अनाथ बच्चे ने करोड़पति से अपने भाई को खरीदने के लिए कहा क्योंकि वह बहुत भूखा था। इसके बाद उसने क्या किया…
क्या होता है जब एक भाई की मोहब्बत दुनिया के हर सौदे, हर कीमत से ऊपर उठ जाती है? क्या होता है जब भूख और लाचारी इंसान को एक ऐसी दहलीज पर ला खड़ा करती है, जहां वो अपनी जान से भी ज्यादा अजीज अपने जिगर के टुकड़े का सौदा करने पर मजबूर हो जाता है? यह कहानी दो ऐसे ही यतीम बेसहारा भाइयों की है, जिनकी दुनिया सड़कों की धूल और भूख की आग तक ही सीमित थी।
अमन और रोहन
15 साल का अमन और 8 साल का रोहन। दोनों सगे भाई, जिनके सिर से मां-बाप का साया तब उठ गया था जब उन्हें यह भी नहीं पता था कि अनाथ होना क्या होता है। पंजाब के एक छोटे से गांव में खेतीहर मजदूर रहे उनके माता-पिता। दो साल पहले एक भयानक बाढ़ में उनका छोटा सा कच्चा घर और उनकी सारी दुनिया सब कुछ बह गया था। उस हादसे में वे दोनों तो बच गए, लेकिन उनके मां-बाप नहीं बच पाए। तब से यह दोनों भाई अकेले थे।
कुछ दिन गांव वालों ने सहारा दिया, लेकिन गरीबी में कोई किसी का बोझ कब तक उठाता। आखिरकार, एक ट्रक में बैठकर वे इस बड़े शहर अमृतसर आ गए, इस उम्मीद में कि यहां उन्हें कोई काम, कोई सहारा मिल जाएगा। लेकिन यह शहर किसी पर इतनी आसानी से मेहरबान नहीं होता। उनकी जिंदगी अब सड़कों पर, फुटपाथों पर और रेलवे स्टेशन की किसी खाली कोने में गुजरने लगी थी।
अमन की मेहनत
अमन जो अपनी उम्र से कहीं ज्यादा बड़ा और समझदार हो गया था, अब सिर्फ एक भाई नहीं, बल्कि रोहन का मां और बाप सब कुछ था। वह दिन भर छोटे-मोटे काम करता। कभी किसी ढाबे पर बर्तन मांझता, कभी किसी गाड़ी को साफ करता, कभी कूड़े के ढेर से प्लास्टिक की बोतलें चुनता। उससे जो भी ₹10 की कमाई होती, उससे वह अपने छोटे भाई के लिए एक रोटी का इंतजाम करता।
रोहन बहुत कमजोर था। कुपोषण और सड़कों की सख्त जिंदगी ने उसके शरीर को तोड़ दिया था। वह अक्सर बीमार रहता। अमन खुद भूखा रह लेता लेकिन अपने भाई के मुंह में एक निवाला डालने की पूरी कोशिश करता। वो रात में जब रोहन ठंड से ठिठुरता, तो उसे अपनी फटी हुई कमीज के अंदर छिपा लेता। उसे अपनी गर्मी देने की कोशिश करता। वो उसे कहानियां सुनाता। उसे हंसाने की कोशिश करता।
बदतर हालात
लेकिन पिछले कुछ दिनों से हालात और भी ज्यादा खराब हो गए थे। बारिश की वजह से अमन को कोई काम नहीं मिला था। तीन दिन हो गए थे उन दोनों के पेट में अन्न का एक दाना भी नहीं गया था। भूख की आग अब बर्दाश्त से बाहर होती जा रही थी। रोहन की हालत बहुत बिगड़ गई थी। वह इतना कमजोर हो गया था कि उससे चला भी नहीं जा रहा था। उसकी आंखें अंदर धंस गई थीं और उसकी सांसे बहुत धीमी चल रही थीं।
