अगर तुम ये गाड़ी ठीक कर दो, तो हम तुम्हें डायरेक्टर बना देंगे!” – गरीब लड़की ने कर दिखाया कमाल!
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अगर तुम ये गाड़ी ठीक कर दो, तो हम तुम्हें डायरेक्टर बना देंगे!” – गरीब लड़की ने कर दिखाया कमाल!
शहर की सबसे बड़ी ऑटोमोबाइल कंपनी, मेगाटेक मोटर्स, की चमचमाती बिल्डिंग के बाहर दोपहर की तपती धूप में महंगी गाड़ियों की कतार लगी थी। अंदर, ठंडी एसी की हवा और शीशों में झलकती सफलता की कहानी चल रही थी। लेकिन उस दिन ऑफिस का माहौल कुछ अलग था। कॉन्फ्रेंस रूम में दस इंजीनियरों की टीम कंपनी की नई इलेक्ट्रिक कार के चारों ओर खड़ी थी। यह कार अगले हफ्ते इंटरनेशनल एक्सपो में लॉन्च होनी थी, लेकिन उसके सिस्टम में गंभीर खराबी आ गई थी। करोड़ों की कीमत वाली उस कार का सॉफ्टवेयर एरर पकड़ में नहीं आ रहा था।
रघुवीर मल्होत्रा, कंपनी का हेड, सामने खड़ा सब सुन रहा था। उसका स्वभाव कड़क था, और उसने कड़े शब्दों में कहा, “अगर यह गाड़ी दो दिन में ठीक नहीं हुई, तो हम एक्सपो में हिस्सा नहीं ले पाएंगे। हमें करोड़ों का नुकसान होगा और तुम सब अपनी नौकरियां गंवा दोगे।” सबके चेहरे पर तनाव और डर साफ नजर आ रहा था। तभी दरवाजे से एक धीमी सी आवाज आई, “सर, क्या मैं देख सकती हूं?”
सबकी नजरें घूम गईं। दरवाजे पर एक दुबली-पतली लड़की खड़ी थी, उम्र मुश्किल से 22-23 साल, सादी सलवार-कमीज, बाल रबर बैंड से बंधे हुए, हाथों में पुरानी टूलकिट। उसकी उंगलियों पर ग्रीस के निशान थे और चेहरे पर मेहनत की चमक। रघुवीर ने भौंहें सिकोड़ते हुए पूछा, “तुम कौन हो?” लड़की ने विनम्र स्वर में जवाब दिया, “मेरा नाम संध्या है, सर। मैं नीचे वाले गैराज में काम करती हूं। सुना कि आपकी कार बंद पड़ी है, तो सोचा देख लूं, शायद मदद कर सकूं।”
कमरे में हंसी गूंज उठी। एक इंजीनियर बोला, “वाह, अब सड़क की मैकेनिक हमारी करोड़ों की इलेक्ट्रिक कार ठीक करेगी!” दूसरा बोला, “अगर इसने गाड़ी ठीक कर दी, तो मैं अपनी सैलरी इसे दे दूंगा।” तीसरा बोला, “अरे नहीं, इससे भी बड़ा बोलो। अगर इसने गाड़ी ठीक कर दी, तो हम इसे डायरेक्टर बना देंगे!” सब हंस पड़े। रघुवीर ने मुस्कुरा कर कहा, “ठीक है लड़की, चुनौती स्वीकार है। अगर तुम ये गाड़ी ठीक कर दो, तो मैं तुम्हें कंपनी की डायरेक्टर बना दूंगा।”
संध्या ने गहरी सांस ली, उसकी आंखों में हल्की चमक थी। उसने कहा, “ठीक है सर, मैं कोशिश करूंगी।” सबने व्यंग्य भरी मुस्कान दी, किसी ने मोबाइल निकाल लिया, किसी ने फुसफुसाकर कहा, “अब मजा आएगा।” लेकिन संध्या के चेहरे पर आत्मविश्वास था। वह गाड़ी के पास गई, बोनट खोला और अपनी पुरानी टूलकिट निकाली। इंजीनियर उसके हर मूवमेंट को देख रहे थे – कुछ हैरान होकर, कुछ मजे के लिए।
