अस्पताल ने बूढ़े को पोती के साथ फेंका बाहर! 😱 क्या हुआ अगला मोड़?

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शंकर काका और अस्पताल की असली दौलत

शहर की चमचमाती गलियों में एक फाइव स्टार अस्पताल था — ग्लोबल हेल्थ सिटी। वहाँ के रिसेप्शन पर एक दिन एक अजीब सा दृश्य देखने को मिला। एक बूढ़ा आदमी, जिसका नाम शंकर था, अपनी सात-आठ साल की बेहोश पोती परी को गोद में लिए खड़ा था। उसकी आंखों में बेबसी थी, कपड़े मैले थे, पैरों में टूटी चप्पलें थीं और शरीर से खेत की मिट्टी की महक आ रही थी। शंकर ने कांपती आवाज़ में रिसेप्शन मैनेजर मिस्टर वर्मा से कहा, “साहब, मेरी पोती है परी, गांव में खेलते-खेलते सांप ने काट लिया। सरकारी अस्पताल ने कहा कि यहाँ ले आओ, जान बच सकती है।”

वर्मा ने नाक सिकोड़ी और तिरस्कार से बोला, “यह फाइव स्टार अस्पताल है, कोई धर्मशाला नहीं। यहाँ एक दिन का खर्च तुम्हारे पूरे गांव की कीमत से ज़्यादा है। पहले पैसे जमा करो, फिर बात करना।” शंकर ने अपनी कमर में बंधी पोटली खोली, उसमें से कुछ हजार के नोट, सौ-सौ के नोट और ढेर सारे सिक्के निकाले। “साहब, मेरे पास यही है। मेरी जिंदगी भर की कमाई है। आप इसे रख लो, मेरी बच्ची को बचा लो। मैं आपके खेत में मजदूरी करूंगा, जिंदगी भर गुलामी करूंगा, पर इसे बचा लो।”

वर्मा हंस पड़ा, आसपास खड़े अमीर लोग भी मजाक उड़ाने लगे। “₹4000 लेकर आया है और चाहता है कि हम इसकी पोती का इलाज करें! इतने में तो यहाँ एक बोतल ग्लूकोस नहीं आता। हटो यहाँ से, वीआईपी मरीजों का रास्ता मत रोको।” शंकर की आंखों से आंसू बह निकले। उसने वर्मा के पैरों में गिरकर आखिरी बार गिड़गिड़ाया, “भगवान के लिए मेरी मदद करो।”

सिक्योरिटी गार्ड्स ने शंकर को बेरहमी से उठाया और अस्पताल के गेट के बाहर फेंक दिया। उसकी पोटली के पैसे फर्श पर बिखर गए। शंकर अपनी पोती को सीने से लगाए तपती धूप में सड़क के किनारे एक पेड़ के नीचे बैठ गया। उसकी दुनिया उजड़ चुकी थी, उसे लगा जैसे भगवान ने भी उसका साथ छोड़ दिया है। उसने अपनी पोती के माथे को चूमा, उसका शरीर ठंडा पड़ रहा था।

शंकर ने अपनी धोती की जेब से एक पुराना सा बटन वाला फोन निकाला। स्क्रीन ठीक से दिख नहीं रही थी, फिर भी उसने एक नंबर मिलाया। दूसरी तरफ से फोन उठते ही शंकर की आवाज़ शांत और दृढ़ हो गई, “हां, मैं अस्पताल के बाहर हूं। जैसा डर था, वैसा ही हुआ। उन्होंने इंसानियत को बाहर फेंक दिया है। अब वो शर्त लागू करने का समय आ गया है।” फोन कट गया। शंकर ने आंखें बंद कर ली और अपनी पोती का हाथ थाम लिया।

उधर अस्पताल के अंदर अचानक हड़कंप मच गया। सारे कंप्यूटर बंद हो गए, बिलिंग सिस्टम ठप पड़ गया, आईसीयू की मशीनों को छोड़कर अस्पताल का पूरा डिजिटल नेटवर्क फेल हो गया। कोई मरीज ना भर्ती हो पा रहा था, ना डिस्चार्ज। वर्मा का चेहरा पसीने से भीग गया। आईटी हेड से पूछा, “यह क्या है?” आईटी हेड घबराया हुआ था, “सर, यह कोई नॉर्मल क्रैश नहीं है, जैसे किसी ने मेन स्विच बंद कर दिया हो।”

कुछ ही मिनटों में अस्पताल के मालिक डॉक्टर आलोक माथुर का फोन वर्मा के पास आया। “वर्मा, गेट पर एक बूढ़े आदमी को तुमने बाहर निकाला है क्या, जिसके साथ एक बच्ची है?” वर्मा बोला, “हां सर, वो भिखारी था, पैसे नहीं थे उसके पास।” डॉक्टर माथुर चीख पड़े, “तुम बर्बाद हो गए वर्मा! वह भिखारी नहीं, इस अस्पताल के भगवान हैं। मैं 10 मिनट में पहुंच रहा हूं, अगर उन्हें कुछ हुआ तो तुम्हें जिंदा नहीं छोड़ूंगा।”

