एक छोटी सी बच्ची ने एक घायल व्यापारी की मदद की, और फिर जो हुआ उसने सबको चौंका दिया – Islamic Moral Story In Hindi
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एक छोटी सी बच्ची ने एक घायल व्यापारी की मदद की, और फिर जो हुआ उसने सबको चौंका दिया
भारत के एक छोटे कस्बे में जिंदगी की सुबहें अक्सर धुंधली, आलूद और परसुकून होती थीं। लेकिन 11 साल का आरव शर्मा हर दिन एक नई जद्दोजहद का आगाज करता था। वह लड़का जिसकी उम्र खेलकूद और दोस्तों के साथ हंसी-खुशी गुजारने की होनी चाहिए थी, उसके कंधों पर गरीबी और जिम्मेदारियों का बोझ था। पिता कई साल पहले बीमारी की लपेट में आकर दुनिया छोड़ चुके थे। और मां संतोष देवी ने बेटे के साथ मिलकर जिंदगी की गाड़ी खींचने का बीड़ा उठाया था। उनका सहारा बस एक पुरानी रेहड़ी थी, जिस पर वे समोसे, पकोड़े और कचौड़ियां बेचते थे।
सुबह जब गांव के दूसरे बच्चे स्कूल जाने की तैयारी करते, तो आरव अपनी मां के साथ रसोई में होता। छोटा सा कमरा, जिसकी छत पर जगह-जगह टपकती बारिश के निशान थे, धुएं और तेल की खुशबू से भरा रहता। संतोष देवी अपने पुराने कढ़ाहे में गर्म तेल डालकर समोसे और पकोड़े तलती और आरव उन्हें अखबार में लपेटता। मां के चेहरे पर थकन के बावजूद एक अज़्म था कि बेटे को भूखा ना सुलाए। आरव जो उम्र में छोटा था, मगर दिल में बड़ा था, हमेशा मां की आंखों में छुपी तकलीफ को पहचान लेता और तसल्ली देता। “मां, फिक्र मत करो। एक दिन हमारी किस्मत जरूर बदलेगी।”
घर के हालात ऐसे थे कि अक्सर रात को चिराग जलाने के लिए भी पैसे कम पड़ जाते। पड़ोसी कभी हंसी उड़ाते, कभी तरस खाते। लेकिन आरव ने दिल में फैसला कर लिया था कि वह अपनी मां को कभी हारने नहीं देगा। वह दिन-रात मेहनत करता, स्कूल के बाद रेहड़ी धकेलकर बाजार जाता और ग्राहकों को आवाजें लगाता। उसकी नन्ही आवाज गलियों में गूंजती, “गरमागरम समोसे, कचौड़ियां ले लो, करारी पकौड़ियां ले लो।”
यह वह कस्बा था जहां हर तरफ बेरुखी भी थी और हमदर्दी भी। लोग रोजमर्रा की भागदौड़ में दूसरों की परेशानियों पर कम ही ध्यान देते थे। मगर आरव के दिल में एक अनोखा एहसास था, जैसे वह दुनिया के हर दुख को अपना समझता हो।
पहली मुलाकात
एक दिन की बात है। धुंधली सुबह के बाद जब सूरज की हल्की रोशनी बाजार की दुकानों पर पड़ी, तो आरव ने अपनी रेहड़ी स्टेशन के करीब लगाई। पास ही एक पुराना बेंच था, जिसकी पेंट उखड़ चुकी थी। वहीं एक अजनबी बैठा नजर आया। उसकी हालत बेहद खस्ता थी। बाल बिखरे हुए, कपड़े मैले, चेहरा जर्द और आंखें जैसे बरसों की थकन और ग़म लिए बैठी हों। लोग गुजर रहे थे, लेकिन कोई रुक कर पूछने वाला नहीं था कि वह आदमी कौन है और किस हाल में है।
आरव ने एक लम्हे के लिए रेहड़ी से नजरें हटाई और उस आदमी को गौर से देखने लगा। दिल में अजीब सी खिंचाव महसूस हुई। उसने सोचा, “यह शख्स तो भूखा लगता है। क्या मैं इसकी मदद कर सकता हूं?” फिर उसने थैले से एक समोसा निकाला और उसके पास जाकर बोला, “अंकल, आप भूखे हैं ना? यह लीजिए। यह आपके लिए है।”
आदमी ने थके हुए हाथ से समोसा थामा। आंखों में नमी तैरने लगी। चंद निवाले खाते ही उसके चेहरे पर सुकून सा आ गया। धीमी कांपती हुई आवाज में निकली, “शुक्रिया बेटा। तुम बहुत अच्छे हो।” आरव ने मुस्कुरा कर कहा, “अगर प्यास लगी है, तो मस्जिद के पास नलका है। वहां से पानी पी लीजिए।”
यह पहला लम्हा था जब आरव को लगा कि उसकी छोटी सी नेकी किसी के लिए कितनी बड़ी नेमत बन सकती है।
दोस्ती की शुरुआत
दिन ढल गया। आरव अपनी रेहड़ी संभालता हुआ वापस लौटा। उसने मां को उस अजनबी के बारे में कुछ नहीं बताया। दिल ही दिल में सोचा कि शायद कल फिर मिले और वह फिर उसकी मदद कर सके। अगले दिन आरव दोबारा वहीं गया। हैरत की बात यह थी कि वह अजनबी फिर उसी बेंच पर बैठा था। इस बार उसके चेहरे पर हल्की सी मुस्कुराहट थी। आरव ने आगे बढ़कर कहा, “गुड मॉर्निंग अंकल। अब फिर यहां?”
