बिजनेसमैन को प्लेन में आ गया था हार्ट अटैक , लड़के ने अपनी सूझ बूझ से उसकी जान बचाई ,उसके बाद जो हुआ

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आसमान में बदली तक़दीर — एक मजदूर लड़के ने बिजनेसमैन की जान बचाई

लखनऊ की पुरानी बस्ती में एक मध्यमवर्गीय परिवार रहता था। उस परिवार का इकलौता बेटा था राहुल मिश्रा, जिसकी आँखों में बड़े-बड़े सपने थे, लेकिन किस्मत जैसे उससे रूठी हुई थी। राहुल ने शहर के सबसे अच्छे कॉलेज से बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन में गोल्ड मेडल के साथ ग्रेजुएशन किया था। उसके पिता अशोक जी सरकारी नौकरी से रिटायर हो चुके थे, और माँ सरला जी ने अपने गहने तक बेच दिए थे ताकि घर का खर्च और अशोक जी के इलाज का इंतज़ाम हो सके। लेकिन पिछले दो सालों में मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा था। सारी जमा पूंजी इलाज में चली गई, कर्ज बढ़ गया, और घर की हालत बद से बदतर हो गई।

राहुल ने नौकरी के लिए शहर की हर कंपनी के दरवाजे पर दस्तक दी। हर इंटरव्यू में उसके ज्ञान की तारीफ होती, लेकिन नौकरी कभी नहीं मिलती। कभी अनुभव की कमी, कभी जगह खाली नहीं होने का बहाना। धीरे-धीरे राहुल की उम्मीदें टूटने लगीं। उसकी गोल्ड मेडल की डिग्री उसे बेकार कागज़ का टुकड़ा लगने लगी। जब एक रात उसने अपनी माँ को आंगन में चुपके-चुपके रोते देखा, तो उसका दिल टूट गया। उसने फैसला किया कि वह दुबई जाकर मजदूरी करेगा, ताकि परिवार का पेट पाल सके।

राहुल ने अपने दोस्त से बात की, जो दुबई की एक कंस्ट्रक्शन कंपनी में काम करता था। उसने बताया कि वहाँ मजदूरों की बहुत जरूरत है, काम मुश्किल है, लेकिन महीने के ₹15-20000 मिल जाएंगे। राहुल के लिए यह रकम किसी खजाने से कम नहीं थी। उसने अपने सपनों, डिग्रियों को संदूक में बंद किया और परिवार से झूठ बोल दिया कि उसे दुबई की बड़ी कंपनी में सुपरवाइजर की नौकरी मिली है। एजेंट को पैसे देने के लिए घर का बचा सामान भी बेच दिया। दिल्ली एयरपोर्ट पर माँ-बाप की आँखों में खुशी के आँसू थे, लेकिन राहुल जानता था कि वह अंधेरे कुएँ में छलांग लगाने जा रहा है।

उसी दिन उसी एयरपोर्ट पर देश के सबसे अमीर और ताकतवर बिजनेसमैन, राजवीर सिंघानिया भी थे। सिंघानिया ग्रुप ऑफ इंडस्ट्रीज के मालिक, जिन्होंने अपनी मेहनत और बेरहम नीतियों से कारोबार को ग्लोबल एम्पायर बना दिया था। उनके लिए रिश्ते, भावनाएँ, इंसानियत सब किताबों की बातें थीं। उनकी दुनिया सिर्फ प्रॉफिट, लॉस और डील्स के इर्द-गिर्द घूमती थी। वे दुबई एक बड़ी डील के सिलसिले में जा रहे थे।

प्लेन ने उड़ान भरी। राहुल इकोनॉमी क्लास की खिड़की वाली सीट पर बैठा नीचे छूटते अपने देश को देख रहा था। उसकी आँखों में आँसू थे, दिल भारी था। भविष्य अनिश्चित था। वहीं फर्स्ट क्लास में राजवीर सिंघानिया अपने लैपटॉप पर झुके हुए थे, प्रेजेंटेशन देख रहे थे। पिछले कुछ दिनों से उन्हें सीने में दर्द महसूस हो रहा था, लेकिन उन्होंने उसे काम के तनाव का नतीजा समझकर नजरअंदाज कर दिया था।

