अमीर लड़की ने गरीब लड़के को दी मदद, लेकिन जब उसे सच्चाई पता चली तो उसके पैरों तले की ज़मीन खिसक गई!
दिल्ली — यह शहर हमेशा से दो चेहरों में जीता आया है। एक चेहरा जहाँ चौड़ी-चौड़ी सड़कें, सफेद कोठियाँ और ऊँचे-ऊँचे गेट्स के पीछे दौलत और ताक़त की दुनिया बसती है। दूसरा चेहरा यमुना किनारे बसी तंग गलियों और झुग्गियों का है, जहाँ हर सुबह जीवन की एक नई जंग शुरू होती है। इन्हीं दो चेहरों के बीच पल रही थीं दो जिंदगियाँ — बिल्कुल अलग, बिल्कुल अजनबी, और फिर भी नियति ने उन्हें टकराने के लिए चुना था।
सुनहरी दुनिया की लड़की – आन्या मेहरा
आन्या मेहरा शहर के बड़े बिल्डर सिद्धार्थ मेहरा की इकलौती बेटी थी। जोरबाग के उस बंगले में पली-बढ़ी थी, जिसकी हरी-भरी लॉन में घोड़े भी थककर बैठ जाएँ। उसकी सुबह चाँदी की ट्रे में आती बेड टी और विदेशी परिंदों की चहचहाट से होती। दिन शॉपिंग, क्लबों और दोस्तों की पार्टियों में गुजरते और रातें चमकदार महफिलों में। उसे कभी किसी चीज़ की कमी नहीं रही।
लेकिन दौलत की इस चकाचौंध के पीछे उसका दिल मोम का था। वह दूसरों का दर्द महसूस कर सकती थी, भले खुद कभी दर्द से गुज़री न हो। यही नरमी उसे अपने पिता से अलग बनाती थी।
झुग्गी का लड़का – रोहन
दूसरी ओर, उसी दिल्ली के अँधेरे कोने में रोहन रहता था। टीन-त्रिपाल की झोपड़ी, हर बारिश में टपकती छत और हर गर्मी में तपता हुआ घर उसकी दुनिया थी। उसकी सुबह पास की फैक्ट्री के सायरन और बीमार माँ की खाँसी से होती। दिन कॉलेज की किताबों और मजदूरी के बीच भागते गुजरते। रातें माँ के पैरों को दबाते और किस्मत को कोसते।
उसकी माँ शारदा के दिल में छेद था। डॉक्टरों ने कहा था कि ऑपरेशन ही एकमात्र रास्ता है, लेकिन खर्च इतना कि रोहन अपनी पूरी जिंदगी भी मजदूरी करे तो भी पूरा न हो। फिर भी वह हार नहीं मानता। क्लास का टॉपर था, सपनों से भरी आँखों वाला। वह इंजीनियर बनना चाहता था और अपनी माँ को एक अच्छा घर देना चाहता था।
बारिश की वह रात
एक दिन दिल्ली की बेरहम बारिश ने इन दोनों दुनियाओं को मिलाने का काम किया। आन्या अपनी स्पोर्ट्स कार से पार्टी से लौट रही थी, तभी सुनसान सड़क पर कार बंद हो गई। फोन पर नेटवर्क नहीं था। बारिश बढ़ती जा रही थी। मजबूरी में वह पास की बस्ती की ओर बढ़ी।
वहाँ उसने एक झोपड़ी के बाहर टिमटिमाते बल्ब के नीचे एक लड़के को देखा — अपनी किताबें बारिश से बचाता हुआ। वही रोहन था। आन्या ने झिझकते हुए मदद माँगी। रोहन ने उसकी कार खोली और थोड़ी कोशिश में ही स्टार्ट कर दी।
आन्या ने प्रभावित होकर पैसे देने चाहे, लेकिन रोहन ने स्वाभिमान से मना कर दिया — “मैंने इंसानियत के नाते मदद की है, पैसे नहीं लूंगा।” यह बात आन्या के दिल को छू गई। उसने रोहन की कहानी जानी, उसकी बीमार माँ के बारे में सुना और उसी पल तय कर लिया कि वह मदद करेगी।
बदलती तकदीर
आन्या ने शारदा को देश के सबसे बड़े अस्पताल में भर्ती करवाया। महँगे डॉक्टरों ने ऑपरेशन किया और माँ की जान बच गई। रोहन की पढ़ाई का खर्च भी उसने उठाया। धीरे-धीरे दोनों की दोस्ती गहरी हुई। रोहन के संघर्ष और जज़्बे ने आन्या को जीवन का असली चेहरा दिखाया। उसे रोहन से मोहब्बत हो गई।