आदमी ने आहिस्ता सिर हिलाया और कहा, “हां बेटे। तुमने कल जो दिया था, उससे जान बच गई।” आरव ने एक और समोसा उसके हाथ में दिया और उसके साथ बैठ गया। बातों-बातों में अजनबी ने कहा, “मुझे अपना नाम भी याद नहीं। सब कुछ जैसे धुंध में छुप गया है। बस इतना याद है कि किसी ने मेरा पीछा किया और फिर अंधेरा छा गया।”
यह सुनकर आरव का दिल भर आया। उसने सोचा कि यह शख्स कोई पागल नहीं, बल्कि हादसे का शिकार है। उसने फैसला किया कि वह इसे कभी अकेला नहीं छोड़ेगा। उस दिन से उनके दरमियान एक खामोश दोस्ती शुरू हो गई। आरव के दिन अब मामूल के साथ मगर एक नए रंग में गुजरने लगे।
संकट का सामना
एक शाम जब आरव रेहड़ी समेट कर लौट रहा था, तो उसने गली के कोने पर दो अजनबियों को देखा। दोनों काले कपड़ों में थे और हाथ में किसी शख्स की तस्वीर पकड़े लोगों से पूछताछ कर रहे थे। उनकी बातें आरव के कानों में पड़ीं। “यह आदमी पागलखाने से भागा है। खतरनाक है। अगर किसी ने देखा तो फौरन इत्तला दे।”
आरव का दिल धक से रह गया। तस्वीर में चेहरा धुंधला था। लेकिन नक्श निगार विवेक से मिलते थे। उसने नजरें झुकाई और तेजी से घर की ओर भाग गया। घर पहुंचकर उसने मां को कुछ ना बताया। रात के खाने के बाद वह खामोशी से पीछे वाले कमरे में गया, जहां विवेक बैठा था। अंधेरी रात, टिमटिमाती लालटेन और बाहर से आती हवा ने माहौल को और ज्यादा संजीदा कर दिया था।
आरव ने धीमी आवाज में कहा, “अंकल, लोग आपको ढूंढ रहे हैं। कहते हैं कि आप पागलखाने से भागे हैं। मुझे डर लग रहा है।” विवेक ने कुछ लम्हे खामोश रहने के बाद जवाब दिया, “बेटे, मैं पागल नहीं हूं। मुझे लगता है किसी ने जानबूझकर मुझे भुलाया है। कुछ ऐसा है जो मैं जानता हूं। इसीलिए लोग मुझे खत्म करना चाहते हैं।”
आरव के नन्हे दिल पर यह अल्फाज़ बिजली बनकर गिरे। वह सोचने लगा कि शायद उसकी जिंदगी भी खतरे में पड़ सकती है। मगर फौरन अपने डर को पीछे धकेल दिया। वह जानता था कि एक बेसहारा इंसान को तन्हा छोड़ देना बुजदिली होगी। उसने हौसला पकड़ा और कहा, “अंकल, आप फिक्र मत करें। जब तक मैं हूं, कोई आपको कुछ नहीं कह सकता।”
नया आश्रय
उस दिन के बाद आरव ने विवेक को कस्बे के किनारे पड़े एक पुराने गोदाम में पहुंचा दिया। दीवारें जर्जर और छत टपकती थी। मगर यह जगह पहले से ज्यादा महफूज़ थी। उसने वहां बिस्तर, चटाई और पानी का मटका रख दिया और वक्त मिलने पर खाना भी पहुंचाता। अब आरव की जिंदगी दो हिस्सों में बंट गई थी। एक तरफ मां के साथ रेहड़ी लगाकर ग्राहकों को बुलाता और पुलिस की बदतमीजी सहता। दूसरी तरफ उस अजनबी की हिफाजत करता, जो उसके लिए खोए हुए पिता की तरह बन गया था।
विवेक अक्सर कहता, “बेटे, तुम बहुत छोटे हो। मगर दिल बड़ा है।” यह सुनकर आरव फक्र महसूस करता। मगर खतरा बढ़ रहा था। एक दिन जब वह बाजार में समोसे बेच रहा था, तो दो पुलिस वाले आ पहुंचे। रेहड़ी उलटने लगे और बोले, “छोटू, यहां जगह घेर ली है। भाग जा वरना जेल में डाल देंगे।” मां संतोष देवी दौड़ती आई और हाथ जोड़कर बोली, “साहब, गरीब का रोजगार है। रेड़ी मत उलटाइए।” लेकिन पुलिस ने ना सुनी।
भाई का सहारा
