“इंस्पेक्टर ने नहीं पहचाना SDM को, जो हुआ आगे… वो सिस्टम के लिए सबक बन गया!” सच्ची घटना !!

शक्तिपुर जिले की सबसे बड़ी अधिकारी, एसडीएम गरिमा त्यागी, अपने काम में हमेशा सच्चाई और न्याय को प्राथमिकता देती थीं। एक दिन, अपनी बूढ़ी मां के लिए चिकन खरीदने बाजार पहुंची। उन्होंने साधारण सी गांव की लड़कियों की तरह लाल रंग का सलवार सूट पहन रखा था। देखकर कोई अंदाजा भी नहीं लगा सकता था कि यह कोई आम लड़की नहीं, बल्कि जिले की सबसे बड़ी अधिकारी है।

बाजार में पहला अनुभव

गरिमा त्यागी ने एक दुकान पर रुकी, जहां एक 45 साल का आदमी चिकन बेच रहा था, जिसका नाम मुस्तफा था। गरिमा ने धीरे से कहा, “भैया, मुझे 1 किलो चिकन दे दीजिए।” इतनी सी बात होते ही एक मोटरसाइकिल दुकान के पास आकर रुकी। उस पर बैठा हुआ था इंस्पेक्टर आलोक सिंह। इंस्पेक्टर आलोक सिंह उतरता है और कहता है, “मेरे लिए 2 किलो चिकन पैक कर दो।”

इंस्पेक्टर की बदतमीजी

दुकानदार मुस्तफा ने विनम्रता पूर्वक कहा, “सर, आप 2 मिनट रुक जाइए। पहले मैं मैडम को चिकन दे दूं, फिर आपको भी दे दूंगा।” इतना सुनते ही इंस्पेक्टर आलोक सिंह भड़क उठा। उसने गुस्से में चिल्लाते हुए कहा, “क्या कहा? मुझे दो मिनट रुकना पड़ेगा? तेरे पापा का नौकर हूं क्या मैं? क्या मैं अभी चाहूं तो तेरी दुकान यहां से उठा दूं? इसलिए ज्यादा जुबान मत चलाना। जल्दी से पहले मुझे दो फिर किसी और को देना। समझा?”

गरिमा का साहस

गरिमा त्यागी खड़े-खड़े इंस्पेक्टर की बदतमीजी और गालियों को सुन रही थी। वह देख रही थी कि इंस्पेक्टर दुकानदार से बदतमीजी कर रहा है और अपनी ताकत का गलत इस्तेमाल कर रहा है। उन्होंने बीच में बोल पड़ीं, “सर, आप बाद में आए हैं तो आपको थोड़े रुकना होगा। मैं पहले आई हूं। मुझे पहले लेने दीजिए, फिर आप भी ले लीजिएगा। इसमें कौन सी बड़ी बात है?”

इंस्पेक्टर का गुस्सा

इंस्पेक्टर गरिमा की तरफ देखकर गुस्से में बोला, “अब गमवार लड़की तुझे दिख नहीं रहा। मैं कौन हूं? मैं इंस्पेक्टर हूं यहां का। समझी? मैं जो कहता हूं वही होता है। तू मेरे सामने ज्यादा जुबान मत चला। तू जानती नहीं मैं कौन हूं। अभी इतना मारूंगा कि घर तक चलकर नहीं जा पाएगी।” गरिमा ने मन में सोचा कि इस इंस्पेक्टर की हरकतें अब बर्दाश्त नहीं की जाएंगी।

दुकानदार की दयनीय स्थिति

इंस्पेक्टर ने दुकानदार की तरफ देखकर कहा, “और तू क्या देख रहा है बे? जल्दी से चिकन पैक कर।” मुस्तफा डर के मारे पहले इंस्पेक्टर को चिकन पैक करके दे दिया। इंस्पेक्टर चिकन लेकर मोटरसाइकिल पर बैठने ही लगा कि दुकानदार बोला, “इंस्पेक्टर साहब, आपने चिकन के पैसे नहीं दिए। प्लीज पैसे दे दीजिए। ज्यादा नहीं, आर एश 5000 ही हुए हैं।”

