👉 साधारण लड़की समझकर दरोगा ने की IPS मैडम से बत्तीमीजी, फिर IPS ने जो किया सब हक्के-बक्के रह गए!

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साधारण लड़की समझकर दरोगा ने की IPS मैडम से बत्तीमीजी, फिर IPS ने जो किया सब हक्के-बक्के रह गए!

चंद्रपुर शहर की धड़कन अगर कोई है, तो वह है विजय चौक। यह शहर के कोने में बसा एक चौराहा है, जो दिनभर धूल, धुएं और गाड़ियों के शोर में डूबा रहता है। विजय चौक से गुजरते हैं पूरे शहर के लिए अनाज, सब्जी और जरूरी सामान से भरे ट्रक। कहते हैं कि अगर कभी विजय चौक एक दिन के लिए रुक जाए, तो चंद्रपुर के आधे घरों में चूल्हा नहीं जल पाएगा।

लेकिन इस चौराहे की एक काली सच्चाई भी है, जो हर ट्रक वाले, ऑटो वाले और राहगीर की जुबान पर तो नहीं, पर दिल के अंदर दबी हुई है। यह पहचान है वसूली की। विजय चौक और इसके आस-पास के नाकों पर पुलिस तैनात रहती है। कागजों में यह तैनाती ट्रैफिक कंट्रोल और अपराध रोकने के लिए होती है, लेकिन हकीकत में यह एक खुला लूट का अड्डा है।

हर गाड़ी, चाहे वह बड़ा ट्रक हो या छोटा ऑटो, यहां से गुजरने के लिए पुलिस को पैसे देना पड़ते हैं। सिस्टम बड़ा सीधा था — एक हवलदार डंडा लिए खड़ा रहता, ड्राइवर चुपचाप खिड़की से नोट निकालता, हवलदार उसे जेब में रखता और डंडे से आगे बढ़ने का इशारा कर देता। कोई बहस नहीं, कोई सवाल नहीं। इसे “खर्चा पानी”, “चाय नाश्ता” या प्यार से “राजवीर जी का हफ्ता” कहा जाता था।

राजवीर सिंह उस इलाके के थानेदार थे, जिनका पेट शायद ही कभी भरता था। एक-एक ट्रक से 100 से 200 रुपये वसूले जाते थे, और दिन भर हजारों गाड़ियां गुजरती थीं। हिसाब लगाया जाए तो रोजाना लाखों रुपए की अवैध कमाई सीधे पुलिस की जेब में जाती थी। यह पैसा कांस्टेबल से लेकर बड़े अफसरों तक बंटता था। जनता सब देख रही थी, लेकिन डर के मारे कोई आवाज़ नहीं उठा पाता था। जो भी सवाल करता, उसे थाने में बंद कर दिया जाता, मारपीट होती या झूठे केस में फंसा दिया जाता।

चंद्रपुर में इंसाफ एक मजाक बन चुका था, और इसका सबसे बड़ा कारण वही थे जिनके कंधों पर इंसाफ की जिम्मेदारी थी। विजय चौक पर वसूली का यह घिनौना खेल 24 घंटे चलता रहता था।

आईपीएस अंजलि वर्मा का आगमन

एक दिन चंद्रपुर पुलिस हेडक्वार्टर में एक नई जीप आई। उसमें से उतरी एक महिला अधिकारी, जो किसी आम इंसान जैसी नहीं थी। सीधी-सपाट वर्दी, कंधों पर चमकते सितारे, तेज नजरें और चेहरे पर जरा भी मुस्कान नहीं। वह थीं आईपीएस अंजलि वर्मा।

अंजलि का नाम पुलिस विभाग में पहले से ही जाना माना था। उनकी पिछली पोस्टिंग में उन्होंने शराब माफिया की कमर तोड़ दी थी, और एक बड़े नेता के बेटे को सलाखों के पीछे पहुंचाया था। उनका काम करने का तरीका सीधा था — न किसी से डरती थीं, न किसी के आगे झुकती थीं। जहां भी जातीं, अपराधियों के लिए खौफ और ईमानदार लोगों के लिए उम्मीद लेकर आती थीं।

उनकी चंद्रपुर में पोस्टिंग की खबर ने कई बड़े अफसरों की नींद उड़ा दी थी, क्योंकि वे जानते थे कि अंजलि चुपचाप बैठकर सिस्टम का हिस्सा नहीं बनेंगी।

विजय चौक की जांच

अंजलि ने चार्ज लेने के बाद हफ्ते भर तक कुछ खास कार्रवाई नहीं की। वह बस अपनी जीप में बैठकर शहर का दौरा करतीं, खासकर विजय चौक के आसपास। वहां वह देखतीं कि कैसे ट्रकों को रोका जाता है, कैसे ड्राइवर चुपचाप पैसे देते हैं, और कैसे पुलिस वाले बेशर्मी से वसूली करते हैं।