उसी वक्त एक सफेद जीप रुकी और दबंग डीएसपी आदित्य शर्मा उतरे। आरव का सगा भाई। उसे देखकर पुलिस वाले चुप हो गए। आदित्य ने कहा, “यह मेरा भाई है। इसकी रेहड़ी को हाथ लगाया तो अच्छा नहीं होगा।” पुलिस फौरन माफी मांगने लगे। आरव हैरान और खुश था। पहली बार उसे लगा कि उसका सहारा है। मां की आंखों में खुशी के आंसू आ गए।
मगर आरव के दिल में एक कैफियत थी। भाई की ताकत पर खुशी भी थी। मगर विवेक का राज छुपाने की फिक्र भी। वह नहीं चाहता था कि कोई जान ले कि कस्बे के कोने में एक अजनबी छुपा है, जिसे लोग पागल या मुजरिम समझते हैं। रात को मां के सोने के बाद आरव गोदाम गया। विवेक कुर्सी पर बैठा बारिश की बूंदों में भीगा हुआ था। आरव ने खाना दिया। विवेक ने पूछा, “बेटे, बाहर शोर सुन रहा था। क्या हुआ था?” आरव ने बताया कि पुलिस रेहड़ी उलटाना चाह रही थी। मगर डीएसपी भाई ने बचा लिया।
विवेक ने कहा, “खुशकिस्मत हो तुम्हारे पास भाई है। ताकत के बिना गरीबों को कोई नहीं पूछता।” आरव ने मासूमियत से पूछा, “अंकल, लगता है आप भी कोई बड़े आदमी थे ना?” विवेक के होंठ कांपे। फिर बोला, “कभी ख्वाब आता है कि मैं दफ्तर में बैठा हूं। लोग फाइलें लाते हैं। फिर अचानक गोलियां चलती हैं। चीखें आती हैं और अंधेरा छा जाता है। तब से कुछ याद नहीं।”
आरव को यकीन हो गया कि यह आम आदमी नहीं, जरूर किसी साजिश का शिकार है। अगले दिन स्कूल के बाद उसने देखा कि कुछ लोग तस्वीर दिखाकर पूछताछ कर रहे हैं। एक शख्स कह रहा था, “यह राजीव वर्मा है। बड़ा बिजनेसमैन, दो हफ्ते पहले अगवा हुआ। कंपनी के अंदर के लोग शामिल हैं।” आरव के रोंगटे खड़े हो गए। “क्या विवेक ही राजीव वर्मा है?”
सच्चाई का सामना
रात को वह गोदाम पहुंचा और पूछा, “अंकल, आपका असली नाम क्या है? कहीं आप राजीव वर्मा तो नहीं?” विवेक चौंक गया और आहिस्ता से बोला, “यह नाम मेरे दिल में हलचल मचाता है। शायद मैं वहीं हूं।” आरव ने कहा, “लोग कह रहे हैं, आपको कंपनी वालों ने अगवा किया।” विवेक की आंखों में आंसू आ गए। “अगर यह सच है तो मेरा अपना कोई दुश्मन था। मेरे पास ऐसे सबूत थे जो बड़े लोगों को डूबाने के लिए काफी थे। इसीलिए मुझे खत्म करना चाहा।”
आरव ने कहा, “हम वह सबूत ढूंढ सकते हैं। आपके दफ्तर या घर में कुछ होगा।” विवेक ने उसे देखा और कहा, “तुम बच्चे हो। यह तुम्हारे बस की बात नहीं। लेकिन तुमने मेरा जो साथ दिया है, वही मेरी सबसे बड़ी दौलत है।” आरव ने मुस्कुरा कर कहा, “जब तक मैं हूं, आप अकेले नहीं हैं।”
इतने में बाहर कदमों की आहट सुनाई दी। आरव ने देखा कि दो साए गोदाम के पास घूम रहे हैं। वह फौरन बोला, “अंकल, यह जगह महफूज़ नहीं रही। हमें जाना होगा।” वे पिछले दरवाजे से निकले और अंधेरी रात में एक पुराने खेत के कोठे में जा छुपे। बारिश तेज थी। बिजली कड़क रही थी। मगर आरव के दिल में हिम्मत थी। अब वह जानता था कि इस अजनबी की हिफाजत ही उसकी जिंदगी का मकसद है।
खतरे की घंटी
मां और भाई को कुछ ना बता सका। मगर दिल में अहद किया कि वह राजीव वर्मा को दुश्मनों के खिलाफ खड़ा करेगा, चाहे जान ही क्यों ना देनी पड़े। सुबह कस्बा अभी जागा ना था, मगर आरव जाग रहा था। रात भर वह कोठे में राजीव वर्मा के साथ छुपा रहा। बारिश थम गई थी, मगर सर्दी बाकी थी। उसने सोचा अब और छुपने से काम नहीं चलेगा। कुछ करना होगा।
