इंसानियत की रौशनी: राजेश, प्रिया और लव की कहानी

कभी-कभी जिंदगी में ऐसे पल आते हैं, जब दिल की धड़कनें थम सी जाती हैं। आंखों में आंसू आ जाते हैं और लगता है कि इंसानियत से बड़ा कुछ नहीं। इंसान का असली इम्तिहान तब होता है जब कोई भूखा रोटी मांगता है या कोई बेसहारा छत की तलाश में आपके दरवाजे पर खड़ा होता है।

ऐसी ही एक ठंडी, बरसाती रात थी उत्तराखंड के पहाड़ी गांव में। चारों ओर बारिश की आवाज थी, हवाएं सिहरन पैदा कर रही थीं। लकड़ी के पुराने घर में राजेश अकेला बैठा था। उसके माता-पिता सालों पहले गुजर चुके थे और कुछ महीने पहले उसकी पत्नी भी लंबी बीमारी के बाद चल बसी थी। घर में बस सन्नाटा था। राजेश सोच रहा था, एक कप गर्म चाय पीकर सो जाएगा।

तभी दरवाजे पर दस्तक हुई। राजेश ने दरवाजा खोला, तो देखा बाहर एक औरत भीगे कपड़ों में खड़ी थी, उसकी गोद में एक छोटा सा बच्चा था—लव, जिसकी उम्र मुश्किल से 4 साल होगी। दोनों के चेहरे पर थकान, भूख और डर साफ दिख रहा था। औरत का नाम प्रिया था। उसने कांपती आवाज में कहा, “भाई साहब, हमें माफ कर दीजिए, हम रास्ते में फंस गए हैं। बारिश रुक नहीं रही और मेरे बच्चे को बहुत ठंड लग रही है। क्या हम आज रात आपके घर में शरण ले सकते हैं?”

राजेश कुछ पल चुप रहा। उसकी बीती जिंदगी की यादें तैर गईं। लेकिन बच्चे की आंखों में भूख और डर देखकर उसका दिल पिघल गया। उसने कहा, “अंदर आ जाओ, कोई बात नहीं।”
जैसे ही वे अंदर आए, बच्चे की नजर चूल्हे पर गई जहां पानी उबल रहा था। राजेश ने तुरंत चावल डालकर खिचड़ी बनाने शुरू कर दी। प्रिया ने झिझकते हुए कहा, “हमारे पास कुछ भी नहीं है। मैं आपके घर का सारा काम कर दूंगी, बस आज रात ठिकाना मिल जाए।”
राजेश ने बिना देखे कहा, “पहले बच्चा खा ले।”

थोड़ी देर में खिचड़ी तैयार हो गई। राजेश ने कटोरी में खिचड़ी परोसी, लव भूखा था, चुपचाप खाने लगा और उसकी आंखों में राहत की चमक आ गई। फिर राजेश ने प्रिया और लव को एक खाली कमरे में जगह दी और कहा, “अंदर से कुंडी लगा लेना और आराम से सो जाओ।”
प्रिया ने धन्यवाद कहा, लेकिन उसके चेहरे पर अभी भी डर था।

सुबह राजेश उठा तो देखा, घर साफ-सुथरा था, रसोई करीने से सजी थी, फर्श धोया हुआ था। प्रिया बोली, “आपने हमें छत दी, तो मैंने सोचा घर थोड़ा संवार दूं। गंदगी कहीं अच्छी नहीं लगती।” राजेश चुपचाप देखता रह गया, उसे अपनी पत्नी की याद आ गई।

आंगन में लव मिट्टी से खेल रहा था, उसकी मासूम हंसी सुनकर राजेश का दिल भर आया। प्रिया पास आई, बोली, “रात को आपने हमारी मदद की, उसका एहसान मैं कभी नहीं भूलूंगी, लेकिन अब हमें जाना चाहिए।”
राजेश ने पूछा, “अगर बुरा न मानो, तो पूछ सकता हूं कि कहां से आई हो? अकेली इस तरह क्यों भटक रही हो?”

