इस वजह से हेमा मालिनी नहीं आई धर्मेंद्र की शौकसभा में ! Dharmendra Prayer Meet
धर्मेंद्र का निधन: देओल परिवार की भावनात्मक यात्रा
धर्मेंद्र देओल का निधन 24 नवंबर 2025 को भारतीय सिनेमा के लिए एक दुखद क्षण था। उनके जाने से पूरा देश शोक में डूब गया। 27 नवंबर को मुंबई में उनकी शोक सभा आयोजित की गई, जहां बॉलीवुड के दिग्गज सितारे पहुंचे। अमिताभ बच्चन से लेकर सलमान खान तक सभी अपने प्रिय “ही मैन” को श्रद्धांजलि देने आए। लेकिन इस भीड़ में एक चेहरा सबसे ज्यादा खोजा जा रहा था – हेमा मालिनी का।
शोक सभा की अनदेखी
लोग आपस में फुसफुसा रहे थे, “हेमा मालिनी कहां है? क्या उन्हें आने से रोका गया? क्या देओल परिवार में दरार अभी भी बाकी है?” सोशल मीडिया पर सवालों की बौछार लग गई। अफवाहें फैलने लगीं और पूरा माहौल भावनात्मक और उलझा हुआ नजर आया।
धर्मेंद्र के जाने के बाद सबसे ज्यादा चर्चा इसी बात की हुई कि उनकी शोक सभा दो जगह क्यों हुई? सोशल मीडिया पर लोग सवाल पूछने लगे, “क्या देओल परिवार फिर से बंट गया?” और “क्या हेमा मालिनी और सनी-बॉबी अलग-अलग प्रेयर मीट कर रहे हैं?” लेकिन हकीकत इससे थोड़ी अलग थी।
दो प्रेयर मीट्स का सच
असल में, पहली प्रेयर मीट जूहू में हुई, जहां सनी देओल, बॉबी देओल और पूरी देओल फैमिली मौजूद थी। इस मीट में फिल्म इंडस्ट्री के कई बड़े सितारे आए थे। वहीं दूसरी तरफ, हेमा मालिनी और उनकी बेटियों ईशा और अहाना के लिए अलग से एक शांत और प्राइवेट प्रेयर मीट की व्यवस्था की गई।
यह फैसला किसी लड़ाई या दूरियों के कारण नहीं था, बल्कि भीड़, मीडिया और सुरक्षा के कारण लिया गया कदम था। धर्मेंद्र दो परिवारों के बीच जीते थे और किसी भी तरह की असहज स्थिति या विवाद की गुंजाइश नहीं चाहते थे। इसलिए दोनों परिवारों के लिए अलग-अलग प्रार्थना सभा रखना सबसे सम्मानजनक तरीका माना गया।

अफवाहों का बाजार
जैसे ही लोगों को पता चला कि प्रेयर मीट दो अलग-अलग जगह हुई, अफवाहें फैलने लगीं। सोशल मीडिया ने इसे कड़वाहट और परिवार की तकरार का नाम दे दिया। जबकि असलियत यह थी कि यह फैसला सम्मान, सुरक्षा और शांत वातावरण के लिए लिया गया था।
जब धर्मेंद्र की प्रेयर मीट में हेमा मालिनी नजर नहीं आई, तो लोगों ने सोशल मीडिया पर कई तरह की बातें शुरू कर दीं। कुछ लोगों ने कहा कि शायद देओल परिवार ने उन्हें बुलाया ही नहीं। कुछ ने लिखा कि उन्हें अंदर जाने से रोका गया और कुछ ने यह भी दावा किया कि परिवार के पुराने विवाद फिर सामने आ गए।
स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं
सच्चाई यह है कि हेमा मालिनी प्रेयर मीट में आने वाली थी, लेकिन डॉक्टरों ने उन्हें लंबी यात्रा और भावनात्मक तनाव से बचने की सलाह दी थी। पिछले कुछ समय से वह स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से जूझ रही थीं, और ऐसी भीड़ और भावनात्मक माहौल उनके लिए सही नहीं था।
इसी कारण उन्होंने निर्णय लिया कि वह सार्वजनिक सभा में शामिल नहीं होंगी। उन्होंने अपने घर पर ही एक निजी प्रार्थना सभा रखी, जहां परिवार के करीबी लोग और कुछ दोस्त आए, और सभी ने मिलकर धर्मेंद्र जी की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना की।
परिवार का भावनात्मक पहलू
