दोस्त से उधार पैसे लेकर शहर गया था, दस साल बाद करोड़पति बनकर गाँव में दोस्त का क़र्ज़ चुकाने वापस
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सच्ची दोस्ती का कर्ज: रवि और शंकर की कहानी
क्या दोस्ती का कोई मोल होता है? क्या एक सच्चा दोस्त आपकी जिंदगी के सबसे अंधेरे दौर में रोशनी की किरण बन सकता है? जब अपने भी साथ छोड़ दें, तब क्या एक दोस्त का दिया हुआ वादा, सालों बाद भी उतना ही अहम रह जाता है? ऐसी ही एक प्रेरणादायक कहानी है रवि और शंकर की, जो न सिर्फ दोस्ती, त्याग और संघर्ष की मिसाल है, बल्कि यह भी साबित करती है कि अगर इरादे नेक हों और दोस्ती सच्ची हो, तो किस्मत भी आपके सामने झुक जाती है।
रामपुर का संघर्ष
उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल इलाके में घाघरा नदी के किनारे बसा था एक छोटा सा गांव, रामपुर। यहां के लोग अपनी किस्मत और फसलों के भरोसे जीते थे। इसी गांव में रहता था रवि, एक 20 साल का नौजवान, जिसकी आंखों में बड़े सपने थे, लेकिन जेब में एक रुपया भी नहीं था। उसके पिता राम भरोसे एक छोटे किसान थे, जिनकी दो बीघा जमीन से परिवार का पेट भरना पहाड़ खोदने जैसा था। रवि की मां शारदा दिनभर खेत और घर के काम में लगी रहती थीं।
रवि पढ़ाई में होशियार था। उसने 12वीं कक्षा प्रथम श्रेणी में पास की थी और आगे पढ़ना चाहता था, बड़ा आदमी बनना चाहता था। लेकिन घर की गरीबी ने उसके सपनों को जकड़ रखा था। रवि का एक ही सच्चा दोस्त था—शंकर। शंकर पढ़ाई में कमजोर था, पर दिल से बहुत बड़ा था। वह अपने पिता की छोटी दुकान पर बैठता और अपनी छोटी सी दुनिया में खुश रहता था। रवि और शंकर की दोस्ती पूरे गांव में मिसाल थी।
सपनों की ओर पहला कदम
एक दिन रवि के पिता बीमार पड़ गए। गांव के वैद्य ने कहा कि शहर के बड़े अस्पताल में इलाज कराओ, लेकिन पैसे कहां से आते? रवि अपने पिता को मरते नहीं देख सकता था। उसने तय किया कि वह मुंबई जाएगा, काम करेगा और पैसे कमाकर अपने पिता का इलाज कराएगा। लेकिन मुंबई जाने के लिए पैसे चाहिए थे। गांव के सबसे अमीर ठाकुर से लेकर दूसरे लोगों तक, सबने मदद करने से मना कर दिया।
रवि उदास होकर शंकर की दुकान पर बैठा था। शंकर ने उसकी परेशानी पूछी और सब जानकर अपनी दुकान के गल्ले और घर खर्च से ₹5,000 निकालकर रवि को दे दिए। शंकर की पत्नी गीता ने भी अपनी मां के दिए हुए सोने के झुमके गिरवी रखकर और ₹5,000 का इंतजाम किया। रवि के पास कुल ₹10,000 हो गए। शंकर ने कहा, “जा और अपनी किस्मत बदल दे।” रवि ने वादा किया—”जिस दिन मैं कुछ बन गया, सबसे पहले तेरा कर्ज चुकाने आऊंगा।”
मुंबई की जंग
