एक करोड़पति व्यापारी का निजी विमान खराब हो गया, लेकिन इस बेचारी लड़की ने सबको हैरान कर दिया।
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समीना फातिमा की कहानी: एक नई शुरुआत
मुंबई एयरपोर्ट के हैंगर का दृश्य किसी जंगी मोर्चे से कम नहीं था। एक बड़ा प्राइवेट जेट खड़ा था, जिसका इंजन बार-बार फेल हो रहा था। दर्जनों इंजीनियर अपने औजारों के साथ उसके चारों तरफ जमा थे। उनके माथों पर पसीना था, कपड़ों पर ग्रीस के दाग थे और चेहरों पर मायूसी साफ झलक रही थी। 6 घंटे बीत चुके थे, लेकिन समस्या का हल नहीं निकल रहा था।
अरबपति व्यवसायी, जिसका यह जेट था, बार-बार अपनी घड़ी देख रहा था। उसके चेहरे पर तनाव और बेसब्री थी क्योंकि उसे उसी शाम दिल्ली के एक अहम इजलास में शामिल होना था। हैंगर में मौजूद हर शख्स जानता था कि यह कोई आम प्राइवेट जेट नहीं है, बल्कि देश की अर्थव्यवस्था और व्यापार के कई फैसले इसकी उड़ान से जुड़े हुए हैं। लेकिन वक्त गुजरता जा रहा था और उम्मीदें एक-एक कर खत्म होती जा रही थीं।
इसी तनाव भरे माहौल में अचानक हैंगर के बड़े दरवाजे पर एक दुबली-पतली लड़की दिखाई दी। वह पुराने कपड़ों में थी, दुपट्टे के किनारे फटे हुए थे और बाल हवा में उलझे हुए थे। उसके चेहरे पर थकान के बावजूद आंखों में एक अनोखा आत्मविश्वास था। उसका नाम समीना फातिमा था। वह धीरे-धीरे अंदर बढ़ी और सबकी नजरें उसकी ओर मुड़ गईं।
एक गार्ड ने ऊंची आवाज में कहा, “यह कौन है? किसने इसे अंदर आने दिया? बाहर निकालो इसे।” मगर समीना ने पुरसुकून लहजे में कहा, “अगर इजाजत दें तो मैं देख सकती हूं।” उसकी आवाज में ऐसा यकीन था कि माहौल ठहर सा गया।
इंजीनियरों में से एक जोर से हंसते हुए बोला, “क्या यह मजाक है? 6 घंटे से हम जैसे माहिर हल नहीं कर पाए और यह आम सी लड़की मसला ठीक करेगी?” बाकी इंजीनियर भी हंसने लगे। लेकिन तभी बिजनेसमैन मिस्टर वर्मा ने सख्त लहजे में कहा, “रुक जाओ। किसी को बाहर निकालने की जरूरत नहीं। इसे देखने दो।”
सन्नाटा छा गया और सभी की निगाहें समीना पर जम गईं। उसने आगे बढ़कर पुराने दस्ताने उतारे और पास पड़े साफ दस्ताने पहन लिए। फिर इंजन के करीब जाकर झुक गई, जैसे किसी पुराने दोस्त से बातें कर रही हो। उसने इंजन के पुरजों को छुआ, उंगलियों से क्लैंप पर हल्की चोट दी और एक सेंसर वायर को गौर से देखा।
उसकी हरकतें देखकर कई इंजीनियर हैरत में पड़ गए। समीना ने खामोशी तोड़ते हुए कहा, “यह क्लैंप गलत नाली में लगा है। इससे हवा लीक हो रही है और यह सेंसर वायर की इंसुलेशन फट गई है। जब यह गर्म होता है, तो इंजन को गलत सिग्नल देता है। यही वजह है कि इंजन चलते-चलते रुक जाता है।”
इंजीनियर एक-दूसरे को देखने लगे। चीफ इंजीनियर के होंठ हिले मगर अल्फाज़ ना निकले। अंततः वह बोला, “हमसे यह कैसे छूट गया?” समीना ने सीधी नजर से जवाब दिया, “क्योंकि यह दोनों खराबियां एक-दूसरे को छुपा रही थीं। अगर क्लैंप दुरुस्त करो तो सेंसर मसला देता है। अगर सेंसर बदल दो तो लीक फिर भी इंजन को परेशान करता है। असल हल दोनों को एक साथ ठीक करना है।”
मिस्टर वर्मा ने गहरी नजर से समीना को देखा। कुछ लम्हों के लिए जैसे वक्त ठहर गया हो। फिर उसने धीमी आवाज में कहा, “क्या तुम इसे ठीक कर सकती हो?” समीना ने बगैर हिचकिचाए कहा, “जी, इजाजत हो तो मैं अभी कर दूंगी।”