प्रिया की आंखें भर आईं, उसने कहा, “कहानी छोटी नहीं है। अगर सुनना चाहो तो सुनाती हूं।”
राजेश ने सिर हिलाया।
प्रिया ने बताया—वह दिल्ली की रहने वाली थी। मां-बेटी का छोटा सा घर था। पापा बचपन में गुजर गए। कॉलेज में विक्रम से मुलाकात हुई, दोस्ती प्यार में बदल गई। शादी की, लेकिन विक्रम के घरवाले राजी नहीं थे। मंदिर में शादी की, कुछ महीने किराए के कमरे में रहे। फिर ससुराल गए। बहुत ताने सुने, लेकिन वक्त के साथ सबने अपनाया।
फिर लव हुआ। विक्रम बीमार पड़ा और कुछ ही महीनों में चल बसा। मां भी पहले ही गुजर चुकी थी। ससुराल वालों ने मुझे और लव को घर से निकाल दिया। मैं दर-दर भटकती रही। विक्रम का सपना था मसूरी घूमना। गहने बेचकर पैसे जुटाए, लव को लेकर यहां आई। पैसे खत्म हो गए, ढाबों में काम मांगा, कहीं दो दिन रखा, कहीं निकाल दिया। कल रात आपकी चौखट तक पहुंच गई। अब ना घर है, ना ठिकाना, बस इतना है कि बच्चा भूखा ना सोए।

राजेश ने ध्यान से सुना। दिन ढल रहा था, ठंड बढ़ रही थी। राजेश खेत में हल चला रहा था, लव मिट्टी में खेल रहा था। प्रिया टिफिन में गरम खाना लेकर आई, बोली, “दिनभर काम किया होगा, कुछ खा लो।” राजेश ने खाना लिया, बोला, “इतनी मेहनत नहीं करनी चाहिए थी।” प्रिया मुस्कुराई, “काम करने से मन हल्का होता है।”

तभी लव ने कहा, “अंकल, आप मेरे पापा बन जाओ ना।”
राजेश चौंक गया, प्रिया सकपका गई, बोली, “लव, ऐसी बात नहीं कहते।”
राजेश ने बच्चे के सिर पर हाथ रखा, “पापा नहीं, दोस्त तो बन सकता हूं।”
लव खिलखिला उठा।

धीरे-धीरे दिन बीतने लगे। प्रिया घर का काम संभालती, राजेश खेत देखता। शाम को सब आंगन में बैठकर बातें करते। लव कभी राजेश की पीठ पर चढ़ जाता, कभी खेल में उसे “घोड़ा अंकल” कहता। घर का सन्नाटा टूट चुका था।

लेकिन गांव में फुसफुसाहटें शुरू हो गईं। राजेश ने पराई औरत को घर में रखा है, छोटे बच्चे के साथ। धीरे-धीरे बातें सबके कानों तक पहुंचने लगीं। एक शाम प्रिया बाजार से लौट रही थी, दो औरतें बर्तन धोते हुए बुदबुदाईं, “देखो, वही है बिना मर्द की औरत, अब राजेश के घर पर डेरा जमाए बैठी है।”
प्रिया का चेहरा लाल हो गया, आंखें झुका लीं, जल्दी घर लौट आई।

राजेश ने पूछा, “सब ठीक है?”
प्रिया बोली, “लोग बातें बना रहे हैं, कहते हैं मैं यहां क्यों रह रही हूं।”
राजेश ने कहा, “गांव वाले हमेशा बोलेंगे, लेकिन सच्चाई हम जानते हैं। जब तक मैं हूं, तुम्हें और लव को कोई हाथ नहीं लगा सकता।”
प्रिया ने पहली बार उसकी आंखों में भरोसा देखा।

कुछ दिन बाद गांव के बुजुर्ग राजेश के आंगन तक आए, बोले, “राजेश, जवान औरत को घर में रखना ठीक नहीं है, गांव की इज्जत मिट्टी में मिल रही है।”
राजेश चुप रहा।
अगली सुबह जब राजेश खेत से लौटा, घर के बाहर चार-पांच लोग खड़े थे—गांव के प्रधान, बुजुर्ग, नौजवान।
प्रधान बोला, “राजेश, सारा गांव में चर्चा है, जवान औरत को घर में रखकर तूने हमारी नाक कटवा दी है।”
राजेश ने शांत स्वर में कहा, “वह औरत अकेली है, उसका एक छोटा बच्चा है, मैंने सिर्फ इंसानियत के नाते सहारा दिया है।”
एक बुजुर्ग बोला, “इंसानियत का मतलब यह नहीं कि पराई औरत को घर में रख लो, कल को हमारी बहू-बेटियां क्या सोचेंगी?”