मुंबई पहुंचना एक सपना था, लेकिन वहां की हकीकत बेहद कड़वी थी। पहले ही दिन एक आदमी ने धोखा देकर ₹2,000 ठग लिए। बचे हुए पैसों से रवि ने धारावी की झुग्गी में एक छोटी सी खोली किराए पर ली। उसने मजदूरी, होटल में बर्तन धोना, अखबार बेचना—हर छोटा-बड़ा काम किया। कई बार भूखा सोया, कई बार हार मानने की कगार पर पहुंच गया। इसी बीच, उसके पिता की मौत की खबर आई। रवि टूट गया, लेकिन अपने दोस्त और पिता के सपनों के लिए फिर खड़ा हो गया।
एक दिन एक बड़े सेठ के बगीचे में पौधे सूख रहे थे। रवि, किसान का बेटा, पौधों की देखभाल जानता था। उसने सेठ के पौधों को ठीक किया और उसकी लगन से प्रभावित होकर सेठ ने उसे अपने ऑफिस में नौकरी दे दी। रवि ने वहां कंप्यूटर और अंग्रेजी सीखी। ऑफिस के बाद पार्ट टाइम आईटी कंपनी में कोडिंग सीखी। उसने छोटे व्यापारियों के लिए एक आसान अकाउंटिंग सॉफ्टवेयर बनाने का सपना देखा और दिन-रात मेहनत की।
सफलता की उड़ान
तीन साल की मेहनत के बाद रवि ने ‘मित्र सॉल्यूशंस’ नाम से अपनी कंपनी शुरू की। शुरुआत में किसी ने भरोसा नहीं किया, लेकिन एक बड़े होलसेलर ने उसका सॉफ्टवेयर इस्तेमाल किया और फिर उसकी कंपनी का नाम फैलने लगा। पांच साल में वह करोड़पति बन गया। उसका ऑफिस मुंबई के सबसे महंगे इलाके में था, उसके सैकड़ों कर्मचारी थे, लेकिन दिल में शंकर का कर्ज अब भी बाकी था।
वादा निभाने की घड़ी
दस साल बाद, रवि ने अपने प्राइवेट हेलीकॉप्टर से गांव लौटने का फैसला किया। पूरा गांव हैरान था। रवि ने सबसे पहले शंकर को ढूंढा। शंकर अब टूटी झोपड़ी में, कर्ज में डूबा, मजदूरी कर रहा था। उसकी दुकान जल गई थी, जमीन ठाकुर ने हड़प ली थी। रवि ने शंकर को गले लगाया और कहा—”मैं तेरा कर्ज चुकाने आया हूं।” रवि ने ठाकुर को बुलवाया, शंकर का सारा कर्ज ब्याज समेत चुका दिया, उसकी जमीन वापस दिलवाई और गांव में उसके लिए नया घर बनवाया।
रवि ने शंकर की पत्नी का इलाज कराया, बच्चों की पढ़ाई का जिम्मा लिया, और अपनी कंपनी का 10% हिस्सा शंकर के नाम कर दिया। उसने गांव में स्कूल, अस्पताल, कोल्ड स्टोरेज, कॉल सेंटर, और सॉफ्टवेयर यूनिट खोलने का ऐलान किया। गांव की तस्वीर बदल गई—कच्ची सड़कें पक्की हो गईं, हर बच्चा स्कूल जाने लगा, रोजगार के नए अवसर खुले।
दोस्ती का असली मोल
एक शाम दोनों दोस्त नदी किनारे बैठे थे। शंकर बोला, “रवि, तूने तो गांव को स्वर्ग बना दिया।” रवि मुस्कुराया, “नहीं शंकर, यह सब तुम्हारी दोस्ती का कर्ज है। अगर उस रात तुमने मुझ पर भरोसा न किया होता, तो आज मैं भी कहीं खो जाता।”
यह कहानी हमें सिखाती है कि सच्ची दोस्ती दुनिया की सबसे बड़ी दौलत है। एक किया हुआ वादा, अगर सच्चे दिल से निभाया जाए, तो वह न सिर्फ दो लोगों की, बल्कि पूरे समाज की किस्मत बदल सकता है।
अगर रवि और शंकर की दोस्ती ने आपके दिल को छुआ है, तो इस कहानी को अपने दोस्तों के साथ शेयर करें और उन्हें बताएं कि वो आपके लिए कितने कीमती हैं। सच्ची दोस्ती, सच्चा त्याग और सच्चा संघर्ष—यही जिंदगी की असली जीत है।
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