संध्या ने तारों को एक-एक करके छुआ, कनेक्शन देखे, फ्यूज चेक किए, फिर कार के डिजिटल सिस्टम की स्क्रीन पर उंगलियां चलाईं। एक इंजीनियर ने फुसफुसाकर कहा, “इसे तो कोडिंग आती भी नहीं होगी।” लेकिन कुछ ही मिनटों में संध्या ने एक अजीब बात कही, “सर, आपके सर्किट में ग्राउंड इनवर्टर गलत तरीके से लगा है। इससे ऑटो रिसेट फेल हो गया है और सेंसर लॉक हो गए हैं।” पूरा कमरा चुप हो गया। यह वही टेक्निकल लाइन थी जिसे इंजीनियर खुद नहीं समझ पा रहे थे, और अब एक गरीब लड़की ने उसे पहचान लिया था।
संध्या ने धीरे से चिप को निकाला, वायर को सही जगह जोड़ा, फिर एक छोटा सा रिसेट कोड टाइप किया। सबकी आंखें स्क्रीन पर टिकी थीं। संध्या ने इग्निशन बटन दबाया – कार एकदम से चालू हो गई। स्क्रीन पर ग्रीन लाइट्स चमक उठीं। इंजन की हल्की गूंज गूंजी और पूरा रूम एक पल के लिए सन्न रह गया। इंजीनियरों की हंसी अब खामोशी में बदल गई थी। किसी के हाथ से मोबाइल गिर गया, किसी के मुंह से बस इतना निकला, “इंपॉसिबल!”
रघुवीर धीरे-धीरे आगे बढ़ा। उसकी आंखों में अविश्वास था, “तुमने यह कैसे किया?” संध्या ने मुस्कुराते हुए कहा, “सर, मैं इलेक्ट्रॉनिक्स की पढ़ाई नहीं कर पाई। मेरे पापा गैराज चलाते थे। बचपन से उनके साथ गाड़ियां खोलना मेरा शौक था। वो कहते थे, मशीन को समझो, उसे महसूस करो, वो खुद बताती है कि कहां दर्द है। बस वही किया।”
कमरे में सन्नाटा छा गया। वो इंजीनियर, जो कुछ देर पहले उसका मजाक उड़ा रहे थे, अब सिर झुकाए खड़े थे। रघुवीर ने गाड़ी की आवाज सुनी, फिर संध्या की तरफ देखा और धीमे स्वर में कहा, “संध्या, अब तुम्हें बाहर नहीं जाना पड़ेगा।” संध्या ने सिर झुका लिया, उसकी आंखों में नमी थी, लेकिन होठों पर संतोष की मुस्कान थी। वह नहीं जानती थी कि इस पल ने उसकी जिंदगी की दिशा हमेशा के लिए बदल दी थी।
दो दिन बाद, मेगाटेक मोटर्स की विशाल बिल्डिंग के बाहर मीडिया की भीड़ उमड़ी थी। हर चैनल का कैमरा अंदर की ओर तना था। वजह थी कंपनी का नया लॉन्च – वही इलेक्ट्रिक कार जो दो दिन पहले तक बंद पड़ी थी और जिसे असंभव कहा जा रहा था। लेकिन अब वही कार कंपनी की शान बन चुकी थी। अंदर हॉल में बड़े-बड़े पोस्टर लगे थे – “इंडियन इनोवेशन एट इट्स बेस्ट।” मंच पर संध्या वर्मा बैठी थी – साफ सुथरे कपड़े, कंपनी का पहचान बैज, और चेहरा आत्मविश्वास से दमकता हुआ।
रघुवीर मल्होत्रा मंच पर आए और बोले, “दो दिन पहले हमारी कंपनी की सबसे महंगी कार अचानक बंद पड़ गई थी। हमारे 10 से ज्यादा इंजीनियर कोशिश करते रहे, लेकिन कोई हल नहीं मिला। फिर आई एक लड़की, जो ना तो हमारी कंपनी की इंजीनियर थी, ना टेक्निकल टीम की सदस्य, बस एक गरीब मैकेनिक की बेटी। उसने वह कर दिखाया जो हमारी पूरी टीम नहीं कर पाई।” हॉल में तालियों की गड़गड़ाहट गूंज उठी। कैमरों की फ्लैश लाइट संध्या के चेहरे पर चमकने लगी।
