आईपीएस अधिकारी और नारियल लड़की की दिलचस्प कहानी | हिंदी उर्दू इस्लामी कहानी | सबक अमोज
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नारियल बेचने वाली लड़की और आईपीएस अधिकारी की कहानी
दोपहर का वक्त था। सूरज अपनी पूरी ताकत के साथ जमीन पर बरस रहा था। बाजार की तंग गलियों से निकलकर एक छोटी सड़क पर एक पुरानी लकड़ी की रेहड़ी खड़ी थी। उस रेहड़ी पर हरे और ताजा नारियलों का ढेर लगा हुआ था। ये नारियल धूप की रोशनी में ऐसे चमक रहे थे जैसे किसी अनमोल रत्न ने सूरज की किरणों को अपनी ओर खींच लिया हो। पसीने से भीगी फिजा और हल्की हवा के बीच उन नारियलों की खुशबू में एक अजीब सी ताजगी थी।
रेहड़ी के पीछे एक नौजवान लड़की खड़ी थी। उसका नाम रीमा था। उसकी शक्ल-सूरत आम सी थी, मगर उसकी आंखों में एक चमक थी जो सीधे दिलों को छू जाती। उसने एक सादा सूट पहना हुआ था, जिस पर मेहनत और गरीबी के निशान साफ झलकते थे। माथे पर पसीने की बूंदें चमक रही थीं, लेकिन उसके होंठों पर मुस्कुराहट ने उसे दूसरों से अलग बना दिया था। वह बार-बार अपने दुपट्टे से माथा साफ करती। फिर एक छोटी सी तेज छुरी उठाती और नारियल पर माहिराना वार करके ऊपर से काट देती। छुरी की ठक-ठक की आवाज जैसे पूरे माहौल में एक अलग ही संगीत बिखेर देती।
जब भी कोई ग्राहक आता, रीमा पूरी खुशदिली से नारियल खोलकर पेश करती। नारियल खोलने के बाद वह उसमें स्ट्रॉ लगाकर ग्राहक को थमा देती और कहती, “मीठा पानी है, पीजिए, थकान उतर जाएगी।” ग्राहक एक घूंट लेते और तुरंत खुश हो जाते।
कई बार ग्राहक उसे दुआ देते, “बेटी, तुम्हारे नसीब चमके।” यह सुनकर रीमा के चेहरे की मुस्कुराहट और गहरी हो जाती। लेकिन उसके अंदर कहीं एक भारी बोझ छुपा हुआ था। यह बोझ उसके बीमार पिता की हालत थी। उसका पिता जो कभी खेतों में मजदूरी करके घर चलाता था, अब अरसे से बिस्तर पर पड़ा था। कमर का दर्द और सांस की बीमारी ने उसे कमजोर कर दिया था। डॉक्टरों ने दवाओं की लंबी फहरिस्त पकड़ा दी थी। इन्हीं दवाओं को खरीदने के लिए रीमा हर दिन बाजार आकर नारियल बेचती थी।
हर दिन की जद्दोजहद
रीमा के हाथों पर छाले पड़ चुके थे। मगर उसके दिल में एक ही दुआ थी, “बस अब्बा को ठीक कर दूं। फिर सब आसान हो जाएगा।” बाजार की रौनक अपने उरूज पर थी। सब्जी बेचने वाले, मसाले बेचने वाले और चाय के खोखे वाले अपनी-अपनी आवाजें लगा रहे थे। हर तरफ शोर और भागदौड़ थी। उस शोर में रीमा की सादा सी रेहड़ी भी एक छोटा सा चिराग थी। लोग उसे एक आम नारियल बेचने वाली समझ कर गुजर जाते। किसी को अंदाजा नहीं था कि उसकी जिंदगी के पीछे एक राज छुपा है।
रीमा के लिए हर दिन एक इम्तिहान था। धूप में खड़े रहना, ग्राहकों की बातें सुनना, कुछ का हंसकर मजाक उड़ाना, कुछ का झगड़ना, यह सब वह सब्र से बर्दाश्त करती। लेकिन दिल के किसी कोने में वह हमेशा यही सोचती, “मैं कमजोर नहीं हूं। बस हालात ने मुझे खामोश बनाया है।”
राजीव प्रसाद का आगमन
उस दिन भी सब कुछ आम लग रहा था। रीमा नारियल तराश रही थी, ग्राहकों को पानी पिला रही थी। मगर उसे अंदाजा नहीं था कि यह दिन उसकी जिंदगी बदलने वाला है। अचानक बाजार में हलचल मच गई। सामने से एक पुलिस अधिकारी आ रहा था। खाकी वर्दी पहने, चमकते हुए जूते, और कंधे पर तीन सितारे उसकी रैंक का ऐलान कर रहे थे। यह था इंस्पेक्टर राजीव प्रसाद, जो इलाके में अपने सख्त रवैये और गुरूर के लिए मशहूर था।