उस दिन जब आरव रेहड़ी लेकर बाजार पहुंचा तो शोरगुल में भी उसके कान बस एक ही आवाज ढूंढ रहे थे। वह लोग जो विवेक को तलाश कर रहे थे। उसकी नजर एक काली क्रूज गाड़ी पर पड़ी। अंदर बैठे दो आदमी तस्वीरें दिखा रहे थे। आरव के पेट में डर सा बैठ गया। उसने जल्दी से समोसे लपेटे और ग्राहकों को बहाना बनाकर पिछली गली से निकल गया।
सच्चाई का खुलासा
शाम को वह आदित्य भाई के कमरे में गया। आदित्य फाइलें देख रहे थे। आरव ने झिझक कर कहा, “भैया, अगर कोई अजनबी जख्मी हालत में आपके पास आ जाए तो आप क्या करेंगे?” आदित्य ने चौंक कर देखा। “हम पुलिस वाले हैं। हर अजनबी की खबर लेनी पड़ती है। कभी अच्छा निकलता है, कभी मुजरिम। क्यों पूछ रहे हो?” आरव के जहन में विवेक का चेहरा आया। मगर फौरन बात बदल दी।
“वैसे ही सोच रहा था। भैया,” आदित्य ने उसके कंधे पर हाथ रखा। “दुनिया आसान नहीं। हर किसी पर भरोसा नहीं करना चाहिए। तू अभी बच्चा है। संभल कर रहना।” यह बात आरव को और उलझा गई। भाई की नसीहत एक तरफ, विवेक पर यकीन दूसरी तरफ।
उसी रात कोठे में विवेक ने कहा कि उसे ख्वाब में एक ऊंची इमारत याद आती है, जिस पर “वर्मा ग्रुप” लिखा होता है। “वहां जरूर कोई सबूत होगा। अगर मैं दफ्तर तक पहुंच जाऊं तो सब कुछ वाजे हो जाएगा।” विवेक बोला। आरव ने पुरजम लहजे में कहा, “अंकल, मैं आपको वहां ले चलूंगा, मगर एहतियात से।”
अगले दिन दोनों एक पुराने ट्रक में छुपकर शहर निकले। आरव बार-बार बोरियों के पीछे झुकता रहा कि कोई पहचान ना ले। विवेक खामोशी से खिड़की के बाहर देखता रहा। शहर पहुंचे तो सामने वही बिल्डिंग खड़ी थी, जो विवेक के ख्वाब में आती थी। आरव ने कहा, “अंकल, यह सब आपका है।” विवेक ने सांस ली। “अगर याददाश्त ने धोखा नहीं दिया तो हां, अंदर जाना मुश्किल था। सिक्योरिटी सख्त थी।”
आरव ने पिछले दरवाजे का रास्ता देखा और दबे कदमों से अंदर ले गया। चमकते फर्श, बड़ी तस्वीरें और कॉन्फ्रेंस रूम्स। विवेक के कदम लड़खड़ा रहे थे। उसने एक दरवाजे की तरफ इशारा किया। “यही मेरा कमरा था।” उसने जूते में छुपी पुरानी चाबी निकाली। दरवाजा खुला। अंदर वसीया कमरा था। बड़ी मेज, अलमारियां, शील्ड्स। विवेक ने दराज से फाइलें और एक पेनड्राइव निकाली। “यही वजह है कि मुझे मिटाने की कोशिश हुई।”
आरव ने पूछा, “इसमें क्या है?” विवेक ने संजीदगी से कहा, “मेरे करीबी साथियों की बदनियती के सबूत। अगर यह सामने आ गया, तो उनकी दुनिया हिल जाएगी।” अचानक कदमों की आवाज गूंजी। गार्ड्स करीब थे। विवेक ने फाइलें बैग में डाली और कहा, “बेटे, फ़ौरन निकलना होगा।” दोनों पिछले दरवाजे की तरफ भागे। गार्ड्स शोर मचा रहे थे। “वह ऊपर हैं, पकड़ो।”
अंतिम संघर्ष
आरव और विवेक एक खाली हाल में घुस गए। बाहर बारिश बरस रही थी। खिड़की से सड़क नजर आती थी। आरव ने कहा, “अंकल, कूदना होगा वरना पकड़ लिए जाएंगे।” विवेक ने लम्हे भर देखा और छलांग लगा दी। आरव भी पीछे-पीछे। वे जमीन पर गिरे, जख्मी हुए मगर बच गए। बारिश में वे अंधेरी गलियों से भागे और एक पुरानी शटर वाली दुकान में पनाह ली।
राजीव ने बैग सीने से लगा लिया। “यह सब मेरी जिंदगी से कीमती है। अगर यह दुश्मनों को मिला तो पूरा शहर उनके शिकंजे में होगा।” आरव ने कहा, “हम इसे कभी उनके हाथ नहीं लगने देंगे। मगर अब अगला कदम सोचना होगा।” राजीव बोला, “मेरा पुराना दोस्त बजरंग सिंह आजाद सहाफी है। अगर यह फाइलें उसे मिल गईं, तो सच दुनिया के सामने होगा। लेकिन मुझे डर है वह तुम्हें नुकसान ना पहुंचा दें।”
