DM की माँ बैंक में पैसा निकालने गईं… सबने भिखारी समझकर धक्का दे दिया, लेकिन आगे जो हुआ ! 😱

डीएम मैडम की मां

शहर के सबसे बड़े और भव्य सरकारी बैंक में, हर सुबह की तरह, कर्मचारियों और ग्राहकों की भीड़ थी। कांच के दरवाज़े, चमकदार फ़र्श और एसी की ठंडी हवा बैंक के उच्च-वर्गीय माहौल को दर्शा रही थी। इसी माहौल के बीच, एक साधारण वृद्ध महिला धीरे-धीरे अंदर आईं। उनके कपड़े सादे थे और चेहरे पर एक विनम्र मुस्कान थी। किसी को भी यह अंदाजा नहीं था कि वह महिला जिले की सबसे बड़ी अधिकारी, डीएम नंदिनी की माँ थीं।

उन्हें तिरस्कार की नजरों से देखते हुए, सभी सोच रहे थे कि यह साधारण महिला इतने बड़े बैंक में क्या करने आई है। वह धीरे-धीरे काउंटर की ओर बढ़ीं। काउंटर पर कविता नाम की एक सुरक्षा गार्ड बैठी थी। वृद्ध महिला ने कविता से कहा, “बेटी, मुझे बैंक से पैसे निकालने हैं। यह लो चेक।”

कविता ने चेक देखे बिना ही महिला से कहना शुरू कर दिया, “तुम्हें इतनी हिम्मत कैसे हुई बैंक में आने की? यह बैंक तुम जैसे लोगों के लिए नहीं है। भिखारी यहाँ क्यों आई हो? यह बैंक बड़े लोगों के लिए है। तुम्हारी तरह की महिला को तो ऐसे बैंक में खाता खोलने की औकात भी नहीं। चली जाओ यहाँ से, नहीं तो मारकर भगा दूँगी।”

महिला ने कहा, “बेटी, तुम पहले चेक तो देख लो। मुझे पाँच लाख रुपये नकद निकालने हैं।”

यह सुनकर कविता गुस्से में आ गई। “यह कोई मजाक करने की जगह नहीं है। क्या कहा? पाँच लाख? जिंदगी में कभी इतने पैसे देखे हैं? जल्दी से यहाँ से चली जाओ। नहीं तो धक्का देकर बाहर निकाल दूँगी।”

ठीक उसी समय, बैंक मैनेजर ने अपनी केबिन से बाहर झाँककर पूछा, “कौन इतना हंगामा कर रहा है?” कविता ने तुरंत कहा, “कोई भिखारी महिला है सर, जाने को तैयार नहीं है।”

बैंक मैनेजर गुस्से में बाहर आया और बिना कुछ पूछे उस वृद्ध महिला को जोर से थप्पड़ मार दिया। थप्पड़ इतना तेज था कि महिला लड़खड़ाकर जमीन पर गिर गईं। फिर मैनेजर ने सुरक्षा गार्ड को बुलाकर कहा, “क्या कर रहे हो? इसे खींचकर बाहर निकाल दो।” कविता ने जोर-जोर से महिला को बैंक से धक्का देकर बाहर निकाल दिया। वहाँ मौजूद सभी ग्राहक और कर्मचारी चुपचाप सब देख रहे थे। किसी को नहीं पता था कि यह महिला जिले की डीएम नंदिनी की माँ हैं। यह पूरा घटनाक्रम बैंक के सीसीटीवी कैमरे में रिकॉर्ड हो रहा था।

घर लौटकर महिला रोते-रोते अपनी बेटी, नंदिनी, को फोन करके सारी घटना बता दी। कैसे बैंक में उनका अपमान हुआ, कैसे उन्हें अपमानित करके बाहर निकाला गया। यह सुनकर नंदिनी को गहरा सदमा लगा। उनके लिए यह आग से कम नहीं था। उन्होंने काँपते हुए माँ से कहा, “माँ, कल मैं खुद आऊँगी और तुम्हारे साथ जाकर उस बैंक से पैसे निकालूँगी।”

