आखि़र SP मैडम क्यों झुक गई एक मोची के सामने जब सच्चाई आया सामने फिर जो हुआ….
एक सुबह, जिले की आईपीएस मैडम अंशिका वर्मा अपनी मां, सरिता देवी के साथ बाजार की ओर जा रही थी। अंशिका हमेशा से अपने काम में व्यस्त रहती थी, लेकिन आज वह अपनी मां के साथ समय बिताने के लिए बेहद खुश थी। अचानक, उनकी नजर सड़क के दूसरी तरफ पड़ी, जहां उनके तलाकशुदा पिता, अशोक, बैठे-बैठे मोची का काम कर रहे थे। यह दृश्य देखकर अंशिका का दिल धड़क उठा। उसने तुरंत अपनी मां से कहा, “मां, उस तरफ देखिए, यही मेरे पापा हैं।”
सरिता का घबरा जाना
सरिता देवी घबरा गईं और बोलीं, “नहीं बेटा, यह तुम्हारे पापा कैसे हो सकते हैं? तुम्हारे पापा तो अच्छे खासे आदमी थे। यह तो एक मोची है। देखो, जूते पॉलिश कर रहा है। यह तुम्हारे पापा नहीं हो सकते।” अंशिका ने दृढ़ता से कहा, “नहीं मां, आपने जो फोटो मुझे दिखाया था वही चेहरा है। मुझे पता है, आप झूठ बोल रही हैं। यही मेरे पापा हैं। प्लीज मां, इन्हें हमारे घर लेकर चलिए। देखिए ना, इनकी हालत कितनी खराब है।”
अशोक की पहचान
अशोक की नजर जब सरिता पर पड़ी, तो वह उन्हें देखते ही तुरंत पहचान गया और शर्म से अपना सिर झुका लिया। अंशिका यह सब देख रही थी, और उसी पल उसे यकीन हो गया कि यही उसके पापा हैं। लेकिन सरिता उसे खींचते हुए वहां से ले जाने लगी। वह कह रही थी, “यह तुम्हारे पापा नहीं हैं। तुम्हें गलतफहमी हो गई है। चल घर चल।” लेकिन अंशिका ने हाथ छुड़ाते हुए बोली, “नहीं मां, पापा को घर लेकर चलो। देख तो लो, उनकी हालत कितनी खराब है। सब ठीक हो जाएगा। मां, भले ही आप दोनों का तलाक हो चुका है, लेकिन वह मेरे पापा हैं।”
मां-बेटी के बीच संघर्ष
सरिता ने गुस्से से चिल्लाते हुए कहा, “अगर तुम उन्हें घर लेकर जाओगी, तो मैं तुम्हारे साथ नहीं रहूंगी। अगर तुम्हें अपने पापा चाहिए, तो मुझे भूल जाओ। ज्यादा जिद मत करो। यह तुम्हारे पापा नहीं हैं।” सरिता अंशिका को जबरदस्ती खींचते हुए घर ले आई। अंशिका मजबूरी में कुछ नहीं कर सकी और मां के साथ चली गई। उधर, अशोक यह सब देख रहा था। उसके मन में यही ख्याल घूम रहा था, “मेरी बेटी कितनी बड़ी हो गई है। काश मेरी बेटी मेरे पास होती, तो शायद मेरी ऐसी हालत ना होती।”
अंशिका का संकल्प
घर आकर अंशिका ने मां से पूछा, “मां, आप झूठ क्यों बोल रही हैं? वही मेरे पापा हैं। आप उन्हें घर क्यों नहीं लाना चाहती? मुझे अपने पापा से मिलना है। लड़ाई अगर आप दोनों की हुई है, तो आपका रिश्ता खत्म हो गया। मेरा तो नहीं हुआ है। मैं अभी भी उनकी बेटी हूं। मुझे अपने पापा से मिलना है।” अंशिका ने आगे कहा, “मां, बताइए ना आप दोनों के बीच क्या हुआ था? जिस वजह से आप लोगों का तलाक हुआ। मुझे तो कुछ याद नहीं है, लेकिन अगर आप बता देंगी, तो शायद मैं उन सारी चीजों को सुलझा दूं और हम सब फिर से नई जिंदगी शुरू कर सकें।”
सरिता देवी बोलीं, “तुझे जो करना है कर ले बेटा। लेकिन मैं उसे घर नहीं लाऊंगी। तुझे इस घर में रहना है या नहीं, यह तेरा फैसला है। लेकिन मैं उस आदमी को इस घर में कभी नहीं लाऊंगी।” अंशिका ने मन ही मन सोचा, “आखिर इतनी बड़ी कौन सी बात हो गई कि मां आज तक नहीं मान रही हैं? क्या मेरे पापा इतने बुरे इंसान थे कि मां के दिल में इतना गुस्सा है?”
अंशिका की खोज
अंशिका ने ठान लिया कि उसे सच जानना होगा। दूसरे दिन, उसने चुपके से खुद अशोक से मिलने के लिए निकल पड़ी। सरिता को बिल्कुल भी अंदाजा नहीं था कि उनकी बेटी कहां गई है। उन्हें लगा कि शायद वह ड्यूटी पर होगी। लेकिन आईपीएस अंशिका अपने पापा से मिलने बाजार की ओर निकल चुकी थी। वह जैसे ही बाजार पहुंची, देखा कि उसी जगह पर उनके पापा फिर से जूते पॉलिश कर रहे हैं।
पिता से पहली मुलाकात
अंशिका तुरंत पास जाकर खड़ी हो गई और बोली, “आपका नाम क्या है?” अशोक ने जवाब दिया, “मेरा नाम अशोक है।” फिर अंशिका बोली, “आप रहते कहां हैं?” अशोक बोला, “मेरा कोई घर बार नहीं है। मैं यहीं सड़क पर रहता हूं। मेरा कोई नहीं है।” यह सुनकर अंशिका की आंखों में आंसू आ गए। वह बोली, “आप मुझे पहचानते हैं?” अशोक ने शर्म से सिर झुकाते हुए कहा, “नहीं, मैं आपको नहीं जानता। आप कौन हैं? मुझे क्या पता?”
