आर्मी अफसर की बहन के साथ पुलिस ने पार की बेशर्मी की सारी हदें, फिर जो हुआ.

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आर्मी अफसर की बहन के साथ पुलिस ने पार की बेशर्मी की सारी हदें, फिर जो हुआ…

दोपहर का समय था, पुणे शहर की सड़कों पर गर्मी अपने चरम पर थी। ट्रैफिक का शोर, गाड़ियों की आवाजें, और लोग अपने-अपने काम की जल्दी में भाग रहे थे। इसी भीड़ में कॉलेज की होनहार छात्रा रश्मि वर्मा अपनी स्कूटी से घर लौट रही थी। पसीने से तरबतर, लेकिन उसकी नज़रें सीधी सड़क पर थीं। ट्रैफिक नियमों का हमेशा ध्यान रखने वाली रश्मि की नजरें एक बड़े चौराहे पर पहुंचकर सतर्क हो गईं।

अचानक दो पुलिसवाले—इंस्पेक्टर भावेश सिंह और सब-इंस्पेक्टर राजेश पाटिल—सड़क के बीच आ खड़े हुए। उनका अंदाज ऐसा था जैसे किसी अपराधी को पकड़ने आए हों। रश्मि ने ब्रेक लगाया और स्कूटी रोक दी। भावेश सिंह आगे बढ़ा, सख्त आवाज़ में बोला, “स्कूटी साइड में लगाओ।” आसपास लोग रुककर देखने लगे। रश्मि ने संयम से पूछा, “जी सर, क्या बात है?” राजेश ने स्कूटी की हेडलाइट देखी और झूठा आरोप लगाया, “हेडलाइट खराब है, 5000 रुपये का चालान लगेगा, नहीं तो गाड़ी जब्त करेंगे।” रश्मि ने विरोध किया, “मेरी लाइट ठीक है, ये इल्ज़ाम गलत है।” उसकी आवाज़ में डर नहीं, आत्मविश्वास था।

भावेश का लहजा और सख्त हो गया, “ज्यादा होशियारी मत दिखाओ, अंजाम बुरा होगा।” रश्मि ने कहा, “कानून के मुताबिक चालान काटिए, मैं पैसे हाथ में नहीं दूंगी।” यह सुनकर दोनों पुलिसवालों की आंखों में गुस्सा था। भावेश ने रश्मि का बाजू जोर से पकड़ लिया, जिससे उसके हाथ पर निशान पड़ गए। धमकी दी, “यहां हमारा कानून चलता है।” राजेश ने स्कूटी को एक तरफ खींचकर लात मारी, स्कूटी हिल गई। रश्मि ने बुलंद आवाज़ में कहा, “यह मेरा एकमात्र साधन है, इसे हाथ मत लगाइए।” लेकिन पुलिसवाले हंसने लगे, “तुम्हें सबक सिखाएंगे, यहां कोई तुम्हारी मदद नहीं करेगा।”

आसपास के लोग तमाशा देख रहे थे, कुछ मोबाइल से वीडियो बना रहे थे, लेकिन कोई आगे नहीं आया। रश्मि को गिरा दिया गया, उसके हाथ और घुटने छिल गए। दर्द के बावजूद वह उठी और फोन से अपने भाई अर्जुन वर्मा को कॉल किया—जो भारतीय सेना में कैप्टन था। रश्मि ने हांफते हुए कहा, “भैया, जल्दी आओ, बस स्टैंड वाले चौराहे पर हूं, पुलिसवाले परेशान कर रहे हैं।” भावेश ने फोन छीनने की कोशिश की, लेकिन कॉल जारी रही। अर्जुन ने सब सुन लिया था।

भावेश ने रश्मि को धमकाया, “देखते हैं तुम्हारा हीरो भाई कब आता है, तब तक तुम्हें सबक सिखाएंगे।” रश्मि ने गुस्से में कहा, “तुम्हें इसका हिसाब देना होगा।” राजेश ने स्कूटी पिकअप वैन में डलवा दी और बोले, “इसे गोदाम ले चलो।” गोदाम का नाम सुनकर आसपास के लोग डर गए, क्योंकि वह जगह बदनाम थी। रश्मि सड़क पर अकेली रह गई, कपड़ों पर गंदा पानी, जख्म और चेहरे पर गुस्सा। मगर उसे भरोसा था कि उसका भाई अर्जुन आ रहा है।

