अमीर चेयरमैन ने एक अनाथ लड़के को अपना इकलौता खाना एक आवारा कुत्ते के साथ बांटते हुए देखा …
कहते हैं कि इंसान की असली दौलत उसके बटुए में नहीं, उसके दिल में होती है। और कभी-कभी इस सच्चाई का एहसास हमें उन लोगों से होता है जिनके पास दुनिया की नजर में कुछ भी नहीं होता। यह कहानी भी कुछ ऐसी ही है।
भाग 1: कबीर की छोटी सी दुनिया
मुंबई की चमचमाती सड़कों पर, जहां एक तरफ आसमान छूती इमारतें थीं और दूसरी तरफ तेज रफ्तार से भागती महंगी गाड़ियां, उसी शहर के एक कोने में 10 साल का कबीर अपनी छोटी सी दुनिया में जी रहा था। उसके मां-बाप एक हादसे में गुजर चुके थे और तब से सड़कें ही उसका घर थीं और आसमान उसकी छत। कबीर दिन भर कूड़ा बीनता, बोतलें इकट्ठा करता और जो थोड़े बहुत पैसे मिलते उनसे बस एक वक्त की रोटी का जुगाड़ कर पाता था।
उसकी आंखों में वह सारे सपने थे जो हर बच्चे की आंखों में होते हैं। एक स्कूल की यूनिफार्म, किताबें और एक घर जहां कोई प्यार से उसके सर पर हाथ फेरे। लेकिन हकीकत की धूप सपनों को हर रोज झुलसा देती थी।
भाग 2: भूख और दया
एक ऐसी ही दोपहर कबीर बहुत भूखा था। आज उसे काम भी कुछ खास नहीं मिला था। पूरे दिन की मेहनत के बाद उसके हाथ में बस दो सूखी रोटियां थीं। वह एक बडी सी इमारत के सामने फुटपाथ पर बैठ गया। जैसे ही उसने पहला निवाला तोड़ने के लिए हाथ बढ़ाया, उसकी नजर एक कोने में दुबके हुए एक छोटे से कुत्ते के पिल्ले पर पड़ी। वह बेचारा भूख और कमजोरी से कांप रहा था। उसकी पसलियां साफ नजर आ रही थीं और उसकी आंखों में एक अजीब सी उदासी थी।
कबीर ने एक पल के लिए अपनी भूख को देखा और दूसरे पल उस बेजुबान जानवर की बेबसी को उसके छोटे से दिल में एक लड़ाई छिड़ गई। लेकिन इंसानियत जीत गई। उसी वक्त उस आलीशान इमारत से मिस्टर विक्रम सिंह बाहर निकले। विक्रम सिंह शहर के सबसे बड़े बिजनेस आइकॉन में से एक थे। उनके लिए पैसा पानी की तरह था और कामयाबी उनके कदम चूमती थी।
भाग 3: विक्रम की नजरें
विक्रम सिंह अपनी लाखों की गाड़ी की तरफ बढ़ रहे थे। जब उनकी नजर उस लड़के पर पड़ी, जो खुद फटे पुराने कपड़ों में था और जिसके चेहरे पर भूख साफ झलक रही थी। कबीर अपनी दोनों रोटियां तोड़कर उस भूखे कुत्ते को खिला रहा था। वह कुत्ते के सर पर प्यार से हाथ फेर रहा था और खुद पानी पीकर अपनी भूख मिटाने की कोशिश कर रहा था। यह नजारा देखकर विक्रम सिंह वहीं जम गए। जिस इंसानियत को वह अपनी अमीरी की दुनिया में भूल चुके थे, आज उसे एक अनाथ बच्चे के रूप में अपनी आंखों के सामने देख रहे थे।
भाग 4: विक्रम की सोच
विक्रम अपनी गाड़ी में आकर बैठ तो गए लेकिन उनका दिमाग अभी भी उसी फुटपाथ पर अटका हुआ था। उनके कानों में उनके ड्राइवरों या मैनेजरों की आवाजें नहीं बल्कि उस लड़के की खामोशी गूंज रही थी। वह खामोशी जो अपनी भूख पर किसी और की भूख को तरजीह देने के बाद आती है। विक्रम ने अपनी जिंदगी में हजारों करोड़ों की डील की थी, लेकिन आज एक 10 साल के बच्चे की निस्वार्थता के सामने वह खुद को बहुत छोटा महसूस कर रहे थे।