अंशिका का विश्वास
अंशिका मन ही मन सोचने लगी, “पापा झूठ क्यों बोल रहे हैं? मुझे तो पहचानते होंगे क्योंकि उस दिन मां के साथ उन्होंने मुझे देखा था।” वह फिर बोल पड़ी, “आप मुझे जानते नहीं हैं। मेरा नाम अंशिका है। याद कीजिए, शायद जानते होंगे। कहीं ना कहीं तो आपने मुझे जरूर देखा होगा ना।” अशोक बोला, “नहीं बेटा, मैंने तुम्हें कहीं नहीं देखा है। मुझे सब याद है और मुझे यह भी नहीं पता कि अंशिका कौन है। हां, हो सकता है तुम मुझे जानती हो। लेकिन मैं तुम्हें नहीं जानता बेटा।”
अंशिका की दृढ़ता
यह सुनकर अंशिका को थोड़ी राहत मिली क्योंकि वह अपने पापा के मुंह से बेटा शब्द सुनना चाहती थी। सुनते ही वह बोली, “आप मेरे पापा हैं। आप झूठ बोल रहे हैं। मुझे पता है कि मेरी मां से आपकी शादी हुई थी और मैं आपकी बेटी हूं। मुझे नहीं पता कि आप दोनों के बीच क्या हुआ। किस वजह से रिश्ता टूटा। लेकिन अब मैं आप दोनों को एक साथ देखना चाहती हूं। मेरा सपना है कि मेरी मां और पापा फिर से एक साथ रहें।”
अशोक की अनिच्छा
यह सुनकर अशोक घबराते हुए बोला, “आप यह सब क्या कह रही हैं? मेरी तो शादी भी नहीं हुई। आप शायद किसी और के बारे में बात कर रही होंगी। मैं किसी का पापा नहीं हूं।” यह सुनकर अंशिका मन ही मन सोचने लगी, “मेरे पापा सब झूठ बोल रहे हैं। मां और पापा दोनों ही मिलना नहीं चाहते। मगर मैं तो इन्हें मिलाकर ही रहूंगी।”
अंशिका का दृढ़ संकल्प
वह फिर से बोली, “देखिए, मुझे पता है कि आप मेरे पापा ही हैं और मैं आप दोनों को मिलाकर रहूंगी। चाहे आप लोग जितना भी दूर भागें, चलिए मेरे साथ घर चलिए। आप यह सब क्या कर रहे हैं? आपको यह शोभा नहीं देता। मैं एक आईपीएस हूं और एक आईपीएस की बेटी के पापा इस तरह का काम नहीं करते। प्लीज पापा, घर चलिए।”

अशोक का इनकार
यह सुनकर अशोक की आंखों में आंसू आ गए। वहां आंसू पोंछते हुए बोला, “नहीं बेटा, मैं तुम्हारे घर नहीं जाऊंगा। वह मेरा घर नहीं है। वह तुम्हारा घर है। तुम रह सकती हो, लेकिन मैं थोड़ी ना तुम्हारे घर जा सकता हूं। हां, बोल दिया। हो गया। मैं यहीं रहता हूं बेटा और यहीं रहूंगा। मुझे किसी के घर जाने की जरूरत नहीं है। मैं ठीक हूं। बेटा, तुम घर जाओ।”
अंशिका का संघर्ष
यह सुनकर अंशिका समझ चुकी थी कि इस तरह से इन दोनों को मिलाना आसान नहीं होगा। उसे अब कोई और तरीका ढूंढना पड़ेगा। वह अच्छे से तलाश करना चाहती थी कि आखिर उसकी मां और पापा के बीच हुआ क्या था। किस वजह से उनका रिश्ता टूटा था। वह यह भी ठान चुकी थी कि उस रिश्ते को जोड़ने के लिए कुछ भी करेगी।
सरिता से बातचीत
इसलिए अगले ही दिन, अंशिका ने अपनी मां से पूछा, “मां, आपकी कोई सहेली या दोस्त नहीं है क्या?” सरिता देवी बोलीं, “क्यों नहीं बेटा? दोस्त क्यों नहीं होंगे? मेरे दोस्त भी थे और सहेलियां भी। और अभी भी मेरी एक-दो सहेलियों से बात होती रहती है। जैसे तुम्हारे भी बहुत सारे दोस्त हैं, वैसे ही मेरे भी हैं। लेकिन क्यों बेटा? यह सवाल क्यों?”
अंशिका का बहाना
अंशिका बोली, “नहीं मां, ऐसे ही पूछ रही थी। मैंने सोचा कि आपके दोस्त हैं या नहीं। वैसे भी घर में तो कभी कोई आता नहीं है। इस वजह से पूछ लिया।” अंशिका की बात सुनकर सरिता को थोड़ा शक हुआ कि अचानक यह सवाल क्यों पूछा जा रहा है? फिर वह बोली, “सच बताओ बेटा, तुमने यह सवाल क्यों पूछा?”
सही समय पर योजना
अंशिका बोली, “मां, बस ऐसे ही पूछ रही थी क्योंकि आप लोगों ने कभी अपनी सहेलियों को घर पर बुलाया नहीं। किसी त्यौहार पर भी नहीं बुलाती। तो मैं सोच रही थी कि अगर आपकी कोई अच्छी सहेली है, तो आप उन्हें घर बुला लीजिए। मेहमान आएंगे तो हम लोग मिलकर मेहमान नवाजी करेंगे। कितना अच्छा लगेगा।”
सरिता का विचार
सरिता बोलीं, “हां बेटा, तुमने सही कहा। मेरी एक-दो सहेलियां हैं जो पास में ही रहती हैं। उनकी शादी हो चुकी है। अगर बुलाऊंगी, तो जरूर आएंगी।” दूसरे दिन सरिता देवी की सहेली घर आई। सबने मिलकर खाना खाया। खूब बातें की। उसके बाद जब सरिता की सहेली, ललिता अपने घर जाने लगी, तो अंशिका बोली, “अरे आंटी, आप घर जा रही हैं तो अपना नंबर दीजिए ना। कभी-कभी कॉल पर बात कर लेंगे।”
नंबर का आदान-प्रदान
ललिता ने नंबर दे दिया और अंशिका ने वह नंबर नोट कर लिया। अगले दिन अंशिका ने ललिता को कॉल किया और बोली, “आंटी, क्या मैं आपसे मिल सकती हूं? मुझे आपसे कुछ जरूरी बातें करनी हैं। आप कहां हैं? मुझे कहां आना होगा?” ललिता बोली, “क्यों बेटा? किस बारे में बात करनी है?” अंशिका बोली, “नहीं आंटी, ऐसी बात नहीं है। लेकिन मैं आपसे मिलकर ही बात करना चाहती हूं। यह बहुत जरूरी है। क्या मैं आपके घर आ जाऊं?”
ललिता की सहमति
ललिता ने कहा, “हां बेटा, अगर घर आना चाहती हो, तो आ जाओ। जो भी बात करनी है, कर लेंगे।” अंशिका ललिता के घर गई और उनसे पूछने लगी, “आंटी, मुझे यह बताइए कि मेरी मां और पापा का तलाक क्यों हुआ? क्या वजह थी कि दोनों अलग हो गए? और मेरे पापा की हालत इतनी खराब क्यों हो गई कि वह सड़क पर बैठकर जूते पॉलिश करने लगे?”
ललिता का खुलासा
यह सुनकर ललिता ने बताना शुरू किया, “जब तुम्हारी मां और पापा की शादी हुई थी, तो शुरू का एक साल सब कुछ बिल्कुल ठीक था। फिर तुम्हारा जन्म हुआ। तुम्हारे जन्म के एक साल बाद जिस कंपनी में तुम्हारे पापा काम करते थे, वहीं एक लड़की थी। तुम्हारे पापा का उस लड़की से अफेयर चलने लगा। यह रिश्ता लगभग 2 साल तक चला। उस लड़की ने तुम्हारे पापा को बहुत लूटा। ना जाने किन-किन तरीकों से उसने तुम्हारे पापा के सारे पैसे ले लिए।
अशोक की गलतियां
यहां तक कि तुम्हारे पापा इतने पागल हो गए थे उस लड़की के चक्कर में कि उन्होंने अपनी कुछ संपत्ति भी बेचकर उसे दे दी। लेकिन तुम्हारी मां को यह सब बिल्कुल भी नहीं पता था। जब तुम्हारी उम्र 4 साल की हुई, तब तुम्हारी मां को उस लड़की के बारे में सच्चाई पता चली। इसके बाद तुम्हारी मां और पापा के बीच नफरत पैदा होने लगी। धीरे-धीरे नफरत इतनी बढ़ गई कि दोनों एक-दूसरे का चेहरा देखना भी पसंद नहीं करते थे। इसी वजह से तुम्हारी मां ने तुम्हारे पापा से तलाक ले लिया।
अंशिका का दुख
तुम्हारे पापा की हालत पहले बहुत अच्छी थी। लेकिन अब जो हालत है, वह सिर्फ उनके अपने कर्मों की वजह से है।” यह सुनकर अंशिका की आंखों से आंसू बह निकले। वह रोते हुए बोली, “आंटी, मुझे अपने पापा को घर लाना है। मुझे मेरी मां और पापा को एक साथ मिलाना है। मैं अपने पापा को इतनी दुखी हालत में नहीं देख सकती। क्या आप मेरी मदद करेंगी ताकि मेरे पापा और मेरी मां एक हो जाएं?”
