अगर आप मुझे खाना दें तो मैं मदद कर सकता हूँ! भिखारी बच्चे का अपमान हुआ, लेकिन सच्चाई ने सबको रुला
मुंबई की शाम थी। आसमान पर काले बादल छाए हुए थे और मूसलाधार बारिश सड़कों को शीशे की तरह चमका रही थी। चारों ओर हॉर्न की आवाजें, चाय की भांप और भागते लोगों की भीड़ थी। इसी अफरातफरी में एक पतली सी गली के कोने पर लगभग 10-12 साल का एक लड़का बैठा था। उसके कपड़े फटे हुए थे, बाल उलझे हुए थे और चेहरा मिट्टी और बारिश के पानी से सना हुआ था। वह अपने दोनों हाथों से पेट पकड़े कांप रहा था। नाम था उसका आरव।
आरव पिछले तीन दिनों से ठीक से कुछ खाया नहीं था। कभी किसी दुकान के बाहर बैठ जाता, कभी सिग्नल पर। आज भी उसने पूरी हिम्मत जुटाई और एक शानदार रेस्टोरेंट के बाहर जाकर खड़ा हो गया। रेस्टोरेंट का नाम था “रॉयल टेस्ट बाय संजय कपूर”। यह शहर का नामी रेस्टोरेंट था, जहां एक प्लेट की कीमत किसी गरीब की एक महीने की कमाई से ज्यादा थी। भीतर से खुशबू बाहर तक आ रही थी। मक्खन, पनीर, मसालों की वह खुशबू जिसने आरव के भूखे पेट को और मरोड़ दिया।
भाग 2: आरव की हिम्मत
आरव ने हिम्मत करके गेट के पास गया और गार्ड से बोला, “भैया, अगर आप मुझे थोड़ा खाना दे दें, मैं मदद कर सकता हूं।” गार्ड, जो बड़े लोगों से ही बात करने का आदि था, उसे ऊपर से नीचे तक घूरते हुए हंस पड़ा। “मदद तू? तू क्या करेगा रे? जा हट यहां से।” रेस्टोरेंट के सामने भीख मांगने की हिम्मत। आरव पीछे हटा लेकिन गया नहीं। “सच कह रहा हूं भैया। मैं कुछ ठीक कर सकता हूं। बस खाना दे दो।”
गार्ड ने झल्लाकर कहा, “अबे जाना वरना पुलिस बुला लूंगा।” इतने में अंदर से एक आदमी बाहर आया। वह था राजीव, रेस्टोरेंट का मैनेजर। सूट-बूट में, बाल जेली से चमकते हुए। उसने गार्ड से पूछा, “क्या तमाशा लगा रखा है यहां?” गार्ड ने इशारा किया। “साहब, यह लड़का परेशान कर रहा है। भीख मांगने आया है।”
राजीव ने आरव की तरफ देखा। फिर हंसते हुए बोला, “अरे हमारे रेस्टोरेंट के सामने यह गंदगी कैसी? यहां अमीर लोग आते हैं। इन्हें यह सब देखकर मन खराब हो जाता है।” फिर उसने तंज भरे लहजे में कहा, “तू बोलेगा कि खाना दे दो, तो तू हमारी मदद करेगा। कौन सी मदद करेगा रे?”