अगले दिन सुबह, नंदिनी ने साधारण सूती साड़ी पहनकर अपनी माँ के साथ बैंक जाने की तैयारी की। माँ-बेटी ने एक-दूसरे को गले से लगाया। उनकी आँखों में आँसू थे—गर्व और दर्द दोनों। माँ अपनी बेटी पर गर्व महसूस कर रही थी, जिन्होंने इतनी मेहनत से उसे पाला और इतने ऊँचे पद तक पहुँचाया।

सुबह ठीक 11:00 बजे, माँ-बेटी बैंक के बाहर पहुँचीं। दोनों की पोशाक इतनी साधारण थी कि वहाँ मौजूद कर्मचारी उन्हें साधारण ग्रामीण महिलाएँ समझकर गलत अनुमान लगा बैठे। किसी ने सोचा भी नहीं कि यह नंदिनी जिले की डीएम हैं।

धीरे-धीरे वे काउंटर की ओर बढ़ीं। वहाँ वही कविता बैठी थी। नंदिनी ने विनम्रता से कहा, “मैडम, हमें पैसे निकालने हैं। माँ की दवा खरीदनी है और कुछ जरूरी काम भी हैं। यह लो, चेक देख लो।”

कविता ने दोनों महिलाओं को सिर से पैर तक देखा और व्यंग में बोली, “शायद आप लोग गलत बैंक में आ गए। यह शाखा हाई-प्रोफाइल क्लाइंट्स के साथ काम करती है।”

नंदिनी ने मुस्कुराकर जवाब दिया, “एक बार चेक तो देख लो, मैडम। अगर नहीं है तो हम चले जाएँगे।” कविता ने अनमने ढंग से लिफाफा लिया और कहा, “थोड़ा समय लगेगा। वेटिंग चेयर पर बैठो।”

नंदिनी ने माँ का हाथ पकड़कर कोने में एक खाली चेयर पर बैठाया। उन्होंने माँ को पानी दिया और खुद शांति से बैठ गईं। बैंक में मौजूद लोग उनकी ओर देख रहे थे। यहाँ आमतौर पर धनी व्यापारी, अधिकारी और प्रभावशाली लोग आते थे, इसलिए साधारण कपड़ों में बैठी माँ-बेटी को सभी अजीब समझ रहे थे। चारों ओर फुसफुसाहट शुरू हो गई, “लगता है ग्रामीण हैं। पेंशन के लिए आई होंगी शायद। यहाँ इनके खाते होने की बात नहीं।”

नंदिनी सब सुन रही थीं, लेकिन शांत रहीं। उनकी माँ थोड़ी असहज थीं, लेकिन बेटी के धैर्य को देखकर उन्होंने खुद को संभाल लिया। कुछ देर बाद, नंदिनी ने कविता से कहा, “अगर आप व्यस्त हैं, तो कृपया मैनेजर से मिलवा दें। मेरा जरूरी काम है।”

कविता बेचैन होकर फोन उठाकर मैनेजर की केबिन में कॉल की। “सर, एक महिला आई हैं, कह रही हैं आपसे मिलना है। भेज दूँ?”

मैनेजर ने काम करते हुए झाँककर देखा। साधारण कपड़ों में एक महिला अपनी माँ के साथ बैठी थी। अधिकारी जैसा कुछ भी नहीं लग रहा था। उन्होंने ठंडे स्वर में कहा, “मेरे पास फालतू लोगों के लिए समय नहीं है। कह दो, बैठे रहें।”

नंदिनी ने कुछ नहीं कहा, सिर्फ माँ का हाथ पकड़कर शांति से बैठी रहीं। एक अधिकारी की गरिमा और एक बेटी का धैर्य। नंदिनी अभी भी पूरी तरह शांत और संयमी थीं, लेकिन माँ की बेचैनी और लोगों की फुसफुसाहट देखकर उन्होंने माँ का हाथ जोर से पकड़कर कहा, “माँ, लगता है इनको कुछ फर्क नहीं पड़ता। अब मुझे ही कुछ करना होगा।”

वे धीरे से उठीं, साड़ी का पल्लू ठीक किया और सीधे मैनेजर की केबिन की ओर बढ़ीं। मैनेजर जो कांच के पीछे से उनकी ओर नजर रख रहा था, घबरा गया। वह जल्दी से बाहर आया और नंदिनी के रास्ते में रुककर बोला, “हाँ बताओ, क्या काम है?”