आरव थकान के बावजूद हंस पड़ा। “अंकल, फिक्र ना करें। अब तो मेरा डीएसपी भाई भी है। वक्त आया तो वह मदद करेगा।” अचानक बाहर गाड़ी के टायरों की आवाज आई। फिर शटर पर जोरदार धमाका हुआ। कोई अंदर घुसने की कोशिश कर रहा था। आरव ने फौरन राजीव को पीछे दरवाजे की तरफ खींचा।
सच्चाई की जीत
दोनों अंधेरों में निकले और अगली सुनसान गली में जा पहुंचे। ऊपर जलता बुझता बल्ब माहौल को और डरावना बना रहा था। आरव ने हाफते हुए कहा, “अब कहां जाएं?” राजीव ने कहा, “मेरे ख्याल में हमें स्टेशन जाना होगा। बजरंग सिंह अक्सर अखबार फरोशों से मिलता है। शायद वहीं मिल जाए।” दोनों स्टेशन की तरफ बढ़ने लगे। आरव बार-बार पीछे देखता रहा।
काली गाड़ियों की लाइट्स अब भी गलियों में घूम रही थीं। प्लेटफार्म पर हुजूम था। अखबार फरोशों के बीच एक बूढ़ा जैकेट पहने आदमी बैठा था। “वही है बजरंग सिंह,” राजीव ने कहा। वे आगे बढ़े। बजरंग चौंक गया। राजीव ने बैग खोलकर फाइलें दिखाई। “यह वह सबूत हैं जिन पर मेरी जान खतरे में है।”
बजरंग की आंखों में हैरत और संजीदगी उतर आई। “राजीव, तुम मर गए हो और यह लड़का कौन है?” राजीव ने आरव के कंधे पर हाथ रखा। “यह मेरा हीरो है। इसने मुझे बचाया, खिलाया, छुपाया। इसके बिना मैं कभी यहां ना पहुंचता।” आरव शर्मा गया, मगर दिल ही दिल में खुश था।
बजरंग ने फाइलें संभाली। “मैं कल ही मीडिया में सब कुछ लीक कर दूंगा। लेकिन दुश्मन अब और भी गजबनाक होंगे।” इतने में शोर मचा। दो आदमी काले कपड़ों में आ गए। आरव ने फौरन राजीव और बजरंग को खींचा और पिछले रास्ते से निकल भागा।
अंतिम लड़ाई
अंधेरी रात, बारिश, सुनसान गली। दुश्मन करीब था। आरव के दिल में ख्याल आया कि अब भाई डीएसपी आदित्य को खबर देना होगी। मगर क्या पुलिस राजीव को गिरफ्तार ना कर लेगी? राजीव ने कहा, “बेटे, हम ज्यादा देर नहीं छुप सकते। फाइलें बजरंग के पास हैं। मगर मैं अब भी खतरे में हूं। वो लोग मुझे खत्म करना चाहेंगे।”
आरव ने अजम से कहा, “अब हम सीधा मेरे भाई के पास जाएंगे। वह सच्चा है। वह आपकी हिफाजत करेगा।” राजीव ने लम्हे भर तजबजुब के बाद कहा, “शायद यही ठीक है। अब मैं तुम पर भरोसा करता हूं।”
अगली सुबह आरव राजीव को मोहल्ले के पुराने कमरे में ले आया। दिन भर रेहड़ी चलाई। मां को बहलाया और शाम को भाई के पास पहुंचा। “भैया, मुझे राज की बात करनी है,” आरव ने कहा। आदित्य चौंका, “क्या हुआ? तुम घबराए हुए लग रहे हो।”
आरव ने सब कुछ बता दिया। अजनबी से मुलाकात, पनाह, फिर उसका राजीव वर्मा निकलना और कहातिना हमले। आदित्य ने पहले यकीन ना किया, मगर भाई की आंखों में सच्चाई देखकर खामोश हो गया। आदित्य ने सख्त लहजे में पूछा, “भैया, वो अच्छा इंसान है। हमारे पुराने कमरे में छुपा है।”
आदित्य ने कहा, “तुमने बहुत बड़ा खतरा मोल लिया है। उनके पीछे ताकतवर सियासतदान और बिजनेसमैन हैं। हमें सच आवाम तक पहुंचाना होगा। मगर पहले उसको तहफुज देना होगा।” आरव ने सुकून का सांस लिया। उसे लगा अब मदद मिलेगी।
सच्चाई का सामना
रात को आदित्य ने राजीव से मुलाकात की। उसने अपनी हालत और याददाश्त का हाल सुनाया। फिर कहा, “फाइलें बजरंग के पास हैं। मगर मीडिया में जाने के बाद भी मेरा बयान जरूरी होगा।” आदित्य ने सर हिलाया। “मैं तहफुज दूंगा, मगर यह लड़ाई आसान नहीं। पुलिस के अंदर भी दुश्मनों के आदमी हैं। किसी वक्त हमला हो सकता है।”