माहौल में एक अजीब सा तनाव फैल गया। सब जानते थे कि यह इंजन लाखों का है और एक गलती पूरे जहाज को बर्बाद कर सकती है। लेकिन उस लड़की की आंखों में ऐसा यकीन था जो बरसों के तजुर्बेदार इंजीनियरों की आंखों में भी नजर नहीं आ रहा था। मिस्टर वर्मा ने आहिस्ता से सिर हिलाया और कहा, “करो।”
यह सुनकर हैंगर में हैरत की लहर दौड़ गई। गार्ड पीछे हट गए। इंजीनियर खामोश खड़े देखने लगे और समीना ने इंजन के अंदर झांकना शुरू किया। जैसे-जैसे उसके हाथ हरकत करते, सबकी सांसें थम जातीं।
समीना ने हाथ बढ़ाया और क्लैंप खोलने लगी। जैसे ही पेच ढीला हुआ, एक हल्की सी आवाज सुनाई दी। वह बोली, “यही है वो लीक जिसकी वजह से आवाज आ रही थी।” इंजीनियरों ने चौंक कर एक-दूसरे की तरफ देखा।
समीना ने क्लैंप को सही नाली में सेट किया और एक साफ सुथरी क्लिक की आवाज के साथ उसे कस दिया। अब उसकी तवज्जो सेंसर वायर की तरफ गई। वह घुटने टेक कर नीचे झुकी और ध्यान से वायर को देखा। इंसुलेशन वाकई फटी हुई थी और वायर धातु से टकरा रहा था। उसने सुकून से अपनी जेब से छोटी टेप निकाली, वायर को दोबारा लपेटा, उस पर हिफाजती कॉर डाला और फिर उसे ब्रैकेट से हटाकर सुरक्षित तरीके से बांध दिया।
पूरे अमल के दौरान उसका चेहरा पर सुकून रहा। जैसे यह सब कुछ उसने सैकड़ों बार किया हो। लेकिन हकीकत यह थी कि वह बरसों से इंजन को सिर्फ किताबों में देखती आई थी। आज वही मौका आया था और वह इसे गंवाना नहीं चाहती थी।
चीफ इंजीनियर सनीनी खड़ा था। उसके होंठ आहिस्ता-आहिस्ता हिल रहे थे। “यह कैसे मुमकिन है? हमने सब चेक किया था। फिर भी यह सब नजर से बच गया।” समीना ने दस्ताने उतारे। उन्हें साफ सुथरी तरह मेज पर रखा और धीरे से कहा, “हो गया।”
यह दो अल्फाज़ पूरे हॉल में गूंज उठे, जैसे किसी ने जंजीर खोल दी हो। सबकी आंखों में हैरत थी। मिस्टर वर्मा ने सीधे चीफ इंजीनियर की तरफ देखा और कहा, “टेस्ट कराओ।”
फौरन टीम हरकत में आ गई। इंजन स्टैंड पर फिट हुआ। केबल्स जोड़े गए। हिफाजती कोन लगाए गए। सब अपनी जगह संभाल कर खड़े हो गए। समीना खामोशी से एक तरफ हो गई। उसके हाथ ग्रीस से भरे थे, मगर दिल में इरादे की रोशनी जल रही थी।
“सब क्लियर?” चीफ इंजीनियर ने पूछा। “क्लियर?” टीम ने जवाब दिया। मिस्टर वर्मा ने कंट्रोल पैनल का बटन दबाया। हैंगर में सांसें थम गईं। एक हल्की आवाज उभरी। फिर गुड़गुड़ाहट तेज होने लगी। अचानक लाल बत्ती चमकी। इंजीनियर घबरा गए। “बंद करो। यह खराब हो रहा है।” किसी ने कहा।
समीना ने बुलंद आवाज में कहा, “रुको। यह सेंसर नए सिग्नल कबूल कर रहा है। असल फॉल्ट नहीं है। वक्त दो।” मिस्टर वर्मा ने उसकी आंखों में झांका। वहां खौफ नहीं था। सिर्फ यकीन था। उन्होंने कहा, “इसे चलने दो।”
कुछ लम्हों बाद लाइट बुझ गई। हरी रोशनी जल उठी। इंजन की आवाज अब हमसाज जैसी थी। हॉल में जिंदगी दौड़ गई। कोई हैरानी से बोल रहा था, “नामुमकिन है।” कोई कह रहा था, “यकीन नहीं आ रहा कि यह लड़की चीफ इंजीनियर है।”
मिस्टर वर्मा ने मुस्कुराते हुए कहा, “तुमने हमें बचा लिया।” उन्होंने ऐलान किया, “यह लड़की अब उम्मीद की निशानी है।” समीना की आंखों में आंसू थे, मगर उसने झुक कर छिपा लिए।
हैंगर का माहौल बदल चुका था। जहां पहले तंजियां थीं, अब खामोश इजहार एहतिराम था। इंजन की रवानगी सबको बता रही थी कि एक गैर-मामूली लड़की ने कमाल कर दिखाया है। मिस्टर वर्मा ने दिलचस्पी से पूछा, “बेटी, तुम्हारा नाम क्या है?”
