अधूरी रह गई धर्मेंद्र की आखिरी इच्छा! Dharmendra last wish remained unfulfilled ! Dharmendra Updates

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अधूरी रह गई धर्मेंद्र की आखिरी इच्छा: देओल परिवार, अंतिम संस्कार और फैंस का दर्द

मुंबई। हिंदी सिनेमा के असली ही-मैन, करोड़ों दिलों की धड़कन धर्मेंद्र का 24 नवंबर 2024 को निधन हो गया। उनकी मौत ने सिर्फ उनके परिवार को नहीं, बल्कि पूरे देश को सदमे में डाल दिया। लेकिन उनके जाने के बाद एक सवाल हर किसी के मन में रह गया—क्या धर्मेंद्र जी की आखिरी इच्छा पूरी हो पाई? क्यों उनका अंतिम संस्कार इतनी गोपनीयता में हुआ, और क्यों उनके चाहने वालों को उनके आखिरी दर्शन तक नहीं मिल पाए? आइये जानते हैं इस अधूरी कहानी के हर पहलू को विस्तार से।

धर्मेंद्र का निजी संघर्ष और परिवार की जटिलता

धर्मेंद्र का जीवन जितना फिल्मी पर्दे पर चमकदार था, उतना ही निजी जिंदगी में जटिल। उन्होंने 19 साल की उम्र में प्रकाश कौर से शादी की थी। प्रकाश कौर से उनके दो बेटे—सनी और बॉबी देओल—और दो बेटियां—विजेता और अजीता—हैं। बाद में धर्मेंद्र की जिंदगी में हेमा मालिनी आईं, जिनसे उन्होंने दूसरी शादी की। हेमा मालिनी से उन्हें दो बेटियां—ईशा और अहाना—हैं।

इन दोनों परिवारों के बीच हमेशा एक दूरी रही। सनी और बॉबी अपनी मां प्रकाश कौर के बेहद करीब रहे, जबकि हेमा मालिनी को देओल परिवार में कभी वह सम्मान नहीं मिला, जिसकी वे हकदार थीं। धर्मेंद्र ने कई बार कोशिश की कि दोनों परिवार एक हो जाएं, लेकिन सामाजिक और पारिवारिक जटिलताओं के कारण यह कभी संभव नहीं हो पाया।

अंतिम दिनों की कहानी: मीडिया, अफवाहें और परिवार का फैसला

31 अक्टूबर 2024 को धर्मेंद्र की तबीयत अचानक बिगड़ गई और उन्हें ब्रेच कैंडी अस्पताल में भर्ती कराया गया। उनकी हालत नाजुक थी, लेकिन परिवार को उम्मीद थी कि वे ठीक हो जाएंगे। इसी बीच 11 नवंबर को अचानक मीडिया में धर्मेंद्र के निधन की झूठी खबर फैल गई। फैंस और मीडिया अस्पताल के बाहर जमा हो गए। लेकिन यह खबर गलत थी। हेमा मालिनी और ईशा देओल ने सोशल मीडिया पर इस अफवाह का खंडन किया।

इस घटना ने सनी देओल को गहरा आहत किया। उन्होंने ठान लिया कि अगर उनके पिता का निधन होता है, तो वे अंतिम संस्कार को पूरी तरह निजी रखेंगे, ताकि मीडिया और भीड़ उनके पिता के अंतिम पलों को तमाशा न बना सके।

24 नवंबर 2024: वह मनहूस सुबह

24 नवंबर की सुबह मुंबई के जूहू में धर्मेंद्र जी ने अंतिम सांस ली। देओल परिवार ने किसी को कुछ नहीं बताया, सिर्फ करीबी रिश्तेदारों को बुलाया गया। श्मशान घाट में पूरी सिक्योरिटी थी, मीडिया और फैंस को अंदर जाने की इजाजत नहीं थी। हेमा मालिनी और उनकी बेटियां भी देर से पहुंचीं, और उन्हें अंतिम संस्कार में वह जगह नहीं मिली जो एक पत्नी और बेटियों को मिलनी चाहिए थी।

सनी और बॉबी ने मुख्य रस्में निभाईं, जबकि हेमा मालिनी और ईशा एक कोने में खड़ी रहीं। हेमा मालिनी की आंखों में आंसू थे, लेकिन उनका दुख सिर्फ पति को खोने का नहीं था, बल्कि यह भी था कि अंतिम समय में भी उन्हें परिवार का सम्मान नहीं मिला।