इंस्पेक्टर का धमकी भरा जवाब

यह सुनते ही इंस्पेक्टर गुस्से से बोला, “अबे साले, तुझे समझ नहीं आता? तू मुझसे पैसे मांगेगा? मैं यहां का इंस्पेक्टर हूं। समझा जो मैं बोल रहा हूं वही कर वरना अभी तुझे जेल में डाल दूंगा।” गरिमा त्यागी अंदर ही अंदर कांप रही थी, लेकिन उन्होंने कुछ नहीं कहा। इंस्पेक्टर ने मुस्तफा को धमकाते हुए कहा, “तू बेकार का तेरा परिवार तो भाड़ में जाएगा ही। ऊपर से तू जिंदगी भर जेल में सड़ेगा।”

गरिमा का निर्णय

इंस्पेक्टर मोटरसाइकिल स्टार्ट करके वहां से चला गया। पास में खड़ी गरिमा त्यागी इंस्पेक्टर की बदतमीजी और उसकी गलत हरकत को देखकर भी कुछ ना कर सकी। वह अंदर से कांप रही थी, लेकिन फिर भी कुछ नहीं बोली। कुछ देर चुप रहने के बाद उन्होंने दुकानदार से कहा, “भाई, यह इंस्पेक्टर आपको चिकन के पैसे नहीं देता। ऐसे तो आपको नुकसान हो गया। क्या वह आपसे ऐसे ही चिकन लेकर जाता है? कभी पैसे नहीं देता क्या?”

मुस्तफा की दास्तान

दुकानदार मुस्तफा ने कहा, “हां बहन, यह इंस्पेक्टर कई बार मेरे से चिकन लेकर गया है, लेकिन कभी भी पैसे नहीं देता। अगर मैं कुछ कहता हूं, तो मुझे धमकाता है। कहता है कि तेरा दुकान उठवा दूंगा, तुझे जेल में डाल दूंगा, तेरा परिवार बर्बाद कर दूंगा।” गरिमा ने गंभीर स्वर में कहा, “नहीं भाई, अब छोड़ना नहीं है। इस इंस्पेक्टर को अब अपनी वर्दी छोड़नी पड़ेगी। उसने ना जाने कितने लोगों को लूटा है और आगे भी लूटता रहेगा।”

गरिमा का साहस

“किसी को भी यह अधिकार नहीं कि वह किसी गरीब पर अत्याचार करे या जुल्म ढाए। यह कानूनन अपराध है और यह इंस्पेक्टर अपनी वर्दी का गलत इस्तेमाल कर रहा है। अब मैं इसे इसके कर्मों का फल दूंगी। इसे सस्पेंड करवाऊंगी और इसकी औकात दिखाऊंगी।” यह सुनकर दुकानदार मुस्तफा घबरा गया। उसने कहा, “देखिए बहन, यह थाने का इंस्पेक्टर है। कुछ भी कर सकता है। अगर आप इसके खिलाफ जाएंगी, तो हो सकता है कि उल्टा आप पर ही कोई बड़ा मामला डाल दे।”

गरिमा की दृढ़ता

गरिमा त्यागी शांत लेकिन दृढ़ स्वर में बोली, “हां, ऊपर वाला तो है ही, लेकिन मैं कोई साधारण लड़की नहीं हूं। मैं इस जिले की सबसे बड़ी अधिकारी एसडीएम गरिमा त्यागी हूं। मैं जब चाहूं इस इंस्पेक्टर को सस्पेंड करवा सकती हूं। मैंने इसे पहले कभी नहीं देखा इसलिए अब तक यह बचा हुआ था। लेकिन अब नहीं बचेगा।”