भाग 5: विक्रम का फैसला
उन्होंने अपने ड्राइवर को गाड़ी रोकने को कहा और दूर से ही कबीर पर नजर रखने लगे। कबीर ने जब उस कुत्ते को अपनी दोनों रोटियां खिला दीं तो उसने पास के एक नल से पानी पीकर अपना पेट भर लिया। उसके चेहरे पर अपनी भूख का मलाल नहीं बल्कि उस बेजुबान को खाना खिलाने का सुकून था। उसने प्यार से कुत्ते का सर सहलाया, जिसका नाम उसने शेरू रख दिया, और फिर अपनी खाली बोरी उठाकर कबाड़ की तलाश में निकल पड़ा।
विक्रम देखते रहे कि कैसे वह लड़का हर कूड़े में कुछ कीमती ढूंढने की कोशिश कर रहा था। उसकी हर हरकत में एक अजीब सी ईमानदारी थी। उसे एक कागज से एक टूटी हुई छोटी सी गाड़ी मिली, जिसे देखकर उसकी आंखों में एक पल के लिए वही चमक आई जो विक्रम अपने बेटे की आंखों में लाखों के खिलौने देखकर भी नहीं ढूंढ पाते थे।
भाग 6: विक्रम का असिस्टेंट
शाम को विक्रम अपने आलीशान ऑफिस में बैठे थे। लेकिन उनका मन बेचैन था। उन्होंने अपने सबसे भरोसेमंद असिस्टेंट प्रकाश को बुलाया। प्रकाश हैरान था क्योंकि विक्रम ने उसे किसी कंपनी की फाइल लाने के लिए नहीं बल्कि एक अजीब सा काम सौंपा था। “प्रकाश, आज मैंने मेन रोड पर हमारी बिल्डिंग के सामने एक लड़के को देखा। करीब 10 साल का होगा। फटे हुए कपड़े पहने थे। मुझे उस लड़के के बारे में सब कुछ जानना है। वो कौन है? कहां रहता है? क्या करता है? सब कुछ।”
भाग 7: प्रकाश की रिपोर्ट
प्रकाश को यकीन नहीं हुआ कि जिस बॉस के लिए एक मिनट की कीमत लाखों में थी, वह एक सड़क पर रहने वाले लड़के के लिए अपना वक्त क्यों दे रहे हैं। लेकिन वह चुपचाप सर झुका कर चला गया। अगले दिन प्रकाश एक फाइल लेकर विक्रम केबिन में दाखिल हुआ। उस फाइल में किसी कंपनी के करोड़ों के आंकड़े नहीं बल्कि एक अनाथ बच्चे की दर्द भरी कहानी थी।
प्रकाश ने फाइल खोली और बताना शुरू किया, “सर, उस लड़के का नाम कबीर है। एक साल पहले शहर के बाहरी इलाके की एक फैक्ट्री में आग लगने से उसके मां-बाप की मौत हो गई थी। उसका कोई और रिश्तेदार नहीं है। तब से वह पास वाले फ्लाईओवर के नीचे रहता है और कबाड़ बेचकर अपना गुजारा करता है।” प्रकाश ने यह भी बताया कि आसपास के दुकानदार उसे पहचानते हैं। “वो भूखा रह लेगा, लेकिन कभी चोरी नहीं करेगा।”
भाग 8: विक्रम की चिंता
विक्रम एक-एक शब्द को अपने अंदर उतार रहे थे। एक तरफ कबीर था जिसने सब कुछ खोकर भी अपनी इंसानियत नहीं खोई थी और दूसरी तरफ उनका अपना बेटा रोहन था, जिसके पास सब कुछ था सिवाय कद्र के। उसी शाम जब विक्रम घर पहुंचे तो उनका 16 साल का बेटा रोहन मुंह फुलाए बैठा था। उसने आते ही अपने पिता से एक नई स्पोर्ट्स बाइक की मांग की, जिसकी कीमत लाखों में थी।
