एक बूट पॉलिश वाले ने 100 करोड़ की AI मशीन ठीक कर दी जिसे कोई ठीक नहीं कर पाया। आखिर कौन है वो लड़का…

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एक बूट पॉलिश वाले का चमत्कार: 100 करोड़ की AI मशीन और एक परिवार की वापसी

1. मुंबई की चमक और छाया

मुंबई की गगनचुंबी इमारतों के बीच, जहाँ हर चीज़ की कीमत आसमान छूती थी, वर्मा कॉरपोरेशन का मुख्यालय एक अभेद्य किले की तरह खड़ा था। उस दिन पूरे शहर में चर्चा थी—अरबपति यशवर्धन वर्मा अपनी सबसे बड़ी उपलब्धि, 100 करोड़ की आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस मशीन, दुनिया के सामने पेश करने वाले थे। देश-विदेश का मीडिया, बड़े निवेशक और नामी हस्तियाँ एक विशाल कॉन्फ्रेंस हॉल में जमा थीं। माहौल में गर्व, उत्साह और तनाव था।

यशवर्धन मंच पर आए, अपने शानदार सूट में, चेहरे पर आत्मविश्वास की चमक। माइक पर बोले—”मैं आपके सामने पेश करता हूँ भविष्य का इंजन।” जैसे ही उन्होंने लाल बटन दबाया, उम्मीद की लहर दौड़ गई। लेकिन अचानक मशीन में अजीब सी आवाज आई, हल्का धमाका हुआ, और धुएँ का गुबार उठा। रोशनी बुझ गई। सन्नाटा छा गया। मशीन, जो कंपनी की साख थी, अब लोहे का बेजान ढेर बन चुकी थी।

हॉल में अफरा-तफरी मच गई। सोशल मीडिया पर अफवाहें जंगल की आग की तरह फैल गईं—वर्मा कॉरपोरेशन दिवालिया होने वाली है, उनकी तकनीक धोखा है। शेयर बाजार में कंपनी के शेयर गिरने लगे। यशवर्धन के पास वक्त नहीं था। उन्होंने दुनिया के बेहतरीन इंजीनियरों को बुलाया—अमेरिका, जापान, जर्मनी से एक्सपर्ट्स आए। सबने कोड्स, सर्किट्स, लैपटॉप चेक किए, लेकिन कोई भी यह नहीं समझ पाया कि गलती कहाँ हुई। मशीन पूरी तरह डेड थी। हर घंटे के साथ यशवर्धन की उम्मीद और संपत्ति दोनों राख हो रही थी।

आखिरकार, यशवर्धन ने ऐलान किया—”जो कोई भी इस मशीन को 24 घंटे में ठीक करेगा, उसे मैं मुंह मांगी कीमत दूँगा।” लेकिन जब बड़े-बड़े डिग्रीधारी फेल हो रहे थे, उम्मीद लगभग खत्म हो चुकी थी।

2. फुटपाथ पर बैठा जीनियस

इसी कंपनी के गेट के बाहर, फुटपाथ पर एक 15 साल का लड़का बैठा था—आर्यन। उसके कपड़े मैले थे, हाथ जूतों की पॉलिश से काले थे। लेकिन उसकी आँखों में एक अजीब सी बुद्धिमत्ता और ठहराव था। वह रोज़ वहाँ आने वाली महंगी गाड़ियों और उनमें बैठे लोगों के जूतों को देखता था। आज उसका ध्यान कंपनी के अंदर चल रही हलचल पर था। गेट पर खड़े गार्ड्स हमेशा की तरह उसे हिकारत से देख रहे थे।

आर्यन ने अपना पॉलिश का डिब्बा उठाया और सीधे गेट की ओर बढ़ा। “ए छोटू, कहाँ घुस रहा है?” एक गार्ड ने उसे धक्का दिया। आर्यन ने बिना डर के उसकी आँखों में देखा—”साहब, मुझे अंदर जाने दो। मैं जानता हूँ मशीन को क्या हुआ है। मैं उसे ठीक कर सकता हूँ।” गार्ड हँस पड़े—”बूट पॉलिश वाला अब इंजीनियर बनेगा! भाग यहाँ से।”

लेकिन आर्यन अपनी जगह से नहीं हिला। उसकी जिद ने शोर मचा दिया। इत्तेफाक से यशवर्धन अपने सेक्रेटरी के साथ उसी गेट की ओर आ रहे थे। उन्होंने शोर सुना और रुक गए। “क्या तमाशा है?” गार्ड बोला—”सर, यह भिखारी कह रहा है कि वह आपकी 100 करोड़ की मशीन ठीक कर देगा।”

यशवर्धन ने आर्यन की आँखों में देखा—कोई डर नहीं, सिर्फ यकीन। “साहब, आपके पास खोने के लिए अब कुछ नहीं है। बद्धे लोग हार मान चुके हैं। मुझे एक मौका दीजिए। अगर मैं फेल हुआ तो जो सजा देंगे मंजूर होगी।”

यशवर्धन के दिल में उस लड़के की हिम्मत ने दस्तक दी। उनके पास सच में कोई रास्ता नहीं था। उन्होंने गहरी साँस ली—”इसे अंदर आने दो।”

3. लैब का सन्नाटा

वर्मा कॉरपोरेशन की मुख्य लैब किसी विज्ञान फैंटेसी फिल्म के सेट जैसी थी। सफेद फर्श, ठंडी हवा, चमकदार उपकरण। जब आर्यन गंदे नंगे पैर लैब में दाखिल हुआ, वहाँ मौजूद विदेशी इंजीनियरों और अधिकारियों के चेहरों पर अविश्वास और घृणा थी। एक जर्मन इंजीनियर बोला—”मिस्टर वर्मा, क्या यह कोई मजाक है?”

