इंद्रेश जी महाराज ने कितना दहेज लिया! Inside Story Of Indresh Upadhyay Marriage

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इंद्रेश उपाध्याय महाराज की शादी में दहेज का सच: एक आदर्श विवाह की प्रेरक कहानी

परिचय: सवालों के घेरे में आदर्श विवाह

पिछले कुछ दिनों से सोशल मीडिया पर एक सवाल जंगल की आग की तरह फैल रहा है—क्या देश के सबसे लोकप्रिय युवा कथावाचक इंद्रेश उपाध्याय महाराज ने अपनी शादी में दहेज लिया? करोड़ों की लोकप्रियता, लाखों फॉलोअर्स, और भक्ति जगत में चमकता नाम। जब उनकी शादी की खबर आई, तो सबसे ज्यादा चर्चा इसी बात की होने लगी कि क्या वे भी दहेज जैसी कुप्रथा को अपनाएंगे या नहीं। इस सवाल ने लोगों को सोचने पर मजबूर कर दिया कि जिनसे समाज उम्मीदें लगाता है, वे अपनी निजी जिंदगी में क्या उदाहरण पेश करते हैं।

कौन हैं इंद्रेश उपाध्याय महाराज?

इंद्रेश उपाध्याय जी का जन्म 7 अगस्त 1997 को पवित्र वृंदावन धाम में हुआ। वे प्रसिद्ध कथावाचक कृष्णचंद्र शास्त्री महाराज के पुत्र हैं। बचपन से ही वे शास्त्रों, भक्ति और कथा की ओर आकर्षित हो गए थे। मात्र 13 वर्ष की उम्र में श्रीमद्भगवत गीता का अध्ययन पूरा कर चुके थे। आज वे देश के सबसे युवा और लोकप्रिय कथावाचकों में गिने जाते हैं। उनके प्रवचन और भजन लाखों लोग सुनते हैं। सोशल मीडिया पर उनकी व्यापक फैन फॉलोइंग है। उन्होंने भक्ति आंदोलन की स्थापना की, जिसका उद्देश्य युवाओं को आध्यात्मिक मार्ग की ओर प्रेरित करना है।

शादी की खबर और समाज की प्रतिक्रिया

जब इतना बड़ा कथावाचक शादी करता है, तो स्वाभाविक है कि पूरे देश की निगाहें उस पर टिक जाती हैं। लोग यह देखना चाहते हैं कि क्या वे भी दहेज जैसी कुप्रथा अपनाते हैं या नहीं। नवंबर से ही उनकी शादी की अफवाहें तैर रही थीं और दिसंबर की शुरुआत में पुष्टि हुई कि इंद्रेश उपाध्याय जी 5 दिसंबर 2025 को विवाह बंधन में बंधने वाले हैं। वृंदावन स्थित रमण रेती आवास पर हल्दी, संगीत और पारंपरिक रस्मों की तैयारियां धूमधाम से शुरू हो गईं।

शादी की रस्में और आयोजन

घर को फूलों से सजाया गया था और हर तरफ उत्साह ही उत्साह था। हल्दी की रस्म के दौरान इंद्रेश जी पीले कुर्ते-पजामे में नजर आए और उनकी मां ने बड़े प्रेम से उन्हें हल्दी लगाई। जब वृंदावन से बारात निकली तो वह देखने लायक थी। दूल्हा ऑफ व्हाइट शेरवानी और पारंपरिक राजस्थानी पगड़ी में, हाथ में चांदी की छड़ी लिए बेहद शाही अंदाज में सजा हुआ था। बारात में हाथी-घोड़े, बैंक-बाजा और भक्तों का उत्साह मिलकर एक आध्यात्मिक उत्सव जैसा दृश्य बना रहे थे। गली-गली लोग छतों पर खड़े होकर दूल्हे को देखने और आशीर्वाद देने जुट गए।

