एक अरबपति मर रहा है – उसे बचाने वाला एकमात्र व्यक्ति वह भिखारी है जिसे उसने 10 साल पहले फंसाया था।

अरबपति अरनव मल्होत्रा का साम्राज्य मुंबई के आसमान को छूता था। लेकिन आज वह खुद जिंदगी और मौत के बीच झूल रहा था। शहर के सबसे महंगे अस्पताल के प्रेसिडेंशियल स्वीट में दुनिया की बेहतरीन मशीनें उसके शरीर को जिंदा रखने की नाकाम कोशिश कर रही थीं। अरनव की आंखें कमजोरी से बंद थीं, लेकिन उसका दिमाग अभी भी हुक्म दे रहा था।

“डॉक्टर शर्मा,” उसने हाफते हुए कहा, “पैसे की चिंता मत करो। दुनिया के सबसे अच्छे सर्जन को बुलाओ। मैं मर नहीं सकता!” डॉक्टर शर्मा ने असहाय होकर सिर हिलाया। “सर, बात पैसे की नहीं है। आपका लीवर पूरी तरह फेल हो चुका है। हमें तुरंत एक डोनर चाहिए।”

रोहन का प्रयास

अरनव के बेटे रोहन ने, जो अपने पिता की तरह ही घमंडी था, कहा, “तो लिस्ट में उन्हें सबसे ऊपर डाल दीजिए। हम कितना भी भुगतान करने को तैयार हैं।” डॉक्टर ने एक गहरी सांस ली। “यह तो समस्या है। ऑपरेशन हो सकता है, लेकिन सर, आपका ब्लड ग्रुप बॉम्बे OH है। यह दुनिया के सबसे दुर्लभ ब्लड ग्रुप्स में से एक है। 10 लाख लोगों में शायद किसी एक का होता है। जब तक हमें इसी ब्लड ग्रुप का डोनर नहीं मिलता, हम ट्रांसप्लांट नहीं कर सकते।”

यह सुनकर अरनव की लगभग रुकी हुई सांसे भी कांप गईं। वह आदमी जिसने हमेशा सोचा था कि पैसा हर दरवाजा खोल सकता है, आज एक ऐसी चीज के लिए मोहताज था जिसे खरीदा नहीं जा सकता। “ढूंढो! ढूंढो!” उसने चीखते हुए कहा, लेकिन आवाज एक घबराई हुई फुसफुसाहट में बदल गई। “पूरे शहर को छान मारो। अखबार में इश्तहार दो। 1 करोड़, 10 करोड़ जो मांगे उसे दे दो। मुझे वह खून चाहिए।”

राजन का जीवन

अस्पताल का नेटवर्क हरकत में आ गया। मुंबई के हर ब्लड बैंक, हर डेटाबेस को खंगाला जाने लगा। रोहन ने अपनी सारी ताकत झोंक दी। अर्नव मल्होत्रा, जिसने अपनी पूरी जिंदगी लोगों को कुचल कर अपना रास्ता बनाया था, आज पहली बार किसी की दया पर निर्भर था। उसे नहीं पता था कि उसकी जिंदगी की भीख, तकदीर उसे एक ऐसी दहलीज पर ले जाकर मंगवाएगी जिसे वह 10 साल पहले खुद अपने पैरों से रौंद चुका था।

बांद्रा फ्लाई ओवर के नीचे बारिश की ठंडी बूंदें टार पॉलिन की फटी हुई चादर पर ढोल बजा रही थीं। यहीं रहता था राजन। कहना शायद गलत होगा। वह बस जिंदगी के दिन काट रहा था। उसके पास एक फटी हुई बोरी, एक एलुमिनियम का कटोरा और कुछ यादें थीं जो किसी काम की नहीं थीं। आज की बारिश ने उसकी उम्मीदों को और भी गीला कर दिया था। उसे दिन भर में जो कुछ बची खुची रोटियां मिली थीं, वे भी भीग गई थीं।

राजन की दयालुता

तभी एक आवारा कुत्ता, जो बारिश से बचने के लिए सिकुड़ा हुआ था, कांपता हुआ उसके पास आया। राजन ने कुत्ते की आंखों में वही बेबसी देखी जो वह रोज आईने में देखता अगर उसके पास आईना होता। उसने अपनी भीगी हुई रोटियों में से एक बड़ा टुकड़ा तोड़ा और कुत्ते के आगे रख दिया। “खा ले, मोती,” वह मुस्कुराया। “आज हम दोनों का नसीब एक जैसा है।” भीगा हुआ कुत्ता जल्दी-जल्दी खाने लगा।

राजन को नहीं पता था कि वह आखिरी बार कब मुस्कुराया था। 10 साल पहले वह राजन वर्मा था। एक छोटा लेकिन सफल व्यवसायी जिसका एक हंसता-खेलता परिवार था। लेकिन फिर उसकी जिंदगी में अर्नव मल्होत्रा का तूफान आया। एक फर्जीवाड़े का जाल, एक धोखे भरा अनुबंध और रातोंरात राजन की दुनिया उजड़ गई। उसकी फैक्ट्री नीलाम हो गई। घर बिक गया और सदमे में उसकी पत्नी ने आत्महत्या कर ली।

यादों का बोझ

राजन ने अपनी आंखें जोर से बंद कर लीं। वह उस याद को दोबारा नहीं जीना चाहता था। वह अब सिर्फ एक भिखारी था जिसे लोग घृणा से देखते थे। तभी उसने पास से गुजर रहे दो आदमियों की बातचीत सुनी। “अरे, सुना तूने? वो मल्होत्रा, अर्नव मल्होत्रा, मरने वाला है। कोई बॉम्बे ब्लड ग्रुप चाहिए।”

“हां यार,” दूसरे ने कहा। “10 करोड़ का इनाम रखा है। सोच, 10 करोड़! जिसे भी यह खून मिल गया उसकी तो किस्मत खुल जाएगी।” राजन के हाथ से रोटी का बचा हुआ टुकड़ा छूट गया। अर्नव मल्होत्रा! यह नाम एक जहर की तरह उसके कानों में घुला। फिर दूसरा शब्द—बॉम्बे ब्लड ग्रुप।

राजन का निर्णय

उसे याद आया, कई साल पहले जब उसकी पत्नी गर्भवती थी। डॉक्टर ने उसे बताया था कि उसका ब्लड ग्रुप बहुत नायाब है। “बॉम्बे OH,” डॉक्टर ने मजाक में कहा था। “वर्मा जी, आप तो चलते फिरते खजाना हैं।” आज वह खजाना उस शैतान को बचाने के काम आ सकता था जिसने उसे इस सड़क पर लाकर खड़ा कर दिया था। 10 करोड़! वह इस पैसे से अपनी जिंदगी वापस शुरू कर सकता था।

लेकिन क्या वह उस आदमी को बचाएगा जिसने उसकी जिंदगी छीन ली? एक अजीब कड़वी हंसी उसके गले में घुट गई। तकदीर भी क्या खेल खेलती है? राजन बारिश में भीगता हुआ वहीं बैठा रहा। अर्नव मल्होत्रा और 10 करोड़। यह दो शब्द उसके दिमाग में हथौड़े की तरह बज रहे थे। 10 साल की नफरत, बेबसी और अपमान का सैलाब उसकी रगों में दौड़ने लगा।

