किसान ने अपनी जमीन गिरवी रख कर एक अनाथ लड़की की शादी कराई, फिर लड़की का पति IAS अफसर बनकर लौटा

बलराम का त्याग – एक किसान, एक अनाथ बेटी और एक आईएएस अफसर की कहानी
भाग 1: अंधेरे में उम्मीद का दिया
उत्तर प्रदेश के सूरजपुर गांव में, जहां किस्मत का सूरज दशकों से अस्त था, बलराम नाम का एक किसान रहता था। उसकी दुनिया थी – उसकी पत्नी प्रेमलता और 10 बीघा पुश्तैनी जमीन। यह जमीन उसके लिए सिर्फ खेत नहीं, बल्कि उसकी पहचान, उसका गुरूर थी। जब वह हल चलाता, तो उसे लगता जैसे वह अपनी मां की गोद में खेल रहा हो।
बलराम और प्रेमलता की कोई औलाद नहीं थी। यह दर्द उनके दिलों में हमेशा रिसता रहता था, लेकिन उन्होंने इस दर्द को कभी अपनी इंसानियत पर हावी नहीं होने दिया।
भाग 2: एक अनाथ बेटी का सहारा
10 साल पहले, गांव में हैजे की बीमारी फैली। कई घर उजड़ गए। इसी बीमारी ने मजदूर राम भरोसे और उसकी पत्नी को भी छीन लिया। वे पीछे छोड़ गए अपनी आठ साल की बेटी पूजा। पूजा के लिए दुनिया में कोई नहीं था। गांव वाले कुछ दिन तक उसे खाना देते रहे, पर अपनी गरीबी से लड़ते हुए ज्यादा मदद नहीं कर सके।
एक शाम बलराम और प्रेमलता ने देखा कि पूजा भूख से बेहाल ठाकुर भीम सिंह की हवेली के बाहर फेंकी जूठन में से रोटियों के टुकड़े उठा रही थी। यह दृश्य देख उनका कलेजा फट गया। वे पूजा का हाथ पकड़कर उसे अपने घर ले आए। उस दिन से पूजा उनकी बेटी बन गई।
प्रेमलता ने उसे मां की ममता दी, बलराम ने पिता की छत्रछाया। पूजा भी अपने नए मां-बाप को बहुत प्यार करती थी। वह घर के हर काम में प्रेमलता का हाथ बटाती, खेतों में बलराम के लिए छाछ लेकर जाती, और उनकी सूनी जिंदगी में खुशियां भर देती।
भाग 3: शिक्षा और संघर्ष
पूजा पढ़ने में बहुत होशियार थी। बलराम ने उसका दाखिला गांव के स्कूल में करवाया। वह चाहता था कि उसकी बेटी पढ़-लिखकर अपना नाम रोशन करे। समय बीतता गया। पूजा 18 साल की खूबसूरत, सुशील लड़की बन गई। उसने 12वीं की परीक्षा जिले में सबसे अच्छे नंबरों से पास की थी। बलराम और प्रेमलता को अपनी बेटी पर नाज था, पर अब शादी की चिंता सताने लगी थी।
गांव में एक और होनहार लड़का था – अजीत। उसके पिता भी छोटे किसान थे। गरीबी थी, पर अजीत की आंखों में आसमान छूने के सपने थे। उसका सपना था – आईएएस अफसर बनना। वह दिन-रात मेहनत करता, लालटेन की रोशनी में पढ़ता।
पूजा और अजीत बचपन से दोस्त थे। दोनों के बीच एक मासूम सा लगाव था। बलराम और प्रेमलता ने यह महसूस किया और उन्हें लगा, अजीत से अच्छा लड़का पूजा के लिए हो ही नहीं सकता।
भाग 4: बलराम का बड़ा फैसला
एक दिन बलराम हिम्मत करके अजीत के पिता के पास पूजा का रिश्ता लेकर पहुंचा। अजीत के पिता खुश थे, लेकिन बोले – “मेरे बेटे को दिल्ली भेजना है, आईएएस की कोचिंग के लिए। वहां बहुत खर्चा है, शादी में भी लाखों लगते हैं। मैं कहां से लाऊं इतना पैसा?”