आरव ने नीचे देखते हुए कहा, “रेस्टोरेंट में कुछ खराब हो गया है ना? मैं ठीक कर सकता हूं।” राजीव की हंसी और जोरदार हो गई। “वाह बेटा, अब तू इंजीनियर भी है क्या? जा कहीं और जाकर अपना ड्रामा कर।” तभी किसी ने तेज आवाज में कहा, “मैनेजर साहब, अंदर किचन में बड़ी दिक्कत हो गई है। ओवन बंद पड़ गया।”
भाग 3: संकट का समय
राजीव ने माथा पकड़ लिया। “क्या आज वीआईपी पार्टी है और अब यह मुसीबत?” आरव ने धीरे से कहा, “मैं ठीक कर सकता हूं।” राजीव ने गुस्से में कहा, “अबे चुप रह। तू तो मजाक बन गया है यहां।” तभी एक काली मर्सिडीज रेस्टोरेंट के सामने आकर रुकी। दरवाजा खुला और उतरे संजय कपूर। रेस्टोरेंट के मालिक, मोटा, सोने की चैन पहने, महंगा सूट डाले हुए, उनके साथ मीडिया वाले भी थे क्योंकि आज उनके नए मेनू का लॉन्च था।
उन्होंने भीड़ देखी और पूछा, “क्या हो रहा है यहां?” राजीव बोला, “सर, कुछ नहीं बस एक सड़क का लड़का यहां तमाशा कर रहा है।” संजय ने आरव की तरफ देखा। छोटा, गीला, कांपता हुआ लड़का। उन्होंने ठंडी हंसी के साथ पूछा, “क्या चाहिए तुझे बच्चे?” आरव ने हिम्मत जुटाई। उसकी आवाज कांप रही थी। “साहब, अगर मुझे थोड़ा खाना मिल जाए तो मैं आपकी मदद कर सकता हूं।”
भाग 4: अवसर की तलाश
संजय ने हंसते हुए कहा, “मदद करेगा तू?” फिर उन्होंने सबके सामने कहा, “ठीक है बेटा, अगर तू कुछ सच में मदद कर पाया तो मैं तुझे खाना दूंगा। नहीं तो दोबारा इस जगह के आसपास मत दिखना।” बारिश अब तेज हो चुकी थी। सबकी नजरें उस छोटे से लड़के पर थी। आरव ने सिर उठाया और बोला, “ठीक है साहब। मैं कोशिश करूंगा।” उसकी आंखों में डर नहीं, एक अजीब सी चमक थी जैसे वह सचमुच कुछ जानता हो।
रेस्टोरेंट के अंदर अफरातफरी मची हुई थी। किचन में बर्तन गिरने की आवाजें आ रही थी। शेफ एक दूसरे पर चिल्ला रहे थे और सारा स्टाफ घबराया हुआ था। ओवन काम करना बंद कर चुका था। जबकि कुछ ही मिनटों में शहर के बड़े बिजनेसमैन और फिल्म स्टार आने वाले थे। मैनेजर राजीव गुस्से में बोला, “अबे जल्दी कुछ करो। अगर खाना टाइम पर नहीं बना तो आज हमारी नौकरी गई समझो।”
भाग 5: आरव का साहस
इसी बीच गार्ड ने धीरे से कहा, “साहब, वही लड़का बाहर खड़ा है। कह रहा था कि उसे ओवन ठीक करना आता है।” राजीव झल्ला उठा। “तू पागल है क्या? उस झोपड़ पट्टी वाले बच्चे से मशीन ठीक करवाएगा। यह कोई खिलौना नहीं है।” लेकिन तभी मालिक संजय कपूर ने गंभीर आवाज में कहा, “उसे अंदर लाओ। देखते हैं आखिर वह क्या जानता है। वैसे भी इंजीनियरिंग टीम को आने में आधा घंटा लगेगा।”
गार्ड ने जाकर आरव को अंदर बुलाया। बारिश में भीगा हुआ, नंगे पैर, ठंड से कांपता हुआ वो बच्चा जैसे ही अंदर आया सबकी नजरें उसी पर टिक गई। किसी ने हंसी दबाई, किसी ने आंखें तरेरी। आरव ने ओवन के पास जाकर देखा और धीरे से बोला, “उसे जरा बंद कर दीजिए और किसी को भी छूने मत दीजिए।” राजीव ने व्यंग से कहा, “वाह, अब तू हमें आदेश देगा।”
