चौराहे पर दरोगा ने जवान का अपमान किया, AK-47 तानते ही गांव में छा गया सन्नाटा!
गांव की सुबह हमेशा नई आशा लेकर आती है, लेकिन उस दिन कुछ अलग था। चौराहे पर हलचल थी, दरोगा रघुवीर सिंह अपने घमंड में चूर होकर आर्मी के जवान वीरेंद्र चौहान का मजाक उड़ाने लगा। वीरेंद्र गांव में छुट्टी बिताने आया था, लेकिन दरोगा को उसकी लोकप्रियता और सम्मान रास नहीं आ रहा था।
दरोगा ने वीरेंद्र को सबके सामने अपमानित किया। भीड़ के बीच, दरोगा ने अपनी दबंगई दिखाने की कोशिश की, लेकिन वीरेंद्र ने संयम बरता। जब दरोगा ने हद पार की और लाठी लेकर वीरेंद्र की ओर बढ़ा, तो वीरेंद्र का सब्र टूट गया। उसने अपना बैग खोला, AK-47 निकाली और सीधा दरोगा के सीने पर तान दी। पूरा गांव सन्नाटे में डूब गया, औरतें चीख उठीं, बच्चे डर से छिप गए।
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दरोगा के चेहरे से घमंड गायब हो गया, वह सड़क पर गिर पड़ा और रहम की भीख मांगने लगा। वीरेंद्र की आंखों में गुस्सा था, लेकिन साथ ही एक सवाल भी—क्या अपनी ही मिट्टी के रक्षक पर हथियार तानना सही है? तभी गांव के बुजुर्ग रामनाथ ने आगे बढ़कर कहा, “बेटा, बंदूक दुश्मनों के लिए है, अपने भाइयों के लिए नहीं। असली इंसाफ उसकी गलती का एहसास दिलाकर देना है, ना कि जान लेकर।”
वीरेंद्र ने गहरी सांस ली, ट्रिगर से उंगली हटाई और बंदूक नीचे कर दी। भीड़ ने राहत की सांस ली और वीरेंद्र के फैसले की सराहना की। वीरेंद्र ने दरोगा को उठाया और कहा, “आज गोली से नहीं, सच्चाई से हराया है आपको। वर्दी घमंड का नहीं, सेवा का प्रतीक है। अगर घमंड नहीं छोड़ा तो अगली बार कोई और आपको छोड़ने वाला नहीं होगा।”
यह सुनकर दरोगा की आंखों से आंसू छलक पड़े। उसने पूरे गांव से माफी मांगी और वादा किया कि अब वर्दी को सेवा का प्रतीक बनाएगा। गांव वालों ने उसे माफ कर दिया क्योंकि इंसानियत में यही सबसे बड़ी ताकत है।
वीरेंद्र ने गांव के बीच खड़े होकर कहा, “आज की घटना ने हमें सिखाया है कि इंसानियत और सम्मान सबसे ऊपर है। पद और वर्दी का घमंड पल भर में मिट्टी में मिल सकता है, लेकिन सेवा और त्याग की ताकत हमेशा लोगों के दिलों में रहती है।”
उस रात गांव में नई उम्मीद की किरण थी। लोगों को एहसास हुआ कि उनकी मिट्टी पर कोई भी घमंड ज्यादा दिन राज नहीं कर सकता। दरोगा रघुवीर सिंह ने अपने जीवन को बदलने का फैसला किया और वीरेंद्र ने पूरे गांव को इंसाफ और इंसानियत का रास्ता दिखा दिया।
दोस्तों, असली जीत गोली चलाने में नहीं, दिल जीतने में है। आप इस घटना के बारे में क्या सोचते हैं? अपनी राय कमेंट में जरूर लिखें!
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