अगर उस रात उसने दरवाज़ा ना खोला होता… उसके बाद जो हुआ|
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अगर उस रात उसने दरवाज़ा ना खोला होता
सर्दियों की एक रात थी। उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिले के एक छोटे से गाँव में, चारों ओर घना अंधेरा और हल्की-हल्की बारिश हो रही थी। ठंडी हवा की सरसराहट और बिजली की कड़क ने वातावरण को और भी रहस्यमय बना दिया था। ऐसे में एक छोटे से घर के अंदर अनन्या नाम की एक अकेली औरत अपनी नींद में करवटें बदल रही थी। उसकी ज़िंदगी में सन्नाटा था, लेकिन उस रात की खामोशी को एक अनजाने दस्तक ने तोड़ दिया।
खिड़की से झाँकती अनन्या की नज़रें दरवाज़े के पास बैठे एक भीगे, काँपते लड़के पर पड़ीं। उसका नाम अर्जुन था। उसका शरीर एक पुराने कंबल में लिपटा हुआ था, लेकिन कंबल भी बारिश में भीग चुका था। अनन्या ने पहले डर महसूस किया, फिर दया। उसने बिना ज़्यादा सोचे दरवाज़ा खोला और पूछा, “कौन हो तुम?”
अर्जुन ने सिर झुकाए जवाब दिया, “माफ कीजिए, रास्ते में बाइक पंचर हो गई। रात काटनी है, बस थोड़ी लकड़ी या कंबल दे दीजिए। बाहर बरामदे में लेट जाऊँगा।”
अनन्या के मन में डर और दया की लड़ाई चली। आखिरकार इंसानियत जीत गई। उसने लकड़ियाँ और एक पुराना कंबल दरवाज़े के पास रख दिया और दरवाज़ा बंद कर लिया। अर्जुन ने लकड़ियाँ जलाईं, लेकिन ठंडी हवा और भीगा कंबल उसकी मदद नहीं कर पाए। रात के दस बजे थे, बिजली फिर कड़क उठी। अनन्या को अर्जुन का ख्याल आया। उसने हिम्मत जुटाई और दोबारा दरवाज़ा खोला। अर्जुन कोने में सिकुड़ा बैठा था, उसका शरीर नीला पड़ने लगा था। अनन्या ने तुरंत कहा, “अंदर आ जाओ, वरना बीमार पड़ जाओगे।”
अर्जुन हिचकिचाया, लेकिन अनन्या के भरोसे ने उसे अंदर आने की हिम्मत दी। उसने अर्जुन को अपने पति के पुराने कपड़े और स्वेटर दिए। फिर बोली, “चारपाई पर लेट जाओ, सुबह होते ही निकल जाना।” अर्जुन ने मना किया, लेकिन अनन्या ने ज़िद की। खुद कुर्सी पर बैठ गई। पहली बार अर्जुन के होंठों पर हल्की मुस्कान आई।
अनन्या ने दो कप चाय बनाई। अर्जुन ने पूछा, “इतना सब क्यों?” अनन्या बोली, “कभी-कभी अकेलेपन से डर कम हो जाता है, इंसान का दर्द बड़ा लगता है।” चाय की गर्मी और बातचीत ने दोनों के बीच की दूरी कम कर दी। अर्जुन ने बताया, वह गाँव में मजदूरी करता था, पढ़ाई पूरी की है, कुछ अलग करना चाहता है। अनन्या ने अपने टूटे रिश्ते, अकेलेपन और बच्चों को पढ़ाने की बातें साझा कीं।
रात भर दोनों ने अपने-अपने दुख, सपने और उम्मीदें बाँटीं। सुबह अनन्या ने फिर चाय बनाई। अर्जुन बोला, “अब मुझे चलना चाहिए।” अनन्या मुस्कुराई, “अभी दुकानें भी नहीं खुलीं, थोड़ी देर और रुक जाओ।” अर्जुन ने मदद माँगी, “₹50 चाहिए, लौटाकर दे दूँगा।” अनन्या ने बिना कुछ कहे पैसे दे दिए।
