अरबपति ने अपनी बेचारी नौकरानी की परीक्षा लेने के लिए तिजोरी खुली छोड़ दी, फिर उसने जो किया, उस पर आपको यकीन नहीं होगा

दिल्ली की ठंडी सुबह थी। शहर की चकाचौंध में रहने वाले लोग अपने-अपने कामों में व्यस्त थे। कहीं कोई ऑफिस भाग रहा था तो कहीं कोई बच्चा स्कूल की बस पकड़ने की कोशिश कर रहा था। इन्हीं सब के बीच, शहर के पॉश इलाके में स्थित एक ऊँची बिल्डिंग की 25वीं मंज़िल पर बैठा था – राजवीर सिंह राठौर, देश के जाने-माने अरबपति उद्योगपति।

राजवीर का नाम सुनते ही लोगों की आँखों में पैसे और शक्ति की चमक दिखाई देती थी। उनके पास अपार दौलत थी, विदेशी कारों का कलेक्शन, दुनिया भर में आलीशान बंगले और सैकड़ों कंपनियों का साम्राज्य। लेकिन जितना बड़ा उनका साम्राज्य था, उतना ही खाली उनका दिल। उन्होंने जिंदगी में रिश्तों से ज़्यादा पैसे को अहमियत दी थी और नतीजा यह हुआ कि उन्होंने अपने चारों ओर दीवारें बना ली थीं।

उनकी पत्नी वर्षों पहले उन्हें छोड़ चुकी थी, यह कहते हुए कि वह “मशीन” बन गए हैं। उनका बेटा, जो विदेश में पढ़ रहा था, उनसे शायद ही कभी बात करता। दोस्ती के नाम पर उनके पास सिर्फ बिज़नेस पार्टनर थे, जिनकी वफादारी भी पैसों से खरीदी जाती थी।

अविश्वास की आदत

राजवीर को सबसे बड़ा डर यही था कि कोई उन्हें धोखा न दे। उन्हें लगता था कि इंसान सिर्फ पैसे के लिए काम करता है। यही वजह थी कि वह किसी पर भरोसा नहीं करते थे। चाहे ड्राइवर हो या मैनेजर, चाहे दोस्त हो या रिश्तेदार – सब पर उन्हें शक रहता था।

एक बार उन्होंने अपने सेक्रेटरी को सिर्फ इसलिए नौकरी से निकाल दिया क्योंकि उसने ऑफिस टाइम में घर जाकर बीमार माँ को दवा दी थी। राजवीर ने कहा –
“ईमानदारी का मतलब है सिर्फ और सिर्फ मेरे लिए काम करना, बाकी सब दिखावा है।”

उनकी इस कठोरता से लोग डरते थे, लेकिन मन ही मन उनसे नफरत भी करते थे।

मुलाक़ात

एक दिन, राजवीर अपने नए प्रोजेक्ट के सिलसिले में उत्तराखंड गए। वहाँ पहाड़ों पर रिसॉर्ट बनाने का उनका सपना था। जगह देखने के बाद जब वह लौट रहे थे तो उनकी कार अचानक खराब हो गई। ड्राइवर ने मदद के लिए मैकेनिक बुलाया, लेकिन गाँव का इलाका था, वहाँ तुरंत कोई सुविधा नहीं मिली।

राजवीर गुस्से से बड़बड़ा रहे थे कि तभी उन्होंने पास के खेत में एक औरत को देखा। वह साधारण कपड़ों में थी, उसके हाथ मिट्टी से सने हुए थे, और साथ में उसका लगभग 10 साल का बेटा खेल रहा था।

वह औरत पास आई और बोली –
“साहब, आप परेशान लग रहे हैं। अगर चाहें तो मेरे घर आकर थोड़ा पानी पी लीजिए, जब तक गाड़ी ठीक हो रही है।”

राजवीर ने उसे ऊपर से नीचे तक देखा। उनके मन में तुरंत वही पुराना विचार आया – यह औरत जरूर कुछ फायदा उठाना चाहती होगी।

फिर भी, मजबूरी में उन्होंने उसका प्रस्ताव मान लिया।

साधारण घर, असाधारण गर्मजोशी

वह औरत – जिसका नाम गौरी था – अपने मिट्टी के घर में राजवीर को ले गई। घर बहुत साधारण था: टूटी चारपाई, मिट्टी का चूल्हा, दीवारों पर बच्चों की लिखावट। लेकिन वहाँ की गर्मजोशी ऐसी थी जो राजवीर ने अपने करोड़ों के बंगले में भी महसूस नहीं की थी।

गौरी ने उन्हें ताजा पानी दिया, और बेटे ने हिचकते हुए कहा –
“साहब, चाय भी बना दूँ?”

राजवीर पहली बार अनजाने में मुस्कुराए। उन्होंने हाँ कर दी।

गौरी ने कहा –
“साहब, बड़े लोग अक्सर हम जैसे गरीबों पर शक करते हैं। लेकिन सच मानिए, गरीब के पास देने को पैसा नहीं होता, बस दिल होता है।”

ये शब्द राजवीर के दिल में कहीं गहरे उतर गए।

चौंकाने वाला सच

गौरी का बेटा किताबों में डूबा रहता था। उसने राजवीर से कहा –
“पापा कहते हैं कि मैं बड़ा होकर इंजीनियर बनूँगा और ऐसी गाड़ियाँ बनाऊँगा जो पहाड़ों में कभी खराब न हों।”

राजवीर ने आश्चर्य से पूछा –
“पापा? तुम्हारे पापा क्या करते हैं?”

गौरी की आँखें नम हो गईं।
“दो साल पहले, सड़क हादसे में उनका देहांत हो गया। तब से मैं ही माँ भी हूँ और बाप भी। बेटे का सपना है तो मैं भी उसके साथ सपने देखती हूँ।”

राजवीर अवाक रह गए। इतनी मजबूरी के बाद भी इस औरत के चेहरे पर शिकायत नहीं थी, बल्कि उम्मीद और आत्मविश्वास था।

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