ललिता का समर्थन
ललिता बोली, “हां, मैं तुम्हारी मदद करूंगी। लेकिन कैसे? तुम्हारी मां तो अशोक से बहुत नफरत करती है। वह तो उसे कभी अपना मानेंगी ही नहीं। अगर मैं कभी तुम्हारी मां से इस तरह की कुछ बातें करती हूं, तो वह मुझे बहुत डांटती है और साफ कह देती है कि उनके सामने मैं उसका नाम भी जुबान पर ना लूं। अब मैं क्या कर सकती हूं?”
अंशिका का साहस
अंशिका बोली, “आप कर सकती हो। चलिए, आज ही दोनों मिलकर पापा के पास चलते हैं और उन्हें घर लाते हैं। मानने वाले तो वे आसानी से नहीं हैं, लेकिन उन्हें मनाना ही पड़ेगा। उन्हें राजी करना पड़ेगा कि घर जाना ही होगा। शायद वह घर आ जाएं।”
अशोक का सामना
ललिता बोली, “ठीक है, अगर तुम चाहती हो, तो चलो, कोशिश करके देखते हैं, क्या होता है।” फिर दोनों मिलकर अशोक के पास पहुंचते हैं। ललिता बोली, “देखिए, मैं समझती हूं कि आप किस हालत में हैं। मैं जानती हूं कि आपका मन नहीं है, लेकिन अपनी बेटी के लिए तो आप घर जा सकते हैं। क्या आपको नहीं दिख रहा कि आपकी बेटी आपसे मिलने के लिए कितनी तड़प रही है? क्या आप उसकी बात नहीं मानेंगे?”
अंशिका की दुआ
अंशिका रोते हुए बोली, “पापा, आपको घर जाना ही पड़ेगा। मुझे अच्छा नहीं लगता कि आप यहां इस तरह छोटे काम करें। मैं एक आईपीएस हूं और यह आपको शोभा नहीं देता। मैं मानती हूं कि आपका और मां का रिश्ता अब नहीं है। लेकिन मेरा तो रिश्ता है ना। मैं आपकी बेटी हूं। कोई गैर इंसान नहीं। प्लीज पापा, घर चलिए।”
अशोक का इनकार
अशोक बोला, “नहीं बेटा, मैं तुम्हारे घर कैसे जा सकता हूं? हां, मानता हूं कि तुम मेरी बेटी हो। लेकिन अब तुम मेरे पास नहीं हो। कानून के मुताबिक तुम अब सिर्फ सरिता की बेटी हो और तुम वहीं खुश हो। मैं तुम्हें खुश नहीं रख सकता बेटा। मेरी इतनी हैसियत भी नहीं है कि तुम्हारी मां के साथ फिर से जिंदगी बिताने के लिए तुम्हारे साथ जाऊं। तुम यह सब भूल जाओ और अपना काम करो।”
अंशिका की दृढ़ता
यह सुनकर अंशिका समझ चुकी थी कि इस तरह से इन दोनों को मिलाना आसान नहीं होगा। उसे अब कोई और तरीका ढूंढना पड़ेगा। वह अच्छे से तलाश करना चाहती थी कि आखिर उसकी मां और पापा के बीच हुआ क्या था। किस वजह से उनका रिश्ता टूटा था। वह यह भी ठान चुकी थी कि उस रिश्ते को जोड़ने के लिए कुछ भी करेगी।
अंशिका की योजना
अंशिका ने अपनी मां से पूछा, “मां, आपकी कोई सहेली या दोस्त नहीं है क्या?” सरिता देवी बोलीं, “क्यों नहीं बेटा? दोस्त क्यों नहीं होंगे? मेरे दोस्त भी थे और सहेलियां भी। और अभी भी मेरी एक-दो सहेलियों से बात होती रहती है। जैसे तुम्हारे भी बहुत सारे दोस्त हैं, वैसे ही मेरे भी हैं। लेकिन क्यों बेटा? यह सवाल क्यों?”
अंशिका का बहाना
अंशिका बोली, “नहीं मां, ऐसे ही पूछ रही थी। मैंने सोचा कि आपके दोस्त हैं या नहीं। वैसे भी घर में तो कभी कोई आता नहीं है। इस वजह से पूछ लिया।” सरिता को थोड़ा शक हुआ कि अचानक यह सवाल क्यों पूछा जा रहा है? फिर वह बोली, “सच बताओ बेटा, तुमने यह सवाल क्यों पूछा?”
सही समय पर योजना
अंशिका बोली, “मां, बस ऐसे ही पूछ रही थी क्योंकि आप लोगों ने कभी अपनी सहेलियों को घर पर बुलाया नहीं। किसी त्यौहार पर भी नहीं बुलाती। तो मैं सोच रही थी कि अगर आपकी कोई अच्छी सहेली है, तो आप उन्हें घर बुला लीजिए। मेहमान आएंगे तो हम लोग मिलकर मेहमान नवाजी करेंगे। कितना अच्छा लगेगा।”
सरिता का विचार
सरिता बोलीं, “हां बेटा, तुमने सही कहा। मेरी एक-दो सहेलियां हैं जो पास में ही रहती हैं। उनकी शादी हो चुकी है। अगर बुलाऊंगी, तो जरूर आएंगी।” दूसरे दिन सरिता देवी की सहेली घर आई। सबने मिलकर खाना खाया। खूब बातें की। उसके बाद जब सरिता की सहेली, ललिता अपने घर जाने लगी, तो अंशिका बोली, “अरे आंटी, आप घर जा रही हैं तो अपना नंबर दीजिए ना। कभी-कभी कॉल पर बात कर लेंगे।”
नंबर का आदान-प्रदान
ललिता ने नंबर दे दिया और अंशिका ने वह नंबर नोट कर लिया। अगले दिन अंशिका ने ललिता को कॉल किया और बोली, “आंटी, क्या मैं आपसे मिल सकती हूं? मुझे आपसे कुछ जरूरी बातें करनी हैं। आप कहां हैं? मुझे कहां आना होगा?” ललिता बोली, “क्यों बेटा? किस बारे में बात करनी है?” अंशिका बोली, “नहीं आंटी, ऐसी बात नहीं है। लेकिन मैं आपसे मिलकर ही बात करना चाहती हूं। यह बहुत जरूरी है। क्या मैं आपके घर आ जाऊं?”
ललिता की सहमति
ललिता ने कहा, “हां बेटा, अगर घर आना चाहती हो, तो आ जाओ। जो भी बात करनी है, कर लेंगे।” अंशिका ललिता के घर गई और उनसे पूछने लगी, “आंटी, मुझे यह बताइए कि मेरी मां और पापा का तलाक क्यों हुआ? क्या वजह थी कि दोनों अलग हो गए? और मेरे पापा की हालत इतनी खराब क्यों हो गई कि वह सड़क पर बैठकर जूते पॉलिश करने लगे?”
ललिता का खुलासा
यह सुनकर ललिता ने बताना शुरू किया, “जब तुम्हारी मां और पापा की शादी हुई थी, तो शुरू का एक साल सब कुछ बिल्कुल ठीक था। फिर तुम्हारा जन्म हुआ। तुम्हारे जन्म के एक साल बाद जिस कंपनी में तुम्हारे पापा काम करते थे, वहीं एक लड़की थी। तुम्हारे पापा का उस लड़की से अफेयर चलने लगा। यह रिश्ता लगभग 2 साल तक चला। उस लड़की ने तुम्हारे पापा को बहुत लूटा। ना जाने किन-किन तरीकों से उसने तुम्हारे पापा के सारे पैसे ले लिए।
अशोक की गलतियां
यहां तक कि तुम्हारे पापा इतने पागल हो गए थे उस लड़की के चक्कर में कि उन्होंने अपनी कुछ संपत्ति भी बेचकर उसे दे दी। लेकिन तुम्हारी मां को यह सब बिल्कुल भी नहीं पता था। जब तुम्हारी उम्र 4 साल की हुई, तब तुम्हारी मां को उस लड़की के बारे में सच्चाई पता चली। इसके बाद तुम्हारी मां और पापा के बीच नफरत पैदा होने लगी। धीरे-धीरे नफरत इतनी बढ़ गई कि दोनों एक-दूसरे का चेहरा देखना भी पसंद नहीं करते थे। इसी वजह से तुम्हारी मां ने तुम्हारे पापा से तलाक ले लिया।
अंशिका का दुख
तुम्हारे पापा की हालत पहले बहुत अच्छी थी। लेकिन अब जो हालत है, वह सिर्फ उनके अपने कर्मों की वजह से है।” यह सुनकर अंशिका की आंखों से आंसू बह निकले। वह रोते हुए बोली, “आंटी, मुझे अपने पापा को घर लाना है। मुझे मेरी मां और पापा को एक साथ मिलाना है। मैं अपने पापा को इतनी दुखी हालत में नहीं देख सकती। क्या आप मेरी मदद करेंगी ताकि मेरे पापा और मेरी मां एक हो जाएं?”