हॉल में सुकून छा गया। समीना ने गहरी सांस ली और मजबूत लहजे में कहा, “मेरा नाम समीना फातिमा है।” इंजीनियरों में खसरफसर हुई। चीफ इंजीनियर के मुंह से बेइख्तियार निकला, “क्या तुम वही हो? दिल्ली एयररोस्पेस इंस्टिट्यूट की टॉपर?”
समीना ने इत्तेफाक में सिर झुकाया। लोग चौंक गए। वही नाम था जो अखबारों की सुर्खियों में आया था। वह लड़की जिसने मर्दों के हुकूमत वाले क्षेत्र में सबको पीछे छोड़ दिया था।
मिस्टर वर्मा ने पूछा, “सबने तुम्हारे बारे में सुना था। प्रोफेसर तुम्हें इंजनों की जुबान समझने वाली कहते थे। तुम गायब क्यों हो गई?” यह सवाल उसके दिल को छू गया। वह एक लम्हा भर खामोश रही। फिर धीरे से बोली, “2 साल पहले मेरी दुनिया एक ही दिन में टूट गई। पिता ने ऐलान किया कि वे दूसरी शादी कर रहे हैं। मां ने यह सदमा ना सहा। जहर मिला खाना बनाया। पिता ने खाया तो गिर पड़े। मां ने भी वही खाना खा लिया। उन्होंने कहा, बेवफा बेवफाई देखकर मरना बेहतर है।”
हॉल में सन्नाटा फैल गया। समीना की आवाज कमपकपा रही थी, मगर वह बोलती रही। “मैं इकलौती औलाद थी। अपनी आंखों के सामने माता-पिता को मरते देखा। बस 20 साल की थी और हाथ में एएविएशन कंपनी का ऑफर लेटर था। मगर सब टूट गया। इंटरव्यू छोड़ दिए। फोन तोड़ दिया। सब रिश्ते खत्म।”
उसकी आंखों से आंसू बह निकले, मगर वह बोलती रही। “रोज उन्हीं हैंगर्स के पास से गुजरती थी। बाहर खड़ी होकर अंदर झांकती, सोचती कि कभी मैं भी उन्हीं में शामिल थी। मगर दिल को कहां समझाऊं कि वह जिंदगी मुझसे छीन ली गई थी।”
मिस्टर वर्मा की आंखों में नमी झलकने लगी। चीफ इंजीनियर, जो अभी तक उसे मजाक समझ रहा था, बोला, “हमने तुम्हारा मजाक उड़ाया। माफ करना। हकीकत यह है कि तुम हम सबसे बेहतर हो। तुमने सिर्फ इंजन नहीं ठीक किया, हमें भी आईना दिखाया।”
हॉल में कई सर झुक गए। समीना के आंसू दोपट्टे में सोख लिए जा रहे थे, मगर चेहरे पर सुकून था। बरसों से दिल में बंधी सच्चाई आज आजाद हो गई थी। मिस्टर वर्मा नजदीक आए। कंधे पर हाथ रखकर बोले, “तुमने मेरा इंजन नहीं, मेरा यकीन भी ठीक कर दिया। साबित किया कि इज्जत कपड़ों या नाम की मोहताज नहीं, बल्कि दिल, हुनर और सच्चाई में है। आज से दुनिया तुम्हें समीना फातिमा के नाम से पहचानेगी।”
हॉल तालियों से गूंज उठा। इंजीनियर तालियां बजाते रहे। कुछ ने आंसू छिपाए। समीना थरथराते हुए हाथों से अपनी आंखें साफ कर रही थी। वह जानती थी कि यह इख्तताम नहीं, बल्कि नई शुरुआत है।
समीना की कामयाबी की गूंज अब भी बाकी थी। इंजन की रवान आवाज सबको याद दिला रही थी कि आम कपड़ों में मलबूस सड़कों पर भटकती हुई लड़की ने नामुमकिन को मुमकिन कर दिखाया।
मिस्टर वर्मा के दिल में फैसला जन्म ले चुका था। उन्होंने ऐलान किया, “यह लड़की सिर्फ इस हैंगर तक महदूद नहीं रहेगी। कल यह दिल्ली मेरे साथ जाएगी। मेरी कंपनी के एग्जीक्यूटिव्स को देखना होगा कि असल काबिलियत कैसी होती है।”
यह अल्फाज़ बिजली की तरह गिरे। कई इंजीनियर एक-दूसरे की तरफ देखने लगे। कुछ राजी, कुछ हिचकिचाते हुए। मगर किसी में मुखालिफत की हिम्मत ना थी। अगली सुबह दिल्ली की उड़ान ने समीना की जिंदगी का नया बाफा शुरू किया।
बरसों बाद जहाज में बैठकर वह बादलों को निहारती हुई मुतमई थी। कल तक वही सड़कों पर थी। आज बड़े बिजनेसमैन के साथ आसमान पर थी। मिस्टर वर्मा ने कहा, “जिंदगी दूसरा मौका बार-बार नहीं देती। दिल्ली में बड़ा इम्तिहान तुम्हारा इंतजार कर रहा है।”
समीना मुस्कुराई और बोली, “मैं डरती तो हूं, मगर हिम्मत नहीं हारूंगी।”
दिल्ली पहुंचकर वे कंपनी के केंद्रीय दफ्तर गए। शीशे की बुलंद इमारत के ऊपरी मंजिल पर बोर्ड रूम तैयार था। मेज के इर्दगिर्द बड़े-बड़े एग्जीक्यूटिव्स बैठे थे। उनके रुख ठंडे थे, जैसे फैसला पहले ही कर चुके हों।
मिस्टर वर्मा ने पूरी इत्मीनान से कहा, “यह है समीना फातिमा, जिसने मेरा जेट ठीक किया जब सब नाकाम रह गए थे।” करीब सरगोशियां होने लगीं। एक एग्जीक्यूटिव ने तंज किया, “यह लड़की क्या वाकई हम इस पर भरोसा करें?”
