फटे कपड़ों में बेइज़्ज़ती हुई… लेकिन सच्चाई जानकर Plan की सभी यात्रीने किया सलाम!
गंदे कपड़ों वाला मुसाफिर: एक उड़ान, एक पहचान
दिल्ली से मुंबई जाने वाली सुबह की फ्लाइट थी। यात्री अपनी–अपनी सीटें ढूंढ रहे थे, केबिन क्रू व्यस्त था। तभी विमान के दरवाज़े से एक शख्स अंदर आया—उसकी उम्र करीब पचास साल, चेहरे पर थकान, बाल बिखरे हुए, कपड़े पुराने और फटे। उसके कपड़ों को देखकर सभी ने उसे तिरस्कार भरी नजरों से देखा। कोई नाक पर रुमाल रखने लगा, तो कोई सीट बदलने की मांग करने लगा।
उस शख्स का नाम था विक्रम। उसने खिड़की वाली सीट पर बैठते ही बाहर आसमान की ओर देखना शुरू कर दिया। उसके पास बैठी महिला ने बेज़्ज़ती की, और एक पुरुष ने एयर होस्टेस से शिकायत की—“इससे अजीब सी गंध आ रही है, मेरी सीट बदल दीजिए।” लेकिन फ्लाइट पूरी भरी थी, कोई विकल्प नहीं था।
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कुछ देर बाद एक यात्री ने पहचान लिया—“अरे विक्रम! तू यहां?” उसके पुराने दोस्त समीर ने उसे याद दिलाया, “तू तो कॉलेज का टॉपर था, आज क्या हालत बना ली? देख मैं मल्टीनेशनल कंपनी का सीईओ हूं।” समीर के शब्दों में दोस्ती कम, अहंकार ज़्यादा था। विक्रम मुस्कराया, “यह एक लंबी कहानी है, कभी वक्त मिला तो बताऊंगा।”
फिर अचानक फ्लाइट में हल्का झटका लगा। एयर होस्टेस ने घोषणा की—“सीट बेल्ट बांध लें, हल्का टर्बुलेंस है।” लेकिन स्थिति बिगड़ने लगी। जोरदार झटके के बाद सब घबराए। तभी घोषणा हुई—“क्या कोई डॉक्टर है?” एक डॉक्टर आगे आए, उन्होंने बताया—पायलट को स्ट्रोक हुआ है, वह बेहोश है। अब विमान चलाने वाला कोई नहीं था।
केबिन में सन्नाटा था, सब डरे हुए। प्रिया बोली—“क्या कोई है जो प्लेन चला सकता है?” विक्रम ने अपना हाथ उठाया। समीर चिल्लाया—“तू प्लेन चलाएगा? सबको मार डालेगा!” बाकी यात्री भी विरोध करने लगे, “इस भिखारी जैसे आदमी को प्लेन चलाने दोगे?” लेकिन विक्रम ने शांत स्वर में कहा—“आखिरी बार 10 साल पहले चलाया था, कोशिश कर सकता हूं।”
कॉकपिट से को–पायलट रोहित ने कहा—“अगर इन्हें अनुभव है, तो जल्दी भेजो!” विक्रम अंदर गया, कंट्रोल पैनल देखा, हेडसेट लगाया और कहा—“दिल्ली कंट्रोल, मैं कैप्टन विक्रम मेहरा बोल रहा हूं। हमारे पायलट बीमार हैं, इमरजेंसी लैंडिंग की अनुमति चाहिए।”
कैप्टन विक्की का नाम सुनते ही रोहित हैरान रह गया। विक्रम वही था जिसने 22 साल पहले भयंकर तूफान में 312 यात्रियों की जान बचाई थी। लेकिन 10 साल पहले एक खराबी के चलते उसे सस्पेंड कर दिया गया था।
अब सबकी आंखें शर्म से झुकी थीं। जिसने नाक पर रुमाल रखा था, वह सिर झुकाए बैठी थी। समीर भी खामोश था। विक्रम ने निपुणता से विमान को नियंत्रित किया और कुछ ही देर में बिना किसी झटके के सुरक्षित लैंडिंग करा दी। पूरा केबिन राहत की सांस लेने लगा।
जब विक्रम बाहर आया, सब यात्री खड़े होकर तालियाँ बजाने लगे। एयरलाइंस अधिकारी ने कहा—“सर, हमारा बोर्ड आपको वापस लेना चाहता है।” विक्रम ने मुस्कराते हुए कहा—“उन्होंने मेरी नौकरी छीनी थी, साहस नहीं।”
वो शख्स, जिसे सब भिखारी समझ रहे थे, आज सबका नायक बन गया। सबने मिलकर उसे सलामी दी। क्योंकि सच्ची योग्यता कभी कपड़ों या बाहरी रूप में नहीं छिपती।
दोस्तों, यह कहानी बताती है कि इंसान की पहचान उसके कपड़ों से नहीं, उसकी काबिलियत और हिम्मत से होती है। अगर आपको कहानी पसंद आई तो लाइक, शेयर और कमेंट जरूर करें!
क्या आप चाहें तो इसे और छोटा या लंबा करवा सकते हैं, या वीडियो स्क्रिप्ट में बदल सकते हैं!
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