ललिता का समर्थन
ललिता बोली, “हां, मैं तुम्हारी मदद करूंगी। लेकिन कैसे? तुम्हारी मां तो अशोक से बहुत नफरत करती है। वह तो उसे कभी अपना मानेंगी ही नहीं। अगर मैं कभी तुम्हारी मां से इस तरह की कुछ बातें करती हूं, तो वह मुझे बहुत डांटती है और साफ कह देती है कि उनके सामने मैं उसका नाम भी जुबान पर ना लूं। अब मैं क्या कर सकती हूं?”
अंशिका का साहस
अंशिका बोली, “आप कर सकती हो। चलिए, आज ही दोनों मिलकर पापा के पास चलते हैं और उन्हें घर लाते हैं। मानने वाले तो वे आसानी से नहीं हैं, लेकिन उन्हें मनाना ही पड़ेगा। उन्हें राजी करना पड़ेगा कि घर जाना ही होगा। शायद वह घर आ जाएं।”
अशोक का सामना
ललिता बोली, “ठीक है, अगर तुम चाहती हो, तो चलो, कोशिश करके देखते हैं, क्या होता है।” फिर दोनों मिलकर अशोक के पास पहुंचते हैं। ललिता बोली, “देखिए, मैं समझती हूं कि आप किस हालत में हैं। मैं जानती हूं कि आपका मन नहीं है, लेकिन अपनी बेटी के लिए तो आप घर जा सकते हैं। क्या आपको नहीं दिख रहा कि आपकी बेटी आपसे मिलने के लिए कितनी तड़प रही है? क्या आप उसकी बात नहीं मानेंगे?”
अंशिका की दुआ
अंशिका रोते हुए बोली, “पापा, आपको घर जाना ही पड़ेगा। मुझे अच्छा नहीं लगता कि आप यहां इस तरह छोटे काम करें। मैं एक आईपीएस हूं और यह आपको शोभा नहीं देता। मैं मानती हूं कि आपका और मां का रिश्ता अब नहीं है। लेकिन मेरा तो रिश्ता है ना। मैं आपकी बेटी हूं। कोई गैर इंसान नहीं। प्लीज पापा, घर चलिए।”
अशोक का इनकार
अशोक बोला, “नहीं बेटा, मैं तुम्हारे घर कैसे जा सकता हूं? हां, मानता हूं कि तुम मेरी बेटी हो। लेकिन अब तुम मेरे पास नहीं हो। कानून के मुताबिक तुम अब सिर्फ सरिता की बेटी हो और तुम वहीं खुश हो। मैं तुम्हें खुश नहीं रख सकता बेटा। मेरी इतनी हैसियत भी नहीं है कि तुम्हारी मां के साथ फिर से जिंदगी बिताने के लिए तुम्हारे साथ जाऊं। तुम यह सब भूल जाओ और अपना काम करो।”
अंशिका की दृढ़ता
यह सुनकर अंशिका समझ चुकी थी कि इस तरह से इन दोनों को मिलाना आसान नहीं होगा। उसे अब कोई और तरीका ढूंढना पड़ेगा। वह अच्छे से तलाश करना चाहती थी कि आखिर उसकी मां और पापा के बीच हुआ क्या था। किस वजह से उनका रिश्ता टूटा था। वह यह भी ठान चुकी थी कि उस रिश्ते को जोड़ने के लिए कुछ भी करेगी।
अंशिका की योजना
अंशिका ने अपनी मां से पूछा, “मां, आपकी कोई सहेली या दोस्त नहीं है क्या?” सरिता देवी बोलीं, “क्यों नहीं बेटा? दोस्त क्यों नहीं होंगे? मेरे दोस्त भी थे और सहेलियां भी। और अभी भी मेरी एक-दो सहेलियों से बात होती रहती है। जैसे तुम्हारे भी बहुत सारे दोस्त हैं, वैसे ही मेरे भी हैं। लेकिन क्यों बेटा? यह सवाल क्यों?”
अंशिका का बहाना
अंशिका बोली, “नहीं मां, ऐसे ही पूछ रही थी। मैंने सोचा कि आपके दोस्त हैं या नहीं। वैसे भी घर में तो कभी कोई आता नहीं है। इस वजह से पूछ लिया।” सरिता को थोड़ा शक हुआ कि अचानक यह सवाल क्यों पूछा जा रहा है? फिर वह बोली, “सच बताओ बेटा, तुमने यह सवाल क्यों पूछा?”
सही समय पर योजना
अंशिका बोली, “मां, बस ऐसे ही पूछ रही थी क्योंकि आप लोगों ने कभी अपनी सहेलियों को घर पर बुलाया नहीं। किसी त्यौहार पर भी नहीं बुलाती। तो मैं सोच रही थी कि अगर आपकी कोई अच्छी सहेली है, तो आप उन्हें घर बुला लीजिए। मेहमान आएंगे तो हम लोग मिलकर मेहमान नवाजी करेंगे। कितना अच्छा लगेगा।”
सरिता का विचार
सरिता बोलीं, “हां बेटा, तुमने सही कहा। मेरी एक-दो सहेलियां हैं जो पास में ही रहती हैं। उनकी शादी हो चुकी है। अगर बुलाऊंगी, तो जरूर आएंगी।” दूसरे दिन सरिता देवी की सहेली घर आई। सबने मिलकर खाना खाया। खूब बातें की। उसके बाद जब सरिता की सहेली, ललिता अपने घर जाने लगी, तो अंशिका बोली, “अरे आंटी, आप घर जा रही हैं तो अपना नंबर दीजिए ना। कभी-कभी कॉल पर बात कर लेंगे।”
नंबर का आदान-प्रदान
ललिता ने नंबर दे दिया और अंशिका ने वह नंबर नोट कर लिया। अगले दिन अंशिका ने ललिता को कॉल किया और बोली, “आंटी, क्या मैं आपसे मिल सकती हूं? मुझे आपसे कुछ जरूरी बातें करनी हैं। आप कहां हैं? मुझे कहां आना होगा?” ललिता बोली, “क्यों बेटा? किस बारे में बात करनी है?” अंशिका बोली, “नहीं आंटी, ऐसी बात नहीं है। लेकिन मैं आपसे मिलकर ही बात करना चाहती हूं। यह बहुत जरूरी है। क्या मैं आपके घर आ जाऊं?”
ललिता की सहमति
ललिता ने कहा, “हां बेटा, अगर घर आना चाहती हो, तो आ जाओ। जो भी बात करनी है, कर लेंगे।” अंशिका ललिता के घर गई और उनसे पूछने लगी, “आंटी, मुझे यह बताइए कि मेरी मां और पापा का तलाक क्यों हुआ? क्या वजह थी कि दोनों अलग हो गए? और मेरे पापा की हालत इतनी खराब क्यों हो गई कि वह सड़क पर बैठकर जूते पॉलिश करने लगे?”