भीड़ का शोर सुनकर प्रिया बाहर आई, कांपती आवाज में बोली, “मैं किसी का घर उजाड़ने नहीं आई हूं, बस अपने बेटे को भूख से बचाना चाहती हूं। अगर मेरा रहना अपराध है, तो मैं चली जाती हूं।”
उसकी आंखों से आंसू बहने लगे, लव दौड़कर उसकी साड़ी पकड़कर बोला, “मां मत रो।”
राजेश का दिल तड़प उठा।
उसने सबको शांत करने की कोशिश की, बोला, “आप लोग बातें बना सकते हैं, लेकिन किसी की तकलीफ नहीं समझ सकते। मैं जानता हूं प्रिया ने क्या-क्या सहा है।”

प्रधान ने सख्त लहजे में कहा, “या तो इसे घर से निकाल दे या गांव छोड़ दे, वरना पंचायत तेरे खिलाफ फैसला करेगी।”
राजेश अंदर तक हिल गया।
कुछ पल की चुप्पी के बाद राजेश भीतर गया, थोड़ी देर बाद सिंदूर की डिब्बी लेकर लौटा।
भीड़ के सामने प्रिया से कहा, “प्रिया, मुझे माफ करना, अब और बर्दाश्त नहीं हो रहा। अगर लोग यही चाहते हैं कि हमारे रिश्ते को नाम ना मिले, तो आज सबके सामने तुम्हें अपना लूंगा, लेकिन फैसला तुम्हारा होगा। अगर ना कहो, तो मैं गांव छोड़ दूंगा।”

प्रिया सन्न रह गई।
आंखों में आंसू, होठों पर खामोशी।
भीड़ में खुसर-पुसर होने लगी।
राजेश ने सिंदूर आगे बढ़ाया, “यह सिर्फ रस्म नहीं है, तुम्हारी मर्जी असली जवाब है। अगर हां कहो, तो आज से यह घर तुम्हारा और लव का होगा। अगर ना कहो, तो मैं पंचायत की बात मानकर गांव छोड़ दूंगा।”

प्रिया ने कांपती आवाज में कहा, “राजेश जी, आपने हमें छत, खाना और इज्जत दी। लेकिन शादी इतना बड़ा फैसला है, मैं डरती हूं।”
उसकी आंखों से आंसू बहने लगे, लव ने उसकी साड़ी पकड़कर मासूमियत से पूछा, “मां, अंकल बुरे हैं क्या? वह तो हमें खाना देते हैं, खेलते हैं, अगर वह हमारे साथ रहेंगे तो अच्छा लगेगा।”
प्रिया ने बच्चे को सीने से लगा लिया।
भीड़ में हलचल हुई।
प्रधान ने कहा, “बहुत देर हो रही है, प्रिया तू साफ-साफ बोल हां या ना।”
प्रिया ने गहरी सांस ली, उसके जेहन में सारे पल घूम गए—विक्रम का चेहरा, ससुराल से निकाला जाना, भूखी रातें, बारिश में भटकना, राजेश का पहला दिन जब उसने बिना सवाल पूछे छत और खाना दिया।

उसने राजेश की ओर देखा, उसकी आंखों में सच्चाई और सम्मान था।
प्रिया ने कांपते होठों से कहा, “अगर मैं हां कह दूं, तो क्या आप मुझे और मेरे बेटे को सिर्फ अपना समझेंगे और कभी ताना नहीं देंगे कि हम बोझ हैं?”
राजेश ने कहा, “प्रिया, मैं तुम्हें और लव को उसी तरह अपनाऊंगा जैसे अपना परिवार। मेरे लिए यह कोई एहसान नहीं, बल्कि खुशी होगी।”
प्रिया के गालों पर आंसू बह निकले, उसने लव को कसकर पकड़ लिया, भारी आवाज में कहा, “ठीक है, मैं तैयार हूं।”

भीड़ में खामोशी छा गई।
राजेश ने सिंदूर की डिब्बी प्रिया की ओर बढ़ाई, प्रिया ने सिर झुकाकर स्वीकार कर लिया।
राजेश ने कांपते हाथों से सिंदूर उठा कर उसकी मांग में भर दिया।
प्रधान ने कहा, “अब यह रिश्ता गांव की नजर में भी पवित्र है, कोई उंगली नहीं उठाएगा।”
गांव वाले धीरे-धीरे चले गए।
राजेश और प्रिया खामोश खड़े रहे।
प्रिया ने आंचल से आंसू पोछे, कहा, “मैंने कभी सोचा नहीं था कि जिंदगी मुझे एक और मौका देगी।”
राजेश मुस्कुराया, “मौके भगवान देते हैं, हमें बस हिम्मत करनी होती है।”
लव दौड़कर राजेश की बाहों में कूद गया, “अब आप मेरे पापा हो ना?”
राजेश की आंखें भर आईं, बच्चे को सीने से लगा लिया, “हां बेटा, अब मैं तुम्हारा पा