योजना का निर्माण

“कल जब आप दुकान पर रहेंगे मैं भी आपके साथ रहूंगी। उस इंस्पेक्टर की सारी करतूत कैमरे में रिकॉर्ड करूंगी ताकि हमारे पास सबूत हो और आपको भी गवाही देनी पड़ेगी। मैं इस मामले को कोर्ट तक लेकर जाऊंगी।” गरिमा ने दुकानदार को आश्वस्त किया। “कल मैं इसी समय से पहले आपके पास आ जाऊंगी और यहीं बैठूंगी। फिर देखते हैं वही इंस्पेक्टर कैसे बिना पैसे दिए चिकन लेकर जाता है।”

अगले दिन की तैयारी

अगले दिन गरिमा ने बेसब्री से इंतजार किया। दूसरे दिन सुबह-सुबह गरिमा दुकान पर आ गई और चुपचाप बैठ गई। उन्होंने दुकान के सामने एक छोटा सा कैमरा लगा दिया ताकि इंस्पेक्टर की हर करतूत रिकॉर्ड हो सके। करीब डेढ़ घंटे बाद इंस्पेक्टर आलोक सिंह अपनी मोटरसाइकिल से आया। उतरते ही दुकानदार से बोला, “चिकन पैक करके रखा है या नहीं? कल मैं तुझे बोलकर गया था कि तैयार रखना।”

इंस्पेक्टर का सामना

इंस्पेक्टर की नजर गरिमा त्यागी पर पड़ी। वह हल्के व्यंग में हंसते हुए बोला, “अरे यह लड़की आज फिर यहां क्या कर रही है? कहीं दुकानदार के साथ?” गरिमा ने शांत स्वर में जवाब दिया, “दुकानदार मेरा भाई है और फालतू की बातें मत कीजिए। अपना काम कीजिए।” दुकानदार ने चिकन पैक करके इंस्पेक्टर को थमा दिया।

पैसे की मांग

इंस्पेक्टर जैसे ही चिकन लेकर मोटरसाइकिल की तरफ बढ़ा, दुकानदार ने कहा, “सर, चिकन के पैसे।” यह सुनते ही इंस्पेक्टर का पारा चढ़ गया। वह लाल हो उठा और चिल्लाया, “अबे, तुझे कितनी बार समझाना पड़ेगा? फिर मुझसे पैसे मांग रहा है। मैंने कल भी कहा था, मैं पैसे वैसे नहीं दूंगा। मैं यहां का इंस्पेक्टर हूं और तू मुझसे पैसे मांगेगा? तुझे डर नहीं लगता?”

गरिमा का गुस्सा

गरिमा त्यागी खुद पर काबू ना रख सकी। वह गुस्से से चिल्लाई, “इंस्पेक्टर साहब, आपको पैसे देने ही पड़ेंगे। आप यहां चिकन लेकर जा रहे हैं। चिकन फ्री में नहीं मिलता। इसे खरीद कर लाना पड़ता है। इससे दुकानदार का नुकसान होता है। यह उनका रोज का धंधा है। आप धमका कर वर्दी के दम पर लेकर चले जाते हैं और कभी पैसे नहीं देते। यह कानून का उल्लंघन है।”

थप्पड़ का प्रतिशोध

इंस्पेक्टर का गुस्सा और भड़क उठा। उसने गरिमा त्यागी के चेहरे पर भी एक थप्पड़ जड़ दिया और क्रोध में बोला, “तू खुद को क्या समझती है? मुझे जुबान लड़ा कर बैठी है। तू मुझे जानती नहीं। तेरी अक्ल ठिकाने नहीं है क्या? मेरे से पंगा मत ले। वरना मैं ऐसा मारूंगा कि तू घर तक चलकर नहीं जा पाएगी।”