नंदिनी ने वह लिफाफा आगे बढ़ाते हुए कहा, “मुझे पैसे निकालने हैं। माँ की दवा खरीदनी है और भी काम हैं। यह लो चेक, देख लो।”

मैनेजर ने लिफाफा लिए बिना ही बेरुखी से कहा, “जब खाते में पैसे नहीं हैं, तो ट्रांज़ेक्शन कैसे होगा? तुम्हें देखकर नहीं लगता कि तुम्हारे खाते में पैसे होंगे।”

नंदिनी अभी भी बहुत शांत स्वर में बोलीं, “अगर आप एक बार चेक देख लेते तो बेहतर होता। इस तरह अनुमान लगाना ठीक नहीं है।”

मैनेजर अब खुलकर हँसने लगा। “भाई, मेरे पास इतना अनुभव है कि चेहरे देखकर ही समझ जाता हूँ कि किसके पास क्या है। रोज तुम जैसे लोग आते हैं। तुम्हारे खाते में कुछ होने की उम्मीद नहीं। अब भीड़ मत करो, देखो सब तुम्हें ही देख रहे हैं। माहौल खराब हो रहा है। अच्छा होगा अगर अब चली जाओ।”

नंदिनी का चेहरा अभी भी स्थिर था, लेकिन उनकी आँखों में एक अलग चमक थी। शांति की जगह अब कठोरता उतर आई थी। उन्होंने कुछ नहीं कहा। बस लिफाफा टेबल पर रखकर धीमे स्वर में बोलीं, “ठीक है, जा रही हूँ। लेकिन एक निवेदन है—इस लिफाफे में जो जानकारी है, उसे एक बार जरूर पढ़ लें। शायद आपके काम आए।”

इतना कहकर वे माँ का हाथ पकड़कर मुँह फेरकर दरवाजे की ओर बढ़ गईं। लेकिन दरवाजे पर पहुँचकर वे रुकीं और गहरी नजर से बोलीं, “बेटा, इस व्यवहार का परिणाम तुम्हें भुगतना होगा। समय सब समझा देगा।”

पूरा बैंक कुछ पलों के सन्नाटे में डूब गया। कोई आवाज नहीं, कोई गुस्सा नहीं। सिर्फ गरिमा से भरी एक चेतावनी, जो किसी तूफान से कम नहीं थी। मैनेजर एक पल के लिए ठिठक गया। फिर जल्दबाजी में बोला, “बुढ़ापे में लोग कुछ भी बोलते हैं, जाने दो।” और वापस जाकर अपनी कुर्सी पर बैठ गया। उसके सामने वह लिफाफा अभी भी टेबल पर पड़ा था। अनछुआ, अनदेखा। उसे नहीं पता था कि उस लिफाफे में ऐसा सच छिपा है जो उसकी दुनिया उलट देगा।

अगले दिन बैंक में वही रूटीन शुरू हुआ। लेकिन इस बार एक फर्क था। वही वृद्ध महिला जिसके साथ एक दिन पहले अपमान की सारी हदें पार की गई थीं, वे फिर से उसी बैंक में आईं। लेकिन इस बार वे अकेली नहीं थीं। उनके साथ एक तेज-तर्रार अधिकारी था जो सूट-बूट में चमक रहा था। उसके प्रवेश के साथ ही पूरे बैंक की नजर उधर स्थिर हो गई।

महिला ने किसी को न देखते हुए सीधे मैनेजर की केबिन की ओर बढ़ीं। मैनेजर ने उन्हें पहले पहचाना नहीं, लेकिन जैसे-जैसे वे पास आईं, उनका चेहरा साफ हुआ। वही महिला, जिसकी फाइल उसने कल ठुकराई थी। अब उसके चेहरे पर डर की छाया पड़ने लगी। घबराकर वह खुद केबिन से बाहर आया।