बात खत्म ही हुई थी कि मोटरसाइकिलों की आवाज आई। खिड़की से देखा तो छह गुंडे, डंडे और हथियार लिए आ रहे थे। आदित्य ने पिस्तल निकाल ली। “आरव, अंदर रहो। मैं देखता हूं।” राजीव घबरा कर बोला, “वे मुझे लेने आए हैं।” आदित्य ने दरवाजा खोला और गरजा, “रुक जाओ। यह डीएसपी आदित्य शर्मा का घर है।”
गुंडे लम्हे भर रुके। फिर एक बोला, “हें हुक्म ऊपर से है। राजीव वर्मा हमारे हवाले करो।” आदित्य ने बंदूक सीधी की। गली में कशीदगी फैल गई। आरव ने मां को अंदर महफूज़ कर दिया। लम्हे भर को लगा जंग छिड़ जाएगी।
सच्चाई की जीत
मगर अचानक पुलिस की जीप आ गई। आदित्य ने खुफिया तौर पर मदद बुला ली थी। अहलकार उतरते ही गुंडों को घेरने लगे। कुछ गिरफ्तार हुए, कुछ भाग गए। राजीव ने सुकून की सांस ली। शायद किस्मत ने फिर बचा लिया। आरव ने भाई को गले लगाया। “अब हम सब साथ हैं। अब कोई हमें नहीं तोड़ सकता।”
मगर आदित्य जानता था कि असल तूफान अभी बाकी है। जो लोग इतनी दूर आ गए हैं, वे पीछे नहीं हटेंगे। सच की जंग अब खुले मैदान में लड़नी थी। अगली सुबह मोहल्ले में सरगोशियां थीं कि डीएसपी आदित्य के घर पर हमला क्यों हुआ? लोग डरे और हैरान थे। मगर आरव के दिल में सुकून था कि अब राजीव वर्मा अकेला नहीं।
राजीव अभी भी नकाहत में था, मगर चेहरे पर नया हौसला था। वह बार-बार कहता, “अगर तुम ना होते तो वे लोग मुझे उठा ले जाते।” आदित्य ने सख्त लहजे में कहा, “यह सब वक्त है। असल लड़ाई अब शुरू हुई है। तुम्हारे पास जो सबूत हैं, वही हमारी ताकत है। लेकिन पुलिस में भी कुछ उन्हीं के आदमी हैं।”
आरव खामोश सुनता रहा। उसे लगा जैसे फिल्म हो। मगर यह हकीकत थी और उसका खानदान इसमें फंसा था। उसने कहा, “भैया, हमें सच सबके सामने लाना होगा। अगर हम छुपते रहे, तो वे हमें ढूंढते रहेंगे।” राजीव ने मुस्कुराकर कहा, “यह बच्चा मुझसे ज्यादा समझदार है।”
अंतिम फैसला
उसी शाम आदित्य ने खुफिया मीटिंग रखी। कुछ काबिल एतमाद साथी, चार पुलिस अहलकार, बजरंग सहाफी और राजीव एक तंग कमरे में जमा हुए। मेज पर फाइलें रखी थीं। बजरंग ने कहा, “यह सबूत मीडिया में पहुंचे तो आधी रियासत हिल जाएगी। लेकिन यकीन दिलाने के लिए राजीव को आवाम के सामने आना होगा।”
आदित्य ने परेशानी से कहा, “यह सबसे बड़ा खतरा है। जैसे ही यह बाहर आएगा, दुश्मन खुलेआम वार करेंगे।” राजीव ने पुरज्म लहजे में कहा, “मैं तैयार हूं। मजीद भागना नहीं चाहता। अगर जान गई, तो भी सच सामने आ जाएगा।” आरव कांप गया। “अंकल, ऐसा मत कहें।”
राजीव ने उसे गले लगाकर कहा, “बेटे, तुमने मुझे जीने का हौसला दिया है। अब अगर मैं सच्चाई के लिए ना खड़ा हुआ, तो यह कुर्बानियां जाया होंगी।” फैसला हुआ कि अगले दिन प्रेस कांफ्रेंस होगी। बजरंग ने मीडिया को खुफिया दावतनामे भेज दिए। आदित्य ने टीम को अलर्ट किया।
सच्चाई की जीत
मगर दुश्मन भी सरगर्म थे। अगली सुबह आरव ने देखा, दो पुलिस वाले रेहड़ी के पास खड़े तंजिया बोले, “ओए छोटे समोसे के बहाने बड़ा खेल खेल रहा है ना?” आरव घबरा गया। इतने में आदित्य जीप से उतरे। पुलिस वाले फौरन सीधे हो गए। आदित्य ने कहा, “यह मेरा भाई है। अगर बदतमीजी की तो वर्दी उतरवा दूंगा।” गली के लोग हैरान रह गए कि छोटा आरव डीएसपी का भाई है।