गरिमा का फैसला

गरिमा मन ही मन सोच रही थी। अब तो यह इंस्पेक्टर बचने योग्य नहीं है। कैमरे में सारी रिकॉर्डिंग हो रही है। इंस्पेक्टर जो भी कर रहा है, सब कुछ लोगों के सामने आएगा और उसे इस तरह बेनकाब किया जाएगा कि वह शर्म के मारे मुंह तक नहीं दिखा पाएगा। उन्होंने गुस्से से कहा, “देखिए इंस्पेक्टर साहब, आप अपनी हद में रहें। यह एक आम जनता की दुकान है और आप यहां मुफ्त में सामान नहीं ले सकते। आपको पैसे देने होंगे। कहीं भी कानून में यह नहीं लिखा कि आप अधिकारी होने के नाते किसी दुकान से बिना पैसे के सामान ले सकते हैं।”

इंस्पेक्टर की हार

इंस्पेक्टर ने दुकानदार की तरफ देखा और धमकाते हुए कहा, “अब समझा यह कौन है बे? और यहां मुझसे जुबान लड़ रही है। तुझे डर नहीं लगता? तू यहां से भाग ले। वरना तेरे साथ-साथ तू भी जेल जाएगा। समझा?” इतना कहकर इंस्पेक्टर चिकन हाथ में लेकर मोटरसाइकिल पर बैठ गया और चला गया। गरिमा त्यागी ने कहा, “अब वह सीसीटीवी कैमरा निकाल लीजिए।”

न्याय की ओर कदम

दुकानदार ने कैमरा निकाल दिया। गरिमा ने कहा, “कल मैं इस मामले को कोर्ट तक लेकर जाऊंगी।” “आज का काम यह है कि मैं ऑफिस जाऊंगी, और आईपीएस मैडम से बात करके इस इंस्पेक्टर को सस्पेंड करवाने की तैयारी करूंगी। आप गवाही के लिए तैयार रहिए।” दुकानदार ने कहा, “हां बहन, ठीक है। जब आप कॉल करेंगी, मैं आ जाऊंगा गवाही देने के लिए। आप बेफिक्र रहिए। मैं आपके साथ खड़ा हूं।”

ऑफिस में कार्रवाई

गरिमा सीधे घर पहुंची। थोड़ी दावत खाकर ऑफिस निकल पड़ी। ऑफिस पहुंचकर उन्होंने वीडियो रिकॉर्डिंग देखी। मन ही मन उनका गुस्सा और बढ़ गया। उन्होंने तुरंत एसपी ऑफिस में कॉल किया और एसपी प्रिया मिश्रा को एसडीएम ऑफिस बुलाया। कुछ ही मिनटों में प्रिया मिश्रा एसडीएम ऑफिस पहुंच गईं।

प्रिया का समर्थन

गरिमा त्यागी ने दुकान पर हुई सारी घटनाएं प्रिया मिश्रा को बताई। यह सुनकर प्रिया भी क्रोधित हो गईं। गरिमा ने वीडियो रिकॉर्डिंग दिखाई। दुकान पर हुई सारी वारदात कैमरे में रिकॉर्ड थी। यह देखकर प्रिया मिश्रा बोलीं, “यह तो इंस्पेक्टर ने बहुत गलत किया है। इस दुकानदार के साथ इतना गलत व्यवहार और इतना ही नहीं, उन्होंने एक महिला अधिकारी पर भी हाथ उठाया।”

कार्रवाई की तैयारी

“यह कानूनी अपराध है। किसी लड़की पर हाथ उठाना कानून के खिलाफ है। मैंने कभी नहीं सोचा कि हमारे थाने में ऐसे इंस्पेक्टर होंगे। वरना मैंने इसे कब का सस्पेंड कर दिया होता। खैर, आपने सही किया कि आपने सबूत इकट्ठा किए हैं। अब मैं इसे सस्पेंड कराऊंगी।” प्रिया मिश्रा ने आदेश दिया और एक इंस्पेक्टर को रिपोर्ट तैयार करने का निर्देश दिया।