कुछ दिन बाद अर्जुन अपने गाँव लौटा। माँ की चिंता, पिता की चुप्पी और घर का माहौल देखकर उसने सब कुछ बता दिया। माँ ने समझाया, “हर कोई बुरा नहीं होता, लेकिन आँख मूँद कर भरोसा भी मत करना।” अर्जुन के दिल में अनन्या की मुस्कान और उसकी बातें गूंजती रहीं। चौथे दिन वह फिर से उसी घर पहुँचा, ₹50 लौटाने। दरवाज़ा खुला, अनन्या मुस्कुराई। उसने पैसे लिए, बोली, “इतनी जल्दी लौट आए?” अर्जुन बोला, “भूलता, तो खुद को खो देता।”
इस बार अर्जुन बोला, “अगर आप कहें तो आज की रात यहीं रुक जाऊँ?” अनन्या ने सिर हिला दिया। इस बार कोई बादल नहीं गरजे, लेकिन दो दिलों में एक नया जुड़ाव पनपा। अब अर्जुन का आना-जाना आम बात हो गई। अनन्या का नाम अब माया हो गया था, और वह अब अर्जुन के लिए सिर्फ मददगार नहीं, साथी बन गई थी।
छह महीने बीत गए। गाँव में बातें फैलने लगीं। एक औरत ने सुबह-सुबह अर्जुन को माया के घर से निकलते देख लिया। अफवाहें उड़ने लगीं। अर्जुन जानता था, अब चुप रहा तो माया टूट जाएगी। उस शाम वह माया के पास गया, बोला, “अब इन बातों को नाम देना होगा—शादी का नाम।” माया चुप रही, फिर बोली, “क्या तुम्हारे माँ-बाप मुझे स्वीकार करेंगे? मैं उम्र में बड़ी, तलाकशुदा हूँ।” अर्जुन ने उसका हाथ थामा, “मैंने सब बता दिया है, उन्होंने कहा—अगर तू खुश है, तो हम भी खुश हैं।”
कुछ हफ्तों बाद गाँव में शादी की तैयारियाँ शुरू हुईं। कोई दिखावा नहीं, बस सादगी और अपनापन था। अर्जुन के माता-पिता आए, थोड़ी झिझक के बाद उन्होंने माया की आँखों में अपने बेटे की खुशी देखी। शादी के दिन मंदिर में दोनों ने हाथ थामे, सप्तपदी के मंत्र के साथ एक-दूसरे को जीवनभर की छाँव दी।
शादी के बाद भी कुछ लोग फुसफुसाते रहे, पर अर्जुन ने सबके सामने कहा, “जिसने मुझे बारिश में ठंड से बचाया, मैं उसे जिंदगीभर तन्हाई से बचाऊँगा।” उसके इन शब्दों के बाद तालियों की गूंज उठी। दोनों ने स्कूल के पास एक छोटा सा घर लिया, और नई ज़िंदगी शुरू की। कुछ वर्षों बाद माया ने बेटे को जन्म दिया। अब उनका परिवार पूरा हो गया था।
आज अर्जुन और माया एक शांत, साधारण लेकिन आत्मसम्मान से भरी ज़िंदगी जी रहे हैं। बेटे को स्कूल भेजते हुए, किताबों में भविष्य संवारते हुए दोनों की आँखों में सुकून है। अगर उस रात दरवाज़ा ना खोला होता, तो शायद ज़िंदगी की सारी खिड़कियाँ हमेशा के लिए बंद हो जातीं। कभी एक अजनबी की मदद से शुरू हुई कहानी आज एक परिवार की मुस्कान बन गई थी।
यह कहानी सिर्फ एक रिश्ता नहीं, एक सोच है—कि इंसान की कीमत, समाज या हालात से नहीं, उसकी करुणा और समझदारी से तय होती है। अगर आपके जीवन में कभी कोई अनजान व्यक्ति दरवाज़ा खटखटाए, तो क्या आप हिम्मत कर पाएँगे उसके लिए वह दरवाज़ा खोलने की?
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