिपाहियों ने उसे गाड़ी से निकालकर जावेद खान की गाड़ी में डाल दिया। जावेद खान उसे शहर से मीलों दूर एक सुनसान, पुरानी हवेली में ले गया। उसने अनीता को एक अँधेरे कमरे में धक्का दिया और बोला, “तुम यहाँ रुको। रात को तुम्हारे पास आऊँगा।” यह कहकर उसने दरवाज़ा बाहर से बंद कर दिया और चला गया।
दूसरी तरफ, आईपीएस प्रिया वर्मा अपनी माँ और बहन का फ़ोन बंद आने से बहुत परेशान थी। उसने घर जाने का फ़ैसला किया। जब वह कमांडो की टीम के साथ घर पहुँची तो वहाँ ताला लगा था। पड़ोसियों से भी कुछ पता नहीं चला। प्रिया ने अपनी माँ और बहन की गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखवाने के लिए उसी थाने में जाने का फ़ैसला किया।
थाने में इंस्पेक्टर जावेद खान उसे देखकर खड़ा हो गया और सैल्यूट मारा। “जी मैडम, हुक्म कीजिए।”
प्रिया बोली, “मेरी माँ और बहन लापता हैं। उनकी रिपोर्ट लिखवानी है।”
इंस्पेक्टर ने अदब से कहा, “अगर आपके पास उनकी कोई तस्वीर हो तो ढूँढने में आसानी होगी।”
प्रिया ने अपने मोबाइल में तस्वीर ढूँढी और इंस्पेक्टर को दिखाई। “यह रही।”
जैसे ही जावेद खान ने मोबाइल में अनीता और सुषमा की तस्वीर देखी, उसके चेहरे का रंग उड़ गया। उसके हाथ काँपने लगे और माथे पर पसीना आ गया। प्रिया ने उसकी हालत देखकर कठोर आवाज़ में पूछा, “क्या हुआ? तुम ठीक तो हो? क्या तुम इन्हें जानते हो?”
इंस्पेक्टर ने काँपती आवाज़ में कहा, “नहीं… नहीं मैडम। हम उन्हें जल्द ढूँढ निकालेंगे। आप जाइए।”
प्रिया को उस पर शक तो हुआ, लेकिन वह चली गई। जावेद खान कुर्सी पर बैठकर अपना सिर पकड़ने लगा। “यह क्या कर दिया तुमने जावेद? वो लड़की और बुढ़िया एक आईपीएस अफसर की बहन और माँ थीं! अब क्या करूँ? उस लड़की अनीता को भी जल्द से जल्द रास्ते से हटाना होगा। अगर वह ज़िंदा रही, तो मैं बर्बाद हो जाऊँगा।” यह कहकर वह घबराहट में अपनी गाड़ी की तरफ़ भागा और उसी हवेली की ओर निकल गया।
लेकिन अब कहानी का सबसे बड़ा मोड़ आने वाला था। जिस नौजवान ने सड़क पर वीडियो बनाया था, उसने वह वीडियो “पुलिस की गुंडागर्दी” के शीर्षक के साथ सोशल मीडिया पर अपलोड कर दिया था। वह वीडियो आग की तरह फैल गया और प्रिया वर्मा के एक सहायक ने उसे देख लिया। उसने एक पल की भी देरी किए बिना वह वीडियो आईपीएस प्रिया वर्मा को व्हाट्सएप कर दिया।
प्रिया ने जैसे ही वीडियो देखा और अपनी माँ और बहन का सड़क पर वह अपमान होते देखा, उसका खून खौल उठा। उसे पूरी कहानी समझ आ गई। उसने तुरंत अपनी गाड़ी को ट्रैकर्स और कमांडो टीम के साथ थाने की तरफ़ मोड़ा। थाने में जावेद खान नहीं मिला। प्रिया ने तुरंत उसका फ़ोन ट्रैक करवाया। लोकेशन उसी सुनसान हवेली की आ रही थी।
वहीं, जावेद खान हवेली पहुँच चुका था। वह पागलों की तरह अनीता को ठिकाने लगाने के लिए अंदर भागा। उसने कमरे का दरवाज़ा खोला और बोला, “ऐ लड़की, मरने के लिए तैयार हो जा! अगर तू ज़िंदा रही तो मैं नहीं बचूँगा!”
इससे पहले कि वह कुछ कर पाता, प्रिया वर्मा और कमांडो की टीम दरवाज़ा तोड़कर अंदर आ गई। कमांडो ने आते ही इंस्पेक्टर जावेद खान को वहीं दबोच लिया।
अनीता अपनी बहन को देखकर फूट-फूटकर रो पड़ी और उसे सब कुछ बता दिया। प्रिया वर्मा, जिसकी आँखों में आँसू और गुस्सा था, इंस्पेक्टर के करीब आई और उसे एक ज़ोरदार थप्पड़ मारा। फिर अनीता आगे बढ़ी और उसने भी जावेद खान के मुँह पर एक करारा तमाचा जड़ दिया।
प्रिया वर्मा ने जावेद खान और उसके उन सभी साथी पुलिस वालों की वर्दी उतरवा दी, जिन्होंने उसकी माँ और बहन के साथ ज़ुल्म किया था। उन सभी पर हत्या, अपहरण और सत्ता के दुरुपयोग का मुकदमा चलाया गया और उन्हें कड़ी से कड़ी सज़ा मिली।
यह कहानी हमें सिखाती है कि अन्याय, शक्ति का घमंड और सत्ता का दुरुपयोग ज़्यादा देर तक नहीं टिकता। झूठ और ज़ुल्म चाहे जितने भी ताकतवर क्यों न लगें, सच्चाई और इंसाफ़ की आवाज़ आखिरकार जीत ही जाती है।
News
गर्भवती महिला काम मांगने पहुँची… कंपनी का मालिक निकला तलाकशुदा पति, फिर जो हुआ…
गर्भवती महिला काम मांगने पहुँची… कंपनी का मालिक निकला तलाकशुदा पति, फिर जो हुआ… . . दोस्तों, सोचिए ज़रा। एक…
लड़के ने अमीर महिला को बचाया, लेकिन महिला को होश आते ही उसने पुलिस बुला ली
लड़के ने अमीर महिला को बचाया, लेकिन महिला को होश आते ही उसने पुलिस बुला ली . . दिल्ली की…
SDM मैडम से दारोगा ने मांगी रिश्वत और थप्पड़ मारा | फिर जो हुआ सब हैरान रह गए
SDM मैडम से दारोगा ने मांगी रिश्वत और थप्पड़ मारा | फिर जो हुआ सब हैरान रह गए . ….
रिश्ता बचाने के लिए पत्नी के सारे ज़ुल्म सहता रहा, एक दिन गुस्सा आया.. फिर जो हुआ
रिश्ता बचाने के लिए पत्नी के सारे ज़ुल्म सहता रहा, एक दिन गुस्सा आया.. फिर जो हुआ . . रामपुर…
IPS ऑफिसर और इंस्पेक्टर की सड़क पर टक्कर | Golgappa Wala Ka Sach
IPS ऑफिसर और इंस्पेक्टर की सड़क पर टक्कर | Golgappa Wala Ka Sach . . रविवार की सुबह थी। आसमान…
करोड़पति महिला ने मैनेजर को एक बूढ़ी भिखारिन पर पानी फेंकते हुए देखा – 5 मिनट बाद, वही बूढ़ी औरत….
करोड़पति महिला ने मैनेजर को एक बूढ़ी भिखारिन पर पानी फेंकते हुए देखा – 5 मिनट बाद, वही बूढ़ी औरत…….
End of content
No more pages to load