प्लेन को उड़े दो घंटे हो चुके थे, वह अरब सागर के ऊपर था। तभी फर्स्ट क्लास कैबिन में हड़कंप मच गया। राजवीर सिंघानिया को सीने में तेज दर्द हुआ, सांस लेना मुश्किल हो गया, माथे पर पसीना आ गया और वह कुर्सी से नीचे गिर गए। एयर होस्टेस ने तुरंत घोषणा की, “क्या प्लेन में कोई डॉक्टर है?” लेकिन कोई डॉक्टर मौजूद नहीं था। क्रू ने फर्स्ट एड देने की कोशिश की, लेकिन हालत बिगड़ती जा रही थी। पायलट ने इमरजेंसी लैंडिंग की इजाजत मांगी, लेकिन उसमें भी 40 मिनट थे और डॉक्टर जानते थे कि उनके पास 40 सेकंड भी नहीं हैं।

यह शोर इकोनॉमी क्लास तक पहुंचा। राहुल ने सुना कि किसी को हार्ट अटैक आया है। उसे याद आया कि कॉलेज के दिनों में उसने एनसीसी कैंप में सीपीआर की ट्रेनिंग ली थी। वह झिझका, लेकिन फिर उसके अंदर का इंसान जागा। उसने क्रू से कहा, “मैं डॉक्टर नहीं हूँ, लेकिन मुझे सीपीआर देना आता है। प्लीज मुझे एक मौका दीजिए।” उसकी आँखों में सच्चाई और अर्जेंसी देखकर क्रू ने रास्ता दे दिया।

राहुल ने राजवीर सिंघानिया की नब्ज़ चेक की, जो लगभग बंद हो चुकी थी। उसने बिना देर किए सीपीआर देना शुरू किया। वह अपने दोनों हाथों से एक खास लय में उनके सीने को दबा रहा था। यह बहुत थका देने वाला काम था, लेकिन राहुल अपनी पूरी ताकत और आत्मा से जुट गया। वह सिर्फ एक शरीर को नहीं, एक जिंदगी को वापस लाने की कोशिश कर रहा था। मिनट गुजरते रहे, हर पल एक घंटे जैसा लग रहा था। प्लेन में सन्नाटा था, सबकी निगाहें राहुल पर थीं।

करीब दस मिनट की मशक्कत के बाद चमत्कार हुआ। राजवीर सिंघानिया के शरीर में हल्की हरकत हुई, उन्होंने लंबी सांस ली, आँखें खुलीं। पूरे प्लेन में तालियों की गड़गड़ाहट गूंज उठी। एयर होस्टेस की आँखों में खुशी के आँसू थे। राहुल पसीने से तर-बतर वहीं बैठ गया, जैसे उसने अपनी जिंदगी की सबसे बड़ी लड़ाई जीत ली हो।

प्लेन ने दुबई में इमरजेंसी लैंडिंग की। राजवीर सिंघानिया को अस्पताल ले जाया गया। डॉक्टरों ने बताया कि अगर समय पर सीपीआर ना मिलता, तो उनका बचना नामुमकिन था। राहुल ने सचमुच उनकी जान बचाई थी। दो दिन बाद जब राजवीर को होश आया, उन्होंने एयरलाइन से उस लड़के का नाम पूछा। रिकॉर्ड्स से पता चला, राहुल मिश्रा।