बलराम ने कहा, “आप पैसे की चिंता मत कीजिए। अजीत की पढ़ाई और पूजा की शादी का सारा खर्च मैं उठाऊंगा।” अजीत के पिता हैरान रह गए – “तुम कैसे करोगे?”
बलराम ने गहरी सांस ली – “मेरी जमीन है ना, वो किस दिन काम आएगी?” प्रेमलता भी कांप गई, लेकिन बलराम की आंखों में पूजा के लिए एक पिता का प्यार देख, उसने भी साथ देने का फैसला किया।
गांव में खबर फैल गई। कुछ ने बलराम की तारीफ की, कुछ ने उसे पागल कहा।
भाग 5: जमीन गिरवी और ठाकुर का लालच
गांव का क्रूर जमींदार ठाकुर भीम सिंह, जिसके पास गांव की आधी जमीन गिरवी पड़ी थी, मौके की तलाश में था। वह बलराम के पास पहुंचा – “अपनी कमाई हुई बेटी के लिए पुरखों की जमीन लुटाने चला है? चल, मैं तुझे 5 लाख का कर्ज दूंगा। तेरी जमीन के कागजात मेरे पास रहेंगे। 2 साल की मोहलत दूंगा। अगर पैसा नहीं लौटा, तो जमीन मेरी।”
बलराम के पास कोई चारा नहीं था। भारी मन से उसने अपनी जमीन के कागजात पर अंगूठा लगा दिया। उसे लगा, जैसे उसने कागज पर नहीं, अपने दिल पर अंगूठा लगाया हो।
बलराम ने रकम दो हिस्सों में बांटी – एक हिस्सा अजीत की दिल्ली की पढ़ाई के लिए, दूसरा पूजा की शादी के लिए। अजीत को दिल्ली के सबसे अच्छे कोचिंग सेंटर में दाखिल करवाया। बाकी पैसों से पूजा की शादी की तैयारियां शुरू की।
भाग 6: बेटी की विदाई और वादा
पूजा की शादी का दिन आ गया। बलराम हर रस्म में आगे-आगे था। उसकी आंखों में छिपा दर्द सिर्फ प्रेमलता समझ सकती थी। पूजा दुल्हन के जोड़े में परी सी लग रही थी। जब अजीत और पूजा ने फेरे लिए, बलराम को लगा, उसकी सबसे बड़ी जिम्मेदारी पूरी हो गई।
विदाई का वक्त आया। पूजा अपने मां-बाप के गले लगकर रो रही थी – “बाबा, आपने मेरे लिए अपना सब कुछ…” बलराम ने उसे बीच में रोक दिया – “तू बेटी है मेरी, और बाप अपनी बेटी की खुशी के लिए कुछ भी कर सकता है।”
उसने अजीत का हाथ पकड़ा – “बेटा, आज से यह मेरी इज्जत तेरे हवाले है। इसका ख्याल रखना।” अजीत ने पैर छुए – “बाबा, आपके कर्ज को मैं सात जन्मों में भी नहीं उतार पाऊंगा। पर वादा करता हूं, इतना बड़ा आदमी बनूंगा कि आपकी जमीन आपको वापस दिला सकूं।”
भाग 7: दिल्ली की तपस्या
अजीत और पूजा दिल्ली चले गए। एक छोटे से किराए के कमरे में रहने लगे। अजीत दिन-रात पढ़ाई करता। बलराम के दिए पैसे कोचिंग और किताबों में खर्च हो गए। पूजा ने सिलाई का काम शुरू किया। अजीत को कभी एहसास नहीं होने देती थी कि घर में तंगी है। कभी-कभी भूखी सो जाती, पर अजीत के लिए दूध और बादाम का इंतजाम जरूर करती।