राजन का संघर्ष

उसे अपनी पत्नी सुजाता का चेहरा याद आया जिसने सदमे और इलाज के अभाव में दम तोड़ दिया था। उसे याद आया कि कैसे वह इन्हीं सड़कों पर मल्होत्रा के दफ्तर के बाहर गिड़गिड़ाया था और गार्ड्स ने उसे धक्का देकर निकाल दिया था। “मरने दो।” उसके अंदर से एक आवाज आई। “उसे उसी तरह तड़पने दो जैसे मैं तड़पता हूं। जैसे मेरी सुजाता तड़पी थी। यही इंसाफ है।”

वह उठकर जाने लगा। उस आवाज को उस इश्तहार को भूल जाना चाहता था। लेकिन तभी उसकी नजर उस आवारा कुत्ते मोती पर पड़ी जिसे उसने अभी अपनी रोटी खिलाई थी। वह कुत्ता अब उसके फटे हुए बोरे पर सिकुड़ कर सो रहा था। बारिश से महफूज़। राजन ने उसे क्यों बचाया? उसे क्या मिला? एक पल का सुकून।

सुजाता की याद

उसे सुजाता की कही बात याद आई। “राजन,” वह अक्सर कहती थी। “पैसा तो हाथ का मैल है। आज है कल नहीं। असली दौलत तो इंसान का जमीर होती है। उसे कभी बिकने मत देना।” अगर आज राजन ने उस आदमी को मरने दिया जिसे वह बचा सकता था, तो उसमें और अर्नव मल्होत्रा में क्या फर्क रह जाएगा?

मल्होत्रा ने पैसे के लिए उसका सब कुछ छीन लिया। और वह नफरत के लिए मल्होत्रा की जिंदगी छीन लेगा? नहीं, यह वह इंसाफ नहीं था जिसके लिए वह जीता आया था। 10 करोड़। उसने पैसे के बारे में सोचा। वह पैसा उसकी जिंदगी वापस ला सकता था। लेकिन उसे वह जिंदगी उस आदमी की लाश पर नहीं चाहिए थी।

राजन का फैसला

नहीं, उसने खुद से कहा, उसकी आवाज कांप रही थी। “मैं उसे मरने नहीं दूंगा। मैं उसे बचाऊंगा। इसीलिए नहीं कि वह अच्छा है, बल्कि इसलिए कि मैं बुरा नहीं हूं।” यह फैसला पैसे के लिए नहीं था। यह अपने जमीर को बचाने के लिए था। यह उस आदमी को आईना दिखाने के लिए था जिसने सोचा था कि इंसानियत बिक चुकी है।

कांपते हुए पैरों से राजन खड़ा हुआ। भूख और ठंड से उसका शरीर अकड़ गया था। लेकिन उसकी आंखों में एक अजीब सी शांति थी। उसने अपने मैले कुचैले कपड़े ठीक किए और उस आलीशान अस्पताल की तरफ चल पड़ा जिसका नाम उसने उन दो आदमियों की बातों में सुना था—द हेरिटेज हॉस्पिटल।

अस्पताल का माहौल

बारिश अब धीमी हो गई थी। लेकिन रात का अंधेरा घना था। वह जानता था कि वह कैसा दिख रहा है। एक गंदा बदबूदार भिखारी। उसे शायद गेट के अंदर भी नहीं घुसने दिया जाएगा। लेकिन आज पहली बार 10 सालों में राजन के पास कुछ ऐसा था जिसकी कीमत दुनिया का सबसे अमीर आदमी भी नहीं चुका सकता था। उसके पास जिंदगी थी, अपने सबसे बड़े दुश्मन को देने के लिए।

द हेरिटेज हॉस्पिटल की कांच की इमारत किसी महल की तरह चमक रही थी। हर तरफ सफेद मार्बल और तेज रोशनी थी। राजन अपनी जिंदगी में कभी ऐसी जगह के पास भी नहीं भटका था। उसके गंदे फटे हुए कपड़े और नंगे पैर उस जगह के लिए एक अपमान जैसे थे। जैसे ही उसने ऑटोमेटिक दरवाजों की तरफ कदम बढ़ाया, दो तगड़े यूनिफार्म पहने गार्ड्स ने उसे रोक लिया।

गार्ड्स का अपमान

“ए, रुक!” एक गार्ड ने घृणा से उसे घूरते हुए कहा, “कहां जा रहा है? भाग यहां से।” “मुझे अंदर जाना है,” राजन की आवाज भूख और ठंड से कांप रही थी। “यह बहुत जरूरी है।” “जरूरी?” दूसरा गार्ड हंसा। “तेरे जैसे भिखारियों के लिए यह अस्पताल नहीं, पागलखाना है। यहां मरीजों को लूटने आया है क्या? चल निकल!”

गार्ड ने उसे जोर से धक्का दिया। राजन अपना संतुलन खो बैठा और गीले ठंडे फर्श पर गिर पड़ा। उसकी बेबसी पर गार्ड्स ठहाका लगाकर हंस पड़े। वही जिल्लत, वही अपमान। 10 साल से वह यही सह रहा था।

राजन का आत्मविश्वास

एक पल के लिए उसकी हिम्मत जवाब दे गई। शायद उसका फैसला गलत था। शायद मल्होत्रा जैसे लोगों को मर ही जाना चाहिए। वह उठने की कोशिश कर ही रहा था कि कांच के दरवाजे के अंदर उसे अस्पताल की लॉबी में भागदौड़ नजर आई। एक नौजवान महंगा सूट पहने फोन पर चीख रहा था। “मैं कुछ नहीं सुनना चाहता। मुझे डोनर चाहिए।”

यह अर्नव मल्होत्रा का बेटा रोहन था। उसके पास ही डॉक्टर शर्मा खड़े थे। उनका चेहरा किसी भी उम्मीद से खाली था। राजन को पता था कि अगर वह अभी नहीं बोला, तो बहुत देर हो जाएगी। उसने अपनी बची खुची सारी ताकत बटोरी। वह जमीन पर बैठे-बैठे ही चीखा, “डॉक्टर, रुको!”

राजन की आवाज

गार्ड्स उसे चुप कराने के लिए आगे बढ़े। लेकिन राजन की आवाज में एक ऐसी सच्चाई थी जिसने डॉ. शर्मा को रुकने पर मजबूर कर दिया। “मुझे आपको बॉम्बे ब्लड ग्रुप चाहिए ना?” राजन ने हाफते हुए कहा। रोहन और डॉक्टर दोनों ठिठक गए। “उन्होंने दरवाजे के बाहर जमीन पर पड़े उस गंदे भिखारी को देखा।

रोहन ने गुस्से में गार्ड को इशारा किया। “इसे भगाओ यहां से। यह पागल है।” “राजन ने अपनी कांपती हुई नजरों को सीधे रोहन की आंखों में गाड़ दिया। “मुझे तुम्हारे 10 करोड़ नहीं चाहिए,” उसने कहा। “मुझे सिर्फ डॉक्टर से बात करनी है। मेरे पास वक्त कम है।”