राजवीर सिंघानिया ने अपने ऑफिस के मैनेजर को कहा, “मुझे यह लड़का चाहिए, कहीं भी हो उसे ढूंढकर मेरे सामने लाओ।” दुबई में लाखों भारतीय मजदूर, उनमें से एक राहुल को ढूंढना समंदर में मोती खोजने जैसा था। टीम ने लेबर कैंप, कंस्ट्रक्शन साइट्स पर राहुल की तस्वीर दिखाकर पूछताछ शुरू की। इधर राहुल की जिंदगी नरक बन चुकी थी, वह पत्थर तोड़ रहा था, लेकिन घर पैसे भेजने के लिए सब सह रहा था।

एक हफ्ते बाद टीम को सुराग मिला। एक सुपरवाइजर ने राहुल की तस्वीर पहचान ली। राजवीर सिंघानिया की रॉल्स रॉयस लेबर कैंप के बाहर रुकी। राजवीर, जो ऐसे इलाकों की तरफ देखना भी पसंद नहीं करते थे, खुद वहाँ आए। मैनेजर ने राहुल को बुलाया। राहुल डर गया, लगा शायद उसे नौकरी से निकाल दिया जाएगा। वो पसीने और धूल से सने कपड़ों में गाड़ी के पास पहुंचा। शीशा नीचे हुआ, अंदर वही आदमी था जिसकी जान उसने बचाई थी।

राजवीर बाहर आए, राहुल को गले लगा लिया। “मैं तुम्हें कहां-कहां नहीं ढूंढता रहा बेटे।” राहुल हैरान था। राजवीर उसे होटल ले गए, उसकी पूरी कहानी सुनी। उन्होंने राहुल की काबिलियत, मजबूरी, परिवार के बलिदान के बारे में जाना। उन्हें एहसास हुआ कि यह लड़का सिर्फ जीवनदाता ही नहीं, बल्कि एक हीरा है जिसे दुनिया ने धूल में फेंक दिया था।

उन्होंने उसी वक्त फैसला किया, “तुम्हारी जगह यहाँ मजदूरी नहीं, मेरे साथ है इंडिया में।” उन्होंने राहुल का कॉन्ट्रैक्ट कैंसिल करवाया, सारा हिसाब किया और अगले दिन प्राइवेट जेट में अपने साथ भारत ले आए। घर पहुंचकर राजवीर ने राहुल के माता-पिता से कहा, “आपकी अमानत लौटाने आया हूँ। आपके बेटे ने मुझे नई जिंदगी दी है, आज से यह मेरा भी बेटा है।”

अशोक जी के इलाज का इंतजाम किया, सारा कर्ज चुका दिया। राहुल को मुंबई ब्रांच का जनरल मैनेजर बनने का प्रस्ताव दिया। राहुल ने कहा, “सर, मेरे पास अनुभव नहीं है।” राजवीर बोले, “मुझे अनुभव नहीं, ईमानदारी और काबिलियत चाहिए। जिस लड़के ने 300 फीट की ऊंचाई पर बिना साधन के जान बचाई, वह किसी भी चुनौती का सामना कर सकता है।”

राहुल ने कंपनी ज्वाइन की। शुरुआत में अधिकारियों ने मजाक उड़ाया, लेकिन राहुल ने मेहनत, लगन और अनोखी सोच से सबको गलत साबित कर दिया। उसने कंपनी में नए बदलाव किए, मजदूरों की समस्याएं सुनीं, मुनाफा दोगुना किया। राजवीर सिंघानिया बदल चुके थे, अब वे समाज सेवा में समय लगाते थे। राहुल को अपना बेटा, वारिस मान लिया था।

राजवीर कहते, “सबसे मुनाफे का सौदा उस दिन हुआ जब मैंने अपनी जिंदगी के बदले एक हीरा खरीदा था।” यह कहानी सिखाती है कि नेकी का छोटा काम कभी व्यर्थ नहीं जाता। राहुल ने बिना स्वार्थ के जान बचाई, और उसी ने उसकी पूरी जिंदगी बदल दी। असली पहचान डिग्री या नौकरी नहीं, चरित्र और इंसानियत है।

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