लेकिन संजय ने हाथ उठाकर कहा, “करने दो, देखते हैं।” आरव ने झुककर ओवन के पीछे की वायरिंग देखी। वहां से हल्की सी जलने की गंध आ रही थी। उसने उंगलियों से तारों को छुआ। फिर बोला, “साहब, इसका अर्थ वायर जला हुआ है। यही वजह है कि बिजली आगे नहीं जा रही। अगर आप लोग थोड़ा इंसुलेटिंग टेप और एक एक्स्ट्रा वायर दे दो, मैं 5 मिनट में ठीक कर दूंगा।”

भाग 6: चमत्कार
शेफ और टेक्निशियन उसे अविश्वास से देख रहे थे। लेकिन संजय बोले, “दे दो जो मांग रहा है।” आरव ने सावधानी से पुराने तार को काटा। नया वायर जोड़ा और टेप से बांध दिया। फिर उसने स्विच ऑन करने को कहा। सारे लोग सांस रोके खड़े रहे। अचानक ओवन की लाइट जल उठी और उसकी आवाज फिर से गूंजने लगी। एक सेकंड के लिए पूरा किचन सन्नाटे में था। फिर सबके मुंह से एक साथ निकला, “चल गया।”
शेफ प्रसन्न होकर बोले, “यह तो चमत्कार हो गया।” राजीव के चेहरे पर शर्म की लाली आ गई। अभी कुछ देर पहले जो बच्चे को झोपड़ी वाला कह रहा था, अब उसकी आंखों में झुकाव था। संजय कपूर ने आश्चर्य से पूछा, “बेटा, तूने यह सब कहां सीखा?” आरव ने सिर झुकाते हुए कहा, “मेरे पापा बिजली का काम करते थे। जब वह जिंदा थे, मैं रोज उनके साथ जाता था। उन्होंने सिखाया था कि अगर कुछ खराब हो जाए तो डरना नहीं चाहिए। कोशिश करनी चाहिए।”
भाग 7: इंसानियत की पहचान
किचन में सन्नाटा छा गया। कोई कुछ बोल नहीं पाया। आरव के शब्दों ने सबके दिल छू लिए। संजय धीरे-धीरे आगे बढ़े। उनके चेहरे की कठोरता गायब हो चुकी थी। उन्होंने अपने रुमाल से आरव का चेहरा पोंछा और कहा, “बेटा, हम सबको माफ कर दो। हमने तुझे बाहर अपमानित किया और तूने हमारी मदद कर दी।” आरव मुस्कुराया। हल्की मासूम मुस्कान। “मुझे बस खाना चाहिए था साहब। भूख लगी थी। और अगर मैं मदद कर सकता था तो क्यों नहीं करता?”
संजय ने भावुक होकर कहा, “आज से तू इस रेस्टोरेंट का हिस्सा है। कोई तुझे भिखारी नहीं कहेगा। पहले जा खाना खा ले।” शेफ ने खुद प्लेट में खाना परोसा और सबकी आंखों में नमी थी। राजीव ने धीरे से कहा, “बेटा, आज तूने हमें इंसानियत सिखा दी।” आरव ने जवाब दिया, “इंसानियत कभी सिखाई नहीं जाती साहब। बस याद रखनी पड़ती है।”
भाग 8: एक नया जीवन
किचन में सबके दिलों में जैसे एक सन्नाटा उतर गया था। शर्म, कृतज्ञता और सम्मान से भरा हुआ। बारिश अब भी बाहर बरस रही थी, लेकिन अंदर का माहौल अचानक बहुत गर्म और रोशन लगने लगा था। आरव अब रेस्टोरेंट के अंदर एक कोने में बैठा था। उसके सामने गरमागरम खाना रखा था। दाल, चावल, रोटी और थोड़ी सी मिठाई। वह हर कौर को धीरे-धीरे खा रहा था। जैसे जिंदगी का सबसे अनमोल स्वाद हो।