जब विक्रम ने उसे पढ़ाई पर ध्यान देने को कहा तो रोहन ने गुस्से में चिल्लाना शुरू कर दिया। “आप हमेशा मुझे लेक्चर क्यों देते हैं? मेरे सारे दोस्तों के पास लेटेस्ट गाड़ियां हैं। आपको मेरी खुशियों की कोई परवाह ही नहीं है।” विक्रम चुपचाप अपने बेटे को देखते रहे। उन्हें रोहन में अपनी परवरिश की सबसे बड़ी नाकामी नजर आ रही थी।
भाग 9: विक्रम का निर्णय
उन्होंने उसे दुनिया की हर महंगी चीज दी, लेकिन वो उसे एक अच्छा इंसान बनाने की कला सिखाना भूल गए थे। उसी रात विक्रम ने एक फैसला किया। वह कबीर की मदद करना चाहते थे, लेकिन सिर्फ पैसे देकर नहीं। वह उसे भीख देकर उसकी आत्मा को छोटा नहीं करना चाहते थे। वह पहले उसे परखना चाहते थे। यह देखना चाहते थे कि जिस ईमानदारी की बात सब कर रहे हैं, वह मजबूरी में है या उसके चरित्र का हिस्सा है।
भाग 10: योजना बनाना
अगले दिन उन्होंने एक योजना बनाई। उन्होंने प्रकाश को अपना बटुआ दिया जिसमें ₹10,000 कैश और उनके सारे क्रेडिट कार्ड थे। उन्होंने प्रकाश को उसे ऐसी जगह गिराने के लिए कहा जहां कबीर अकेला हो और उसे वह बटुआ मिल जाए। विक्रम खुद थोड़ी दूर अपनी गाड़ी में बैठकर सब कुछ देखने वाले थे।
प्रकाश ने ठीक वैसा ही किया। वह एक आम आदमी की तरह कपड़े पहनकर कबीर के पास से गुजरा और चालाकी से बटुआ गिरा दिया। कबीर की नजर उस मोटे चमकदार बटुए पर पड़ी। उसने इधर-उधर देखा लेकिन प्रकाश भीड़ में गायब हो चुका था। कबीर ने कांपते हाथों से बटुआ उठाया। जैसे ही उसने उसे खोला, उसकी आंखें फटी की फटी रह गईं। अंदर नोटों की गड्डियां थीं। इतना पैसा जितना उसने अपनी पूरी जिंदगी में एक साथ नहीं देखा था।
भाग 11: कबीर का दुविधा
एक पल के लिए उसके दिमाग में ख्याल आया। इस पैसे से वह महीनों तक भरपेट खाना खा सकता है। नए कपड़े खरीद सकता है और शायद बारिश से बचने के लिए एक छत भी। उसका दिल जोर-जोर से धड़क रहा था। गाड़ी में बैठे विक्रम की सांसें भी रुकी हुई थीं। कबीर की जिंदगी का सबसे बड़ा इम्तिहान उसके सामने था। गाड़ी में बैठे विक्रम सिंह की नजरें कबीर के चेहरे पर जमी थीं। हर गुजरता हुआ पल उनके दिल की धड़कन को बढ़ा रहा था।
वह देख सकते थे कि कबीर के मन में एक तूफान चल रहा था। उसकी आंखों में जरूरत थी, लाचारी थी, लेकिन एक चमक भी थी जो शायद उसकी जमीर की थी। कबीर ने एक लंबी सांस ली जैसे वह कोई बहुत बड़ा फैसला कर रहा हो। उसे अपनी मां की आवाज सुनाई दी जो अक्सर कहती थी, “बेटा, किसी और की चीज पर हमारा कोई हक नहीं होता। अपनी मेहनत की एक रोटी बेईमानी के 100 पकवानों से अच्छी होती है।” बस यही ख्याल उसके लिए काफी था।

भाग 12: ईमानदारी का सबक
उसने कसकर बटुआ बंद किया और उसे अपनी फटी हुई जेब में नहीं बल्कि अपने हाथ में ऐसे पकड़ लिया जैसे वह कोई अमानत हो। उसने आसपास उस आदमी को ढूंढने की कोशिश की लेकिन वो कहीं नजर नहीं आया। फिर कबीर ने हिम्मत करके बटुए को खोला और उसमें रखे कार्ड्स को देखने लगा। उसे पढ़ाना तो नहीं आता था लेकिन उसने एक कार्ड पर बनी उस ऊंची बिल्डिंग की तस्वीर पहचान ली, जिसके सामने वह अक्सर बैठता था।