अमन अपने भाई को इस हालत में देखकर अंदर ही अंदर मर रहा था। उसने हर दरवाजा खटखटाया। हर दुकान के सामने हाथ फैलाए। “कोई कुछ खाने को दे दो। मेरा भाई बहुत भूखा है। तीन दिन से कुछ नहीं खाया।” लेकिन उस भीड़भाड़ वाले शहर में किसी के पास एक पल रुक कर दो भूखे बच्चों की तरफ देखने का वक्त ही नहीं था। लोग उसे धुत्कारते भगा देते।
अंतिम प्रयास
आज चौथा दिन था। रोहन अब लगभग बेहोशी की हालत में था। वह अपने भाई की गोद में एक सूखे हुए पत्ते की तरह पड़ा हुआ था। अमन को लग रहा था कि अगर आज उसके भाई के पेट में कुछ नहीं गया तो वह उसे खो देगा। यह ख्याल ही उसकी रूह को कंपा देने के लिए काफी था। वो अपने भाई को खोने की कल्पना भी नहीं कर सकता था।
वह हताशा, लाचारी और बेबसी के उस आखिरी मुकाम पर पहुंच चुका था, जहां इंसान को सही और गलत का फर्क समझ में आना बंद हो जाता है। उसके दिमाग में सिर्फ एक ही बात चल रही थी—किसी भी कीमत पर अपने भाई को बचाना है।
सरदार जोगिंदर सिंह का आगमन
उसी वक्त शहर के सबसे बड़े कपड़ा बाजार हॉल बाजार के बाहर एक चमचमाती हुई काले रंग की Mercedes आकर रुकी। गाड़ी से एक बहुत ही रॉब और अमीर दिखने वाले सरदार जी बाहर निकले। उनकी उम्र करीब 60 साल रही होगी। सफेद करीने से बंधी हुई पगड़ी, महंगा सूट और चेहरे पर एक ऐसा तेज जिसे देखकर कोई भी अदब से सर झुका दे। यह थे सरदार जोगिंदर सिंह।
शहर के सबसे बड़े और सबसे सम्मानित उद्योगपतियों में से एक। उन्होंने शून्य से शुरुआत करके हजारों करोड़ का साम्राज्य खड़ा किया था। उनके पास दौलत, शोहरत, इज्जत सब कुछ था। लेकिन उनकी जिंदगी में एक बहुत बड़ा खालीपन था। 20 साल पहले उन्होंने अपने इकलौते 10 साल के बेटे को एक सड़क हादसे में खो दिया था। उस दिन के बाद उनकी दुनिया ही उजड़ गई थी।
अमन की पेशकश
जैसे ही वो अपनी गाड़ी से उतरे, उनकी नजर फुटपाथ पर एक लड़के पर पड़ी जो अपनी गोद में एक और छोटे बेसुद से लड़के को लेकर बैठा था। वो अमन और रोहन थे। अमन ने उस अमीर सरदार जी को देखा। उसने उनकी बड़ी सी गाड़ी, उनके महंगे कपड़े देखे और फिर उसके हताश दिमाग में एक ऐसा पागलपन भरा, एक ऐसा दिल दहलाने वाला ख्याल आया, जो शायद कोई भाई अपने भाई के लिए कभी नहीं सोच सकता।
वह उठा। अपनी पूरी ताकत लगाकर उसने अपने बेसुद भाई को अपनी पीठ पर लादा और लड़खड़ाते हुए कदमों से वह सरदार जी की तरफ दौड़ा। वह उनके पैरों में गिर पड़ा। सरदार जी जो अपने सुरक्षा गार्ड से घिरे हुए थे, एक पल के लिए चौंक गए। “क्या है? कौन हो तुम?” एक गार्ड ने उसे हटाना चाहा।
लेकिन अमन ने सरदार जी का पैर कस के पकड़ लिया। उसकी आंखों से झरझर आंसू बह रहे थे। और उसकी आवाज में एक ऐसी दर्द भरी इल्तजा थी जिसने एक पल के लिए वहां मौजूद हर किसी को कंपा दिया। “साहब सरदार जी, मेरी एक बात सुन लो प्लीज।”