ललिता का खुलासा
यह सुनकर ललिता ने बताना शुरू किया, “जब तुम्हारी मां और पापा की शादी हुई थी, तो शुरू का एक साल सब कुछ बिल्कुल ठीक था। फिर तुम्हारा जन्म हुआ। तुम्हारे जन्म के एक साल बाद जिस कंपनी में तुम्हारे पापा काम करते थे, वहीं एक लड़की थी। तुम्हारे पापा का उस लड़की से अफेयर चलने लगा। यह रिश्ता लगभग 2 साल तक चला। उस लड़की ने तुम्हारे पापा को बहुत लूटा। ना जाने किन-किन तरीकों से उसने तुम्हारे पापा के सारे पैसे ले लिए।
अशोक की गलतियां
यहां तक कि तुम्हारे पापा इतने पागल हो गए थे उस लड़की के चक्कर में कि उन्होंने अपनी कुछ संपत्ति भी बेचकर उसे दे दी। लेकिन तुम्हारी मां को यह सब बिल्कुल भी नहीं पता था। जब तुम्हारी उम्र 4 साल की हुई, तब तुम्हारी मां को उस लड़की के बारे में सच्चाई पता चली। इसके बाद तुम्हारी मां और पापा के बीच नफरत पैदा होने लगी। धीरे-धीरे नफरत इतनी बढ़ गई कि दोनों एक-दूसरे का चेहरा देखना भी पसंद नहीं करते थे। इसी वजह से तुम्हारी मां ने तुम्हारे पापा से तलाक ले लिया।
अंशिका का दुख
तुम्हारे पापा की हालत पहले बहुत अच्छी थी। लेकिन अब जो हालत है, वह सिर्फ उनके अपने कर्मों की वजह से है।” यह सुनकर अंशिका की आंखों से आंसू बह निकले। वह रोते हुए बोली, “आंटी, मुझे अपने पापा को घर लाना है। मुझे मेरी मां और पापा को एक साथ मिलाना है। मैं अपने पापा को इतनी दुखी हालत में नहीं देख सकती। क्या आप मेरी मदद करेंगी ताकि मेरे पापा और मेरी मां एक हो जाएं?”
ललिता का समर्थन
ललिता बोली, “हां, मैं तुम्हारी मदद करूंगी। लेकिन कैसे? तुम्हारी मां तो अशोक से बहुत नफरत करती है। वह तो उसे कभी अपना मानेंगी ही नहीं। अगर मैं कभी तुम्हारी मां से इस तरह की कुछ बातें करती हूं, तो वह मुझे बहुत डांटती है और साफ कह देती है कि उनके सामने मैं उसका नाम भी जुबान पर ना लूं। अब मैं क्या कर सकती हूं?”
अंशिका का साहस
अंशिका बोली, “आप कर सकती हो। चलिए, आज ही दोनों मिलकर पापा के पास चलते हैं और उन्हें घर लाते हैं। मानने वाले तो वे आसानी से नहीं हैं, लेकिन उन्हें मनाना ही पड़ेगा। उन्हें राजी करना पड़ेगा कि घर जाना ही होगा। शायद वह घर आ जाएं।”
अशोक का सामना
ललिता बोली, “ठीक है, अगर तुम चाहती हो, तो चलो, कोशिश करके देखते हैं, क्या होता है।” फिर दोनों मिलकर अशोक के पास पहुंचते हैं। ललिता बोली, “देखिए, मैं समझती हूं कि आप किस हालत में हैं। मैं जानती हूं कि आपका मन नहीं है, लेकिन अपनी बेटी के लिए तो आप घर जा सकते हैं। क्या आपको नहीं दिख रहा कि आपकी बेटी आपसे मिलने के लिए कितनी तड़प रही है? क्या आप उसकी बात नहीं मानेंगे?”
अंशिका की दुआ
अंशिका रोते हुए बोली, “पापा, आपको घर जाना ही पड़ेगा। मुझे अच्छा नहीं लगता कि आप यहां इस तरह छोटे काम करें। मैं एक आईपीएस हूं और यह आपको शोभा नहीं देता। मैं मानती हूं कि आपका और मां का रिश्ता अब नहीं है। लेकिन मेरा तो रिश्ता है ना। मैं आपकी बेटी हूं। कोई गैर इंसान नहीं। प्लीज पापा, घर चलिए।”
अशोक का इनकार
अशोक बोला, “नहीं बेटा, मैं तुम्हारे घर कैसे जा सकता हूं? हां, मानता हूं कि तुम मेरी बेटी हो। लेकिन अब तुम मेरे पास नहीं हो। कानून के मुताबिक तुम अब सिर्फ सरिता की बेटी हो और तुम वहीं खुश हो। मैं तुम्हें खुश नहीं रख सकता बेटा। मेरी इतनी हैसियत भी नहीं है कि तुम्हारी मां के साथ फिर से जिंदगी बिताने के लिए तुम्हारे साथ जाऊं। तुम यह सब भूल जाओ और अपना काम करो।”
अंशिका की दृढ़ता
यह सुनकर अंशिका समझ चुकी थी कि इस तरह से इन दोनों को मिलाना आसान नहीं होगा। उसे अब कोई और तरीका ढूंढना पड़ेगा। वह अच्छे से तलाश करना चाहती थी कि आखिर उसकी मां और पापा के बीच हुआ क्या था। किस वजह से उनका रिश्ता टूटा था। वह यह भी ठान चुकी थी कि उस रिश्ते को जोड़ने के लिए कुछ भी करेगी।
अंशिका की योजना
अंशिका ने अपनी मां से पूछा, “मां, आपकी कोई सहेली या दोस्त नहीं है क्या?” सरिता देवी बोलीं, “क्यों नहीं बेटा? दोस्त क्यों नहीं होंगे? मेरे दोस्त भी थे और सहेलियां भी। और अभी भी मेरी एक-दो सहेलियों से बात होती रहती है। जैसे तुम्हारे भी बहुत सारे दोस्त हैं, वैसे ही मेरे भी हैं। लेकिन क्यों बेटा? यह सवाल क्यों?”
अंशिका का बहाना
अंशिका बोली, “नहीं मां, ऐसे ही पूछ रही थी। मैंने सोचा कि आपके दोस्त हैं या नहीं। वैसे भी घर में तो कभी कोई आता नहीं है। इस वजह से पूछ लिया।” सरिता को थोड़ा शक हुआ कि अचानक यह सवाल क्यों पूछा जा रहा है? फिर वह बोली, “सच बताओ बेटा, तुमने यह सवाल क्यों पूछा?”
सही समय पर योजना
अंशिका बोली, “मां, बस ऐसे ही पूछ रही थी क्योंकि आप लोगों ने कभी अपनी सहेलियों को घर पर बुलाया नहीं। किसी त्यौहार पर भी नहीं बुलाती। तो मैं सोच रही थी कि अगर आपकी कोई अच्छी सहेली है, तो आप उन्हें घर बुला लीजिए। मेहमान आएंगे तो हम लोग मिलकर मेहमान नवाजी करेंगे। कितना अच्छा लगेगा।”
सरिता का विचार
सरिता बोलीं, “हां बेटा, तुमने सही कहा। मेरी एक-दो सहेलियां हैं जो पास में ही रहती हैं। उनकी शादी हो चुकी है। अगर बुलाऊंगी, तो जरूर आएंगी।” दूसरे दिन सरिता देवी की सहेली घर आई। सबने मिलकर खाना खाया। खूब बातें की। उसके बाद जब सरिता की सहेली, ललिता अपने घर जाने लगी, तो अंशिका बोली, “अरे आंटी, आप घर जा रही हैं तो अपना नंबर दीजिए ना। कभी-कभी कॉल पर बात कर लेंगे।”
नंबर का आदान-प्रदान
ललिता ने नंबर दे दिया और अंशिका ने वह नंबर नोट कर लिया। अगले दिन अंशिका ने ललिता को कॉल किया और बोली, “आंटी, क्या मैं आपसे मिल सकती हूं? मुझे आपसे कुछ जरूरी बातें करनी हैं। आप कहां हैं? मुझे कहां आना होगा?” ललिता बोली, “क्यों बेटा? किस बारे में बात करनी है?” अंशिका बोली, “नहीं आंटी, ऐसी बात नहीं है। लेकिन मैं आपसे मिलकर ही बात करना चाहती हूं। यह बहुत जरूरी है। क्या मैं आपके घर आ जाऊं?”
