एक अरबपति ने जूते पॉलिश करने वाले लड़के के चेहरे पर 100 डॉलर फेंक दिए। लड़के ने फिर क्या किया?

मुंबई की एक धूल भरी सड़क पर, जहां अमीरों की चमचमाती गाड़ियाँ दौड़ती थीं और गरीबों की झुग्गियाँ खड़ी थीं, वहीं एक 12 साल का लड़का, राजू, अपने छोटे से बक्से के साथ बैठा था। राजू का जीवन एक संघर्ष था। उसकी छोटी बहन प्रिया बीमार थी, और राजू के लिए हर जूता जो वह चमकाता था, प्रिया की दवा खरीदने की एक और कोशिश थी।

उस दिन सूरज ढल रहा था, और राजू के बक्से में सिर्फ चंद सिक्के थे, जो दवा के लिए नाकाफी थे। तभी एक चमकदार काली मर्सिडीज कार आई और रुकी। कार के अंदर से एक अमीर आदमी, अरुण ओबेरॉय, बाहर निकला। वह शहर का सबसे बड़ा बिल्डर था, और उसकी आँखों में घमंड झलक रहा था। उसने राजू को देखा और अपने महंगे जूते चमकाने का आदेश दिया। राजू ने कांपते हाथों से काम शुरू किया, क्योंकि उसे पता था कि इस आदमी से मिलने वाले पैसे उसकी बहन के लिए कितने महत्वपूर्ण थे।

जब राजू ने जूते चमका दिए, तो अरुण ने अपने हाथ से एक $100 का नोट निकाला और उसे राजू के मुंह पर फेंक दिया। नोट धूल में गिर गया, और राजू ने उसे उठाया। वह सोचने लगा कि यह पैसे उसकी बहन की दवा के लिए कितने जरूरी थे। लेकिन, राजू ने अपनी इज्जत को पहले रखा। उसने उस नोट को वापस अरुण को दे दिया और कहा, “यह पैसा आपकी जरूरत है, मैं अपनी इज्जत नहीं बेच सकता।”

अरुण का चेहरा सफेद पड़ गया। उसने कभी किसी के आगे झुकना नहीं सीखा था, लेकिन आज एक 12 साल के लड़के के सामने उसे शर्मिंदगी महसूस हुई। वह गाड़ी में वापस चला गया, और राजू ने महसूस किया कि उसने क्या किया। वह सोचने लगा कि क्या उसने सही किया? उसकी बहन की दवा उसे चाहिए थी, लेकिन उसने अपनी इज्जत को बचाए रखा।

राजू की आँखों में आंसू थे, और वह अपनी हार पर नहीं, बल्कि अपनी मजबूरी पर रो रहा था। पास के चाय वाले ने कहा, “तू बड़ा स्वाभिमानी है, लेकिन स्वाभिमान रात को रोटी नहीं देता।” राजू ने अपना बक्सा उठाया और घर की तरफ चल पड़ा।

जब वह घर पहुंचा, तो उसकी मां ने बताया कि प्रिया की हालत और भी खराब हो गई है। डॉक्टर ने कहा था कि उसे एक महंगा इंजेक्शन लगाना होगा, जिसकी कीमत ₹5,000 थी। राजू का दिल टूट गया। उसने सोचा कि वह जूते पॉलिश करके इतनी रकम नहीं कमा सकता।

अगली सुबह, राजू ने वर्मा जी की दुकान पर काम मांगा। वर्मा जी ने उसकी मेहनत को सराहा और उसे कुछ पैसे दिए। राजू ने सोचा कि अगर वह कड़ी मेहनत करेगा तो शायद वह अपनी बहन की दवा खरीद सकेगा।

कुछ दिनों बाद, नगर निगम के अधिकारी आए और राजू की झुग्गी बस्ती को खाली करने का आदेश दे दिया। राजू की मां बेबस होकर बैठ गईं। राजू ने अपने कंधों पर बहुत बड़ा बोझ महसूस किया। वह जानता था कि उसकी बहन की जान और उनकी छत दोनों खतरे में हैं।

एक दिन, राजू ने देखा कि अरुण ओबेरॉय अपनी गाड़ियों के साथ बस्ती में आया। उसने राजू को पहचान लिया और कहा, “तेरी बहन को पैसे चाहिए थे ना? यह ले।” उसने पैसे राजू के पैरों के पास फेंक दिए। राजू ने देखा कि यह उसकी बहन की ज़िंदगी का सवाल था।

लेकिन तभी वर्मा जी आगे आए और कहा, “बच्चों की मजबूरी को तोड़ना आपको शोभा नहीं देता।” उन्होंने राजू को प्रेरित किया और कहा कि जो पैसे इज्जत बेचकर मिले, वह दवा नहीं खरीदते।

इस बीच, एक पत्रकार ने इस घटना को कवर किया और लाइव रिपोर्टिंग की। अरुण ओबेरॉय की नफरत और घमंड सबके सामने आ गया। लोग राजू और वर्मा जी के साथ खड़े हो गए।

अरुण ओबेरॉय को अपनी प्रतिष्ठा की चिंता हुई और उसने भागने का फैसला किया। राजू की आंखों में अब डर नहीं था, बल्कि एक नई आग थी।

राजू ने अपनी बहन को अस्पताल पहुंचाया और डॉक्टरों ने कहा कि वह खतरे से बाहर है। राजू ने महसूस किया कि उसकी मेहनत और ईमानदारी ने उसे जीत दिलाई।

कुछ हफ्तों बाद, राजू ने स्कूल में दाखिला लिया। वर्मा जी ने उसे पढ़ाई के लिए प्रेरित किया। राजू ने सीखा कि असली अमीर वह नहीं होता जिसके पास पैसा हो, बल्कि असली अमीर वह होता है जो अपनी इज्जत को न बेचे।

इस तरह, राजू ने अपनी कहानी से साबित किया कि इंसानियत की असली दौलत पैसे में नहीं, बल्कि ईमान और मेहनत में होती है। उसकी बहन प्रिया अब स्वस्थ थी, और राजू ने अपने जीवन में एक नई शुरुआत की।

राजू ने सीखा कि कठिनाइयों का सामना करते हुए भी, अगर इंसानियत और ईमानदारी को बनाए रखा जाए, तो जीवन में सच्ची खुशी और सफलता मिलती है।

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