मगर समीना आगे बढ़ गई और मजबूती से कहा, “मुझे किसी के भरोसे की जरूरत नहीं। मौका दीजिए। फैसला मेरा अमल करेगा।”
यह अल्फाज़ कमरे में गूंज उठे। एक बुजुर्ग खातून माहिर ने कहा, “ठीक है, उसे मौका दो।”
स्क्रीन पर इंजन का डिजिटल मॉडल खोला गया। एक एग्जीक्यूटिव ने मकसदी फॉल्ट डाल दिए। लाल बत्तियां जलने लगीं। अलार्म बजने लगे। सब पीछे हटकर तमाशा देखने लगे।
समीना ने गहरी सांस ली। डाटा का बारीकी से जायजा लिया और बोली, “यह फॉल्ट टरबाइन या फ्यूल लाइन का नहीं है। असल में वाइब्रेशन सेंसर की खराबी है। देखिए पैटर्न इंजन की हालात से मेल नहीं खा रहा। यह सॉफ्टवेयर की गूंज है।”
उसने बटन दबाए, डाटा अलग किया और फॉल्ट की निशानदेही कर दी। लाल बत्ती बुझ गई। हरी बत्ती जल उठी। कमरा खामोश हो गया। बुजुर्ग खातून ने कहा, “यह बिल्कुल सही है।”
एक और एग्जीक्यूटिव फाइल बंद करके बोला, “हमने इसे कमजोर समझा, मगर यह हम सबसे आगे है।” मिस्टर वर्मा मुस्कुराए और ऐलान किया, “मैं चाहता हूं कि इसे मुंबई ब्रांच की सरबराही दी जाए।”
कुछ लम्हे खामोशी रहे। फिर सब ने सर हिलाया। ऐलान हुआ, “समीना फातिमा, आज से आप मुंबई डिवीजन की हेड हैं।”
समीना की आंखों में आंसू छलक पड़े। कल तक जो सड़कों पर थी, आज वह सबसे बड़ी एएविएशन कंपनी की एक मुख्तार शख्सियत बन चुकी थी। उसने दिल में एक अजम किया, “मैं कभी पीछे नहीं हटूंगी। यह जिम्मेदारी मेरा इम्तिहान है।”
दिल्ली से मुंबई की वापसी का सफर ख्वाब जैसा था। जहाज की खिड़की से रोशनियों को निहारते हुए वह सोच रही थी कि क्या यह सब वाकई हकीकत है। मगर वह जानती थी कि असली इम्तिहान अभी शुरू हुआ है।
कंपनी दफ्तर पहुंचते ही मुलाजिमों ने रस्मी सलाम किया। कुछ मुस्कुराए, मगर ज्यादातर के चेहरे तंज और हैरानी से भरे थे। सरगुशियां हो रही थीं। यही वही लड़की है जिसे वर्मा साहब ने ऊपर बैठाया है। अब हमें आदेश देगी।
समीना ने कुछ ना कहा। वह जानती थी कि इज्जत अल्फाजों से नहीं, अमल से मिलती है। इसी वक्त रीजनल डायरेक्टर मोहन नायर आए। चेहरे पर जबरदस्ती की मुस्कान, मगर आंखों में तिरछाई। उन्होंने कहा, “तो आप हैं नई हेड, मुबारक हो। मगर यह ब्रांच आसान नहीं। क्लाइंट्स नाजुक मिजाज हैं। एक गलती और कंपनी की साख खत्म।”
समीना ने सुकून भरे लहजे में कहा, “गलतियों से ही सीखा जाता है। मगर इंजन की जुबान मुझे आती है। हम सब मिलकर काम करके कामयाब होंगे।”
मोहन ने हंसकर कहा, “देखते हैं।”
कुछ ही दिनों में पहला बड़ा इम्तिहान आ गया। एक हाई प्रोफाइल बिजनेसमैन का गल्फ स्ट्रीम जेट मुंबई एयरपोर्ट पर उतरा और खबर आई कि इंजन खराब हालत में है। सब जानते थे कि यह क्लाइंट कितना अहम है। अगर जट वक्त पर दुरुस्त ना हुआ तो कंपनी की बदनामी पूरे मुल्क में फैल जाएगी।
मोहन नायर ने तंजिया लहजे में कहा, “चलो देखते हैं हमारी नई हेड क्या कर सकती है। यह उसका पहला बड़ा केस है।”
जेट हैंगर में लाया गया। मैकेनिक्स और इंजीनियर पहले से ही मौजूद थे। समीना ने कहा, “हम सब मिलकर मसला हल करेंगे। मगर पहले मैं इंजन का मुआयना करूंगी।”