उसने कार्ड को उंगली से छुआ। उसे लगा कि शायद यहीं से उसे मालिक का पता चल सकता है। एक पल के लिए वो डरा। “इतने बड़े आदमी का बटुआ अगर मैं वापस करने गया और उन्होंने मुझे ही चोर समझ लिया तो?” यह डर उसके नन्हे कदमों को रोक रहा था। लेकिन फिर उसने सोचा, “अगर मैं नहीं गया तो यह बेईमानी होगी।” उसने अपनी सारी हिम्मत जुटाई और उस चमचमाती कांच की इमारत की तरफ चल दिया।
भाग 13: गार्ड की बेरुखी
जैसे ही वह बड़े से गेट के पास पहुंचा, वहां खड़े सिक्योरिटी गार्ड ने उसे घूरकर देखा। “एडेडिके, यहां क्या कर रहा है? चल भाग यहां से। यह भिखारियों की जगह नहीं है,” गार्ड ने उसे डांटते हुए कहा। कबीर ने डरते-डरते कहा, “अंकल, मुझे अंदर जाना है। यह बटुआ शायद अंदर किसी का है।” उसने हाथ में पकड़ा बटुआ दिखाया। लेकिन गार्ड ने उसकी बात सुनने की बजाय उसे धक्का दे दिया। “चोर कहीं का, बटुआ चुराकर अब शरीफ बनने का नाटक करता है। निकल यहां से वरना पुलिस को बुलाऊंगा।”
कबीर की आंखों में आंसू आ गए। वह बस एक नेकी का काम करना चाहता था और दुनिया उसे चोर समझ रही थी। यह सब देख रहे विक्रम सिंह से अब और बर्दाश्त नहीं हुआ। उनकी आंखों में उस गार्ड के लिए गुस्सा और उस बच्चे के लिए बेइंतहा सम्मान था। उसने अपनी जिंदगी की सबसे बड़ी परीक्षा पास कर ली थी।
भाग 14: विक्रम का साहस
विक्रम ने अपने ड्राइवर को गाड़ी आगे बढ़ाने को कहा और तेजी से गाड़ी से उतरकर उस गेट की तरफ बढ़े जहां गार्ड कबीर को लगभग घसीट रहा था। विक्रम की आवाज में एक ऐसी शक्ति थी जिसने गार्ड के बढ़ाते हुए हाथ को हवा में ही रोक दिया। “उसे छोड़ दो।” गार्ड ने जैसे ही अपने पीछे विक्रम सिंह को देखा, उसके चेहरे का रंग उड़ गया। वह फौरन कबीर को छोड़कर सावधान की मुद्रा में खड़ा हो गया और हकलाने लगा, “सर, माफ कीजिए। मुझे लगा यह चोर है।”
भाग 15: विक्रम की करुणा
विक्रम ने उसकी बात को अनसुना कर दिया। उनकी नजरें सिर्फ उस छोटे से बच्चे पर थीं, जिसकी आंखों में डर और बेबसी भरी हुई थी। विक्रम ने एक ऐसा काम किया जो उन्होंने सालों से किसी के लिए नहीं किया था। वह अपने घुटनों पर बैठ गए ताकि वह उस बच्चे की आंखों में आंखें डालकर बात कर सकें। उन्होंने बहुत नरम आवाज में कहा, “डरो मत बेटा। यह बटुआ मेरा ही है।”
उन्होंने कबीर के गाल पर लगे आंसू को धीरे से पोंछा। “मैं जानता हूं तुम चोर नहीं हो। एक ईमानदार इंसान हो।” फिर उन्होंने पूछा, “लेकिन तुमने यह पैसे अपने पास क्यों नहीं रखे? तुम्हें इनकी जरूरत थी।” कबीर ने अपनी फटी हुई कमीज की आस्तीन से आंखें पोंछते हुए मासूमियत से जवाब दिया, “मेरी मां कहती थी कि ईमानदारी सबसे बड़ी दौलत होती है। यह पैसे मेरे नहीं थे। इसीलिए यह मेरी दौलत नहीं हो सकती थी।”
भाग 16: विक्रम का परिवर्तन
उस एक वाक्य ने विक्रम सिंह के दिल पर हथौड़े की तरह वार किया। उन्हें लगा जैसे आज तक उन्होंने जो कुछ भी कमाया वह सब इस बच्चे की सच्चाई के आगे मिट्टी के बराबर था। उन्होंने अपनी जिंदगी का सबसे बड़ा और सबसे सही फैसला उसी पल ले लिया। वह खड़े हुए। अपना एक हाथ उन्होंने कबीर के कंधे पर रखा जैसे वह उसे दुनिया की हर बुरी नजर से बचाना चाहते हों।