राजन की शर्त

डॉक्टर शर्मा को अब और कोई सबूत नहीं चाहिए था। एक भिखारी का पैसों से इंकार करना उसकी आंखों की सच्चाई से बड़ा सबूत था। उन्होंने गार्ड्स पर चीखते हुए कहा, “उसे अंदर लाओ। अभी!” कोड रेड! जो गार्ड्स राजन को धक्के मारकर गिरा रहे थे, अब डॉक्टर शर्मा के गुस्से से कांप रहे थे।

वे राजन को लगभग घसीटते हुए सहारा देकर इमरजेंसी विंग की तरफ ले भागे। अस्पताल का महंगा रोगाणु मुक्त माहौल एक पल में भंग हो गया। जहां-जहां राजन के गंदे पैर पड़ रहे थे, वहां कीचड़ और पानी के निशान बन रहे थे। सफेद यूनिफार्म पहने नर्सें अपनी नाक सिकोड़ रही थीं। मरीजों के रिश्तेदार घृणा से पीछे हट रहे थे।

राजन का बलिदान

यह एक जिंदा विरोधाभास था। दुनिया की सबसे कीमती चीज, दुर्लभ खून, दुनिया के सबसे तिरस्कृत शरीर भिखारी में मौजूद थी। रोहन जो अब तक चुप था, सन्न रह गया। “पापा, यह क्या कह रहा है?” यह वही राजन था। “राजन वर्मा,” राजन ने कहा। “मैं राजन वर्मा हूं।”

रोहन ने चौंकते हुए कहा, “आपको क्या चाहिए?” राजन ने गंभीरता से कहा, “मैं जानता हूं कि आपका पिता मर रहा है। मैं जानता हूं कि आपको 10 करोड़ की जरूरत है। लेकिन मैं अपना खून मुफ्त में नहीं दूंगा।”

राजन का फैसला

“मेरी एक शर्त है,” राजन ने कहा। “क्या शर्त?” रोहन ने अधीर होकर पूछा। “एक बंगला, गाड़ी, 20 करोड़।” राजन ने अपनी नजरों को रोहन पर टिका दिया और फिर डॉक्टर की तरफ देखा। “मेरी शर्त यह है कि ट्रांसफ्यूजन से पहले मैं अरनव मल्होत्रा से मिलना चाहता हूं। मैं चाहता हूं कि वह होश में हो। मैं चाहता हूं कि उसे पता हो कि उसे यह जिंदगी कौन दे रहा है।”

डॉक्टर शर्मा चौंक गए। “लेकिन वह क्रिटिकल है।” “हम उसे होश में लाएंगे,” राजन ने कहा। “जब तक वह मेरी आंखों में देखकर मुझसे बात नहीं करता, मेरा खून उसके जिस्म में नहीं जाएगा।”

राजन का साहस

रोहन की आंखों में खून उतर आया। “तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई? तुम मेरे बाप की जिंदगी पर शर्तें लगा रहे हो।” राजन की तरफ लपका। लेकिन डॉक्टर शर्मा ने उसे बीच में ही रोक लिया। “बस, रोहन, बहुत हो गया।” डॉक्टर की आवाज में स्टील जैसी ठंडक थी। “उन्होंने राजन की तरफ देखा। तुम्हारी शर्त बहुत खतरनाक है।”

“उन्हें जबरदस्ती होश में लाना। जिंदगी में कुछ भी बिना कीमत दिए नहीं मिलता।” डॉक्टर ने राजन की तरफ देखा। “अर्नव मल्होत्रा ने यह बात मुझे ही सिखाई थी। उन्हें होश में लाइए। उन्हें पता चलना चाहिए कि उनकी जिंदगी की कीमत क्या है और कौन चुका रहा है।”

अर्नव की हालत

डॉक्टर शर्मा के पास कोई विकल्प नहीं था। यह आदमी अपना खून नहीं बेच रहा था। वह इंसाफ मांग रहा था। उन्होंने रोहन को घूर कर देखा। “बाहर इंतजार करो। मुझे मरीज को तैयार करना है।” 15 मिनट बाद अर्नव मल्होत्रा की चेतना को जबरदस्ती दवाइयों के सहारे वापस लाया गया। उसकी आंखें भारी थीं। गला सूखा हुआ था।

“क्या हुआ?” उसने हाफते हुए पूछा। “डोनर मिल गया है, बाबा,” रोहन ने कहा। उसकी आवाज में अजीब सी घबराहट थी। “तो इंतजार किसका?” अर्नव की आवाज टूटी हुई थी। “वह यहां है। डॉक्टर शर्मा ने कहा, “वह आपसे मिलना चाहता था।”

राजन का सामना

दरवाजा खुला। दो नर्सें राजन को सहारा देकर अंदर लाई। उसे स्ट्रेचर या व्हीलचेयर नहीं दी गई थी। वह अपने पैरों पर चलकर आया था। गंदा, भीगा हुआ, थका हुआ, लेकिन अपराजित। अर्नव मल्होत्रा की धुंधली नजरें दरवाजे पर पड़ी। उसने एक गंदे फटे हाल आदमी को अपनी तरफ आते देखा।

“यह कौन है?” उसने घृणा से मुंह बनाते हुए कहा। “डॉक्टर, एक भिखारी को मेरे कमरे में!” “इसे 10 करोड़ का चेक दो और दफा करो!” राजन उस आलीशान बिस्तर के पास आकर खड़ा हो गया। मशीन की हरी बत्तियां उसके मैले चेहरे पर चमक रही थीं।

राजन का प्रतिशोध

“10 करोड़ से ज्यादा कर्ज है आपका मुझ पर, सेठ अरनव मल्होत्रा,” राजन की आवाज कमरे में गूंज उठी। अर्नव की आंखें जो दवा के असर से बंद हो रही थीं, झटके से खुल गईं। “यह नाम मैंने पहले सुना था।”

“तुम, तुम तो बर्बाद हो गए थे!” अर्नव के चेहरे पर डर था। “तुम जिंदा हो?” “हां, जिंदा हूं,” राजन ने कड़वाहट से मुस्कुराते हुए कहा। “उसी सड़क पर जहां आपकी दौलत की गाड़ियों ने मुझे कुचलकर मरने के लिए छोड़ दिया था। और आज देखिए तकदीर ने क्या खेल खेला है। आप दुनिया के सबसे अमीर बिस्तर पर मर रहे हैं और मैं दुनिया का सबसे गरीब आदमी आपको बचाने आया हूं।”

राजन का बलिदान

रोहन जो यह सब एक हतप्रभ मूगदर्शक की तरह देख रहा था, पहली बार अपने पिता के साम्राज्य की असली नींव देख रहा था। “तुम क्या चाहते हो?” अर्नव ने आखिरकार टूटी हुई आवाज में पूछा। “मेरी आधी दौलत ले लो। सब ले लो बस मुझे।”

राजन ने उसे बीच में ही रोक दिया। “आपकी दौलत,” राजन ने हंसते हुए कहा। “एक ऐसी हंसी जिसमें दर्द था। आपकी दौलत ने मुझसे मेरी पत्नी छीन ली। मेरा घर, मेरी इज्जत छीन ली। और आज आप उसी दौलत से मुझसे मेरी जिंदगी का आखिरी सुकून भी खरीदना चाहते हैं। आप आज भी नहीं समझे मल्होत्रा।”