वह आगे बढ़ी जैसे कोई डॉक्टर मरीज की नब्ज देखता हो। उसने आंखें बंद कर आवाज सुनी। ऊर्जा को छुआ और कहा, “यह फ्यूल या कंप्रेसर का फॉल्ट नहीं है। असल खराबी ब्लेड वाल्व में है। ज्यादा बोझ पर यह वक्त पर बंद नहीं होता। हवा का नुकसान होता है और इंजन रुकने लगता है।”
इंजीनियर हैरान रह गए। वह सब फ्यूल लाइन को दोषी समझ रहे थे। मगर समीना ने मुद्दा मुखतर किया। उसने हुक्म दिया कि ब्लेड वाल्व खोलकर फिर से सेट किया जाए।
11 घंटे बाद टेस्ट हुआ। इंजन पहले हिचकिचाया, मगर फिर स्थिर चलने लगा। अलार्म बंद, हरी रोशनी जली। हैंगर तालियों से गूंज उठा। क्लाइंट ने हाथ मिलाते हुए कहा, “तुमने ना सिर्फ वक्त पर बचाया, बल्कि मेरा भरोसा भी जीत लिया। यह कंपनी नई बुलंदियों पर जाएगी।”
मुलाजिमों की निगाहें बदल चुकी थीं जो कल तंज कर रहे थे, आज तालियां बजा रहे थे। मगर कोने में खड़ा मोहन नायर दांत पीस रहा था। उसके दिल में साजिश का बीज पनप रहा था।
एक शाम, जब सब चले गए, समीना खिड़की से मुंबई की रोशनियों को निहार रही थी। दिल ही दिल में उसने दुआ मांगी, “या अल्लाह, मुझे हिम्मत दे कि मैं ना सिर्फ इंजन बल्कि दिल भी जीत सकूं।”
अब कंपनी के दफ्तर में समीना ने पहला सबूत दे दिया था। बिजनेसमैन का जेट मानो नई जिंदगी पा गया था। मुलाजिमों ने उसे हेड के रूप में मान लिया था। लेकिन मोहन की निगाहों में अब भी शुरुआत से पहले खामोश साजिश की खनक थी।
इसी दौरान एक नया मोड़ आया। एक दिन हेड ऑफिस के सामने गाड़ियों का काफिला रुका। दरवाजा खुला और एक नौजवान बाहर निकला। ऊंचा कद, साफ रंगत, जदीद लिबास, आंखों में संजीदगी। यह मिस्टर वर्मा का बेटा अर्जुन वर्मा था।
वह लंदन से पढ़ाई मुकम्मल करके आया था और फाइनेंस और बिजनेस मैनेजमेंट में माहिर होकर कंपनी के हिसाब किताब संभालने आया था। उसकी आमद पर दफ्तर मुतहरिक हो गया। सब जानते थे यह सिर्फ वारिस नहीं, बल्कि मुस्तकबिल का फैसला साज भी है।
समीना कॉरिडोर में मौजूद थी। पहली नजर में उसे लगा जैसे वक्त ठहर गया हो। मगर वह फौरन आगे बढ़ गई। अर्जुन की नजर भी उस पर पड़ी। उसने सुना था मुंबई ब्रांच एक गैर-मामूली शख्सियत के सुपुर्द है।
उसी शाम मीटिंग हुई। समीना इंजन की रिपोर्ट पेश कर रही थी। अर्जुन पीछे बैठा गौर से देख रहा था। वह हैरान था कि कल तक गुमनाम लड़की आज किस एतमाद से सीनियर इंजीनियर्स को हिदायतें दे रही है।
उसकी आवाज में वकार था जैसे लीडरशिप के लिए जरूरी हो। मीटिंग के बाद अर्जुन आगे आया और बोला, “तो आप हैं मिस फातिमा, वही जिसने वालिद का जेट बचाया।”
समीना ने नजरें झुका कर कहा, “मैंने तो सिर्फ अपना काम किया।” अर्जुन मुस्कुराया, “सिर्फ काम? आपको अंदाजा नहीं कि आपने कितना बड़ा कारनामा किया है। वालिद बरसों से ख्वाब देख रहे थे। मगर यकीन कमजोर था।”
समीना खामोश रही। वह तारीफ सुनने की आदि नहीं थी। बरसों की भटकी जिंदगी ने उसे सख्त बना दिया था। मगर अर्जुन की बातों में खुलूस था।
वक्त गुजरता गया। दोनों अक्सर एक ही कमरे में नजर आने लगे। कभी रिपोर्ट्स, कभी क्लाइंट्स, कभी कॉरिडोर में सलाम। हर मुलाकात के बाद दिल में सवाल उठता, क्या यह महज इत्तेफाक है या कुछ और?