यह सब उनकी आंखों के सामने था, लेकिन उन्होंने समझा कि सिर्फ देखने से कुछ नहीं होगा। ठोस सबूत चाहिए थे। और सबसे बड़ी मुश्किल यह थी कि यह खेल पुलिस विभाग के अंदर ही चल रहा था। जो ईमानदार अफसर बचे थे, वे इतने डरे हुए थे कि कोई मुंह खोलने को तैयार नहीं था।

अंजलि ने कई रातें ऑफिस में बिताईं, सोचती रहीं कि इस घिनौने खेल पर कैसे कार्रवाई करें। अगर सीधे एक्शन लिया तो सबूत मिटा दिए जाएंगे, गवाह नहीं मिलेगा, और ऊपर बैठे लोग उन्हें झूठे केस में फंसाकर ट्रांसफर करवा देंगे। यह दुविधा उन्हें अंदर से खा रही थी।

चालाकी भरा प्लान

अंजलि ने फैसला किया कि उन्हें खुद इस गंदे तालाब में उतरना होगा। उन्होंने अपनी वर्दी अलमारी में टांग दी और एक पुरानी साधारण सलवार-कमीज निकाली। सिर पर लंबा दुपट्टा ओढ़ा, जिससे चेहरा आधा छिप जाए। हाथ में एक कपड़े का थैला लिया, जिसमें सब्जियां थीं, और उसके नीचे एक छोटा मोबाइल छुपा रखा था, जो कैमरा चालू था।

अब वह आईपीएस अंजलि नहीं, बल्कि एक आम औरत बन गई थीं। वह एक ऑटो में बैठीं और विजय चौक से पहले उतर गईं। वहां से पैदल चलने लगीं, बिल्कुल एक आम नागरिक की तरह।

विजय चौक पर वसूली का खुलासा

चौराहे पर हवलदार रमन सिंह डंडा लिए खड़ा था, उसके साथ दो कांस्टेबल भी थे। अंजलि ने मोबाइल कैमरे से रिकॉर्डिंग शुरू की। देखा कि कैसे एक ऑटो वाले ने नोट दिया, कैसे मिनी ट्रक वाले से पैसे वसूले गए। पैसे सीधे हवलदार की जेब में जा रहे थे।

अंजलि ने चाय की दुकान के पास खड़े होकर रिकॉर्डिंग जारी रखी। लेकिन उनकी चाल ढाल थोड़ी अलग थी। हवलदार की नजर उन पर पड़ी और उसे शक हुआ। उसने बुलाया, “ए औरत, इधर आ!”

अंजलि ने डरते हुए कहा, “साहब, मैं बाजार से सब्जी ला रही हूं।”

हवलदार ने थैला दिखाने को कहा। अंजलि को डर था कि मोबाइल पकड़ लिया जाएगा। वह थोड़ा गिड़गिड़ाने लगीं, पर हवलदार का शक बढ़ता गया। एक कांस्टेबल ने उनका हाथ पकड़ लिया और थैला छीनने की कोशिश की। अंजलि ने हाथ छुड़ाया, लेकिन धक्का लगने से उनका थैला गिर गया, मोबाइल बाहर आ गया।

सच्चाई का सामना

मोबाइल देखकर कांस्टेबल गुस्से से लाल हो गए। उन्होंने उसे जमीन पर पटककर जूते से कुचल दिया। हवलदार ने फिर से अंजलि का हाथ पकड़ लिया और धमकी दी, “आज तुझे ऐसा सबक सिखाएंगे कि याद रखेगी।”

इसी बीच अंजलि का दुपट्टा खिसक गया, और सामने वाले दंग रह गए। वह कोई आम औरत नहीं, बल्कि जिले की सबसे बड़ी पुलिस अफसर थीं — आईपीएस अंजलि वर्मा!

उनके चेहरे का रंग उड़ गया। हाथ-पैर कांपने लगे और पसीना छूट गया। तीनों पुलिस वालों की आंखें फटी रह गईं। अब वे जानते थे कि जिस औरत को वे धमका रहे थे, वह उनकी सुपर बॉस थी।

कड़ा एक्शन

अंजलि ने जमीन पर पड़े टूटे हुए मोबाइल को देखा, फिर तीनों के डरे हुए चेहरे। उनकी आंखों में गुस्सा नहीं, बल्कि ठंडी फौलादी चमक थी।

उन्होंने कहा, “आज तुम्हारी वर्दी का आखिरी दिन है। और इस वसूली के धंधे का भी।”

फिर उन्होंने अपनी जेब से वॉकी टॉकी निकाली और कंट्रोल रूम को आदेश दिया, “अल्फा वन 2, विजय चौक पर स्पेशल टीम भेजो, तत्काल।”

पांच मिनट में नीली बत्ती वाली चार पुलिस जीपें आईं। काले कमांडो सूट में जवान उतरे, ऑटोमेटिक हथियार लिए। उन्होंने पूरे चौराहे को घेर लिया।

इंस्पेक्टर विजय ने आकर कहा, “इन तीनों को गिरफ्तार करो।”