राजन का इंसाफ

वह डॉक्टर शर्मा की तरफ मुड़ा। “डॉक्टर, मैं खून दूंगा। अभी दूंगा। लेकिन मेरी एक शर्त है।” “क्या शर्त?” रोहन ने अधीर होकर पूछा। “एक बंगला, गाड़ी, 20 करोड़।” राजन ने अपनी नजरों को रोहन पर टिका दिया और फिर डॉक्टर की तरफ देखा। “मेरी शर्त यह है कि ट्रांसफ्यूजन से पहले मैं अरनव मल्होत्रा से मिलना चाहता हूं। मैं चाहता हूं कि वह होश में हो। मैं चाहता हूं कि उसे पता हो कि उसे यह जिंदगी कौन दे रहा है।”

अंतिम निर्णय

डॉक्टर शर्मा चौंक गए। “लेकिन वह क्रिटिकल है।” “हम उसे होश में लाएंगे,” राजन ने कहा। “जब तक वह मेरी आंखों में देखकर मुझसे बात नहीं करता, मेरा खून उसके जिस्म में नहीं जाएगा।”

रोहन की आंखों में खून उतर आया। “तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई? तुम मेरे बाप की जिंदगी पर शर्तें लगा रहे हो।” राजन की तरफ लपका। लेकिन डॉक्टर शर्मा ने उसे बीच में ही रोक लिया। “बस, रोहन, बहुत हो गया।”

राजन का बलिदान

डॉक्टर ने राजन की तरफ देखा। “तुम्हारी शर्त बहुत खतरनाक है।” “उन्हें जबरदस्ती होश में लाना। जिंदगी में कुछ भी बिना कीमत दिए नहीं मिलता।” डॉक्टर ने राजन की तरफ देखा। “अर्नव मल्होत्रा ने यह बात मुझे ही सिखाई थी। उन्हें होश में लाइए। उन्हें पता चलना चाहिए कि उनकी जिंदगी की कीमत क्या है और कौन चुका रहा है।”

अर्नव की स्थिति

डॉक्टर शर्मा के पास कोई विकल्प नहीं था। यह आदमी अपना खून नहीं बेच रहा था। वह इंसाफ मांग रहा था। उन्होंने रोहन को घूर कर देखा। “बाहर इंतजार करो। मुझे मरीज को तैयार करना है।” 15 मिनट बाद अर्नव मल्होत्रा की चेतना को जबरदस्ती दवाइयों के सहारे वापस लाया गया। उसकी आंखें भारी थीं। गला सूखा हुआ था।

“क्या हुआ?” उसने हाफते हुए पूछा। “डोनर मिल गया है, बाबा,” रोहन ने कहा। उसकी आवाज में अजीब सी घबराहट थी। “तो इंतजार किसका?” अर्नव की आवाज टूटी हुई थी। “वह यहां है। डॉक्टर शर्मा ने कहा, “वह आपसे मिलना चाहता था।”

राजन का सामना

दरवाजा खुला। दो नर्सें राजन को सहारा देकर अंदर लाई। उसे स्ट्रेचर या व्हीलचेयर नहीं दी गई थी। वह अपने पैरों पर चलकर आया था। गंदा, भीगा हुआ, थका हुआ, लेकिन अपराजित। अर्नव मल्होत्रा की धुंधली नजरें दरवाजे पर पड़ी। उसने एक गंदे फटे हाल आदमी को अपनी तरफ आते देखा।

“यह कौन है?” उसने घृणा से मुंह बनाते हुए कहा। “डॉक्टर, एक भिखारी को मेरे कमरे में!” “इसे 10 करोड़ का चेक दो और दफा करो!” राजन उस आलीशान बिस्तर के पास आकर खड़ा हो गया। मशीन की हरी बत्तियां उसके मैले चेहरे पर चमक रही थीं।

राजन का प्रतिशोध

“10 करोड़ से ज्यादा कर्ज है आपका मुझ पर, सेठ अरनव मल्होत्रा,” राजन की आवाज कमरे में गूंज उठी। अर्नव की आंखें जो दवा के असर से बंद हो रही थीं, झटके से खुल गईं। “यह नाम मैंने पहले सुना था।”

“तुम, तुम तो बर्बाद हो गए थे!” अर्नव के चेहरे पर डर था। “तुम जिंदा हो?” “हां, जिंदा हूं,” राजन ने कड़वाहट से मुस्कुराते हुए कहा। “उसी सड़क पर जहां आपकी दौलत की गाड़ियों ने मुझे कुचलकर मरने के लिए छोड़ दिया था। और आज देखिए तकदीर ने क्या खेल खेला है। आप दुनिया के सबसे अमीर बिस्तर पर मर रहे हैं और मैं दुनिया का सबसे गरीब आदमी आपको बचाने आया हूं।”

राजन का बलिदान

रोहन जो यह सब एक हतप्रभ मूगदर्शक की तरह देख रहा था, पहली बार अपने पिता के साम्राज्य की असली नींव देख रहा था। “तुम क्या चाहते हो?” अर्नव ने आखिरकार टूटी हुई आवाज में पूछा। “मेरी आधी दौलत ले लो। सब ले लो बस मुझे।”

राजन ने उसे बीच में ही रोक दिया। “आपकी दौलत,” राजन ने हंसते हुए कहा। “एक ऐसी हंसी जिसमें दर्द था। आपकी दौलत ने मुझसे मेरी पत्नी छीन ली। मेरा घर, मेरी इज्जत छीन ली। और आज आप उसी दौलत से मुझसे मेरी जिंदगी का आखिरी सुकून भी खरीदना चाहते हैं। आप आज भी नहीं समझे मल्होत्रा।”

राजन का इंसाफ

वह डॉक्टर शर्मा की तरफ मुड़ा। “डॉक्टर, मैं खून दूंगा। अभी दूंगा। लेकिन मेरी एक शर्त है।” “क्या शर्त?” रोहन ने अधीर होकर पूछा। “एक बंगला, गाड़ी, 20 करोड़।” राजन ने अपनी नजरों को रोहन पर टिका दिया और फिर डॉक्टर की तरफ देखा। “मेरी शर्त यह है कि ट्रांसफ्यूजन से पहले मैं अरनव मल्होत्रा से मिलना चाहता हूं। मैं चाहता हूं कि वह होश में हो। मैं चाहता हूं कि उसे पता हो कि उसे यह जिंदगी कौन दे रहा है।”

अंतिम निर्णय

डॉक्टर शर्मा चौंक गए। “लेकिन वह क्रिटिकल है।” “हम उसे होश में लाएंगे,” राजन ने कहा। “जब तक वह मेरी आंखों में देखकर मुझसे बात नहीं करता, मेरा खून उसके जिस्म में नहीं जाएगा।”

रोहन की आंखों में खून उतर आया। “तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई? तुम मेरे बाप की जिंदगी पर शर्तें लगा रहे हो।” राजन की तरफ लपका। लेकिन डॉक्टर शर्मा ने उसे बीच में ही रोक लिया। “बस, रोहन, बहुत हो गया।”