गांव में बलराम और प्रेमलता की मुश्किलें बढ़ती जा रही थीं। शादी में बचा पैसा भी खत्म हो गया। उस साल भी बारिश नहीं हुई, खेत बंजर पड़े रहे। अब वे दूसरों के खेतों में मजदूरी करने लगे। ठाकुर रोज ताने देता – “कब चुकाएगा कर्ज? सिर्फ डेढ़ साल बचे हैं।”
बलराम चुपचाप सब सहता रहा। पूजा और अजीत को कभी अपनी मुश्किलें नहीं बताता था। हमेशा कहता – “हम बिल्कुल ठीक हैं, तू बस पढ़ाई पर ध्यान दे।”
भाग 8: परीक्षा, हार और फिर उम्मीद
एक साल बीत गया। अजीत ने पहली बार यूपीएससी की परीक्षा दी, लेकिन प्रीलिम्स भी पास नहीं कर पाया। वह टूट गया। पूजा ने उसे संभाला – “कोई बात नहीं, फिर से कोशिश करेंगे।” पूजा ने सिलाई का काम और बढ़ा दिया, रात-रात भर कपड़े सिलती ताकि अजीत की पढ़ाई में कोई कमी न आए।
गांव में हालात बदतर हो चुके थे। 2 साल पूरे होने में सिर्फ एक महीना बचा था। ठाकुर ने बलराम को अपनी हवेली पर बुलाया – “अगले महीने अमावस को 2 साल पूरे हो जाएंगे। मैं जमीन पर कब्जा करूंगा।”
बलराम गिड़गिड़ाया – “मालिक, थोड़ी और मोहलत दे दीजिए। मेरा दामाद…” ठाकुर हंसा – “तेरा दामाद शहर में मजे कर रहा होगा और तू उसकी किस्मत के लिए अपनी जमीन गवा रहा है।”
बलराम की आंखों से आंसू बहने लगे। प्रेमलता भी बीमार पड़ गई। घर में दवा के लिए भी पैसे नहीं थे।
भाग 9: आखिरी परीक्षा और गांव की अमावस
दिल्ली में अजीत अपनी जिंदगी की सबसे बड़ी परीक्षा देने की तैयारी कर रहा था। उसे नहीं पता था कि गांव में उसके ससुर अपनी जिंदगी की सबसे बड़ी लड़ाई हारने की कगार पर हैं।
परीक्षा का दिन आया। अजीत ने सब कुछ दांव पर लगा दिया। परीक्षा देने के बाद वह और पूजा नतीजों का इंतजार करने लगे। हर दिन एक साल जैसा लग रहा था।
गांव में अमावस की रात आ गई। बलराम और प्रेमलता अपनी झोपड़ी में बैठे, सामान बांध रहे थे। वे जानते थे, सुबह ठाकुर आएगा और उन्हें उनकी ही जमीन से बेदखल कर देगा। पूरी रात जागकर बिताई।
सुबह हुई, ठाकुर अपने लठैतों को लेकर बलराम के दरवाजे पर पहुंच गया – “चल बलराम, निकल बाहर। आज से यह जमीन मेरी हुई।”
गांव वाले इकट्ठा हो गए, पर कोई ठाकुर के खिलाफ मुंह खोलने की हिम्मत नहीं कर पा रहा था। बलराम और प्रेमलता आंखों में आंसू लिए बाहर निकले। ठाकुर के आदमी उनका सामान बाहर फेंकने लगे।
भाग 10: किस्मत की वापसी – आईएएस अफसर की एंट्री
तभी गांव की धूल भरी सड़क पर दूर से एक सरकारी गाड़ी आती हुई दिखाई दी। नीली बत्ती लगी गाड़ी गांव में पहली बार आई थी। गाड़ी तेजी से आई और बलराम की झोपड़ी के सामने रुकी।
गाड़ी का दरवाजा खुला। उसमें से एक रौबदार नौजवान अफसर उतरा – अजीत! उसके पीछे पूजा भी उतरी। बलराम और प्रेमलता अपनी आंखों पर विश्वास नहीं कर पाए – “अजीत बेटा! पूजा!”