ललिता की सहमति
ललिता ने कहा, “हां बेटा, अगर घर आना चाहती हो, तो आ जाओ। जो भी बात करनी है, कर लेंगे।” अंशिका ललिता के घर गई और उनसे पूछने लगी, “आंटी, मुझे यह बताइए कि मेरी मां और पापा का तलाक क्यों हुआ? क्या वजह थी कि दोनों अलग हो गए? और मेरे पापा की हालत इतनी खराब क्यों हो गई कि वह सड़क पर बैठकर जूते पॉलिश करने लगे?”
ललिता का खुलासा
यह सुनकर ललिता ने बताना शुरू किया, “जब तुम्हारी मां और पापा की शादी हुई थी, तो शुरू का एक साल सब कुछ बिल्कुल ठीक था। फिर तुम्हारा जन्म हुआ। तुम्हारे जन्म के एक साल बाद जिस कंपनी में तुम्हारे पापा काम करते थे, वहीं एक लड़की थी। तुम्हारे पापा का उस लड़की से अफेयर चलने लगा। यह रिश्ता लगभग 2 साल तक चला। उस लड़की ने तुम्हारे पापा को बहुत लूटा। ना जाने किन-किन तरीकों से उसने तुम्हारे पापा के सारे पैसे ले लिए।
अशोक की गलतियां
यहां तक कि तुम्हारे पापा इतने पागल हो गए थे उस लड़की के चक्कर में कि उन्होंने अपनी कुछ संपत्ति भी बेचकर उसे दे दी। लेकिन तुम्हारी मां को यह सब बिल्कुल भी नहीं पता था। जब तुम्हारी उम्र 4 साल की हुई, तब तुम्हारी मां को उस लड़की के बारे में सच्चाई पता चली। इसके बाद तुम्हारी मां और पापा के बीच नफरत पैदा होने लगी। धीरे-धीरे नफरत इतनी बढ़ गई कि दोनों एक-दूसरे का चेहरा देखना भी पसंद नहीं करते थे। इसी वजह से तुम्हारी मां ने तुम्हारे पापा से तलाक ले लिया।
अंशिका का दुख
तुम्हारे पापा की हालत पहले बहुत अच्छी थी। लेकिन अब जो हालत है, वह सिर्फ उनके अपने कर्मों की वजह से है।” यह सुनकर अंशिका की आंखों से आंसू बह निकले। वह रोते हुए बोली, “आंटी, मुझे अपने पापा को घर लाना है। मुझे मेरी मां और पापा को एक साथ मिलाना है। मैं अपने पापा को इतनी दुखी हालत में नहीं देख सकती। क्या आप मेरी मदद करेंगी ताकि मेरे पापा और मेरी मां एक हो जाएं?”
ललिता का समर्थन
ललिता बोली, “हां, मैं तुम्हारी मदद करूंगी। लेकिन कैसे? तुम्हारी मां तो अशोक से बहुत नफरत करती है। वह तो उसे कभी अपना मानेंगी ही नहीं। अगर मैं कभी तुम्हारी मां से इस तरह की कुछ बातें करती हूं, तो वह मुझे बहुत डांटती है और साफ कह देती है कि उनके सामने मैं उसका नाम भी जुबान पर ना लूं। अब मैं क्या कर सकती हूं?”
अंशिका का साहस
अंशिका बोली, “आप कर सकती हो। चलिए, आज ही दोनों मिलकर पापा के पास चलते हैं और उन्हें घर लाते हैं। मानने वाले तो वे आसानी से नहीं हैं, लेकिन उन्हें मनाना ही पड़ेगा। उन्हें राजी करना पड़ेगा कि घर जाना ही होगा। शायद वह घर आ जाएं।”
अशोक का सामना
ललिता बोली, “ठीक है, अगर तुम चाहती हो, तो चलो, कोशिश करके देखते हैं, क्या होता है।” फिर दोनों मिलकर अशोक के पास पहुंचते हैं। ललिता बोली, “देखिए, मैं समझती हूं कि आप किस हालत में हैं। मैं जानती हूं कि आपका मन नहीं है, लेकिन अपनी बेटी के लिए तो आप घर जा सकते हैं। क्या आपको नहीं दिख रहा कि आपकी बेटी आपसे मिलने के लिए कितनी तड़प रही है? क्या आप उसकी बात नहीं मानेंगे?”
अंशिका की दुआ
अंशिका रोते हुए बोली, “पापा, आपको घर जाना ही पड़ेगा। मुझे अच्छा नहीं लगता कि आप यहां इस तरह छोटे काम करें। मैं एक आईपीएस हूं और यह आपको शोभा नहीं देता। मैं मानती हूं कि आपका और मां का रिश्ता अब नहीं है। लेकिन मेरा तो रिश्ता है ना। मैं आपकी बेटी हूं। कोई गैर इंसान नहीं। प्लीज पापा, घर चलिए।”
अशोक का इनकार
अशोक बोला, “नहीं बेटा, मैं तुम्हारे घर कैसे जा सकता हूं? हां, मानता हूं कि तुम मेरी बेटी हो। लेकिन अब तुम मेरे पास नहीं हो। कानून के मुताबिक तुम अब सिर्फ सरिता की बेटी हो और तुम वहीं खुश हो। मैं तुम्हें खुश नहीं रख सकता बेटा। मेरी इतनी हैसियत भी नहीं है कि तुम्हारी मां के साथ फिर से जिंदगी बिताने के लिए तुम्हारे साथ जाऊं। तुम यह सब भूल जाओ और अपना काम करो।”
अंशिका की दृढ़ता
यह सुनकर अंशिका समझ चुकी थी कि इस तरह से इन दोनों को मिलाना आसान नहीं होगा। उसे अब कोई और तरीका ढूंढना पड़ेगा। वह अच्छे से तलाश करना चाहती थी कि आखिर उसकी मां और पापा के बीच हुआ क्या था। किस वजह से उनका रिश्ता टूटा था। वह यह भी ठान चुकी थी कि उस रिश्ते को जोड़ने के लिए कुछ भी करेगी।
अंशिका की योजना
अंशिका ने अपनी मां से पूछा, “मां, आपकी कोई सहेली या दोस्त नहीं है क्या?” सरिता देवी बोलीं, “क्यों नहीं बेटा? दोस्त क्यों नहीं होंगे? मेरे दोस्त भी थे और सहेलियां भी। और अभी भी मेरी एक-दो सहेलियों से बात होती रहती है। जैसे तुम्हारे भी बहुत सारे दोस्त हैं, वैसे ही मेरे भी हैं। लेकिन क्यों बेटा? यह सवाल क्यों?”
अंशिका का बहाना
अंशिका बोली, “नहीं मां, ऐसे ही पूछ रही थी। मैंने सोचा कि आपके दोस्त हैं या नहीं। वैसे भी घर में तो कभी कोई आता नहीं है। इस वजह से पूछ लिया।” सरिता को थोड़ा शक हुआ कि अचानक यह सवाल क्यों पूछा जा रहा है? फिर वह बोली, “सच बताओ बेटा, तुमने यह सवाल क्यों पूछा?”