राजन का बलिदान

डॉक्टर ने राजन की तरफ देखा। “तुम्हारी शर्त बहुत खतरनाक है।” “उन्हें जबरदस्ती होश में लाना। जिंदगी में कुछ भी बिना कीमत दिए नहीं मिलता।” डॉक्टर ने राजन की तरफ देखा। “अर्नव मल्होत्रा ने यह बात मुझे ही सिखाई थी। उन्हें होश में लाइए। उन्हें पता चलना चाहिए कि उनकी जिंदगी की कीमत क्या है और कौन चुका रहा है।”

अर्नव की स्थिति

डॉक्टर शर्मा के पास कोई विकल्प नहीं था। यह आदमी अपना खून नहीं बेच रहा था। वह इंसाफ मांग रहा था। उन्होंने रोहन को घूर कर देखा। “बाहर इंतजार करो। मुझे मरीज को तैयार करना है।” 15 मिनट बाद अर्नव मल्होत्रा की चेतना को जबरदस्ती दवाइयों के सहारे वापस लाया गया। उसकी आंखें भारी थीं। गला सूखा हुआ था।

“क्या हुआ?” उसने हाफते हुए पूछा। “डोनर मिल गया है, बाबा,” रोहन ने कहा। उसकी आवाज में अजीब सी घबराहट थी। “तो इंतजार किसका?” अर्नव की आवाज टूटी हुई थी। “वह यहां है। डॉक्टर शर्मा ने कहा, “वह आपसे मिलना चाहता था।”

राजन का सामना

दरवाजा खुला। दो नर्सें राजन को सहारा देकर अंदर लाई। उसे स्ट्रेचर या व्हीलचेयर नहीं दी गई थी। वह अपने पैरों पर चलकर आया था। गंदा, भीगा हुआ, थका हुआ, लेकिन अपराजित। अर्नव मल्होत्रा की धुंधली नजरें दरवाजे पर पड़ी। उसने एक गंदे फटे हाल आदमी को अपनी तरफ आते देखा।

“यह कौन है?” उसने घृणा से मुंह बनाते हुए कहा। “डॉक्टर, एक भिखारी को मेरे कमरे में!” “इसे 10 करोड़ का चेक दो और दफा करो!” राजन उस आलीशान बिस्तर के पास आकर खड़ा हो गया। मशीन की हरी बत्तियां उसके मैले चेहरे पर चमक रही थीं।

राजन का प्रतिशोध

“10 करोड़ से ज्यादा कर्ज है आपका मुझ पर, सेठ अरनव मल्होत्रा,” राजन की आवाज कमरे में गूंज उठी। अर्नव की आंखें जो दवा के असर से बंद हो रही थीं, झटके से खुल गईं। “यह नाम मैंने पहले सुना था।”

“तुम, तुम तो बर्बाद हो गए थे!” अर्नव के चेहरे पर डर था। “तुम जिंदा हो?” “हां, जिंदा हूं,” राजन ने कड़वाहट से मुस्कुराते हुए कहा। “उसी सड़क पर जहां आपकी दौलत की गाड़ियों ने मुझे कुचलकर मरने के लिए छोड़ दिया था। और आज देखिए तकदीर ने क्या खेल खेला है। आप दुनिया के सबसे अमीर बिस्तर पर मर रहे हैं और मैं दुनिया का सबसे गरीब आदमी आपको बचाने आया हूं।”

राजन का बलिदान

रोहन जो यह सब एक हतप्रभ मूगदर्शक की तरह देख रहा था, पहली बार अपने पिता के साम्राज्य की असली नींव देख रहा था। “तुम क्या चाहते हो?” अर्नव ने आखिरकार टूटी हुई आवाज में पूछा। “मेरी आधी दौलत ले लो। सब ले लो बस मुझे।”

राजन ने उसे बीच में ही रोक दिया। “आपकी दौलत,” राजन ने हंसते हुए कहा। “एक ऐसी हंसी जिसमें दर्द था। आपकी दौलत ने मुझसे मेरी पत्नी छीन ली। मेरा घर, मेरी इज्जत छीन ली। और आज आप उसी दौलत से मुझसे मेरी जिंदगी का आखिरी सुकून भी खरीदना चाहते हैं। आप आज भी नहीं समझे मल्होत्रा।”

राजन का इंसाफ

वह डॉक्टर शर्मा की तरफ मुड़ा। “डॉक्टर, मैं खून दूंगा। अभी दूंगा। लेकिन मेरी एक शर्त है।” “क्या शर्त?” रोहन ने अधीर होकर पूछा। “एक बंगला, गाड़ी, 20 करोड़।” राजन ने अपनी नजरों को रोहन पर टिका दिया और फिर डॉक्टर की तरफ देखा। “मेरी शर्त यह है कि ट्रांसफ्यूजन से पहले मैं अरनव मल्होत्रा से मिलना चाहता हूं। मैं चाहता हूं कि वह होश में हो। मैं चाहता हूं कि उसे पता हो कि उसे यह जिंदगी कौन दे रहा है।”

अंतिम निर्णय

डॉक्टर शर्मा चौंक गए। “लेकिन वह क्रिटिकल है।” “हम उसे होश में लाएंगे,” राजन ने कहा। “जब तक वह मेरी आंखों में देखकर मुझसे बात नहीं करता, मेरा खून उसके जिस्म में नहीं जाएगा।”

रोहन की आंखों में खून उतर आया। “तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई? तुम मेरे बाप की जिंदगी पर शर्तें लगा रहे हो।” राजन की तरफ लपका। लेकिन डॉक्टर शर्मा ने उसे बीच में ही रोक लिया। “बस, रोहन, बहुत हो गया।”

राजन का बलिदान

डॉक्टर ने राजन की तरफ देखा। “तुम्हारी शर्त बहुत खतरनाक है।” “उन्हें जबरदस्ती होश में लाना। जिंदगी में कुछ भी बिना कीमत दिए नहीं मिलता।” डॉक्टर ने राजन की तरफ देखा। “अर्नव मल्होत्रा ने यह बात मुझे ही सिखाई थी। उन्हें होश में लाइए। उन्हें पता चलना चाहिए कि उनकी जिंदगी की कीमत क्या है और कौन चुका रहा है।”

अर्नव की स्थिति

डॉक्टर शर्मा के पास कोई विकल्प नहीं था। यह आदमी अपना खून नहीं बेच रहा था। वह इंसाफ मांग रहा था। उन्होंने रोहन को घूर कर देखा। “बाहर इंतजार करो। मुझे मरीज को तैयार करना है।” 15 मिनट बाद अर्नव मल्होत्रा की चेतना को जबरदस्ती दवाइयों के सहारे वापस लाया गया। उसकी आंखें भारी थीं। गला सूखा हुआ था।

“क्या हुआ?” उसने हाफते हुए पूछा। “डोनर मिल गया है, बाबा,” रोहन ने कहा। उसकी आवाज में अजीब सी घबराहट थी। “तो इंतजार किसका?” अर्नव की आवाज टूटी हुई थी। “वह यहां है। डॉक्टर शर्मा ने कहा, “वह आपसे मिलना चाहता था।”

राजन का सामना

दरवाजा खुला। दो नर्सें राजन को सहारा देकर अंदर लाई। उसे स्ट्रेचर या व्हीलचेयर नहीं दी गई थी। वह अपने पैरों पर चलकर आया था। गंदा, भीगा हुआ, थका हुआ, लेकिन अपराजित। अर्नव मल्होत्रा की धुंधली नजरें दरवाजे पर पड़ी। उसने एक गंदे फटे हाल आदमी को अपनी तरफ आते देखा।