रघुवीर ने आगे कहा, “कभी-कभी डिग्री नहीं, जुनून असली पहचान देता है। और आज मैं गर्व के साथ घोषणा करता हूं कि संध्या वर्मा को हमारी कंपनी का नया टेक्निकल डायरेक्टर नियुक्त किया जा रहा है।” पूरा हॉल तालियों से भर गया। संध्या की आंखें नम थीं। वह धीरे से उठी, माइक के पास आई और हल्की सी मुस्कान के साथ बोली, “मैंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि जिस जगह मैं गैराज के बाहर गाड़ियां धोया करती थी, वहीं एक दिन मंच पर खड़ी होकर लोग मेरी बात सुनेंगे।”
वह कुछ पल रुकी, फिर बोली, “मैंने स्कूल के बाद कॉलेज जाना चाहा था, लेकिन हालातों ने इजाजत नहीं दी। पापा कहते थे, किताबों से नहीं, मेहनत से सीखो। जब वह नहीं रहे, तो मैंने उसी गैराज में काम शुरू किया जहां वह काम करते थे। हर टूटे पार्ट में, हर जले वायर में मुझे कुछ नया सीखने को मिलता था। गाड़ियां मेरे लिए मशीन नहीं, जिंदा चीजें थीं। बस मैंने वही किया जो उन्होंने सिखाया था – मशीन की सांस सुनना।”
भीड़ शांत हो गई थी। कई लोगों की आंखों में आंसू थे। संध्या ने आगे कहा, “दो दिन पहले जब मैं इस हॉल में आई, तो मुझे देखकर लोग हंस रहे थे। मैं जानती हूं, वो मेरा मजाक नहीं, मेरी गरीबी का मजाक था। लेकिन मैंने यह सीखा है कि इंसान की कीमत उसके कपड़ों से नहीं, उसके काम से होती है। मैंने गाड़ी को ठीक नहीं किया, बस उसे समझा और शायद बस वही काफी था।”
फिर उसने मंच के सामने खड़े उन इंजीनियरों की तरफ देखा जिन्होंने उसका मजाक उड़ाया था। उनमें से एक आगे आया और बोला, “मैडम, उस दिन हमने आपका अपमान किया था। हमें लगा था कि डिग्री के बिना कोई कुछ नहीं कर सकता। लेकिन आपने साबित किया कि असली इंजीनियर वह है जो हर समस्या में समाधान देखता है। आपने हमें विनम्रता सिखाई।” संध्या मुस्कुराई और बोली, “गलती तो हर इंसान से होती है, लेकिन जो उसे मान ले वही असली इंसान है। मैंने आप सब से भी बहुत कुछ सीखा, खासकर यह कि भरोसा किसी पर भी किया जा सकता है अगर वह सच्चे दिल से मेहनत करे।”
तालियां फिर गूंज उठीं। रघुवीर ने उसके गले में कंपनी का गोल्ड बैज पहनाया और कहा, “अब से यह लड़की नहीं, हमारी इनोवेशन की पहचान है और आज से इस कार का नाम रहेगा – संध्या वन।” सारे कैमरे उस कार पर फोकस हो गए जिसके बोनट पर सुनहरे अक्षरों में “संध्या वन” लिखा था। मीडिया वालों ने सवाल पूछना शुरू किया। संध्या जी, जब आपको हंसाया गया तब आपको गुस्सा नहीं आया? संध्या ने मुस्कुराकर कहा, “नहीं, क्योंकि मैंने सीखा है कि अगर कोई तुम पर हंसे, तो उसे साबित करने का सबसे अच्छा जवाब तुम्हारी सफलता होती है।”