सही समय पर योजना
अंशिका बोली, “मां, बस ऐसे ही पूछ रही थी क्योंकि आप लोगों ने कभी अपनी सहेलियों को घर पर बुलाया नहीं। किसी त्यौहार पर भी नहीं बुलाती। तो मैं सोच रही थी कि अगर आपकी कोई अच्छी सहेली है, तो आप उन्हें घर बुला लीजिए। मेहमान आएंगे तो हम लोग मिलकर मेहमान नवाजी करेंगे। कितना अच्छा लगेगा।”
सरिता का विचार
सरिता बोलीं, “हां बेटा, तुमने सही कहा। मेरी एक-दो सहेलियां हैं जो पास में ही रहती हैं। उनकी शादी हो चुकी है। अगर बुलाऊंगी, तो जरूर आएंगी।” दूसरे दिन सरिता देवी की सहेली घर आई। सबने मिलकर खाना खाया। खूब बातें की। उसके बाद जब सरिता की सहेली, ललिता अपने घर जाने लगी, तो अंशिका बोली, “अरे आंटी, आप घर जा रही हैं तो अपना नंबर दीजिए ना। कभी-कभी कॉल पर बात कर लेंगे।”
नंबर का आदान-प्रदान
ललिता ने नंबर दे दिया और अंशिका ने वह नंबर नोट कर लिया। अगले दिन अंशिका ने ललिता को कॉल किया और बोली, “आंटी, क्या मैं आपसे मिल सकती हूं? मुझे आपसे कुछ जरूरी बातें करनी हैं। आप कहां हैं? मुझे कहां आना होगा?” ललिता बोली, “क्यों बेटा? किस बारे में बात करनी है?” अंशिका बोली, “नहीं आंटी, ऐसी बात नहीं है। लेकिन मैं आपसे मिलकर ही बात करना चाहती हूं। यह बहुत जरूरी है। क्या मैं आपके घर आ जाऊं?”
ललिता की सहमति
ललिता ने कहा, “हां बेटा, अगर घर आना चाहती हो, तो आ जाओ। जो भी बात करनी है, कर लेंगे।” अंशिका ललिता के घर गई और उनसे पूछने लगी, “आंटी, मुझे यह बताइए कि मेरी मां और पापा का तलाक क्यों हुआ? क्या वजह थी कि दोनों अलग हो गए? और मेरे पापा की हालत इतनी खराब क्यों हो गई कि वह सड़क पर बैठकर जूते पॉलिश करने लगे?”
ललिता का खुलासा
यह सुनकर ललिता ने बताना शुरू किया, “जब तुम्हारी मां और पापा की शादी हुई थी, तो शुरू का एक साल सब कुछ बिल्कुल ठीक था। फिर तुम्हारा जन्म हुआ। तुम्हारे जन्म के एक साल बाद जिस कंपनी में तुम्हारे पापा काम करते थे, वहीं एक लड़की थी। तुम्हारे पापा का उस लड़की से अफेयर चलने लगा। यह रिश्ता लगभग 2 साल तक चला। उस लड़की ने तुम्हारे पापा को बहुत लूटा। ना जाने किन-किन तरीकों से उसने तुम्हारे पापा के सारे पैसे ले लिए।
अशोक की गलतियां
यहां तक कि तुम्हारे पापा इतने पागल हो गए थे उस लड़की के चक्कर में कि उन्होंने अपनी कुछ संपत्ति भी बेचकर उसे दे दी। लेकिन तुम्हारी मां को यह सब बिल्कुल भी नहीं पता था। जब तुम्हारी उम्र 4 साल की हुई, तब तुम्हारी मां को उस लड़की के बारे में सच्चाई पता चली। इसके बाद तुम्हारी मां और पापा के बीच नफरत पैदा होने लगी। धीरे-धीरे नफरत इतनी बढ़ गई कि दोनों एक-दूसरे का चेहरा देखना भी पसंद नहीं करते थे। इसी वजह से तुम्हारी मां ने तुम्हारे पापा से तलाक ले लिया।
अंशिका का दुख
तुम्हारे पापा की हालत पहले बहुत अच्छी थी। लेकिन अब जो हालत है, वह सिर्फ उनके अपने कर्मों की वजह से है।” यह सुनकर अंशिका की आंखों से आंसू बह निकले। वह रोते हुए बोली, “आंटी, मुझे अपने पापा को घर लाना है। मुझे मेरी मां और पापा को एक साथ मिलाना है। मैं अपने पापा को इतनी दुखी हालत में नहीं देख सकती। क्या आप मेरी मदद करेंगी ताकि मेरे पापा और मेरी मां एक हो जाएं?”
ललिता का समर्थन
ललिता बोली, “हां, मैं तुम्हारी मदद करूंगी। लेकिन कैसे? तुम्हारी मां तो अशोक से बहुत नफरत करती है। वह तो उसे कभी अपना मानेंगी ही नहीं। अगर मैं कभी तुम्हारी मां से इस तरह की कुछ बातें करती हूं, तो वह मुझे बहुत डांटती है और साफ कह देती है कि उनके सामने मैं उसका नाम भी जुबान पर ना लूं। अब मैं क्या कर सकती हूं?”
अंशिका का साहस
अंशिका बोली, “आप कर सकती हो। चलिए, आज ही दोनों मिलकर पापा के पास चलते हैं और उन्हें घर लाते हैं। मानने वाले तो वे आसानी से नहीं हैं, लेकिन उन्हें मनाना ही पड़ेगा। उन्हें राजी करना पड़ेगा कि घर जाना ही होगा। शायद वह घर आ जाएं।”
अशोक का सामना
ललिता बोली, “ठीक है, अगर तुम चाहती हो, तो चलो, कोशिश करके देखते हैं, क्या होता है।” फिर दोनों मिलकर अशोक के पास पहुंचते हैं। ललिता बोली, “देखिए, मैं समझती हूं कि आप किस हालत में हैं। मैं जानती हूं कि आपका मन नहीं है, लेकिन अपनी बेटी के लिए तो आप घर जा सकते हैं। क्या आपको नहीं दिख रहा कि आपकी बेटी आपसे मिलने के लिए कितनी तड़प रही है? क्या आप उसकी बात नहीं मानेंगे?”
अंशिका की दुआ
अंशिका रोते हुए बोली, “पापा, आपको घर जाना ही पड़ेगा। मुझे अच्छा नहीं लगता कि आप यहां इस तरह छोटे काम करें। मैं एक आईपीएस हूं और यह आपको शोभा नहीं देता। मैं मानती हूं कि आपका और मां का रिश्ता अब नहीं है। लेकिन मेरा तो रिश्ता है ना। मैं आपकी बेटी हूं। कोई गैर इंसान नहीं। प्लीज पापा, घर चलिए।”
अशोक का इनकार
अशोक बोला, “नहीं बेटा, मैं तुम्हारे घर कैसे जा सकता हूं? हां, मानता हूं कि तुम मेरी बेटी हो। लेकिन अब तुम मेरे पास नहीं हो। कानून के मुताबिक तुम अब सिर्फ सरिता की बेटी हो और तुम वहीं खुश हो। मैं तुम्हें खुश नहीं रख सकता बेटा। मेरी इतनी हैसियत भी नहीं है कि तुम्हारी मां के साथ फिर से जिंदगी बिताने के लिए तुम्हारे साथ जाऊं। तुम यह सब भूल जाओ और अपना काम करो।”
अंशिका की दृढ़ता
यह सुनकर अंशिका समझ चुकी थी कि इस तरह से इन दोनों को मिलाना आसान नहीं होगा। उसे अब कोई और तरीका ढूंढना पड़ेगा। वह अच्छे से तलाश करना चाहती थी कि आखिर उसकी मां और पापा के बीच हुआ क्या था। किस वजह से उनका रिश्ता टूटा था। वह यह भी ठान चुकी थी कि उस रिश्ते को जोड़ने के लिए कुछ भी करेगी।
अंशिका की योजना
अंशिका ने अपनी मां से पूछा, “मां, आपकी कोई सहेली या दोस्त नहीं है क्या?” सरिता देवी बोलीं, “क्यों नहीं बेटा? दोस्त क्यों नहीं होंगे? मेरे दोस्त भी थे और सहेलियां भी। और अभी भी मेरी एक-दो सहेलियों से बात होती रहती है। जैसे तुम्हारे भी बहुत सारे दोस्त हैं, वैसे ही मेरे भी हैं। लेकिन क्यों बेटा? यह सवाल क्यों?”