“यह कौन है?” उसने घृणा से मुंह बनाते हुए कहा। “डॉक्टर, एक भिखारी को मेरे कमरे में!” “इसे 10 करोड़ का चेक दो और दफा करो!” राजन उस आलीशान बिस्तर के पास आकर खड़ा हो गया। मशीन की हरी बत्तियां उसके मैले चेहरे पर चमक रही थीं।

राजन का प्रतिशोध

“10 करोड़ से ज्यादा कर्ज है आपका मुझ पर, सेठ अरनव मल्होत्रा,” राजन की आवाज कमरे में गूंज उठी। अर्नव की आंखें जो दवा के असर से बंद हो रही थीं, झटके से खुल गईं। “यह नाम मैंने पहले सुना था।”

“तुम, तुम तो बर्बाद हो गए थे!” अर्नव के चेहरे पर डर था। “तुम जिंदा हो?” “हां, जिंदा हूं,” राजन ने कड़वाहट से मुस्कुराते हुए कहा। “उसी सड़क पर जहां आपकी दौलत की गाड़ियों ने मुझे कुचलकर मरने के लिए छोड़ दिया था। और आज देखिए तकदीर ने क्या खेल खेला है। आप दुनिया के सबसे अमीर बिस्तर पर मर रहे हैं और मैं दुनिया का सबसे गरीब आदमी आपको बचाने आया हूं।”

राजन का बलिदान

रोहन जो यह सब एक हतप्रभ मूगदर्शक की तरह देख रहा था, पहली बार अपने पिता के साम्राज्य की असली नींव देख रहा था। “तुम क्या चाहते हो?” अर्नव ने आखिरकार टूटी हुई आवाज में पूछा। “मेरी आधी दौलत ले लो। सब ले लो बस मुझे।”

राजन ने उसे बीच में ही रोक दिया। “आपकी दौलत,” राजन ने हंसते हुए कहा। “एक ऐसी हंसी जिसमें दर्द था। आपकी दौलत ने मुझसे मेरी पत्नी छीन ली। मेरा घर, मेरी इज्जत छीन ली। और आज आप उसी दौलत से मुझसे मेरी जिंदगी का आखिरी सुकून भी खरीदना चाहते हैं। आप आज भी नहीं समझे मल्होत्रा।”

राजन का इंसाफ

वह डॉक्टर शर्मा की तरफ मुड़ा। “डॉक्टर, मैं खून दूंगा। अभी दूंगा। लेकिन मेरी एक शर्त है।” “क्या शर्त?” रोहन ने अधीर होकर पूछा। “एक बंगला, गाड़ी, 20 करोड़।” राजन ने अपनी नजरों को रोहन पर टिका दिया और फिर डॉक्टर की तरफ देखा। “मेरी शर्त यह है कि ट्रांसफ्यूजन से पहले मैं अरनव मल्होत्रा से मिलना चाहता हूं। मैं चाहता हूं कि वह होश में हो। मैं चाहता हूं कि उसे पता हो कि उसे यह जिंदगी कौन दे रहा है।”

अंतिम निर्णय

डॉक्टर शर्मा चौंक गए। “लेकिन वह क्रिटिकल है।” “हम उसे होश में लाएंगे,” राजन ने कहा। “जब तक वह मेरी आंखों में देखकर मुझसे बात नहीं करता, मेरा खून उसके जिस्म में नहीं जाएगा।”

रोहन की आंखों में खून उतर आया। “तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई? तुम मेरे बाप की जिंदगी पर शर्तें लगा रहे हो।” राजन की तरफ लपका। लेकिन डॉक्टर शर्मा ने उसे बीच में ही रोक लिया। “बस, रोहन, बहुत हो गया।”

राजन का बलिदान

डॉक्टर ने राजन की तरफ देखा। “तुम्हारी शर्त बहुत खतरनाक है।” “उन्हें जबरदस्ती होश में लाना। जिंदगी में कुछ भी बिना कीमत दिए नहीं मिलता।” डॉक्टर ने राजन की तरफ देखा। “अर्नव मल्होत्रा ने यह बात मुझे ही सिखाई थी। उन्हें होश में लाइए। उन्हें पता चलना चाहिए कि उनकी जिंदगी की कीमत क्या है और कौन चुका रहा है।”

अर्नव की स्थिति

डॉक्टर शर्मा के पास कोई विकल्प नहीं था। यह आदमी अपना खून नहीं बेच रहा था। वह इंसाफ मांग रहा था। उन्होंने रोहन को घूर कर देखा। “बाहर इंतजार करो। मुझे मरीज को तैयार करना है।” 15 मिनट बाद अर्नव मल्होत्रा की चेतना को जबरदस्ती दवाइयों के सहारे वापस लाया गया। उसकी आंखें भारी थीं। गला सूखा हुआ था।

“क्या हुआ?” उसने हाफते हुए पूछा। “डोनर मिल गया है, बाबा,” रोहन ने कहा। उसकी आवाज में अजीब सी घबराहट थी। “तो इंतजार किसका?” अर्नव की आवाज टूटी हुई थी। “वह यहां है। डॉक्टर शर्मा ने कहा, “वह आपसे मिलना चाहता था।”

राजन का सामना

दरवाजा खुला। दो नर्सें राजन को सहारा देकर अंदर लाई। उसे स्ट्रेचर या व्हीलचेयर नहीं दी गई थी। वह अपने पैरों पर चलकर आया था। गंदा, भीगा हुआ, थका हुआ, लेकिन अपराजित। अर्नव मल्होत्रा की धुंधली नजरें दरवाजे पर पड़ी। उसने एक गंदे फटे हाल आदमी को अपनी तरफ आते देखा।

“यह कौन है?” उसने घृणा से मुंह बनाते हुए कहा। “डॉक्टर, एक भिखारी को मेरे कमरे में!” “इसे 10 करोड़ का चेक दो और दफा करो!” राजन उस आलीशान बिस्तर के पास आकर खड़ा हो गया। मशीन की हरी बत्तियां उसके मैले चेहरे पर चमक रही थीं।

राजन का प्रतिशोध

“10 करोड़ से ज्यादा कर्ज है आपका मुझ पर, सेठ अरनव मल्होत्रा,” राजन की आवाज कमरे में गूंज उठी। अर्नव की आंखें जो दवा के असर से बंद हो रही थीं, झटके से खुल गईं। “यह नाम मैंने पहले सुना था।”

“तुम, तुम तो बर्बाद हो गए थे!” अर्नव के चेहरे पर डर था। “तुम जिंदा हो?” “हां, जिंदा हूं,” राजन ने कड़वाहट से मुस्कुराते हुए कहा। “उसी सड़क पर जहां आपकी दौलत की गाड़ियों ने मुझे कुचलकर मरने के लिए छोड़ दिया था। और आज देखिए तकदीर ने क्या खेल खेला है। आप दुनिया के सबसे अमीर बिस्तर पर मर रहे हैं और मैं दुनिया का सबसे गरीब आदमी आपको बचाने आया हूं।”