दस मिनट बाद अस्पताल के गेट पर तीन महंगी गाड़ियां आकर रुकीं। डॉक्टर माथुर, शहर के कमिश्नर और बड़े अधिकारी उतरे। डॉक्टर माथुर भागे-भागे उस पेड़ के नीचे पहुंचे जहां शंकर अपनी पोती को गोद में लिए बैठा था। वहां मौजूद लोगों ने जो दृश्य देखा, वह उनकी जिंदगी भर की याद बन गया। करोड़ों की कंपनी के मालिक डॉक्टर माथुर ने दौड़कर शंकर के पैर पकड़ लिए और उनकी आंखों से आंसू बहने लगे। “काका, मुझे माफ कर दीजिए। मेरे लोगों ने आपको नहीं पहचाना।”

वर्मा और बाकी स्टाफ जो बाहर आए थे, वहीं पत्थर बन गए। डॉक्टर माथुर ने खड़े होकर चिल्लाते हुए कहा, “तुम सब लोग जिसे भिखारी समझ रहे थे, वह शंकर काका हैं। यह जमीन जिस पर तुम्हारा यह फाइव स्टार अस्पताल खड़ा है, यह इनकी थी। इन्होंने अपनी 100 बीघे जमीन हमें दान में दी थी सिर्फ एक शर्त पर।”

भीड़ में सन्नाटा छा गया। वर्मा के हाथ-पैर कांपने लगे। डॉक्टर माथुर ने आगे कहा, “शर्त यह थी कि इस अस्पताल के दरवाजे से कोई भी इमरजेंसी मरीज पैसों की वजह से वापस नहीं लौटाया जाएगा। और काका ने कहा था, जिस दिन मेरी यह शर्त टूटेगी, उस दिन इस अस्पताल की आत्मा मर जाएगी। यह जो सिस्टम बंद हुआ है, यह कोई तकनीकी खराबी नहीं है, यह काका का लगाया हुआ धर्म कांटा है — एक किल स्विच जो उन्होंने शर्त तोड़ते ही एक्टिवेट कर दिया।”

अब सब कुछ साफ हो चुका था। शंकर काका ने अपनी जमीन दी, लेकिन उसका नियंत्रण अपने हाथ में रखा एक वादे के साथ। शंकर काका धीरे से खड़े हुए, डॉक्टर माथुर के कंधे पर हाथ रखा। उनकी आंखों में गुस्सा नहीं, सिर्फ गहरी पीड़ा थी। उन्होंने कांपते हुए वर्मा की ओर देखा और कहा, “बेटा, तुमने मेरा अपमान नहीं किया, तुमने उस भरोसे की गर्दन मरोड़ी है जिस पर यह अस्पताल बना है। इमारतें सीमेंट और स्टील से बनती हैं, लेकिन अस्पताल इंसानियत से बनते हैं। तुमने आज इस मंदिर से भगवान को ही बाहर फेंक दिया।”

वर्मा रोते हुए शंकर काका के पैरों में गिर गया, “मुझे माफ कर दीजिए बाबा, मुझसे गलती हो गई।” शंकर बोले, “माफी मुझसे नहीं, उस सोच से मांगो जो इंसान की कीमत उसके कपड़ों से लगाती है। जाओ, मेरी बच्ची को बचाओ। अगर उसे कुछ हो गया तो यह अस्पताल तो क्या, ऐसी हजार इमारतें मिलकर भी एक जान वापस नहीं ला सकती।”

तुरंत एक्शन हुआ। परी को सबसे अच्छे वीआईपी स्वीट में भर्ती कराया गया। देश के सबसे बड़े डॉक्टर उसका इलाज करने के लिए दौड़ पड़े। वर्मा और दो गार्ड्स को तुरंत निलंबित कर दिया गया। डॉक्टर माथुर ने उसी समय एक नई पॉलिसी की घोषणा की — “शंकर काका प्रतिज्ञा”। इसके तहत ग्लोबल हेल्थ सिटी अस्पताल में किसी भी आपातकालीन रोगी का इलाज तुरंत शुरू किया जाएगा, पैसे बाद में पूछे जाएंगे।

कुछ घंटों बाद परी की हालत खतरे से बाहर थी। शंकर उसके बिस्तर के पास एक स्टूल पर बैठे उसका हाथ थामे हुए थे। डॉक्टर माथुर ने उन्हें वीआईपी कमरे में रुकने को कहा, लेकिन उन्होंने मना कर दिया, “मेरी जगह मरीजों के बीच है साहब, ताकि मुझे याद रहे कि दर्द क्या होता है और शायद मुझे देखकर आपके डॉक्टरों को भी याद रहे कि इंसानियत क्या होती है।”

जो लोग सुबह शंकर काका पर हंस रहे थे, अब शर्म से नजरें झुकाए खड़े थे। कुछ लोग अपने फोन पर उनकी कहानी टाइप कर रहे थे। एक ने लिखा, “आज असली दौलत देखी, वह नहीं जो बैंक में है, बल्कि वह जो एक धोती वाले किसान के दिल में है।”

शंकर काका ने कोई बदला नहीं लिया, किसी पर चिल्लाया नहीं। उन्होंने बस अपनी शालीनता और एक सही फैसले से पूरे सिस्टम को आईना दिखा दिया। उन्होंने साबित कर दिया कि असली ताकत पद या पैसे में नहीं, अपने सिद्धांतों पर टिके रहने में होती है।

यह सिर्फ एक कहानी नहीं है, यह हमारे समाज का वह सच है जिसे हम रोज़ देखते हैं। अगली बार जब आप किसी को उनके कपड़ों, भाषा या हैसियत से आंकने लगे, तो एक पल के लिए शंकर काका को याद कर लीजिएगा। क्योंकि समाज इमारतें बनाने से नहीं, एक दूसरे को सम्मान देने से बदलता है।

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