उस दिन से सब इज्जत से पेश आने लगे। दोपहर तक कम्युनिटी हॉल में तैयारियां मुकम्मल हुईं। मीडिया अंदर बैठा। बाहर पुलिस पहरा। आरव राजीव के साथ अंदर आया। दिल धड़क रहा था, मगर चेहरे पर अज़्म था। राजीव ने माइक के सामने कहा, “मेरा नाम राजीव वर्मा है। मुझे अपने करीबी लोगों ने धोखा देकर मारने की कोशिश की। मगर मैं जिंदा हूं और आज सच सामने लाने आया हूं।”
हॉल में खलबली मच गई। रिपोर्टरों ने सवालों की बौछार कर दी। “कौन वजीर शामिल हैं? सबूत कहां है?” राजीव ने जवाब दिया, “यह सबूत आजाद सफियों के पास है। यह आवाम की अमानत है। वक्त आने पर सब सामने आएगा।”
हॉल के कोने में आरव बैठा सोच रहा था कि एक समोसे से शुरू होने वाली कहानी कहां पहुंच गई। अचानक दरवाजा धमाके से खुला। तीन मुसल्लाह आदमी अंदर घुस आए। रिपोर्टर भागने लगे। आदित्य ने पिस्तल निकाल ली। “कोई हरकत ना करे। यह सरकारी कॉन्फ्रेंस है।” एक हमलावर बोला, “राजीव वर्मा हमारे साथ चलो। यह ड्रामा खत्म करो।”
आरव चीखा, “अंकल को कोई हाथ नहीं लगाएगा!” लोग लम्हे भर रुक गए। आदित्य ने इशारा किया। बाहर के पुलिस अहलकार अंदर घुसे और हमलावरों को काबू कर लिया। राजीव ने कहा, “देख लो, यह किसी भी हद तक जा सकते हैं। लेकिन सच अब नहीं दबेगा।”
नया सवेरा
प्रेस कॉन्फ्रेंस खत्म हुई, मगर शहर में हलचल मच गई। न्यूज़ चैनलों पर राजीव के बयान की क्लिप्स चलने लगीं। अपोजिशन ने हुकूमत पर हमले शुरू कर दिए। आवाम सोशल मीडिया पर गुस्सा जाहिर करने लगी। मगर खतरा बढ़ गया। दुश्मनों ने फैसला किया कि अब राजीव को जिंदा नहीं छोड़ना।
उसी रात इत्तला मिली कि सुबह कुछ लोग सरकारी जीपों की आड़ में हमला करेंगे। आदित्य ने मां और आरव को बिठाकर कहा, “अब हम सब खतरे में हैं। यह सिर्फ राजीव की नहीं, हमारी जंग है। लेकिन फिक्र ना करो। मैं अपने भाई को मरने नहीं दूंगा।” आरव ने मां का हाथ पकड़ा। दिल में खौफ था, मगर आंखों में रोशनी। “भैया, आप अकेले नहीं हैं। हम सब साथ हैं।”
अगली सुबह पुलिस ने खुसूसी सिक्योरिटी जोन बनाया। राजीव को अदालत ले जाना था। जीपें तैयार थीं कि अचानक एक काली एसयूवी आकर रुकी। नकाबपोश निकले और अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी। आदित्य ने आरव और संतोष को नीचे झुका दिया। पुलिस ने मोर्चा संभाला। गोलियां गूंजने लगीं।
राजीव ने कपकपाते हाथों से कहा, “अगर मैं बच ना सका, तो यह सबूत झाया मत करना। यह तुम्हारी अमानत है।” आरव चीखा, “नहीं अंकल, आपको कुछ नहीं होगा। हम सब मिलकर लड़ेंगे।” उसी लम्हे बजरंग मोटरसाइकिल पर पहुंचा और शोर मचाया। लोग जमा हुए। हमलावर दबाव में आकर पीछे हटे। पुलिस ने जवाबी फायरिंग की और वे फरार हो गए।
यह पैगाम था कि लड़ाई अब खुली जंग है। राजीव वर्मा का नाम हर जुबान पर और आरव की बहादुरी हर दिल में घर करने लगी। हमले ने शहर को हिला दिया। न्यूज़ चैनल्स चलाने लगे। राजीव वर्मा पर कातिलाना हमला। डीएसपी आदित्य ने जानफिशानी से बचाया। आवाम गुस्से में थी।
सच्चाई की जीत