आसपास का पूरा स्टाफ चुपचाप उसे देख रहा था। वही लोग जो कुछ देर पहले उसे धक्का दे रहे थे, अब उसकी इज्जत में सिर झुकाए खड़े थे। संजय कपूर उसके पास आए। कुर्सी खींच कर बैठे और बोले, “बेटा, आज से तू हमारे साथ रहेगा। खाना, कपड़ा, पढ़ाई यह सब हमारी जिम्मेदारी।” आरव की आंखों में आंसू आ गए। “साहब, मैं बस खाना मांगने आया था। नौकरी नहीं।”
संजय मुस्कुराए। “कभी-कभी भगवान किसी छोटे से बच्चे के जरिए हमें याद दिलाता है कि इंसानियत अब भी जिंदा है।” पूरा रेस्टोरेंट तालियों से गूंज उठा। राजीव ने आगे बढ़कर कहा, “माफ कर देना बेटा। आज हमने अपने दिल का आईना देखा।” आरव ने मुस्कुराते हुए सिर झुका दिया।
भाग 9: आशा की किरण
उस पल में वह भूखा बच्चा नहीं रहा। वह सबके लिए एक सबक बन चुका था। बाहर बारिश थम चुकी थी और आसमान में पहली बार हल्की धूप झिलमिला रही थी। जैसे खुद किस्मत मुस्कुरा रही हो उस छोटे से लड़के पर। आरव की कहानी ने न केवल रेस्टोरेंट के स्टाफ को, बल्कि वहां मौजूद सभी लोगों को एक नई दिशा दी।
आरव ने अपनी मेहनत और हिम्मत से साबित कर दिया कि हालात चाहे कितने भी कठिन क्यों न हों, अगर मन में उम्मीद हो, तो हर मुश्किल का सामना किया जा सकता है। संजय कपूर ने आरव को न केवल खाना दिया, बल्कि उसे एक नया जीवन भी प्रदान किया।
भाग 10: एक नई शुरुआत
आरव ने अपने नए जीवन की शुरुआत की। उसे रेस्टोरेंट में काम करने का मौका मिला, जहां उसने न केवल खाना बनाना सीखा, बल्कि वह धीरे-धीरे रेस्टोरेंट के कामकाज में भी शामिल होने लगा। उसकी मेहनत और लगन ने उसे सभी का प्रिय बना दिया।
रेस्टोरेंट में काम करते हुए आरव ने अपने जीवन के हर पल को संजोया। उसने अपनी पढ़ाई भी जारी रखी और संजय कपूर ने उसकी पढ़ाई का खर्च उठाने का वादा किया। आरव ने अपने सपनों को पूरा करने के लिए मेहनत की और एक दिन वह अपने पापा की तरह एक सफल इलेक्ट्रिशियन बना।
भाग 11: इंसानियत की जीत
आरव की कहानी ने न केवल उसके जीवन को बदला, बल्कि उसने सभी को यह भी सिखाया कि इंसानियत सबसे बड़ी दौलत है। वह अपने अनुभवों से यह समझ गया कि भले ही वह एक गरीब लड़का था, लेकिन उसकी सोच और उसके कार्य उसे अमीर बना सकते थे।
आरव अब न केवल अपने लिए, बल्कि दूसरों के लिए भी एक प्रेरणा बन चुका था। वह हमेशा मदद के लिए तैयार रहता था और अपने जैसे बच्चों की मदद करने का भी प्रयास करता था।
भाग 12: अंत में
इस तरह आरव ने अपने जीवन की कठिनाइयों को पार कर एक नई शुरुआत की। उसकी मेहनत और हिम्मत ने उसे सफलता की ऊंचाइयों पर पहुंचाया। वह अब केवल एक रेस्टोरेंट का हिस्सा नहीं था, बल्कि एक नई उम्मीद और प्रेरणा का प्रतीक बन चुका था।
इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि हालात चाहे कितने भी खराब क्यों न हों, अगर हमारे अंदर संघर्ष और मेहनत करने की इच्छा हो, तो हम किसी भी मुश्किल को पार कर सकते हैं। इंसानियत और मदद का हाथ बढ़ाना ही असली सफलता है।
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