लेकिन जब पिता सिद्धार्थ मेहरा को यह पता चला तो वे आग बबूला हो गए। “एक झुग्गी का लड़का हमारी बेटी के लायक नहीं!” लेकिन आन्या ने साफ कह दिया — “पापा, मैं रोहन से प्यार करती हूँ और उसी से शादी करूंगी।”
समय बीतता गया। सात सालों में बहुत कुछ बदल गया।
सात साल बाद
रोहन अब किसी झुग्गी का लड़का नहीं था। उसने अपने टैलेंट और मेहनत से एक स्टार्टअप को देश की टॉप 10 कंपनियों में ला खड़ा किया। अब वह करोड़पति था, मैगजीन के कवर पर छपता नाम।
दूसरी ओर, सिद्धार्थ मेहरा का साम्राज्य ढह गया। शेयर बाजार घोटाले में फँसकर उनकी कंपनी दिवालिया हो गई। बंगला बिक गया, गाड़ियाँ नीलाम हो गईं। सदमे में उन्हें दिल का दौरा पड़ा और वे लकवाग्रस्त हो गए।
आन्या की जिंदगी ताश के पत्तों की तरह बिखर गई। पिता के इलाज और गुज़ारे के लिए नौकरी की तलाश शुरू हुई। तब उसे “आर्टेक सॉल्यूशंस” नाम की कंपनी में वैकेंसी दिखी। उसने अप्लाई किया और फाइनल इंटरव्यू तक पहुँच गई।
किस्मत का खेल
जिस दिन वह सीईओ के कैबिन में दाखिल हुई, उसका दिल तेज़ धड़क रहा था। कुर्सी घूमी और सामने वही शख्स बैठा था — रोहन!
आन्या स्तब्ध रह गई। “रोहन… तुम?”
“हाँ, बैठो आन्या,” रोहन ने शांत स्वर में कहा।
फिर उसने एक तस्वीर की ओर इशारा किया — “ये मेरे पिता हैं, रमेश चंद्रा। बीस साल पहले तुम्हारे पिता ने धोखे से उनकी प्रॉपर्टी हड़प ली थी। उसी सदमे ने उन्हें मार डाला। मेरी हर तकलीफ, मेरी माँ का संघर्ष — सब तुम्हारे पिता की वजह से था।”
आन्या की आँखों के आगे अंधेरा छा गया। “नहीं… पापा ऐसा नहीं कर सकते!”
“यही सच है, आन्या।”
रोहन ने बताया कि कैसे उसने बदले की आग में सब सहा, लेकिन आन्या की मासूमियत ने उसके दिल में मोहब्बत जगा दी। इसलिए वह दूर हो गया, ताक़तवर बनने तक।
माफी और मोहब्बत
आन्या की आँखों से आँसू बह निकले। “तो क्या मेरा प्यार भी धोखा था?”
रोहन की आवाज भर आई — “नहीं, मैं भी तुमसे प्यार करता हूँ। लेकिन मैं सच छिपाता रहा। मुझे डर था कि तुम मुझसे नफरत करोगी।”
उसने एक फाइल आन्या के हाथ में दी — जोरबाग वाले बंगले के कागजात। “मैंने इसे नीलामी में खरीदा है। अब यह तुम्हारा है। यह ब्लैंक चेक भी लो, अपने पिता का इलाज करवाओ। यह भीख नहीं, तुम्हारा हक और मेरे प्यार की निशानी है।”
आन्या फूट-फूटकर रो पड़ी।
अंत
उस दिन के बाद आन्या ने पिता का इलाज करवाया। होश आने पर सिद्धार्थ मेहरा ने सच्चाई सुनी और शर्म से रो पड़े। उन्होंने रोहन से माफी माँगी। रोहन ने उन्हें माफ कर दिया।
धीरे-धीरे जिंदगी पटरी पर लौटी। सिद्धार्थ ने बाकी जीवन समाज सेवा में लगा दिया। आन्या ने रोहन की कंपनी जॉइन की और मेहनत से अपनी पहचान बनाई। रोहन और आन्या का प्यार हर परीक्षा में खरा उतरा। दोनों ने शादी कर ली और नई शुरुआत की — नफरत या बदले पर नहीं, बल्कि माफी और सच्ची मोहब्बत पर।
शिक्षा
यह कहानी सिखाती है कि दौलत और रुतबा सबसे बड़ी ताक़त नहीं होते। सबसे बड़ी ताक़त इंसान का जमीर, उसकी इंसानियत और माफ करने की क्षमता होती है। बदला लेना आसान है, लेकिन माफ कर देना मुश्किल — और जो माफ कर देता है, वही असली बड़ा इंसान होता है।
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