एक शाम सब जा चुके थे। समीना अब भी कागजात पर झुकी थी। अर्जुन आया और बोला, “अभी तक यहीं? आप तो सबसे ज्यादा मेहनत करती हैं।”
समीना ने मुस्कुरा कर कहा, “मेहनत ही सहारा है। जब सब कुछ छीन जाए तो बस काम ही बचता है।”
अर्जुन ने कुर्सी खींच कर कहा, “शायद इसीलिए आप दूसरों से मुख्तलिफ हैं। पाकत हैं। आप सिर्फ इंजन नहीं, दिल भी ठीक करना जानती हैं।”
यह सुनकर समीना चौकी। पहली बार किसी ने उसके दर्द को समझा, ना सिर्फ काबिलियत को। आंखों में नमी झलकी, मगर उसने नजरें फेर लीं।
अर्जुन ने सोचा, “यह लड़की आम नहीं। शायद यह मेरी जिंदगी बदलने के लिए आई है।”
इसी लम्हे एक अनजान सा रिश्ता परवान चढ़ने लगा। समीना जानती थी, रास्ते आसान नहीं। वह मुसलमान, अर्जुन हिंदू। अगर रिश्ता आगे बढ़ा तो रुकावटें आएंगी। मगर दिल की आवाज सिर्फ दिल सुनता है और दोनों के दिल करीब आ चुके थे।
दफ्तर की रोजमर्रा जिंदगी अब बदल चुकी थी। वे अक्सर साथ नजर आते। कभी इंजन की रिपोर्ट पर बात करते, कभी क्लाइंट मीटिंग में पहलू बेहलू बैठते और कभी कॉरिडोर में एक तबस्सुम उनके दिल को रोशन कर देता।
मगर जितना करीब वे आ रहे थे, उतनी ही एक दीवार भी उनके बीच खड़ी थी। अर्जुन के दिल में बेचैनी बढ़ चुकी थी। रातों को करवटें बदलते वह सोचता, “मैं इसे चाहता हूं। यह सिर्फ पसंद नहीं। मेरा दिल कहता है कि यह वही औरत है जिसके साथ जिंदगी मुकम्मल होगी। लेकिन वह मुसलमान है और मैं हिंदू। क्या यह मुमकिन है?”
वह जानता था कि खानदान के लिए यह बड़ा सदमा होगा। वर्मा खानदान रिवायती हिंदू था और वह यह भी जानता था कि समीना अपने ईमान पर समझौता नहीं करेगी।
एक शाम वह वालिद के दफ्तर गया। राजीव वर्मा फाइलों में मशरूफ थे। अर्जुन ने कहा, “अब्बू, मुझे आपसे एक अहम बात करनी है।” राजीव ने चौंक कर देखा। “कहो बेटा।”
अर्जुन ने गहरी सांस ली। “मैं समीना फातिमा से शादी करना चाहता हूं।”
राजीव के चेहरे पर हैरत फैल गई। “क्या तुम्हें अंदाजा है, वह मुसलमान है और खानदान के लिए यह कितना बड़ा मसला होगा?”
अर्जुन ने मजबूत लहजे में कहा, “जी जानता हूं। मगर उसके बगैर जिंदगी का तसवुर नहीं। उसकी हिम्मत और ईमान ने मुझे बदल दिया है। मैं उसके साथ रहना चाहता हूं। मगर बराबरी और पाकीजगी के साथ।”
राजीव खामोश रहे। बेटे की आंखों में जिद नहीं, सिर्फ यकीन था। उन्होंने कहा, “अगर तुम यह रास्ता अपनाते हो, तो फैसले बदलने होंगे। तुम्हें अपने मजहब के बारे में भी सोचना होगा। तैयार हो?”
अर्जुन ने कहा, “जी अब्बू, अगर यही कीमत है तो देने को तैयार हूं।”
उस रात वह घर ना सोया। गलियों में चलता रहा। समुंदर किनारे बैठा। लहरों की आवाज दिल की धड़कन से मिल रही थी। एक तरफ रवायतें थीं, दूसरी तरफ समीना की मोहब्बत और ईमान।
सुबह वह एक मस्जिद के बाहर खड़ा था। अजान की आवाज में उसे सुकून मिला जो मंदिर की घंटियों में ना मिला था। दिल ने कहा, “अगर सुकून यहां है तो यही रास्ता है।”
वह इमाम से मिला। कई सवाल किए। दीन, ईमान और जिम्मेदारी पर बातें सुनीं। दिल को वही सच्चाई खींच रही थी। उसने फैसला कर लिया। “अगर मुझे समीना को पाना है तो उसके ईमान में शामिल होना होगा। यह सिर्फ मोहब्बत नहीं, सच्चाई और सुकून का रास्ता है।”
उसने अज्म किया कि रुकावटें आएंगी, मगर वह पीछे ना हटेगा। शाम को दफ्तर आया तो समीना ने कहा, “आप कई दिनों से परेशान हैं। सब ठीक है?”