उन्होंने वहां खड़े गार्ड और जमा हो चुकी भीड़ की तरफ देखा और एक बुलंद आवाज में ऐलान किया, “आज से यह लड़का कबीर मेरे साथ मेरे घर में रहेगा। यह मेरा मेहमान नहीं बल्कि मेरे बेटे की तरह रहेगा।” यह सुनकर वहां मौजूद हर शख्स हैरान रह गया। प्रकाश जो दूर से यह सब देख रहा था, उसकी आंखों में भी अपने बॉस के लिए सम्मान और खुशी के आंसू आ गए।
भाग 17: विक्रम की पहचान
विक्रम ने उस गार्ड की तरफ देखा और कहा, “तुम्हारी नौकरी खत्म हुई। इंसान की पहचान उसके कपड़ों से नहीं, उसके कर्मों से होती है। और यह सबक शायद तुम यहां रहकर कभी नहीं सीख पाते।” इसके बाद विक्रम ने कबीर का नन्हा सा हाथ अपने मजबूत हाथ में थाम लिया। कबीर हैरान था, डरा हुआ था। लेकिन सालों बाद किसी के स्पर्श में उसे एक अपनापन और सुरक्षा का एहसास हो रहा था।
भाग 18: कबीर का नया जीवन
विक्रम उसे अपनी महंगी गाड़ी की तरफ ले गए और उसे अंदर बिठाया। गाड़ी जब वहां से चली तो अपने पीछे हैरान लोगों की भीड़ और एक ऐसी कहानी छोड़ गई जो अब भी शुरू हुई थी। विक्रम सिंह का घर किसी महल से कम नहीं था। जब कबीर ने उस घर में कदम रखा तो उसे लगा जैसे वह किसी सपने में आ गया हो। जिस जमीन पर वह चला, वो इतनी नरम थी कि उसे अपने पैरों के नीचे की कठोर सड़क याद आ गई।
भाग 19: अपनापन का एहसास
उसे पहनने के लिए साफ कपड़े दिए गए और खाने की मेज पर इतने पकवान थे जो उसने कभी देखे भी नहीं थे। लेकिन इन सबसे ज्यादा उसे वहां जो इज्जत और अपनापन मिला, उसने उसके नन्हे से दिल को सुकून से भर दिया। लेकिन इस कहानी का एक और किरदार अब भी बाकी था। विक्रम का बेटा रोहन। जब रोहन ने कबीर को अपने घर में अपने पिता के साथ देखा तो उसकी आंखों में नफरत और जलन भर गई।
भाग 20: रोहन की प्रतिक्रिया
उसने चिल्लाकर कहा, “डैड, यह गंदा भिखारी हमारे घर में क्या कर रहा है? आपने इसे अंदर आने कैसे दिया?” विक्रम ने पहली बार अपने बेटे को एक ठंडी और मजबूत आवाज में जवाब दिया। “रोहन, इसका नाम कबीर है और आज से यह इसी घर में रहेगा। जिस ईमानदारी और इंसानियत को तुम अपनी अमीरी में भूल गए हो, वो इस बच्चे के दिल में जिंदा है।”
भाग 21: रोहन का आत्मावलोकन
विक्रम ने कबीर की बटुए वाली पूरी कहानी बताई। अपने पिता की बातों और कबीर की सच्चाई ने रोहन को अंदर तक शर्मिंदा कर दिया। आने वाले दिनों में वह चुपचाप कबीर को देखने लगा। उसने देखा कि कैसे कबीर हर छोटी चीज के लिए भगवान का शुक्रिया अदा करता। कैसे वह घर के नौकरों से भी इज्जत से बात करता और कैसे वो पढ़ाई को एक बोझ नहीं बल्कि एक वरदान समझता था।
भाग 22: कबीर का प्रभाव