सरदार की प्रतिक्रिया
सरदार जोगिंदर सिंह ने गार्ड को हाथ के इशारे से रोका। उन्होंने झुककर उस मैले कुचले लेकिन खुददार दिखने वाले लड़के की तरफ देखा। “हां, बोलो बेटा, क्या बात है?” अमन ने अपनी पीठ से अपने बेसुद भाई को उतारा और उसे सरदार जी के कदमों में रखते हुए जो कहा, उसे सुनकर वहां खड़े हर इंसान के होश उड़ गए।
“सरदार जी, मेरे इस भाई को खरीद लो। यह बहुत भूखा है। चार दिन से कुछ नहीं खाया। यह मर जाएगा। मैं इसका पेट नहीं भर सकता। आप इसे खरीद लो। आप इसे अपने घर ले जाओ। इससे जो चाहे काम करवाना, नौकर बना लेना, गुलाम बना लेना। बस बस, इसे दो वक्त की रोटी दे देना।” यह कहते-कहते वो वहीं अपने भाई के पास जमीन पर गिर पड़ा और फूट-फूट कर रोने लगा।
सरदार का दिल बदलना
सरदार जोगिंदर सिंह वो इंसान जिसने अपनी जिंदगी में लाखों करोड़ों के सौदे किए थे, आज अपनी जिंदगी के सबसे मुश्किल, सबसे दर्दनाक सौदे का सामना कर रहा था। उनकी आंखों के सामने वह दो यतीम बच्चे नहीं थे। उन्हें उन बच्चों में अपना खोया हुआ बेटा नजर आ रहा था। उन्हें उस बड़े भाई की आंखों में वो बेबसी, वो तड़प नजर आ रही थी जो शायद उन्होंने कभी अपने बेटे के लिए महसूस की होगी।
उनके पत्थर जैसे चेहरे पर सालों बाद आंसुओं की दो गर्म लकीरें बह निकलीं। उन्होंने नीचे झुककर सबसे पहले रोहन को अपनी मजबूत पिता जैसी बाहों में उठाया। वो एक पंख की तरह हल्का था। फिर उन्होंने अपना दूसरा हाथ रोते हुए अमन के कंधे पर रखा। “नहीं बेटा, मैं तुम्हारे भाई को खरीदूंगा नहीं। मैं तुम दोनों को आज से अपना बेटा बनाऊंगा।”
नई जिंदगी की शुरुआत
उस दिन हॉल बाजार ने एक ऐसा नजारा देखा जो शायद उसने पहले कभी नहीं देखा था। शहर का सबसे बड़ा करोड़पति सरदार जोगिंदर सिंह अपनी लाखों की गाड़ी में दो मैले कुचैले यतीम बच्चों को बिठाकर अपनी दुकान का उद्घाटन किए बिना ही वहां से चला गया। वो उन दोनों को लेकर सीधा अपने आलीशान महल जैसे घर पहुंचे।
उनकी पत्नी सतंत कौर, जो अपने बेटे के जाने के बाद से एक जिंदा माश की तरह जी रही थी, दरवाजे पर दो अजनबी बीमार बच्चों को अपने पति की गोद में देखकर हैरान रह गई। जोगिंदर सिंह ने भराई हुई आवाज में कहा, “सतंत, देखो आज वाहेगुरु ने हमारी सुन ली।”
ममता का पुनर्जन्म
उसने हमारा एक बेटा हमसे छीन लिया था। लेकिन आज उसने हमें दो बेटे लौटा दिए हैं। सतवंत कौर ने जब उन बच्चों की हालत देखी और अपने पति की आंखों में सालों बाद एक पिता की ममता की चमक देखी, तो वह सब कुछ समझ गई। वह दौड़ कर आई और उन्होंने अमन को अपने सीने से लगा लिया। उनकी ममता का जो सोता सालों से सूख गया था, आज वह फिर से फूट पड़ा था।