दुल्हन शिप्रा शर्मा और परिवार

शिप्रा शर्मा जी मूल रूप से हरियाणा के यमुनानगर की रहने वाली हैं, वर्तमान में अमृतसर में बसती हैं। उनके पिता पंडित नरेंद्र शर्मा यूपी पुलिस में डीएसपी रह चुके हैं। दोनों परिवारों की पुरानी जान-पहचान और आत्मीयता ने इस रिश्ते की डोर को मजबूत किया। शिप्रा जी पहले भी कई बार भक्ति वीडियो में दिखाई देती थीं। वे भी इंद्रेश जी की तरह कृष्ण भक्ति में लीन रहती हैं। शादी के दौरान शिप्रा जी गोल्डन सिल्क साड़ी और लाल दुपट्टे में बेहद सादगीपूर्ण और दिव्य लग रही थीं। न भारी जेवर, न कोई दिखावा—बस एक शांत, पवित्र व्यक्तित्व।

विवाह स्थल और वैदिक परंपराएं

5 दिसंबर 2025 को जयपुर के प्रतिष्ठित ताज आमेर होटल में विवाह संपन्न हुआ। होटल को मिनी वृंदावन की थीम पर सजाया गया था। राधाकृष्ण की झांकियां, फूलों की महक, दीपकों की रोशनी, पूरा वातावरण भक्तिमय था। विवाह मंडप को तिरुपति बालाजी मंदिर की शैली में तैयार किया गया था। सुबह से दोपहर तक मुख्य विवाह संस्कार चले। खास बात थी देश भर के 101 विद्वान पंडितों की उपस्थिति। हरिद्वार, नासिक, काशी, वृंदावन, उज्जैन, अयोध्या, केदारनाथ, बद्रीनाथ जैसे पवित्र स्थानों से पंडित बुलाए गए थे। तीन घंटे तक वैदिक मंत्रोच्चार के बीच सभी रस्में पूर्ण हुईं।

दहेज का सवाल: सच्चाई क्या है?

अब आते हैं उस सवाल पर जिसका जवाब लोग सबसे ज्यादा जानना चाहते थे—इंद्रेश उपाध्याय जी ने दहेज कितना लिया?

पूरी शादी में दहेज का जरा सा भी उल्लेख नहीं हुआ। न कोई रकम की बात, न किसी सामान की, न गाड़ी, न जमीन-जायदाद। किसी भी मीडिया रिपोर्ट, पोस्ट, वीडियो या इंटरव्यू में दहेज शब्द तक का जिक्र नहीं मिला। यह विवाह पूरी तरह वैदिक परंपराओं के अनुसार संपन्न हुआ, जहाँ केवल कन्यादान हुआ। कोई आर्थिक लेन-देन नहीं। पंडितों ने मंत्रोच्चार के साथ विवाह संस्कार करवाया। अग्नि साक्षी बनी और दो आत्माएँ एक हो गईं।

शादी में भव्यता, लेकिन दिखावा नहीं

सोचिए, 101 पंडितों की व्यवस्था, ताज आमेर जैसे भव्य स्थल पर आयोजन, देश भर से आए संतों का स्वागत सत्कार, तिरुपति बालाजी की तर्ज पर तैयार विशेष विवाह मंडप, तीन दिनों तक चलने वाले कार्यक्रम—यह सब निश्चित ही करोड़ों में गया होगा। लेकिन परंपरा के अनुसार दोनों परिवारों ने अपने-अपने हिस्से का खर्च उठाया। कहीं भी दहेज जैसी कोई बात सामने नहीं आई। यह शादी प्रेम और भक्ति की थी, पैसों और दिखावे की नहीं।

समाज को संदेश

इंद्रेश जी ने समाज को एक बड़ा संदेश दिया कि असली शादी दो दिलों के मिलन से बनती है, न कि दो बैंक अकाउंटों से। शिप्रा जी के पिता उत्तर प्रदेश पुलिस में डीएसपी रहे हैं। सम्मानित परिवार होने के बावजूद उन्होंने दहेज की कोई मांग या दिखावा नहीं किया। दोनों परिवारों ने मिलकर ऐसा सात्विक और पवित्र विवाह आयोजित किया जिसकी हर जगह तारीफ हुई।

