एक बुजुर्ग बुढा को बैंक मैनेजर ने भिखारी समझकर बाहर क्यों निकाला …… फिर जो हुआ उसे देखकर तंग

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बूढ़े जसवंत का अपमान और विक्रांत की न्याय की कहानी

सुबह का समय था, और बैंक में भीड़ बढ़ रही थी। सभी कर्मचारी अपने-अपने काम में व्यस्त थे। कैशियर के सामने लंबी लाइन लगी हुई थी। तभी एक बूढ़ा आदमी, जसवंत, सफेद कुर्ता, सफेद धोती और सिर पर पगड़ी बांधे बैंक में प्रवेश करता है। उसकी उम्र का असर उसके चेहरे पर साफ दिखाई दे रहा था। वह इधर-उधर देखने के बाद एक कोने में जाकर चेक स्लिप भरता है और पैसे निकालने की लाइन में खड़ा हो जाता है।

बूढ़े का प्रयास

जसवंत के आगे 810 लोग खड़े थे। धीरे-धीरे लाइन आगे बढ़ी, और आखिरकार वह काउंटर पर पहुंचा। उसके कपड़े थोड़े मैले थे, और माथे पर पसीने की बूंदें चमक रही थीं। उसने चेक और स्लिप कैशियर के हाथ में दिया। कैशियर ने चेक देखा और उसमें लिखी राशि देखकर उसे गौर से देखने लगा। चेक पर 2 लाख रुपए की राशि थी, और यह एक बैरर चेक था, जिसका मतलब था कि इसे कोई भी भुना सकता था।

कैशियर ने बूढ़े से पूछा, “आपका नाम क्या है, और आपको यह चेक कहां मिला?” जसवंत ने जवाब दिया, “मेरा नाम जसवंत है। यह चेक मुझे मेरे बेटे ने दिया है। मुझे जल्दी पैसे चाहिए, मेरी पत्नी अस्पताल में है।”

अपमान का सामना

कैशियर ने पूछा, “क्या आपके पास कोई पहचान पत्र है?” जसवंत ने कहा, “नहीं, मेरे पास कुछ नहीं है। मैं बहुत जल्दी में हूं।” इस पर कैशियर ने कहा, “जब तक हमें यकीन नहीं हो जाता कि यह चेक आपके लिए है, मैं आपको पैसे नहीं दे सकता।”

बूढ़ा हाथ जोड़कर कहने लगा, “मुझे पैसे दे दो। मुझे बहुत जरूरत है।” कैशियर ने उसे धक्के मारकर बाहर निकालने की धमकी दी। जसवंत का अपमान हो रहा था, और वह शर्मिंदा होकर बैंक से बाहर आ गया।

बेटे का फोन

बाहर आते ही, उसके बेटे विक्रांत का फोन आया। विक्रांत ने पूछा, “पापा, आप बैंक से आ गए? आपका काम हो गया ना?” जसवंत ने मायूसी से कहा, “नहीं बेटा, काम नहीं हुआ।” विक्रांत ने आश्चर्य से पूछा, “ऐसे कैसे? यह तो बेरर चेक है।”

जसवंत ने कहा, “कैशियर मुझसे बहुत सवाल पूछ रहा था। मैंने आधार कार्ड भूल गया था।” विक्रांत ने कहा, “रुकिए, मैं अभी आता हूं।”

विक्रांत की एंट्री

कुछ ही समय बाद, अस्पताल के सामने एक बड़ी गाड़ी रुकी। विक्रांत और उसके चार बॉडीगार्ड उतरे। विक्रांत ने अस्पताल के डॉक्टर से बात की, और उसकी मां का ऑपरेशन तुरंत शुरू हो गया।

विक्रांत ने अपने पिता से कहा, “पिताजी, ऑपरेशन शुरू हो गया है।” जसवंत ने कहा, “लेकिन मुझे बैंक में अपमानित किया गया था।” विक्रांत ने कहा, “आप चिंता न करें, मैं सब ठीक कर दूंगा।”

बैंक में वापसी

अगले दिन, विक्रांत ने जसवंत से कहा, “आज हमें बैंक जाना है।” जसवंत ने सफेद धोती और कुर्ता पहनकर तैयार हो गए। विक्रांत ने ड्राइवर को गाड़ी बैंक के पास खड़ी करने को कहा, और दोनों बैंक पहुंचे।

बैंक में जाकर, जसवंत ने फिर से लाइन में खड़ा हो गया। उसका नंबर आया, और उसने कैशियर को चेक दिया। कैशियर ने जसवंत को वही अपमानित नजर से देखा।

न्याय की मांग

जसवंत ने कहा, “मैंने कल कहा था कि यह चेक मेरे बेटे ने दिया है।” कैशियर ने कहा, “आपके कपड़े देखकर लगता है कि आप गरीब हैं।” जसवंत ने कहा, “मेरे बेटे के खाते में पैसे हैं।”

इस बार विक्रांत ने सब कुछ सुन लिया। उसने सोचा, “अब समय आ गया है कि इन लोगों को सबक सिखाया जाए।” विक्रांत ने कहा, “आप लोग किसे समझते हैं? यह मेरे पिता हैं, और आपको उनके साथ ऐसा बर्ताव नहीं करना चाहिए।”

विक्रांत का गुस्सा

विक्रांत ने कहा, “मैं गवर्नर हूं।” यह सुनकर बैंक के कर्मचारी और कैशियर चौंक गए। विक्रांत ने कहा, “आपने मेरे पिता का अपमान किया है।”

कैशियर ने कहा, “आप गवर्नर हैं?” विक्रांत ने कहा, “हां, और मैं आपके खिलाफ कार्रवाई करूंगा।”

अपमान का अंत

बैंक के मैनेजर ने आकर स्थिति को संभालने की कोशिश की, लेकिन विक्रांत ने कहा, “आप सभी की नौकरी अब खतरे में है।”

जसवंत ने कहा, “माफ कर दो सबको।” विक्रांत ने कहा, “नहीं, उन्हें सबक सिखाना जरूरी है।”

सीख और सुधार

आखिरकार, विक्रांत ने सभी को माफ कर दिया, लेकिन एक शर्त पर कि वे आगे से किसी भी ग्राहक के साथ ऐसा व्यवहार नहीं करेंगे। कैशियर ने पैसे निकालकर जसवंत को दिए और माफी मांगी।

निष्कर्ष

इस घटना ने सभी को यह सिखाया कि इंसान का मूल्य उसके कपड़ों या संपत्ति से नहीं, बल्कि उसके सम्मान से होता है। बैंक में आने वाले हर व्यक्ति को समान समझा जाना चाहिए, चाहे वह अमीर हो या गरीब।

इस तरह, जसवंत और विक्रांत ने न केवल अपने अपमान का बदला लिया, बल्कि समाज को भी एक महत्वपूर्ण सबक सिखाया।

समाप्त

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