फैंस का टूटता दिल: आखिरी दर्शन की उम्मीद अधूरी

धर्मेंद्र जी के फैंस देशभर से पहुंचे थे—कोई पंजाब से, कोई हरियाणा से, कोई विदेशों से। सब चाहते थे अपने हीरो को आखिरी बार देखना, श्रद्धांजलि देना। लेकिन सनी देओल के फैसले के कारण आम फैंस को श्मशान घाट के बाहर ही रुकना पड़ा। कुछ फैंस तो घंटों गेट के बाहर खड़े रहे, जमीन पर बैठकर रोते रहे, लेकिन उन्हें अपने भगवान जैसे हीरो की एक झलक तक नहीं मिली।

धर्मेंद्र जी हमेशा अपने फैंस के बेहद करीब रहे थे। वे फैंस को गिफ्ट देते थे, उनके साथ केक काटते थे, उनकी खुशियों का ध्यान रखते थे। लेकिन उनके अंतिम समय में वही फैंस उनकी एक झलक के लिए तरसते रह गए।

धर्मेंद्र की अधूरी आखिरी इच्छा

धर्मेंद्र जी की आखिरी इच्छा यही थी कि उनके दोनों परिवार—प्रकाश कौर और हेमा मालिनी—एक साथ खड़े हों, हेमा को वही सम्मान मिले जो प्रकाश कौर को मिलता है, और उनके फैंस उन्हें आखिरी बार देख सकें। लेकिन यह इच्छा अधूरी रह गई। परिवार की पुरानी दूरियां, सामाजिक दबाव और निजी फैसलों के कारण धर्मेंद्र जी की अंतिम यात्रा पूरी तरह निजी रही, और हेमा मालिनी को वह सम्मान नहीं मिल पाया।

क्या सनी देओल का फैसला सही था?

यह सवाल हमेशा बहस का विषय रहेगा। एक तरफ सनी देओल का फैसला समझा जा सकता है—वह चाहते थे कि उनके पिता की अंतिम यात्रा शांतिपूर्ण हो, मीडिया की भीड़ और अफवाहों से दूर। दूसरी तरफ, धर्मेंद्र जी सिर्फ एक परिवार के सदस्य नहीं थे, बल्कि करोड़ों लोगों के हीरो थे। फैंस को भी उनका आखिरी दर्शन करने का अधिकार था।

यह फैसला सही था या गलत, इसका कोई एक जवाब नहीं है। परिवार की भावनाएं, निजी दर्द और सार्वजनिक जिम्मेदारी—इन सबके बीच संतुलन बनाना आसान नहीं था।

धर्मेंद्र की विरासत: फिल्में, फैंस और एक अधूरी कहानी

धर्मेंद्र जी का 90वां जन्मदिन 8 दिसंबर को आने वाला था। फैंस बेहद उत्साहित थे, क्योंकि खबरें आ रही थीं कि उनकी तबीयत में सुधार हो रहा है। लेकिन किस्मत को कुछ और मंजूर था। 24 नवंबर को वह दुनिया छोड़ गए और उनका जन्मदिन कभी नहीं मनाया जा सका।

धर्मेंद्र जी ने अपने करियर में शोले, फूल और पत्थर, सीता और गीता, चुपके-चुपके जैसी अनगिनत फिल्में दीं। उनके किरदारों ने लोगों के दिलों में खास जगह बनाई। वीरू का किरदार हो या एक्शन हीरो की छवि—धर्मेंद्र हमेशा लोगों के दिलों में जिंदा रहेंगे।

निष्कर्ष: अधूरी इच्छाएं और जिंदगी का सच

धर्मेंद्र जी की आखिरी इच्छा अधूरी रह गई। वे चाहते थे कि दोनों पत्नियों को बराबर का सम्मान मिले, फैंस उन्हें आखिरी बार देख सकें। लेकिन ऐसा नहीं हो पाया। यह कहानी हमें सिखाती है कि रिश्तों की अहमियत क्या है, और कैसे कभी-कभी हमारे फैसले दूसरों के दिलों को दुखा सकते हैं। यह भी सिखाती है कि जब कोई बड़ा सितारा जाता है, तो वह सिर्फ अपने परिवार का नहीं, बल्कि करोड़ों फैंस का नुकसान होता है।

शायद यही जिंदगी का सच है—कभी-कभी हमारी आखिरी इच्छाएं भी अधूरी रह जाती हैं। लेकिन उम्मीद यही है कि धर्मेंद्र जी जहां भी हैं, खुश हैं और शांति में हैं। उनके परिवार और फैंस उन्हें हमेशा याद करेंगे। उनकी फिल्में, उनका अंदाज़ और उनकी अधूरी इच्छा—सब कुछ हमेशा हमारे दिलों में जिंदा रहेगा।

धर्मेंद्र जी को विनम्र श्रद्धांजलि।

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