उस दिन उस घर में सालों बाद खुशी ने कदम रखा। उन्होंने तुरंत डॉक्टर को बुलवाया। रोहन की हालत काफी नाजुक थी। उसे ड्रिप लगाई गई। सरदार जोगिंदर सिंह और सतवंत कौर दोनों रात भर एक पल के लिए भी उन बच्चों के पास से नहीं हटे। उन्होंने अपने हाथों से उनके गंदे कपड़े बदले।
नया दिन, नई उम्मीद
अगली सुबह जब अमन की आंख खुली तो एक पल के लिए उसे लगा कि वह कोई सपना देख रहा है। वह एक मुलायम गर्म बिस्तर पर लेटा था। उसके शरीर पर साफ सुथरे नए कपड़े थे और उसके बगल में उसका भाई रोहन शांति से सो रहा था। उसके चेहरे पर सालों बाद एक सुकून की मुस्कान थी। सतवंत कौर उसके लिए दूध का एक बड़ा सा गिलास लेकर आई।
उन्होंने उसके सिर पर ऐसे हाथ फेरा जैसे उसकी अपनी मां फेरती थी। “पी ले पुत्तर, अब तुझे और तेरे भाई को कभी भूखा नहीं सोना पड़ेगा। आज से यही तेरा घर है।” अमन की आंखों से आंसू बहने लगे। यह खुशी के आंसू थे।
नई पहचान
उस दिन के बाद अमन और रोहन की जिंदगी एक परी कथा की तरह बदल गई। सरदार जोगिंदर सिंह और सतवंत कौर ने उन्हें सिर्फ पनाह ही नहीं, बल्कि अपना नाम, अपना प्यार, अपना सब कुछ दे दिया। उन्होंने कानूनी तौर पर उन दोनों को गोद ले लिया।
वह अब सड़कों पर भटकने वाले यतीम बच्चे नहीं थे, बल्कि सिंह एंपायर के वारिस अमन सिंह और रोहन सिंह बन चुके थे। सरदार जोगिंदर सिंह ने उनका दाखिला शहर के सबसे महंगे और सबसे अच्छे इंग्लिश मीडियम स्कूल में करवाया। अमन जो पढ़ाई में हमेशा से होशियार था, उसने कुछ ही महीनों में अपनी मेहनत और लगन से सबको पीछे छोड़ दिया।
सेवा की भावना
सरदार जोगिंदर सिंह उनके लिए सिर्फ एक पिता नहीं बल्कि एक दोस्त, एक गुरु थे। वो उन्हें अपने साथ अपने ऑफिस ले जाते। उन्हें बिजनेस के दांव पेच सिखाते। लेकिन उससे ज्यादा वो उन्हें जिंदगी के उसूल सिखाते। वह उन्हें बताते कि सच्ची अमीरी पैसों में नहीं, बल्कि सेवा और वंड छकने में है।
वह उन्हें अपने साथ लंगर में सेवा करने ले जाते, जहां वो दोनों भाई अपने हाथों से हजारों गरीबों को खाना परोसते। वह अक्सर अमन से कहते, “पुत्र, हमेशा याद रखना तुम उस जगह से आए हो जहां भूख क्या होती है, यह तुमने खुद महसूस किया है। जब भी बड़े बनना, कामयाब बनना, तो अपनी जड़ों को कभी मत भूलना। हमेशा उन लोगों की मदद करना जिन्हें तुम्हारी जरूरत है।”
समय का पहिया
समय का पहिया घूमता रहा। देखते ही देखते 15 साल गुजर गए। अमन अब 30 साल का एक खूबसूरत, पढ़ा-लिखा और बेहद काबिल नौजवान बन चुका था। उसने लंदन से एमबीए की डिग्री हासिल की थी और अब वह सरदार जोगिंदर सिंह के विशाल कारोबार को उनसे भी बेहतर तरीके से संभाल रहा था।
रोहन भी अब 23 साल का एक होनहार आर्किटेक्ट बन चुका था। सरदार जोगिंदर सिंह अब बूढ़े हो चले थे। लेकिन वह दुनिया के सबसे खुश और सबसे संतुष्ट इंसान थे। उनके दोनों बेटों ने उनकी विरासत को, उनकी दौलत को ही नहीं बल्कि उनके उसूलों और उनकी सेवा की भावना को भी पूरी शिद्दत से अपनाया था।