राजीव ने बाजार में कदम रखा तो लोग सहम गए। सब्जी वाले जल्दी-जल्दी अपनी दुकानें संभालने लगे। औरतें अपने बच्चों को पकड़कर साइड पर हो गईं। कुछ लोग फौरन दूसरी गलियों में मुड़ गए ताकि बेवजह की झड़प में फंसने से बच सकें। राजीव की नजरें बाजार के शोर को काटती हुई सीधी रीमा की रेहड़ी पर जा टिकीं। उसने अपनी कमर पर हाथ रखा, गर्दन अकड़ाई और बुलंद आवाज में बोला, “यहां किसने कहा बेचने को? यह सड़क आवाम के लिए है। तेरा स्टॉल फौरन हटा।”
रीमा का सब्र और राजीव का गुरूर
रीमा चंद लम्हों के लिए हिचकिचाई। फिर आहिस्तगी से बोली, “साहब, मैं बस थोड़ी देर खड़ी हूं। यह नारियल फरोख्त हो जाए तो फौरन हट जाऊंगी। मैंने रास्ता नहीं रोका।” लेकिन यह जवाब राजीव के गुरूर को और बढ़ाने वाला था। उसने जोर से अपनी हथेली रीमा की रेहड़ी पर मारी। नारियल एक तरफ लुढ़क गए।
रीमा ने घबराकर रेहड़ी संभालने की कोशिश की। मगर उसके हाथ कांपने लगे। राजीव ने फिर चिल्लाकर कहा, “अभी के अभी हटा यह सब। वरना नारियल जमीन पर नहीं रहेंगे।” बाजार में सन्नाटा छा गया। कुछ लोगों ने मोबाइल निकालकर चुपके से रिकॉर्डिंग शुरू कर दी। सब हैरान थे कि एक नारियल बेचने वाली लड़की के साथ इतना गौरूर और सख्ती क्यों?
रीमा की हिम्मत
रीमा के दिल की धड़कन तेज हो गई। उसने नरम लहजे में कहा, “साहब, मैंने रास्ता नहीं रोका। चंद नारियल बेच लूं फिर चली जाऊंगी।” राजीव की आंखों में तौहीन और बढ़ गई। उसने नारियल को ठोकर मार दी। नारियल लुढ़क कर मोटरसाइकिल से टकरा गया।
रीमा ने बेबसी से मंजर देखा। मगर उसके अंदर एक चिंगारी थी जो अब शोला बनने वाली थी। उसने अपनी जख्मी हथेली को देखा और फिर सीधी खड़ी हो गई। उसने बुलंद आवाज में कहा, “मैं कमजोर जरूर हूं, मगर इतनी बेबस नहीं कि अपनी मेहनत यूं बर्बाद होते देखूं।”
सच्चाई की जीत
रीमा की बात सुनकर बाजार में शोर मच गया। लोग उसकी हिम्मत की तारीफ करने लगे। राजीव ने फिर से धमकी दी, “तुम्हें पता नहीं है पुलिस के खिलाफ खड़ा होना क्या होता है।” मगर इस बार रीमा ने उसकी कलाई पकड़ ली। बाजार में सन्नाटा छा गया।
रीमा ने ठंडे लहजे में कहा, “पुलिस का काम आवाम की हिफाजत करना है, उन्हें डराना नहीं। वर्दी का असली मतलब इंसाफ है, जुल्म नहीं।” राजीव ने अपनी कलाई छुड़ाने की कोशिश की, मगर नाकाम रहा।
फौज की बेटी का खुलासा
रीमा ने बुलंद आवाज में कहा, “मैं सिर्फ नारियल बेचने वाली नहीं हूं। मैं इस मुल्क की फौज की सिपाही हूं।” यह सुनते ही बाजार में तहलका मच गया। लोगों ने तालियां बजाईं। औरतें दुआएं देने लगीं। राजीव का चेहरा पीला पड़ गया।
कुछ ही देर में सीनियर पुलिस अधिकारी वहां पहुंचे। उन्होंने राजीव को मुअत्तल कर दिया। राजीव की वर्दी उतारी गई और उसे सबके सामने बेबस खड़ा कर दिया गया।
निष्कर्ष
रीमा ने अपनी मेहनत और हिम्मत से न सिर्फ अपनी इज्जत बचाई बल्कि पूरे बाजार को इंसाफ का पैगाम दिया। वह दिन सिर्फ एक नारियल बेचने वाली लड़की की जीत नहीं थी, बल्कि सच्चाई और इंसाफ की जीत थी। रीमा की कहानी हमें सिखाती है कि कमजोर दिखने वाले अक्सर सबसे मजबूत होते हैं। सच्चाई और इंसाफ के आगे हर गुरूर झुक जाता है।
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