अंशिका का बहाना
अंशिका बोली, “नहीं मां, ऐसे ही पूछ रही थी। मैंने सोचा कि आपके दोस्त हैं या नहीं। वैसे भी घर में तो कभी कोई आता नहीं है। इस वजह से पूछ लिया।” सरिता को थोड़ा शक हुआ कि अचानक यह सवाल क्यों पूछा जा रहा है? फिर वह बोली, “सच बताओ बेटा, तुमने यह सवाल क्यों पूछा?”
सही समय पर योजना
अंशिका बोली, “मां, बस ऐसे ही पूछ रही थी क्योंकि आप लोगों ने कभी अपनी सहेलियों को घर पर बुलाया नहीं। किसी त्यौहार पर भी नहीं बुलाती। तो मैं सोच रही थी कि अगर आपकी कोई अच्छी सहेली है, तो आप उन्हें घर बुला लीजिए। मेहमान आएंगे तो हम लोग मिलकर मेहमान नवाजी करेंगे। कितना अच्छा लगेगा।”
सरिता का विचार
सरिता बोलीं, “हां बेटा, तुमने सही कहा। मेरी एक-दो सहेलियां हैं जो पास में ही रहती हैं। उनकी शादी हो चुकी है। अगर बुलाऊंगी, तो जरूर आएंगी।” दूसरे दिन सरिता देवी की सहेली घर आई। सबने मिलकर खाना खाया। खूब बातें की। उसके बाद जब सरिता की सहेली, ललिता अपने घर जाने लगी, तो अंशिका बोली, “अरे आंटी, आप घर जा रही हैं तो अपना नंबर दीजिए ना। कभी-कभी कॉल पर बात कर लेंगे।”
नंबर का आदान-प्रदान
ललिता ने नंबर दे दिया और अंशिका ने वह नंबर नोट कर लिया। अगले दिन अंशिका ने ललिता को कॉल किया और बोली, “आंटी, क्या मैं आपसे मिल सकती हूं? मुझे आपसे कुछ जरूरी बातें करनी हैं। आप कहां हैं? मुझे कहां आना होगा?” ललिता बोली, “क्यों बेटा? किस बारे में बात करनी है?” अंशिका बोली, “नहीं आंटी, ऐसी बात नहीं है। लेकिन मैं आपसे मिलकर ही बात करना चाहती हूं। यह बहुत जरूरी है। क्या मैं आपके घर आ जाऊं?”
ललिता की सहमति
ललिता ने कहा, “हां बेटा, अगर घर आना चाहती हो, तो आ जाओ। जो भी बात करनी है, कर लेंगे।” अंशिका ललिता के घर गई और उनसे पूछने लगी, “आंटी, मुझे यह बताइए कि मेरी मां और पापा का तलाक क्यों हुआ? क्या वजह थी कि दोनों अलग हो गए? और मेरे पापा की हालत इतनी खराब क्यों हो गई कि वह सड़क पर बैठकर जूते पॉलिश करने लगे?”
ललिता का खुलासा
यह सुनकर ललिता ने बताना शुरू किया, “जब तुम्हारी मां और पापा की शादी हुई थी, तो शुरू का एक साल सब कुछ बिल्कुल ठीक था। फिर तुम्हारा जन्म हुआ। तुम्हारे जन्म के एक साल बाद जिस कंपनी में तुम्हारे पापा काम करते थे, वहीं एक लड़की थी। तुम्हारे पापा का उस लड़की से अफेयर चलने लगा। यह रिश्ता लगभग 2 साल तक चला। उस लड़की ने तुम्हारे पापा को बहुत लूटा। ना जाने किन-किन तरीकों से उसने तुम्हारे पापा के सारे पैसे ले लिए।
अशोक की गलतियां
यहां तक कि तुम्हारे पापा इतने पागल हो गए थे उस लड़की के चक्कर में कि उन्होंने अपनी कुछ संपत्ति भी बेचकर उसे दे दी। लेकिन तुम्हारी मां को यह सब बिल्कुल भी नहीं पता था। जब तुम्हारी उम्र 4 साल की हुई, तब तुम्हारी मां को उस लड़की के बारे में सच्चाई पता चली। इसके बाद तुम्हारी मां और पापा के बीच नफरत पैदा होने लगी। धीरे-धीरे नफरत इतनी बढ़ गई कि दोनों एक-दूसरे का चेहरा देखना भी पसंद नहीं करते थे। इसी वजह से तुम्हारी मां ने तुम्हारे पापा से तलाक ले लिया।
अंशिका का दुख
तुम्हारे पापा की हालत पहले बहुत अच्छी थी। लेकिन अब जो हालत है, वह सिर्फ उनके अपने कर्मों की वजह से है।” यह सुनकर अंशिका की आंखों से आंसू बह निकले। वह रोते हुए बोली, “आंटी, मुझे अपने पापा को घर लाना है। मुझे मेरी मां और पापा को एक साथ मिलाना है। मैं अपने पापा को इतनी दुखी हालत में नहीं देख सकती। क्या आप मेरी मदद करेंगी ताकि मेरे पापा और मेरी मां एक हो जाएं?”
ललिता का समर्थन
ललिता बोली, “हां, मैं तुम्हारी मदद करूंगी। लेकिन कैसे? तुम्हारी मां तो अशोक से बहुत नफरत करती है। वह तो उसे कभी अपना मानेंगी ही नहीं। अगर मैं कभी तुम्हारी मां से इस तरह की कुछ बातें करती हूं, तो वह मुझे बहुत डांटती है और साफ कह देती है कि उनके सामने मैं उसका नाम भी जुबान पर ना लूं। अब मैं क्या कर सकती हूं?”
अंशिका का साहस
अंशिका बोली, “आप कर सकती हो। चलिए, आज ही दोनों मिलकर पापा के पास चलते हैं और उन्हें घर लाते हैं। मानने वाले तो वे आसानी से नहीं हैं, लेकिन उन्हें मनाना ही पड़ेगा। उन्हें राजी करना पड़ेगा कि घर जाना ही होगा। शायद वह घर आ जाएं।”
अशोक का सामना
ललिता बोली, “ठीक है, अगर तुम चाहती हो, तो चलो, कोशिश करके देखते हैं, क्या होता है।” फिर दोनों मिलकर अशोक के पास पहुंचते हैं। ललिता बोली, “देखिए, मैं समझती हूं कि आप किस हालत में हैं। मैं जानती हूं कि आपका मन नहीं है, लेकिन अपनी बेटी के लिए तो आप घर जा सकते हैं। क्या आपको नहीं दिख रहा कि आपकी बेटी आपसे मिलने के लिए कितनी तड़प रही है? क्या आप उसकी बात नहीं मानेंगे?”
अंशिका की दुआ
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अशोक का इनकार
अशोक बोला, “नहीं बेटा, मैं तुम्हारे घर कैसे जा सकता हूं? हां, मानता हूं कि तुम मेरी बेटी हो। लेकिन अब तुम मेरे पास नहीं हो। कानून के मुताबिक तुम अब सिर्फ सरिता की बेटी हो और तुम वहीं खुश हो। मैं तुम्हें खुश नहीं रख सकता बेटा। मेरी इतनी हैसियत भी नहीं है कि तुम्हारी मां के साथ फिर से जिंदगी बिताने के लिए तुम्हारे साथ जाऊं। तुम यह सब भूल जाओ और अपना काम करो।”
अंशिका की दृढ़ता
यह सुनकर अंशिका समझ चुकी थी कि इस तरह से इन दोनों को मिलाना आसान नहीं होगा। उसे अब कोई और तरीका ढूंढना पड़ेगा। वह अच्छे से तलाश करना चाहती थी कि आखिर उसकी मां और पापा के बीच हुआ क्या था। किस वजह से उनका रिश्ता टूटा था। वह यह भी ठान चुकी थी कि उस रिश्ते को जोड़ने के लिए कुछ भी करेगी।
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