धर्मेंद्र की प्रेयर मीट में बॉलीवुड के बड़े-बड़े सितारों की मौजूदगी ने इस बात को साबित कर दिया कि वह सिर्फ एक अभिनेता नहीं बल्कि इंडस्ट्री का दिल थे। लोगों ने यह भी नोटिस किया कि सनी और उनकी मां प्रकाश कौर एकदम शांत और भावुक थे।
सनी लगातार अपनी मां का हाथ पकड़ कर उन्हें संभालते रहे। कई सेलिब्रिटीज ने बाद में कहा कि उस माहौल में एक अजीब सी खामोशी थी। ऐसी खामोशी जिसमें दर्द, दूरी और अधूरी बातें छुपी हुई थी। देओल परिवार की यह चुप्पी सबसे बड़ा संकेत थी कि रिश्तों के मसले अब भी अधूरे हैं।
सोशल मीडिया पर प्रतिक्रियाएं
सोशल मीडिया पर मानो तूफान आ गया। लोग, फैंस और दर्शक लगातार इस पर नजर बनाए हुए थे। मीडिया का यह कवरेज पारदर्शिता बनाए रखता है और यह सुनिश्चित करता है कि सभी वारिस कानूनी और सामाजिक नजरिए से संतुलित निर्णय लें।
इस बंटवारे का असर केवल आर्थिक रूप से नहीं बल्कि भावनात्मक और पारिवारिक रिश्तों पर भी गहरा पड़ेगा। धर्मेंद्र की जायदाद का बंटवारा अब तक पूरी तरह सार्वजनिक नहीं हुआ है। इसलिए इसका भविष्य कानूनी और पारिवारिक निगरानी पर निर्भर करेगा।
वसीयत का मामला
धर्मेंद्र के निधन के बाद सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या देओल परिवार अब एकजुट होगा या दूरियां और बढ़ेंगी? वसीयत की बात करें तो धर्मेंद्र ने अपनी संपत्ति के लिए वसीयत बनाई है या नहीं, यह फिलहाल पूरी तरह स्पष्ट नहीं है।
मीडिया रिपोर्ट्स में इस विषय पर जानकारी बहुत सीमित है और आधिकारिक तौर पर कोई पुष्टि नहीं हुई है। अगर वसीयत बनी है तो उसमें लिखी शर्तें ही कानूनी दृष्टि से मान्य होंगी और उनके वारिसों के हिस्से उसी के अनुसार तय होंगे।
भावनात्मक जुड़ाव
धर्मेंद्र की जायदाद का बंटवारा केवल आर्थिक नहीं है, बल्कि इसमें पारिवारिक और भावनात्मक पहलू भी जुड़ा है। हेमा मालिनी और उनकी बेटियों के लिए हिस्सा पाना सम्मान का मामला है। पहले विवाह के बच्चों के लिए यह पिता की मेहनत और विरासत का प्रतीक है।
इसलिए सभी वारिसों के लिए जरूरी है कि वे सिर्फ पैसों की नहीं, बल्कि भावनाओं और पारिवारिक रिश्तों की जिम्मेदारी समझकर बंटवारे की प्रक्रिया में कदम रखें।
निष्कर्ष
धर्मेंद्र की जायदाद का बंटवारा एक जटिल लेकिन बेहद रोचक और संवेदनशील मामला बन गया है। संभावना अधिक है कि उनकी संपत्ति मुख्य रूप से उनके बच्चों सनी, ईशा और अहाना के बीच बंटी हुई दिखाई दे।
हेमा मालिनी का हिस्सा फिलहाल पूरी तरह स्पष्ट नहीं है और यह पूरी तरह वसीयत की शर्तों और कानूनी निर्णयों पर निर्भर करेगा। वकीलों के अनुसार, यदि वसीयत में उन्हें नामित किया गया है तो उन्हें हिस्सा मिल सकता है।
धर्मेंद्र की जायदाद का बंटवारा केवल एक कानूनी प्रक्रिया नहीं है, बल्कि यह रिश्तों की गहराई और परिवार की एकता का भी मामला है। इस स्थिति में, सभी को यह समझना होगा कि असली विरासत सिर्फ संपत्ति नहीं, बल्कि प्यार और परिवार की एकता है।
इस प्रकार, धर्मेंद्र की कहानी हमें यह सिखाती है कि रिश्ते सिर्फ खून से नहीं, बल्कि दिल से बनते हैं। चाहे परिस्थितियाँ कैसी भी हों, प्यार और समझ से हम हमेशा एक दूसरे के करीब आ सकते हैं।
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