अंजलि ने आदेश दिया कि चौक पर ड्यूटी पर मौजूद सभी पुलिस वालों को हिरासत में लिया जाए। कोई बच नहीं पाएगा।

भ्रष्टाचार का पर्दाफाश

स्पेशल टीम ने 17 पुलिसकर्मियों और दो दलालों को गिरफ्तार किया। सभी के हाथ बांधकर जमीन पर बैठा दिया गया। अंजलि ने निर्देश दिए कि सभी की जेब की तलाशी ली जाए, सीसीटीवी फुटेज जब्त किए जाएं, और मोबाइल का मेमोरी कार्ड फॉरेंसिक लैब भेजा जाए।

भीड़ जमा हो गई। लोग अपनी आंखों पर विश्वास नहीं कर पा रहे थे कि पुलिस खुद पुलिस को पकड़ रही है। यह पहली बार था जब विजय चौक पर वसूली का पर्दाफाश हुआ।

राजनीतिक दबाव और चुनौती

रात को अंजलि के ऑफिस का फोन बजा। दूसरी तरफ विधायक प्रदीप चौहान की मीठी लेकिन जहरीली आवाज थी। उन्होंने धमकी दी कि यह सब छोटे सिपाही हैं, और बड़े अफसरों को न छेड़ा जाए।

अंजलि ने साफ कहा, “मैं अपनी लाइन की चिंता नहीं करती। जो कानून तोड़ रहे हैं, उन्हें नहीं छोड़ूंगी।”

डीआईजी से टकराव

अगले दिन डीआईजी शर्मा ने अंजलि को फटकार लगाई कि बिना सीनियर को बताए इतना बड़ा ऑपरेशन किया। अंजलि ने जवाब दिया, “डिपार्टमेंट की बदनामी तब होती है जब उसके लोग वसूली करते हैं। मैंने उसे साफ करने की कोशिश की है।”

डीआईजी ने आदेश दिया कि मामला बंद कर दिया जाए, लेकिन अंजलि ने इनकार कर दिया।

प्रेस कॉन्फ्रेंस और जनता का समर्थन

अंजलि ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर सबूत पेश किए — सीसीटीवी फुटेज, दलालों के कबूलनामे, और मोबाइल की रिकॉर्डिंग। उन्होंने कहा कि अगर यह हो सकता है आईपीएस के साथ, तो आम आदमी का क्या हाल होगा।

यह खबर तेजी से फैली। जनता और मीडिया ने अंजलि का समर्थन किया। भ्रष्ट नेता और अफसर बौखला गए।

कीचड़ उछालने की कोशिश

दुश्मनों ने अंजलि के खिलाफ झूठे आरोप लगाए, लेकिन अंजलि ने एक और प्रेस कॉन्फ्रेंस कर खुला चैलेंज दिया। उन्होंने कहा कि अगर उनके खिलाफ सबूत है तो सामने लाएं, नहीं तो अफवाह फैलाने वालों को कड़ी सजा मिलेगी।

जानलेवा हमला और दृढ़ता

एक रात अंजलि के घर लौटते वक्त बाइक सवारों ने पीछा किया और काली एसयूवी ने रास्ता रोका। नकाबपोश लोग हॉकी स्टिक लेकर उन पर टूट पड़े। अंजलि ने रिवॉल्वर निकाल कर ड्राइवर को गाड़ी तेज करने को कहा। वे बच निकलीं।

अगले दिन अंजलि ने कहा, “अब खेल बदलेगा, मैं उनका शिकार करूंगी।”

बड़े सिंडिकेट तक पहुंच

अंजलि ने गुप्त बैठक बुलाई, एंटी करप्शन ब्यूरो, क्राइम ब्रांच और इंटेलिजेंस यूनिट के अफसरों को बुलाया। उन्होंने बताया कि यह सिर्फ एक छोटा कोना है, मकड़ी का जाल कहीं और है।

72 घंटे की कड़ी मेहनत के बाद एक हवलदार टूटा और बताया कि वसूली का पैसा थानेदार राजवीर सिंह, डीआईजी शर्मा और विधायक प्रदीप चौहान के पास जाता है।

बड़े नेताओं की गिरफ्तारी

अंजलि ने वारंट जारी किया। प्रदीप चौहान को फार्म हाउस से गिरफ्तार किया गया। डीआईजी शर्मा को उनके ऑफिस से। यह राज्य में फैले बड़े सिंडिकेट का खुलासा था।

जीत और संदेश

अंजलि वर्मा ने साबित कर दिया कि एक निडर और ईमानदार अधिकारी पूरे सिस्टम को बदल सकता है। जनता ने उन्हें समर्थन दिया और भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई में साथ खड़ा हुआ।

यह कहानी हमें सिखाती है कि चाहे सिस्टम कितना भी भ्रष्ट क्यों न हो, अगर एक ईमानदार और साहसी इंसान सामने आए, तो बदलाव संभव है। डर के आगे हार मानना नहीं, बल्कि हिम्मत से लड़ना ही सही रास्ता है।

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जय हिंद, जय भारत।

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