बागेश्वर धाम के धीरेंद्र शास्त्री जी ने कहा, “इंद्रेश जी की शादी युवाओं के लिए मिसाल है।”
कुमार विश्वास जी ने कहा, “यह विवाह दर्शाता है, धर्म और संस्कार ही सबसे बड़ी संपत्ति है।”
जया किशोरी जी ने बताया, “शिप्रा जी सच में भाग्यशाली हैं कि उन्हें ऐसा जीवन साथी मिला और यह शादी सिखाती है कि दहेज नहीं बल्कि प्रेम, विश्वास और भक्ति ही विवाह की नींव है।”

शादी के बाद की योजनाएँ

शादी के बाद इंद्रेश जी ने कहा कि अब वे कथाओं को और तेज गति से आगे बढ़ाएंगे और पूरे देश में युवाओं तक भक्ति का संदेश पहुँचाएंगे। उनका मानना है कि आज का युवा भटक रहा है और उसे सही दिशा की जरूरत है। वे चाहते हैं कि युवा अपनी ऊर्जा सही जगह लगाए और समाज के लिए उपयोगी कार्य करें। शिप्रा जी भी महिलाओं के बीच कार्य करेंगी और बताएंगी कि गृहस्थ जीवन में रहते हुए भी भक्ति सहजता से की जा सकती है।

दंपति की केमिस्ट्री और प्रेरणा

दोनों एक-दूसरे को खूब समझते हैं। सोच भी काफी हद तक एक सी है और दोनों का लक्ष्य है समाज सेवा और भक्ति का प्रचार। शादी के बाद आए वीडियो में उनकी खुशियाँ साफ दिखाई देती हैं। एक वीडियो में दोनों मिलकर कृष्ण जी की आरती कर रहे थे। एक और वीडियो में दोनों वृंदावन की गलियों में घूमते दिखे। लोग उन्हें आशीर्वाद दे रहे थे और शादी की बधाइयाँ दे रहे थे।

दहेज मुक्त विवाह की मिसाल

यह शादी हमें कई बातें समझाती है। पहली—दहेज की कोई जरूरत नहीं होती। शादी प्रेम, समझ और संस्कारों से चलती है, पैसों से नहीं। दूसरी—भव्यता और सादगी दोनों साथ जी सकती हैं। तीसरी—वैदिक परंपराओं के साथ भी एक खूबसूरत विवाह पूरी शालीनता से किया जा सकता है। चौथी—जब दो लोग एक-दूसरे को दिल से चाहते हैं, तो उनकी शादी खुशहाल ही रहती है।

निष्कर्ष: समाज में बदलाव की शुरुआत

इंद्रेश जी की शादी समाज के लिए एक बड़ी मिसाल बनकर सामने आई। युवाओं ने सोशल मीडिया पर उनकी बहुत प्रशंसा की है और कहा है कि वे भी अपनी शादी इसी तरह सरल और पवित्र रखना चाहेंगे। अब हमें भी इस शादी से सीख लेनी चाहिए—दहेज जैसी कुप्रथा का विरोध करना चाहिए और अपनी शादियों को पवित्र और सादगीपूर्ण बनाना चाहिए। जब समाज इस सोच को अपनाना शुरू करेगा तो किसी बेटी का पिता परेशान नहीं होगा, न ही दहेज के कारण कोई लड़की प्रताड़ित होगी।

इंद्रेश जी और शिप्रा जी की यह नई शुरुआत सिर्फ उनके जीवन की शुरुआत नहीं, बल्कि समाज में परिवर्तन की भी शुरुआत है। उन्होंने साबित किया है कि अपने सिद्धांतों पर टिके रहकर भी शानदार जीवन जिया जा सकता है। जब आप सही रास्ते पर चलते हैं तो ईश्वर भी साथ देता है।

इस शादी ने समाज को नया रास्ता दिखाया—दहेज के बिना भी विवाह संभव है। यही असली भक्ति, असली संस्कार और असली इंसानियत है।

समाप्त