राजन का बलिदान

रोहन जो यह सब एक हतप्रभ मूगदर्शक की तरह देख रहा था, पहली बार अपने पिता के साम्राज्य की असली नींव देख रहा था। “तुम क्या चाहते हो?” अर्नव ने आखिरकार टूटी हुई आवाज में पूछा। “मेरी आधी दौलत ले लो। सब ले लो बस मुझे।”

राजन ने उसे बीच में ही रोक दिया। “आपकी दौलत,” राजन ने हंसते हुए कहा। “एक ऐसी हंसी जिसमें दर्द था। आपकी दौलत ने मुझसे मेरी पत्नी छीन ली। मेरा घर, मेरी इज्जत छीन ली। और आज आप उसी दौलत से मुझसे मेरी जिंदगी का आखिरी सुकून भी खरीदना चाहते हैं। आप आज भी नहीं समझे मल्होत्रा।”

राजन का इंसाफ

वह डॉक्टर शर्मा की तरफ मुड़ा। “डॉक्टर, मैं खून दूंगा। अभी दूंगा। लेकिन मेरी एक शर्त है।” “क्या शर्त?” रोहन ने अधीर होकर पूछा। “एक बंगला, गाड़ी, 20 करोड़।” राजन ने अपनी नजरों को रोहन पर टिका दिया और फिर डॉक्टर की तरफ देखा। “मेरी शर्त यह है कि ट्रांसफ्यूजन से पहले मैं अरनव मल्होत्रा से मिलना चाहता हूं। मैं चाहता हूं कि वह होश में हो। मैं चाहता हूं कि उसे पता हो कि उसे यह जिंदगी कौन दे रहा है।”

अंतिम निर्णय

डॉक्टर शर्मा चौंक गए। “लेकिन वह क्रिटिकल है।” “हम उसे होश में लाएंगे,” राजन ने कहा। “जब तक वह मेरी आंखों में देखकर मुझसे बात नहीं करता, मेरा खून उसके जिस्म में नहीं जाएगा।”

रोहन की आंखों में खून उतर आया। “तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई? तुम मेरे बाप की जिंदगी पर शर्तें लगा रहे हो।” राजन की तरफ लपका। लेकिन डॉक्टर शर्मा ने उसे बीच में ही रोक लिया। “बस, रोहन, बहुत हो गया।”

राजन का बलिदान

डॉक्टर ने राजन की तरफ देखा। “तुम्हारी शर्त बहुत खतरनाक है।” “उन्हें जबरदस्ती होश में लाना। जिंदगी में कुछ भी बिना कीमत दिए नहीं मिलता।” डॉक्टर ने राजन की तरफ देखा। “अर्नव मल्होत्रा ने यह बात मुझे ही सिखाई थी। उन्हें होश में लाइए। उन्हें पता चलना चाहिए कि उनकी जिंदगी की कीमत क्या है और कौन चुका रहा है।”

अर्नव की स्थिति

डॉक्टर शर्मा के पास कोई विकल्प नहीं था। यह आदमी अपना खून नहीं बेच रहा था। वह इंसाफ मांग रहा था। उन्होंने रोहन को घूर कर देखा। “बाहर इंतजार करो। मुझे मरीज को तैयार करना है।” 15 मिनट बाद अर्नव मल्होत्रा की चेतना को जबरदस्ती दवाइयों के सहारे वापस लाया गया। उसकी आंखें भारी थीं। गला सूखा हुआ था।

“क्या हुआ?” उसने हाफते हुए पूछा। “डोनर मिल गया है, बाबा,” रोहन ने कहा। उसकी आवाज में अजीब सी घबराहट थी। “तो इंतजार किसका?” अर्नव की आवाज टूटी हुई थी। “वह यहां है। डॉक्टर शर्मा ने कहा, “वह आपसे मिलना चाहता था।”

राजन का सामना

दरवाजा खुला। दो नर्सें राजन को सहारा देकर अंदर लाई। उसे स्ट्रेचर या व्हीलचेयर नहीं दी गई थी। वह अपने पैरों पर चलकर आया था। गंदा, भीगा हुआ, थका हुआ, लेकिन अपराजित। अर्नव मल्होत्रा की धुंधली नजरें दरवाजे पर पड़ी। उसने एक गंदे फटे हाल आदमी को अपनी तरफ आते देखा।

“यह कौन है?” उसने घृणा से मुंह बनाते हुए कहा। “डॉक्टर, एक भिखारी को मेरे कमरे में!” “इसे 10 करोड़ का चेक दो और दफा करो!” राजन उस आलीशान बिस्तर के पास आकर खड़ा हो गया। मशीन की हरी बत्तियां उसके मैले चेहरे पर चमक रही थीं।

राजन का प्रतिशोध

“10 करोड़ से ज्यादा कर्ज है आपका मुझ पर, सेठ अरनव मल्होत्रा,” राजन की आवाज कमरे में गूंज उठी। अर्नव की आंखें जो दवा के असर से बंद हो रही थीं, झटके से खुल गईं। “यह नाम मैंने पहले सुना था।”

“तुम, तुम तो बर्बाद हो गए थे!” अर्नव के चेहरे पर डर था। “तुम जिंदा हो?” “हां, जिंदा हूं,” राजन ने कड़वाहट से मुस्कुराते हुए कहा। “उसी सड़क पर जहां आपकी दौलत की गाड़ियों ने मुझे कुचलकर मरने के लिए छोड़ दिया था। और आज देखिए तकदीर ने क्या खेल खेला है। आप दुनिया के सबसे अमीर बिस्तर पर मर रहे हैं और मैं दुनिया का सबसे गरीब आदमी आपको बचाने आया हूं।”

राजन का बलिदान

रोहन जो यह सब एक हतप्रभ मूगदर्शक की तरह देख रहा था, पहली बार अपने पिता के साम्राज्य की असली नींव देख रहा था। “तुम क्या चाहते हो?” अर्नव ने आखिरकार टूटी हुई आवाज में पूछा। “मेरी आधी दौलत ले लो। सब ले लो बस मुझे।”

राजन ने उसे बीच में ही रोक दिया। “आपकी दौलत,” राजन ने हंसते हुए कहा। “एक ऐसी हंसी जिसमें दर्द था। आपकी दौलत ने मुझसे मेरी पत्नी छीन ली। मेरा घर, मेरी इज्जत छीन ली। और आज आप उसी दौलत से मुझसे मेरी जिंदगी का आखिरी सुकून भी खरीदना चाहते हैं। आप आज भी नहीं समझे मल्होत्रा।”

राजन का इंसाफ

वह डॉक्टर शर्मा की तरफ मुड़ा। “डॉक्टर, मैं खून दूंगा। अभी दूंगा। लेकिन मेरी एक शर्त है।” “क्या शर्त?” रोहन ने अधीर होकर पूछा। “एक बंगला, गाड़ी, 20 करोड़।” राजन ने अपनी नजरों को रोहन पर टिका दिया और फिर डॉक्टर की तरफ देखा। “मेरी शर्त यह है कि ट्रांसफ्यूजन से पहले मैं अरनव मल्होत्रा से मिलना चाहता हूं। मैं चाहता हूं कि वह होश में हो। मैं चाहता हूं कि उसे पता हो कि उसे यह जिंदगी कौन दे रहा है।”