अर्जुन ने मुस्कुरा कर कहा, “हां, सब ठीक हो जाएगा। बहुत जल्द।”
समीना ना समझ सकी, मगर उसकी आंखों में नई रोशनी थी। उसे अंदाजा ना था कि अर्जुन अपनी जिंदगी का सबसे बड़ा फैसला करने वाला है। कई दिन वह चुप रहा, काम करता रहा, मगर अज्म बढ़ता गया।
फिर एक जुमा की सुबह वह खामोशी से मस्जिद गया। अजान की आवाज गूंज रही थी। दिल की धड़कन तेज थी, मगर सुकून भी था। इमाम ने पूछा, “बेटा, आप यहां कैसे आए?”
अर्जुन ने अदब से कहा, “मैं सच्चाई की तलाश में आया हूं। दिल कहता है, सुकून यहां है। मैं इस्लाम कबूल करना चाहता हूं।”
इमाम ने नरमी से समझाया, “इस्लाम महज नाम नहीं, जिम्मेदारी है। अगर दिल से मानते हो तो सफर आसान होगा। सोच समझ कर फैसला करो।”
अर्जुन ने परज्म लहजे में कहा, “मैंने सोच लिया है। मैं दिल से इस रास्ते पर चलना चाहता हूं।”
फिर गवाहों के सामने उसने कलमा पढ़ा। अल्फाज़ होठों से निकलते ही दिल पर सुकून छा गया। बरसों का बोझ उतर गया। रूह को नया जन्म मिला। अब वह सिर्फ अर्जुन वर्मा नहीं रहा, बल्कि इमरान वर्मा बन चुका था।
नमाज के बाद वह मस्जिद के सहन में बैठा दिल की कैफियत महसूस करता रहा। जानता था कि अब जिंदगी के सब फैसले बदल गए हैं। मगर सबसे बड़ा कदम बाकी था। समीना को यह खुशखबरी देना।
उसी शाम वह दफ्तर आया। समीना फाइलों में मशरूफ थी। उसने चौंक कर देखा। इमरान के चेहरे पर एक अलग नूर था, जैसे अंदर कोई नई रोशनी जाग उठी हो।
समीना ने पूछा, “आज आप कुछ मुख्तलिफ लग रहे हैं। क्या बात है?”
इमरान ने मुस्कुरा कर कहा, “हां, आज मेरी जिंदगी बदल गई है।”
समीना ने हैरत से कहा, “क्या मतलब?”
इमरान करीब आकर बोला, “समीना, आज से मैं सिर्फ अर्जुन नहीं रहा। मैंने इस्लाम कबूल कर लिया है। मेरा नाम अब इमरान है।”
यह सुनते ही समीना के हाथ कांप गए। आंखों से आंसू बह निकले। वह धीरे से बोली, “क्या यह फैसला सिर्फ मेरे लिए किया है?”
इमरान ने संजीदगी से कहा, “नहीं, यह फैसला दिल के सुकून के लिए है। तुम्हारी मोहब्बत ने मुझे दरवाजे तक पहुंचाया। मगर कलमा पढ़ते ही मुझे लगा यही मेरा असल रास्ता था।”
समीना ने आंसू पोछकर कहा, “अल्लाह ने आपको हिदायत दी है। यह मेरी जिंदगी की सबसे बड़ी खुशी है। अब हमारे दरमियान कोई दीवार नहीं रही।”
कमरे में एक अजीब सी खुशबू फैल गई। इमरान ने कहा, “मैं वादा करता हूं, तुम्हारे ईमान की हिफाजत करूंगा। तुम्हारे ख्वाबों का साथी बनूंगा।”
समीना ने सर झुका कर कहा, “और मैं वादा करती हूं, हर मुश्किल में तुम्हारे साथ रहूंगी।”
दोनों ने महसूस किया कि कहानी एक नए मोड़ पर आ गई है। अब यह सिर्फ कंपनी की बात नहीं रही, बल्कि ईमान और मोहब्बत की दास्तान थी।
खिड़की से बाहर देखते हुए समीना ने शुक्र अदा किया। जो कल तक तन्हा थी, आज उसके सामने ऐसा साथी था जो उसके ईमान का भी शरीक बन गया था।
इमरान के इस्लाम कबूल करने के बाद जैसे सब बदल गया। दिल को सुकून मिल गया और समीना के चेहरे पर पहली बार मुतमई मुस्कुराहट थी।
मगर दोनों जानते थे कि असल इम्तिहान अभी बाकी है। कुछ ही दिनों में यह खबर पूरे दफ्तर और बिजनेस हल्कों में फैल गई कि अरबपति बिजनेसमैन का बेटा इस्लाम कबूल कर चुका है और कंपनी की सरबराह समीना से निकाह करने वाला है।