धीरे-धीरे कबीर की अच्छाई ने रोहन के घमंड की बर्फ को पिघलाना शुरू कर दिया। एक दिन जब रोहन ने कबीर को अपनी सबसे कीमती चॉकलेट चुपके से माली के बेटे के साथ बांटते हुए देखा तो उसे वह फुटपाथ वाला नजारा याद आ गया जिसके बारे में उसके पिता ने बताया था। उस दिन रोहन को समझ आया कि असली अमीरी दौलत बांटने में नहीं बल्कि अपनी खुशियां बांटने में है।
भाग 23: कबीर का विकास
कई साल बीत गए। कबीर अब एक पढ़ा-लिखा होनहार और दयालु नौजवान बन चुका था। वह सिंह फाउंडेशन का हेड था, एक चैरिटेबल संस्था जो हजारों अनाथ और बेघर बच्चों की जिंदगी संवार रही थी। वहीं रोहन अपने पिता का बिजनेस संभालता था। लेकिन अब वह एक बदला हुआ इंसान था। उसने पैसे की कीमत के साथ-साथ इंसानियत की कीमत भी सीख ली थी।
भाग 24: भाईचारा
दोनों भाइयों में गहरा प्यार और सम्मान था। एक शाम बूढ़े हो चुके विक्रम सिंह अपने बगीचे में बैठे थे। उन्होंने देखा कबीर अपने हाथ से उस बूढ़े हो चुके शेरू को बिस्कुट खिला रहा था, जो अब उनके घर का एक अहम सदस्य था। रोहन उसके कंधे पर हाथ रखकर मुस्कुरा रहा था। विक्रम की आंखों में खुशी के आंसू थे।
भाग 25: सच्ची दौलत
उन्होंने महसूस किया कि उस दिन फुटपाथ पर उन्होंने सिर्फ एक बटुआ नहीं खोया था, बल्कि अपनी जिंदगी की सबसे कीमती दौलत पाई थी। एक ऐसा बेटा जिसने उन्हें सिखाया कि जब आप किसी भूखे को अपनी रोटी का टुकड़ा देते हैं तो आप सिर्फ उसका पेट नहीं भरते बल्कि अपनी आत्मा को अमीर बनाते हैं।
अंत
इस कहानी ने यह साबित किया कि इंसान की असली दौलत उसके दिल में होती है, न कि उसके बटुए में। कबीर ने न केवल विक्रम और रोहन के जीवन को बदल दिया, बल्कि समाज को भी यह सिखाया कि सच्ची अमीरी वही है, जो दूसरों की मदद करने में है।
Play video :
News
“मैं हज़ार डॉलर में अनुवाद करूंगा” — भिखारी बोला, अमीर हंसा… फिर जो हुआ, सब दंग रह गए 💔✨
“मैं हज़ार डॉलर में अनुवाद करूंगा” — भिखारी बोला, अमीर हंसा… फिर जो हुआ, सब दंग रह गए 💔✨ सड़क…
IPS मैडम के ऊपर कीचड़ क्यों डाला ? फिर उसके बाद जो हुआ।
IPS मैडम के ऊपर कीचड़ क्यों डाला ? फिर उसके बाद जो हुआ। सुबह की हल्की धुंध और ट्रैफिक की…
पारुल चौहान का क्यों हुआ अचानक निधन? Parul chohan Dea*th News viral video? Parul chohan ||
पारुल चौहान का क्यों हुआ अचानक निधन? Parul chohan Dea*th News viral video? Parul chohan || . . Clearing the…
DM की माँ जब पैसा निकालने बैंक गई तो भिखारी समझकर स्टाप ने लात मारा,फिर जो हुआ..
DM की माँ जब पैसा निकालने बैंक गई तो भिखारी समझकर स्टाप ने लात मारा,फिर जो हुआ.. सुबह का समय…
IPS मैडम को आम लड़की समझ कर Inspector ने बीच सड़क पर छेड़ा फिर Inspector के साथ जो हुआ।
IPS मैडम को आम लड़की समझ कर Inspector ने बीच सड़क पर छेड़ा फिर Inspector के साथ जो हुआ। सुबह…
SDM Riya Mishra की सच्ची कहानी | अकेली महिला अधिकारी ने हिला दिया पूरा थाना।
SDM Riya Mishra की सच्ची कहानी | अकेली महिला अधिकारी ने हिला दिया पूरा थाना। रिया मिश्रा, एक एसडीओ ऑफिसर,…
End of content
No more pages to load