अजीत दौड़ा, बलराम और प्रेमलता के पैरों पर गिर पड़ा – “बाबा, मां, मुझे माफ कर दीजिए। मुझे आने में देर हो गई।”
उसने अपना चश्मा उतारा, उसकी आंखों में अब एक आईएएस अफसर की ताकत थी। उसने ठाकुर को देखा – “कौन हो तुम? और यह सब क्या हो रहा है?”
ठाकुर हकलाने लगा – “साहब, मैं इस गांव का जमींदार हूं। यह जमीन मेरी है। इसने मुझसे कर्ज लिया था।”
अजीत की आवाज गरजी – “यह जमीन मेरे ससुर श्री बलराम सिंह की है। रही बात कर्ज की, तो कागज दिखाओ।”
ठाकुर ने गिरवी के कागजात अजीत को दिए। अजीत ने देखा – 5 लाख के बदले 10 बीघा जमीन, 20% सूद। “तुम गरीब किसानों का खून चूसते हो। सूदखोरी कानूनी जुर्म है।”
अजीत ने पुलिस वालों को आदेश दिया – “इंस्पेक्टर साहब, इस आदमी को गिरफ्तार कीजिए। इसके खातों और हवेली की तलाशी लीजिए।”
पुलिस ने ठाकुर और उसके लठैतों को पकड़ लिया। गांव वाले “अजीत बाबू जिंदाबाद” के नारे लगाने लगे।
भाग 11: कर्ज की अदायगी और गांव की तकदीर
अजीत वापस बलराम के पास आया। उसने फाइल से कागज निकालकर बलराम के हाथ में रखे – “बाबा, यह आपकी जमीन के कागज हैं। आज से यह फिर से आपकी हुई।”
बलराम रो रहा था – “बेटा, तूने मेरी जमीन नहीं, मेरी इज्जत, मेरा गुरूर मुझे वापस लौटा दिया।”
पूजा भी अपने मां-बाप से लिपट कर रो रही थी। अजीत यहीं नहीं रुका। वह गांव के बीचोंबीच गया, लोगों को इकट्ठा किया – “आज से इस गांव की किस्मत बदलेगी। सरकार की हर योजना का फायदा आप तक पहुंचेगा। गांव में नया स्कूल, अस्पताल, पक्की सड़कें बनेंगी। नया स्कूल – पूजा बलराम कन्या विद्यालय।”
बलराम और प्रेमलता की आंखों से खुशी के आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे। जिस अनाथ बेटी को उन्होंने सहारा दिया था, आज उसी के नाम से गांव की पहचान बनने जा रही थी।
भाग 12: नई सुबह, नया सूरज
इस दिन के बाद सूरजपुर की किस्मत सचमुच बदल गई। अजीत ने एक बेटे और अफसर दोनों का फर्ज निभाया। उसने गांव के विकास के लिए दिन-रात एक कर दिया। ठाकुर को उसके गुनाहों की सजा मिली, किसानों को उनकी जमीनें वापस मिलीं।
बलराम अब फिर से अपने खेतों में हल चलाता था। उसकी चाल में नया आत्मविश्वास और नया गुरूर था। उसकी बेटी और दामाद ने मिलकर सिर्फ उसका ही नहीं, पूरे गांव का कर्ज उतार दिया था। एक किसान का अपनी बेटी के लिए किया गया त्याग पूरे गांव के लिए वरदान बन गया।
भाग 13: कहानी की सीख
यह कहानी हमें सिखाती है कि निस्वार्थ भाव से की गई नेकी कभी बेकार नहीं जाती। बलराम ने जब पूजा के लिए अपनी जमीन गिरवी रखी, तो उसने बदले में कुछ पाने की उम्मीद नहीं की थी – बस एक पिता का धर्म निभाया। किस्मत ने उसे ऐसा दामाद दिया जो बेटा बनकर आया और उसकी जिंदगी को खुशियों से भर गया।
यह कहानी विश्वास, त्याग और इंसानियत की जीत है। अगर इस कहानी ने आपके दिल में जगह बनाई है, तो इसे शेयर करें ताकि इंसानियत का संदेश हर किसी तक पहुंचे।
समाप्त
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