कोर्ट में सुनवाई

दूसरे दिन यह मामला कोर्ट तक पहुंच गया। अगले दिन सुबह से ही कोर्ट में भीड़ लगी थी। पूरे शहर में चर्चा थी कि आज उस इंस्पेक्टर का केस है जिसने एक गरीब दुकानदार और एसडीएम गरिमा त्यागी के साथ बदसलूकी की थी। कोर्ट के बाहर मीडिया वाले कैमरे लिए खड़े थे और अंदर सब अपनी-अपनी जगह ले रहे थे। जज साहब भी आ चुके थे।

गरिमा का आत्मविश्वास

गरिमा त्यागी सादा कुर्ता पहनकर अपने वकील के साथ आईं। उनका चेहरा शांत था लेकिन आंखों में गुस्सा और हिम्मत दोनों दिख रहे थे। वह दुकानदार मुस्तफा भी वहीं था जिसने सब देखा था। थोड़ा डर तो था लेकिन अब वह सच्चाई बोलने के लिए तैयार था। उधर इंस्पेक्टर आलोक सिंह जो पहले बहुत रब में घूमता था, आज कोर्ट में नीचे झुका हुआ बैठा था। चेहरे पर घबराहट साफ नजर आ रही थी।

सबूतों की जांच

जज ने कहा, “आज हम यह तय करेंगे कि इंस्पेक्टर ने वाकई अपने पद का गलत इस्तेमाल किया या नहीं और अगर किया है तो उसे क्या सजा दी जाएगी।” फिर केस शुरू हुआ। सबसे पहले अभियोजन सरकारी वकील ने वह सीसीटीवी वीडियो दिखाया जो गरिमा ने दुकान से निकलवाया था। वीडियो कोर्ट की बड़ी स्क्रीन पर चला। सब खामोश होकर देखने लगे।

न्याय का फैसला

वीडियो में साफ दिख रहा था कि इंस्पेक्टर कैसे दुकान में गया, दुकानदार से चिकन उठा लिया, पैसे नहीं दिए, फिर गुस्से में धमकाने लगा। जब गरिमा ने टोक दिया तो उसने उसे भी डांट दिया और हाथ उठाने की कोशिश की। वीडियो खत्म हुआ तो कोर्ट में सन्नाटा छा गया। जज ने गहरी सांस ली और बोले, “जो देखा गया है वह बहुत गंभीर है। अब गरिमा त्यागी को गवाह के तौर पर बुलाया गया।”

गरिमा का साहस

गरिमा ने शांत आवाज में कहा, “माननीय जज साहब, मैंने सब अपनी आंखों से देखा। इंस्पेक्टर ने ना सिर्फ दुकानदार को धमकाया बल्कि मुझ पर भी हाथ उठाया। अगर ऐसे अफसरों को नहीं रोका गया तो आम जनता पर अत्याचार बढ़ते रहेंगे।” इसके बाद दुकानदार मुस्तफा की बारी आई। वह थोड़ा कांपते हुए बोला, “मैं गरीब आदमी हूं। उस दिन बस यही कहा था कि पैसे दे दीजिए तो उसने गुस्से में थप्पड़ मार दिया। डर के मारे कुछ नहीं बोला।”

इंस्पेक्टर का बचाव

अभियोजन पक्ष ने कहा, “माननीय अदालत, यह मामला सिर्फ एक थप्पड़ का नहीं है। यह मामला सत्ता के दुरुपयोग का है। जिसने कानून की रक्षा करनी थी, वही कानून तोड़ बैठा।” अब बचाव पक्ष इंस्पेक्टर का वकील खड़ा हुआ। उसने कहा, “मेरे मुवकिल ने जानबूझकर कुछ नहीं किया। वो उस दिन बहुत तनाव में था। भीड़ जमा हो गई थी। बस गुस्से में गलती हो गई। इसे अपराध नहीं कहा जा सकता।”