एक और पत्रकार ने पूछा, “आपके लिए सबसे बड़ा पल कौन सा रहा?” संध्या ने थोड़ा सोचकर कहा, “जब कार चालू हुई, तब मुझे लगा जैसे मेरे पापा ने कहा हो – देखा बेटा, मेहनत कभी बेकार नहीं जाती।” भीड़ में बैठे कई लोग भावुक हो गए। रघुवीर ने मंच पर कहा, “मैंने अपने जीवन में बहुत से इंजीनियर देखे हैं, लेकिन पहली बार किसी ने मुझे यह सिखाया कि मशीन से पहले इंसान को समझो। आज से संध्या सिर्फ हमारी डायरेक्टर नहीं, हमारी प्रेरणा भी है।”
समारोह खत्म हुआ, लेकिन तालियां रुकने का नाम नहीं ले रही थीं। संध्या मंच से उतरी, तो वही इंजीनियर जिनके बीच कल मजाक था, आज गर्व से उसके पास आए। किसी ने हाथ मिलाया, किसी ने कहा, “आपसे फिर से सीखना है, मैडम।” संध्या बस मुस्कुरा दी। उसे अब एहसास हो चुका था कि वह जहां पहुंची है, वहां पहुंचने के लिए उसे किसी चमत्कार की जरूरत नहीं थी – बस खुद पर यकीन की।
उस शाम जब सब चले गए, तो वह कुछ देर कार के पास खड़ी रही। उसने धीरे से गाड़ी के बोनट पर हाथ फेरा और बुदबुदाई, “थैंक यू पापा। आपने जो सिखाया वही मेरी जीत बन गया।” रघुवीर पीछे से आया और बोला, “संध्या, कल तुम प्रेस कॉन्फ्रेंस में जाओगी, इंटरनेशनल मीडिया तुमसे सवाल करेगी, तैयार हो?” संध्या ने मुस्कुरा कर कहा, “सर, जब मैं गाड़ियों से नहीं डरी, तो लोगों से क्यों डरूंगी।” रघुवीर हंस पड़ा और बोला, “तुम्हारे जैसे लोगों की वजह से ही इंडस्ट्री जिंदा है।”
कुछ महीनों बाद, संध्या वन एक्सपो में लॉन्च हुई। दुनिया भर के मीडिया ने उस लड़की की कहानी को छापा – “पुअर मैकेनिक गर्ल हू बिकम डायरेक्टर।” कई विदेशी कंपनियां उसे ऑफर देने आईं, लेकिन संध्या ने सिर्फ इतना कहा, “मैं यहीं रहूंगी क्योंकि मेरी जड़ें मिट्टी में हैं और मैं उसी मिट्टी से उगी हूं।” अब वह हर महीने कंपनी में गरीब छात्रों के लिए इनोवेशन वर्कशॉप चलाती थी। वहां वह बच्चों से कहती, “गरीबी कमी नहीं है, यह तो ताकत है जो तुम्हें झुकने नहीं देती। बस एक बार खुद पर भरोसा करना सीख लो, दुनिया तुम्हें सलाम करेगी।”
वह लड़की जो कभी गैराज में काम करती थी, अब एक मिसाल थी उन सबके लिए जो हालातों से हार मान लेते हैं। उसने दिखा दिया कि अगर जुनून सच्चा हो तो कोई सपना दूर नहीं। कभी किसी ने मजाक में कहा था, “अगर तुम यह गाड़ी ठीक कर दो, तो हम तुम्हें डायरेक्टर बना देंगे।” और आज वह लड़की सचमुच डायरेक्टर बन चुकी थी – अपने हुनर, आत्मविश्वास और सपनों की ताकत से।
समाप्त
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