करीब 20 मिनट बाद अर्जुन अपनी फौजी बाइक से पहुंचा। उसने रश्मि की हालत देखी—घाव, गंदे कपड़े, टूटा आत्मसम्मान। रश्मि ने बताया, “भैया, भावेश और राजेश स्कूटी ले गए, मुझे मारा, इनके पीछे कोई बड़ा आदमी है।” अर्जुन ने बहन को अस्पताल भेजा और खुद सीधा पुलिस स्टेशन पहुंचा। वहाँ डीएसपी प्रभाकर नायक से सामना हुआ। अर्जुन ने सख्ती से पूछा, “इंस्पेक्टर भावेश और राजेश कहाँ हैं?” प्रभाकर ने टालने की कोशिश की, मगर अर्जुन ने दबाव डाला। प्रभाकर ने बताया, “वे पुराने गोदाम में हैं, पर आप अकेले मत जाइए।”

अर्जुन ने अपने फौजी साथियों को बुलाया और बख्तरबंद गाड़ी के साथ गोदाम की ओर बढ़ गया। गोदाम के बाहर गुंडे खड़े थे, लेकिन अर्जुन ने डटकर कहा, “भावेश और राजेश को बाहर भेजो, वरना मैं खुद अंदर आऊँगा।” थोड़ी देर में भावेश, राजेश और उनके गुंडे बाहर आ गए। भावेश ने अर्जुन का मजाक उड़ाया, “बहन की मोहब्बत यहाँ ले आई?” अर्जुन ने सीधा जवाब दिया, “तुमने मेरी बहन पर हाथ उठाया, अब वर्दी के पीछे नहीं छुप सकते।”

इसके बाद दोनों तरफ से लड़ाई शुरू हो गई। अर्जुन और उसके फौजी साथी बहादुरी से लड़े। गुंडों की संख्या ज्यादा थी, लेकिन फौजियों के अनुशासन और हिम्मत के आगे टिक नहीं सके। अर्जुन ने भावेश और राजेश को पछाड़ दिया। तभी डीएसपी प्रभाकर भी अपने बॉडीगार्ड्स के साथ आ गया। उसने अर्जुन को धमकाया, “यहाँ हमारा कानून चलता है।” अर्जुन ने कहा, “तुम्हारे आदमियों ने मेरी बहन पर हमला किया, रिश्वत ली, अब कानून का सामना करो।”

इसी बीच पुलिस और एंटी करप्शन यूनिट की गाड़ियाँ आ गईं। प्रभाकर, भावेश और राजेश को गिरफ्तार कर लिया गया। गोदाम से अवैध हथियार, रिश्वत की रकम और गैरकानूनी फाइलें बरामद हुईं। मीडिया ने यह सब लाइव दिखाया। रश्मि भी अस्पताल से निकलकर वहाँ पहुँची। उसकी आँखों में आत्मविश्वास था। उसने कहा, “यह हर उस लड़की की जीत है जो सच के लिए लड़ती है।”

कोर्ट में सुनवाई हुई। सबूतों और गवाहों के आधार पर डीएसपी प्रभाकर, भावेश और राजेश को 15 साल की सजा हुई। अदालत में तालियाँ गूँज उठीं। रश्मि ने कहा, “यह जीत मेरी नहीं, हर उस लड़की की है जिसे आवाज़ उठाने की हिम्मत चाहिए।”

उस दिन के बाद शहर में एक नई हवा बहने लगी। लोग भ्रष्टाचार के खिलाफ बोलने लगे। रश्मि की बहादुरी की कहानी स्कूल-कॉलेज में सुनाई जाने लगी। अर्जुन को सेना से सम्मान मिला, लेकिन उसने कहा, “यह सम्मान मेरी बहन की हिम्मत का है।” अब रश्मि सिर्फ एक लड़की नहीं, इंसाफ और हिम्मत की मिसाल बन चुकी थी।

यह कहानी हमें सिखाती है कि सच और हिम्मत के आगे कोई भी ताकत ज्यादा देर तक नहीं टिक सकती। अगर हम अन्याय के खिलाफ खड़े हों, तो बदलाव मुमकिन है।

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