अंतिम निर्णय

डॉक्टर शर्मा चौंक गए। “लेकिन वह क्रिटिकल है।” “हम उसे होश में लाएंगे,” राजन ने कहा। “जब तक वह मेरी आंखों में देखकर मुझसे बात नहीं करता, मेरा खून उसके जिस्म में नहीं जाएगा।”

रोहन की आंखों में खून उतर आया। “तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई? तुम मेरे बाप की जिंदगी पर शर्तें लगा रहे हो।” राजन की तरफ लपका। लेकिन डॉक्टर शर्मा ने उसे बीच में ही रोक लिया। “बस, रोहन, बहुत हो गया।”

राजन का बलिदान

डॉक्टर ने राजन की तरफ देखा। “तुम्हारी शर्त बहुत खतरनाक है।” “उन्हें जबरदस्ती होश में लाना। जिंदगी में कुछ भी बिना कीमत दिए नहीं मिलता।” डॉक्टर ने राजन की तरफ देखा। “अर्नव मल्होत्रा ने यह बात मुझे ही सिखाई थी। उन्हें होश में लाइए। उन्हें पता चलना चाहिए कि उनकी जिंदगी की कीमत क्या है और कौन चुका रहा है।”

अर्नव की स्थिति

डॉक्टर शर्मा के पास कोई विकल्प नहीं था। यह आदमी अपना खून नहीं बेच रहा था। वह इंसाफ मांग रहा था। उन्होंने रोहन को घूर कर देखा। “बाहर इंतजार करो। मुझे मरीज को तैयार करना है।” 15 मिनट बाद अर्नव मल्होत्रा की चेतना को जबरदस्ती दवाइयों के सहारे वापस लाया गया। उसकी आंखें भारी थीं। गला सूखा हुआ था।

“क्या हुआ?” उसने हाफते हुए पूछा। “डोनर मिल गया है, बाबा,” रोहन ने कहा। उसकी आवाज में अजीब सी घबराहट थी। “तो इंतजार किसका?” अर्नव की आवाज टूटी हुई थी। “वह यहां है। डॉक्टर शर्मा ने कहा, “वह आपसे मिलना चाहता था।”

राजन का सामना

दरवाजा खुला। दो नर्सें राजन को सहारा देकर अंदर लाई। उसे स्ट्रेचर या व्हीलचेयर नहीं दी गई थी। वह अपने पैरों पर चलकर आया था। गंदा, भीगा हुआ, थका हुआ, लेकिन अपराजित। अर्नव मल्होत्रा की धुंधली नजरें दरवाजे पर पड़ी। उसने एक गंदे फटे हाल आदमी को अपनी तरफ आते देखा।

“यह कौन है?” उसने घृणा से मुंह बनाते हुए कहा। “डॉक्टर, एक भिखारी को मेरे कमरे में!” “इसे 10 करोड़ का चेक दो और दफा करो!” राजन उस आलीशान बिस्तर के पास आकर खड़ा हो गया। मशीन की हरी बत्तियां उसके मैले चेहरे पर चमक रही थीं।

राजन का प्रतिशोध

“10 करोड़ से ज्यादा कर्ज है आपका मुझ पर, सेठ अरनव मल्होत्रा,” राजन की आवाज कमरे में गूंज उठी। अर्नव की आंखें जो दवा के असर से बंद हो रही थीं, झटके से खुल गईं। “यह नाम मैंने पहले सुना था।”

“तुम, तुम तो बर्बाद हो गए थे!” अर्नव के चेहरे पर डर था। “तुम जिंदा हो?” “हां, जिंदा हूं,” राजन ने कड़वाहट से मुस्कुराते हुए कहा। “उसी सड़क पर जहां आपकी दौलत की गाड़ियों ने मुझे कुचलकर मरने के लिए छोड़ दिया था। और आज देखिए तकदीर ने क्या खेल खेला है। आप दुनिया के सबसे अमीर बिस्तर पर मर रहे हैं और मैं दुनिया का सबसे गरीब आदमी आपको बचाने आया हूं।”

राजन का बलिदान

रोहन जो यह सब एक हतप्रभ मूगदर्शक की तरह देख रहा था, पहली बार अपने पिता के साम्राज्य की असली नींव देख रहा था। “तुम क्या चाहते हो?” अर्नव ने आखिरकार टूटी हुई आवाज में पूछा। “मेरी आधी दौलत ले लो। सब ले लो बस मुझे।”

राजन ने उसे बीच में ही रोक दिया। “आपकी दौलत,” राजन ने हंसते हुए कहा। “एक ऐसी हंसी जिसमें दर्द था। आपकी दौलत ने मुझसे मेरी पत्नी छीन ली। मेरा घर, मेरी इज्जत छीन ली। और आज आप उसी दौलत से मुझसे मेरी जिंदगी का आखिरी सुकून भी खरीदना चाहते हैं। आप आज भी नहीं समझे मल्होत्रा।”

राजन का इंसाफ

वह डॉक्टर शर्मा की तरफ मुड़ा। “डॉक्टर, मैं खून दूंगा। अभी दूंगा। लेकिन मेरी एक शर्त है।” “क्या शर्त?” रोहन ने अधीर होकर पूछा। “एक बंगला, गाड़ी, 20 करोड़।” राजन ने अपनी नजरों को रोहन पर टिका दिया और फिर डॉक्टर की तरफ देखा। “मेरी शर्त यह है कि ट्रांसफ्यूजन से पहले मैं अरनव मल्होत्रा से मिलना चाहता हूं। मैं चाहता हूं कि वह होश में हो। मैं चाहता हूं कि उसे पता हो कि उसे यह जिंदगी कौन दे रहा है।”

अंतिम निर्णय

डॉक्टर शर्मा चौंक गए। “लेकिन वह क्रिटिकल है।” “हम उसे होश में लाएंगे,” राजन ने कहा। “जब तक वह मेरी आंखों में देखकर मुझसे बात नहीं करता, मेरा खून उसके जिस्म में नहीं जाएगा।”

रोहन की आंखों में खून उतर आया। “तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई? तुम मेरे बाप की जिंदगी पर शर्तें लगा रहे हो।” राजन की तरफ लपका। लेकिन डॉक्टर शर्मा ने उसे बीच में ही रोक लिया। “बस, रोहन, बहुत हो गया।”

राजन का बलिदान

डॉक्टर ने राजन की तरफ देखा। “तुम्हारी शर्त बहुत खतरनाक है।” “उन्हें जबरदस्ती होश में लाना। जिंदगी में कुछ भी बिना कीमत दिए नहीं मिलता।” डॉक्टर ने राजन की तरफ देखा। “अर्नव मल्होत्रा ने यह बात मुझे ही सिखाई थी। उन्हें होश में लाइए। उन्हें पता चलना चाहिए कि उनकी जिंदगी की कीमत क्या है और कौन चुका रहा है।”

अर्नव की स्थिति

डॉक्टर शर्मा के पास कोई विकल्प नहीं था। यह आदमी अपना खून नहीं बेच रहा था। वह इंसाफ मांग रहा था। उन्होंने रोहन को घूर कर देखा। “बाहर इंतजार करो। मुझे मरीज को तैयार करना है।” 15 मिनट बाद अर्नव मल्होत्रा की चेतना को जबरदस्ती दवाइयों के सहारे वापस लाया गया। उसकी आंखें भारी थीं। गला सूखा हुआ था।

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