आदित्य ने आला अफसरों से मुलाकात की। मगर कुछ चेहरों पर अजनबियत थी। उसे यकीन हो गया कि पुलिस में भी गद्दार हैं। अब वाहिद रास्ता यह था कि सबूत अदालत में पहुंचे। घर में आरव बार-बार कल की गोलियों की आवाज दोहरा रहा था। लेकिन उसे याद आता कि एक समोसा देने से यह सब शुरू हुआ और अब वही नेकी उसका सबसे बड़ा इम्तिहान है।
राजीव ने कहा, “मैं रूपश हो सकता हूं, मगर यह बच्चे और औरतें खतरे में हैं।” आदित्य ने जवाब दिया, “पीछे हटने का वक्त नहीं। दुश्मन आखिरी वार करेगा।” उसी वक्त बजरंग सिंह आया। उसके हाथ में नई फाइलें थीं। रकम की मुंतकली के रिकॉर्ड, जाली मुआहिदे और वीडियोस जिनमें वजीरों को रिश्वत लेते दिखाया गया है। “अगर यह आवाम के सामने आया, तो हुकूमत हिल जाएगी।”
राजीव ने कहा, “यही बोझ मुझे बेनाम बना गया। मगर अब वक्त है कि यह बोझ सब बांटें।” अगले दिन अदालत में समात हुई। पुलिस ने सख्त सिक्योरिटी की। आरव मां के साथ कोने में बैठा सब देख रहा था। कैमरे, वकील और जज की गहरी आवाज उसे ख्वाब लग रही थी।
राजीव ने हलफ लेकर बयान दिया। कमरा ए अदालत सन्नाटे में डूब गया। उसने बताया कि बिजनेस पार्टनर्स ने अगवा की साजिश की। वजीरों ने रास्ते से हटाने की कोशिश की और मीडिया खरीदा गया। सबूत पेश किए गए, वीडियोस चलीं, दस्तावेज दिखाए गए। वकील ए इस्तगासा ने कहा, “यह मामला एक शख्स का नहीं, बल्कि करोड़ों आवाम के एतमाद का है।”
सच्चाई की जीत
अदालत के बाहर हजारों लोग नारे लगा रहे थे। “सच को सामने लाओ, करप्शन खत्म करो।” आरव खिड़की से यह मंजर देखकर खुश हुआ कि उसकी नेकी अब रोशनी बन गई है। मगर जैसे ही समात खत्म हुई, एक नखाबपश ने हुजूम से फायर किया। आदित्य ने अपने जिस्म को राजीव के आगे कर दिया। गोली कंधे को छूकर निकल गई। पुलिस ने हमलावर को दबोच लिया।
आरव चीख उठा। “भैया!” आदित्य ने दर्द के बावजूद कहा, “चोट मामूली है, मगर देख लिया ना, यह लोग आखिरी हद तक जाएंगे।” इस वाक्य ने आवाम को मजीद भड़का दिया। सोशल मीडिया पर गुस्सा बढ़ा। अपोजिशन ने जलसे बुलाए। घर लौटकर संतोष देवी ने जख्म पर मरहम रखा। उसके हाथ कांप रहे थे। “बेटा, तुम अपनी जान क्यों खतरे में डालते हो?”
आदित्य ने कहा, “मां, अगर हम खामोश रहे, तो यह गुंडे हमेशा जीतेंगे। मैं आरव की बहादुरी देख चुका हूं। अब पीछे नहीं हट सकता।” राजीव की आंखों में नमी आ गई। वो जान गया कि उसे नया खानदान मिला है, जो खून से नहीं, बल्कि सच्चाई और कुर्बानी से जुड़ा है। सब एक अहद पर मुत्तफिक थे। आखिरी मारका जीतना होगा।
सच्चाई की जीत
रात गहरी थी। आसमान पर बादल और बिजली कड़क रही थी। आदित्य का जख्म संभल रहा था, मगर दिल में आग भड़क रही थी। राजीव खिड़की के पास खड़ा फाइलें थामे था। आरव ने पूछा, “अंकल, अब क्या होगा?” राजीव ने कहा, “अब फैसला कुनवार होगा। यह खेल या तो सच की जीत पर खत्म होगा या हमारी जानों पर।”
अगली सुबह अदालत ने ऐलान किया कि सब शवाहिद आवामी रिकॉर्ड पर आएंगे। वजीरों और सनातकारों की नींद हराम हो गई। उन्होंने आखिरी मंसूबा बनाया कि राजीव को अदालत पहुंचने से पहले रास्ते में ही गलायब कर दें। आदित्य को पहले ही शक था। उसने खुफिया रास्ता इख्तियार किया। तीन जीपें, सख्त सिक्योरिटी, आगे पीछे पुलिस की गाड़ियां। आरव भी जिद करके साथ था।
संतोष देवी बार-बार कह रही थी, “बेटा, घर रहना चाहिए था। यह सब तुम्हारे बस की
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