माहौल में हलचल मच गई। कुछ खुश थे, ज्यादातर हैरान और नाराज। राजीव वर्मा के रिश्तेदारों ने शिकायत की, “तुमने बेटे को आजाद छोड़ दिया है। वह ना सिर्फ मजहब बदल रहा है, बल्कि एक आम सी लड़की से शादी कर रहा है। यह खानदान के वकार के खिलाफ है।”
राजीव ने सब सुना, मगर खामोश रहे। वह जानते थे इमरान ने सोच समझकर फैसला किया है और समीना जैसी हुनरमंद लड़की के साथ वह महफूज़ हाथों में है।
निकाह का दिन आया। मुंबई का हॉल रोशन कंदीलों और फूलों से सजा था। सफेद पर्दे, हरे कालीन, खुशबू भरी हिज्जा, रिश्तेदार, मुलाजिम और दोस्त मौजूद थे। कुछ सिर्फ तमाशा देखने आए थे कि अरबपति खानदान का बेटा कैसे रवायत तोड़ रहा है।
समीना दुल्हन के लिबास में दाखिल हुई। चेहरे पर हया और सुकून था। दो साल की भटकी जिंदगी और इंजीनियरिंग की कुर्बानियां आज एक ख्वाब की तरह लग रही थीं। अब वह सिर्फ इंजीनियर नहीं, दुल्हन थी।
मौलवी साहब ने निकाह के अल्फाज पढ़े। इमरान ने पूरी एत्मनान भरी आवाज में कहा, “कबूल है।” यह अल्फाज हॉल में गूंज गए। समीना ने नरम मगर मजबूत लहजे में जवाब दिया, “कबूल है।”
पूरा हॉल रोशन हो गया। तालियों और दुआओं की आवाजें उठने लगीं। राजीव वर्मा की आंखों से आंसू निकल आए। उन्होंने बेटे और बहू के सर पर हाथ रखकर कहा, “आज मेरा खानदान कमजोर नहीं, बल्कि मजबूत हुआ है। तुम दोनों ने दिखाया है कि हिम्मत और ईमान सबसे बड़ी ताकत है।”
मगर सब खुश ना थे। कोने में मोहन नायर खड़ा गुस्से से बड़बड़ा रहा था। “यह लड़की सब अपने नाम कर रही है। कंपनी भी, खानदान भी। मगर यह ज्यादा दिन नहीं चलेगा।”
समीना ने नहीं सुना, मगर महसूस किया कि हर खुशी के साथ एक साया भी होता है। उसे इल्म था कि यह शादी सिर्फ मोहब्बत नहीं, बल्कि आजमाइशों का नया दौर लाएगी।
निकाह के बाद जब इमरान और समीना स्टेज पर आए तो दुआओं की गूंज उठी। मीडिया के कैमरे चमकने लगे। रिपोर्टर्स शोर कर रहे थे। यह पहला मौका है कि अरबपति बिजनेसमैन के बेटे ने इस्लाम कबूल करके कंपनी की सरबराह से निकाह किया है।
समीना ने इमरान की तरफ देखा। उसकी आंखों में सुकून और एतमाद था। दोनों ने दिल ही दिल में दुआ की कि अल्लाह इस रिश्ते को कायम रखे और उन्हें हर मुखालिफ का सामना करने की हिम्मत दे।
शादी के बाद राजीव वर्मा ने ऐलान किया, “यह सिर्फ शादी नहीं, नया आगाज है। आज से समीना सिर्फ कंपनी की सरबराह नहीं, बल्कि मेरी बेटी भी है।”
हॉल तालियों और दुआओं से गूंज उठा, मगर पसमंजर में कुछ आंखें हसद से जल रही थीं।
कुछ माह गुजर गए। मुंबई की रोशन शाम में अब इमरान और समीना की जिंदगी का हिस्सा थी। दोनों ने अपने इजदिवाजी सफर और कंपनी को नए दौर में दाखिल कर दिया।
जहां पहले शुभहात थे, अब एतमाद और इत्तहाद था। समीना की कयादत और इमरान के माली तजुर्बे ने कंपनी को हैरानक बुलंदियों तक पहुंचा दिया।
दफ्तर में अब सब उसे मैडम फातिमा कहकर एहतराम से पुकारते। वह हर मसला सब्र और समझदारी से हल करती। कभी मैकेनिक के साथ इंजन के करीब खड़ी हो जाती। यही आदत सबके दिल जीत लेती।
इमरान ने हिसाब किताब और मैनेजमेंट को ऐसे मुनज्जम किया कि कंपनी की आमदनी दुगनी हो गई। राजीव वर्मा शाम को अपनी कुर्सी पर बैठकर दोनों को देखते और मुस्कुराते।
वह सोचते कि एक वक्त था जब लोग कहते थे यह शादी नामुमकिन है। मगर आज यही रिश्ता कंपनी और खानदान की सबसे बड़ी ताकत बन
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