महिला के चेहरे पर तब आत्मविश्वास और सम्मान की चमक थी। वे रुकीं नहीं। सीधे मैनेजर के सामने खड़ी होकर तीखे स्वर में बोलीं, “मैनेजर साहब, मैंने कल ही कहा था कि तुम्हारे व्यवहार का परिणाम भुगतना होगा। तुमने सिर्फ मुझे नहीं, मेरी तरह के हजारों साधारण नागरिकों का तिरस्कार किया है। अब समय है सजा भुगतने का।”

मैनेजर हक्का-बक्का होकर बोला, “तुम कौन हो? मुझे सिखाने आई हो? यह तुम्हारा घर नहीं है। यह बैंक है और तुम यहाँ मेरे साथ क्या कर सकती हो?”

महिला ने उसकी बात बीच में काटते हुए मुस्कुराई। फिर अपने साथ आए अधिकारी की ओर इशारा करके बोलीं, “यह मेरे कानूनी सलाहकार हैं और मैं नंदिनी, इस जिले की प्रशासक, डीएम हूँ। और यह मेरी माँ है, जिनके साथ तुमने बहुत बुरा व्यवहार किया।”

एक पल के लिए पूरा बैंक सन्नाटे में डूब गया। सभी कर्मचारी, ग्राहक और दरवाजे पर खड़े सुरक्षा गार्ड हक्के-बक्के रह गए। मैनेजर का चेहरा पीला पड़ गया। वह कुछ कह पाता, इससे पहले नंदिनी फिर बोलीं, “तुम्हें बैंक मैनेजर के पद से तुरंत हटाया जा रहा है। अब तुम्हारी पोस्टिंग फील्ड में होगी, जहाँ तुम्हें रोज साधारण लोगों से मिलकर रिपोर्ट बनानी होगी।”

नंदिनी ने ब्रीफकेस खोला और दो दस्तावेज निकालकर सामने रख दिए। पहला मैनेजर के तबादले का आदेश, दूसरा एक कारण बताओ नोटिस। मैनेजर तब तक पसीने से भीग चुका था। काँपते स्वर में बोला, “मैडम, मेरी गलती हो गई। मैं शर्मिंदा हूँ। कल की घटना के लिए दिल से माफी माँगता हूँ।”

नंदिनी की आँखें अभी भी स्थिर थीं, लेकिन उनकी आवाज में वह न्याय था जो एक अधिकारी की पहचान थी। “किस बात के लिए माफी माँग रहे हो? सिर्फ मेरे अपमान के लिए? या उन ग्राहकों के लिए जो साधारण तरीके से आते हैं, लेकिन तुम्हारी नजर में सिर्फ उनके कपड़े दिखते हैं? क्या तुमने कभी बैंक की गाइडलाइन पढ़ी? इसमें साफ लिखा है कि हर ग्राहक बराबर है। कोई धनी-गरीब नहीं और जो कर्मचारी भेदभाव करेगा, उसके खिलाफ कार्रवाई होगी।”

एक पल रुककर उन्होंने कठोर स्वर में कहा, “मैं चाहती तो आज ही तुम्हें सस्पेंड कर सकती थी। लेकिन मैं तुम्हें खुद को सुधारने का एक मौका दे रही हूँ। अगली बार तुम्हारा नाम नहीं, तुम्हारी पहचान मिटा दी जाएगी।”

फिर उन्होंने बैंक की सुरक्षा गार्ड कविता को बुलाया। कविता डरते-डरते पास आई, उसकी आँखों में आँसू थे। काँपते हाथों से बोली, “मैडम, मुझे माफ कर दें। मेरी बहुत बड़ी गलती हो गई। अब से किसी के साथ ऐसा नहीं करूँगी।”

नंदिनी ने उसकी ओर देखकर कहा, “कपड़ों से किसी को छोटा मत समझो। आज जो शिक्षा मिली, उसे जीवन भर याद रखना।” बैंक के सारे कर्मचारी तब तक सिर झुकाए खड़े थे। उन्होंने सभी की ओर देखकर कहा, “रास्ते से नहीं, सोच से इंसान बड़ा होता है। जो मानवता समझता है, वही सच्चा अधिकारी।” यह कहकर नंदिनी अपनी माँ के साथ बैंक से बाहर चली गईं।