जज का सवाल

जज ने बीच में रोककर पूछा, “क्या गुस्सा आने पर कोई भी इंस्पेक्टर किसी को थप्पड़ मार सकता है? क्या कानून का रखवाला ही कानून तोड़ेगा?” बचाव वकील चुप हो गया। अभियोजन ने फिर से सीसीटीवी की फॉरेंसिक रिपोर्ट दिखाई। रिपोर्ट में लिखा था कि वीडियो असली है। उसमें कोई एडिटिंग नहीं है। साथ ही मेडिकल रिपोर्ट में दुकानदार की चोट का जिक्र भी था।

फैसला सुनाना

अब अदालत में फैसला सुनाने का वक्त आ गया था। जज ने कहा, “अदालत के सामने सारे सबूत साफ हैं। इंस्पेक्टर आलोक सिंह ने अपने पद का दुरुपयोग किया है। उसने आम नागरिक को धमकाया, मारा और सरकारी पद की गरिमा को ठेस पहुंचाई। यह सिर्फ बदसलूकी नहीं बल्कि कानून के खिलाफ अपराध है।” जज ने आगे कहा, “कानून सबके लिए बराबर है। चाहे वह आम आदमी हो या पुलिस अफसर। अगर कोई अपने पद का इस्तेमाल गलत काम के लिए करता है तो उसे सजा जरूर मिलेगी।”

इंस्पेक्टर की सजा

इसके बाद उन्होंने आदेश सुनाया, “इंस्पेक्टर आलोक सिंह को उसके पद से तुरंत सस्पेंड किया जाता है। साथ ही अदालत उसे 3 साल की सजा और जुर्माना सुनाती है। विभाग को आदेश है कि उसे हिरासत में लेकर जेल भेजा जाए और उसके खिलाफ आगे भी जांच जारी रखी जाए।” यह सुनते ही कोर्ट हॉल में सन्नाटा छा गया। इंस्पेक्टर का चेहरा उतर गया। पुलिस के दो सिपाही आगे आए। उन्होंने उसे हथकड़ी लगाई।

न्याय का जश्न

गरिमा त्यागी ने नीचे झुकी आंखों से राहत की सांस ली। दुकानदार मुस्तफा की आंखों में आंसू थे। लेकिन वह खुशी के आंसू थे। बाहर मीडिया ने गरिमा से पूछा, “मैडम, अब आप क्या कहेंगी?” गरिमा बोली, “मैं बस इतना कहना चाहती हूं कि अब किसी गरीब को डरने की जरूरत नहीं है। कानून सबके लिए एक जैसा है। अगर कोई अधिकारी गलत करेगा तो उसके खिलाफ भी कार्यवाही होगी।”

एसपी का समर्थन

एसपी प्रिया मिश्रा भी बाहर आईं और बोलीं, “आज हमने साबित कर दिया कि पुलिस सिर्फ वर्दी नहीं, जिम्मेदारी भी है।” शक्तिपुर शहर में यह खबर आग की तरह फैल गई। लोगों ने कहा, “अब सिस्टम में भी कुछ लोग हैं जो सच के साथ खड़े हैं।” कोर्ट का फैसला उस दिन सिर्फ एक आदमी के लिए नहीं, बल्कि पूरे शहर के लिए मिसाल बन गया। गरिमा त्यागी और दुकानदार मुस्तफा दोनों के चेहरे पर सुकून था।

निष्कर्ष

क्योंकि उन्होंने डर के खिलाफ लड़कर न्याय पाया था। तो दोस्तों, आपको यह कहानी कैसी लगी? अगर अच्छी लगी हो तो प्लीज हमारे चैनल सपनों की कहानी को सब्सक्राइब और वीडियो को एक लाइक जरूर कर देना, जिससे हमारा हौसला और भी बढ़ता रहे।

Play video :