चैरिटेबल अस्पताल का उद्घाटन
आज अमृतसर में सरदार जोगिंदर सिंह चैरिटेबल हॉस्पिटल एंड लंगर हॉल का उद्घाटन था। यह पंजाब का सबसे बड़ा और सबसे आधुनिक चैरिटेबल अस्पताल था, जहां हर गरीब का इलाज मुफ्त में होता था और इसके साथ ही एक बहुत बड़ा लंगर हॉल था, जहां 24ों घंटे हजारों भूखे लोगों के लिए मुफ्त में भोजन का प्रबंध था। यह पूरा प्रोजेक्ट अमन और रोहन का सपना था जिसे उन्होंने अपनी मेहनत से साकार किया था।
उद्घाटन समारोह
उद्घाटन समारोह में शहर के बड़े-बड़े लोग, मंत्री और अधिकारी मौजूद थे। जब अमन को मंच पर कुछ बोलने के लिए बुलाया गया, तो उसकी नजरें भीड़ में अपने बूढ़े पिता सरदार जोगिंदर सिंह को ढूंढ रही थी। उसने माइक हाथ में लिया। उसकी आवाज भर्रा रही थी लेकिन उसमें एक गहरा आत्मविश्वास और एक अटूट सम्मान था।
“आज से तकरीबन 20 साल पहले इसी शहर की एक सड़क पर एक 15 साल के लाचार भाई ने एक अमीर आदमी से अपने 8 साल के भूखे भाई को खरीदने का सौदा किया था। उस बड़े भाई ने अपने भाई की कीमत सिर्फ दो वक्त की रोटी लगाई थी।” यह सुनते ही पूरे हॉल में एक गहरा सन्नाटा छा गया।
सच्ची अमीरी का संदेश
“वह अमीर आदमी चाहता, तो उस बच्चे को धुत्कार कर भगा सकता था। लेकिन उसने ऐसा नहीं किया। उसने उस सौदे को मंजूर कर लिया। लेकिन उसने सिर्फ उस छोटे भाई को नहीं बल्कि उन दोनों भाइयों को खरीद लिया। और कीमत के तौर पर उसने उन्हें सिर्फ दो वक्त की रोटी नहीं, बल्कि अपनी पूरी जिंदगी, अपना पूरा प्यार, अपना नाम, अपना सब कुछ दे दिया।”
“आज वो दोनों भाई उस अमीर आदमी, उस फरिश्ते, उस पिता के सामने खड़े हैं। यह अस्पताल, यह लंगर, यह सब कुछ उसी सौदे की एक छोटी सी किश्त है। एक ऐसा कर्ज जो हम सात जन्मों में भी नहीं उतार सकते।” यह कहते-कहते अमन और रोहन दोनों मंच से उतरे और भीड़ में बैठे रोते हुए सरदार जोगिंदर सिंह के पैरों में गिर पड़े।
समापन
उस दिन उस हॉल में मौजूद हर एक इंसान की आंखें नम थीं। वह सब उस असाधारण परिवार को देख रहे थे जिसकी नींव खून पर नहीं बल्कि भूख, मोहब्बत और इंसानियत की सबसे पाक बुनियाद पर रखी गई थी।
दोस्तों, यह कहानी हमें सिखाती है कि दुनिया में सबसे बड़ा धर्म इंसानियत है और सबसे बड़ी दौलत किसी के आंसू पोंछ कर उसे सीने से लगा लेने की ताकत है। सरदार जोगिंदर सिंह ने दो यतीम बच्चों को अपनाकर यह साबित कर दिया कि पिता होने के लिए सिर्फ जन्म देना जरूरी नहीं होता और अमन और रोहन ने यह साबित कर दिया कि एक सच्चा बेटा सिर्फ दौलत का ही नहीं बल्कि अपने पिता के उसूलों और उनकी नेकी का भी वारिस होता है।
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