यशवर्धन बोले—”अब इसे जो करना है करने दो। मेरे पास खोने के लिए कुछ नहीं बचा।”

आर्यन ने उन तानों पर ध्यान नहीं दिया। उसका पूरा ध्यान उस विशालकाय मशीन पर था। वह मशीन के करीब गया, आँखें बंद कीं, कान मशीन की ठंडी धातु पर लगा दिया। लोग हँसने लगे—”मशीन की धड़कन चेक कर रहा है जैसे कोई डॉक्टर हो।”

लेकिन आर्यन को मशीन की खामोशी सुनाई दे रही थी। बचपन से कबाड़ के रेडियो, पुराने पंखे, उसे मशीनों की भाषा आती थी। उसने महसूस किया कि मशीन के अंदर एक धीमी गुनगुनाहट थी—बिजली के गलत प्रवाह की। उसकी आँखें खुलीं—”प्लास और टेप चाहिए।”

एक कर्मचारी ने औजार थमा दिए। आर्यन मशीन के पीछे के पैनल की ओर गया जिसे इंजीनियरों ने अनदेखा कर दिया था। उसने पैनल खोला, तारों के जंजाल में हाथ डाला। अचानक चिल्लाया—”इसे मैन पावर से अब भी मत जोड़ना, नहीं तो हम सब मारे जाएँगे।” सबकी साँसें अटक गईं।

आर्यन ने दो तार खींचे जो चालाकी से एक-दूसरे से जोड़े गए थे। “सर, मशीन खराब नहीं हुई थी। इसे जानबूझकर ऐसे सेट किया गया था कि अगर इसे रिस्टार्ट किया जाए, तो ब्लास्ट हो जाए। यह एक टाइम बम जैसा बन चुका है। किसी ने वायरिंग को क्रॉस कर दिया है।”

यशवर्धन के पैरों तले जमीन खिसक गई। यह सिर्फ तकनीकी खराबी नहीं, बल्कि साजिश थी। आर्यन के हाथ तेजी से चलने लगे। उसने खतरनाक तारों को अलग किया, जले हिस्से को काटा, सही क्रम में जोड़ा। करीब 20 मिनट की मशक्कत के बाद आर्यन पीछे हटा—”अब बटन दबा सकते हैं।”

लैब में मौत जैसा सन्नाटा था। यशवर्धन ने काँपते हाथ से वही लाल बटन दबाया। एक पल के लिए कुछ नहीं हुआ। फिर मधुर हमिंग साउंड आई, लाइट्स जल उठीं, स्क्रीन पर हरे सिग्नल दौड़ने लगे। मशीन अपनी पूरी ताकत के साथ जी उठी थी। पूरे हॉल में तालियों की गड़गड़ाहट गूँज उठी। जो इंजीनियर उसका मजाक उड़ा रहे थे, वे शर्म से सिर झुकाए खड़े थे।

4. एक बेटे की पुकार

यशवर्धन की आँखों में आँसू थे। एक सड़कों के बच्चे ने वह कर दिखाया था जो दुनिया के बड़े दिमाग नहीं कर पाए थे। उन्होंने दौड़कर आर्यन को गले लगा लिया। लेकिन आर्यन के चेहरे पर खुशी नहीं, गहरी चिंता थी। लैब के बाहर जश्न का माहौल था। लेकिन यशवर्धन ने आर्यन को अपने केबिन में बुलाया।

उन्होंने चेकबुक निकाली—”यह ब्लैंक चेक है। जितना चाहो भर लो। एक करोड़, दस करोड़, जो तुम्हारा मन करे।” आर्यन ने चेक देखा, लेकिन हाथ नहीं बढ़ाया। उसकी आँखों से आँसू छलक पड़े। “साहब, मुझे आपके पैसे नहीं चाहिए। यह कागज मेरे किसी काम का नहीं है। अगर आप सच में कुछ देना चाहते हैं तो बस मेरी मदद कीजिए—एक डॉक्टर दे दीजिए।”

“डॉक्टर? क्या हुआ?”

“मेरी माँ बहुत बीमार है। सरकारी अस्पताल वाले कह रहे हैं बिना पैसे इलाज नहीं होगा और बड़े डॉक्टर हमारी बस्ती में नहीं आते। अगर आज रात दवा नहीं मिली तो वह मर जाएँगी। साहब, मुझे पैसे नहीं चाहिए, बस मेरी माँ को बचा लीजिए।”

यशवर्धन का दिल काँप उठा। उन्होंने तुरंत अपने पर्सनल डॉक्टर को बुलाया—”बांद्रा की झुग्गी बस्ती में जाओ। मैं खुद साथ चलूँगा।”

5. सच्चाई का सामना

Mercedes गाड़ी कीचड़ भरी गलियों में पहुँची। आर्यन ने गाड़ी एक टूटी झोपड़ी के सामने रुकवाई। यशवर्धन अंदर गए। एक कोने में एक महिला खाँस रही थी—माँ देख, मैं डॉक्टर लाया हूँ। यशवर्धन ने मोबाइल की फ्लैश लाइट जलाई। महिला का चेहरा देखते ही यशवर्धन के पैरों तले जमीन खिसक गई। “सुमन!”—उनके मुँह से बस यही निकला।

वह उनकी पहली पत्नी थी, जिसे उन्होंने सालों पहले गलतफहमी और अहंकार के कारण घर से निकाल दिया था। सुमन ने आँखें खोली, पहचान की बिजली सी कौंधी। आँसू भर आए। आर्यन हक्का-बक्का रह गया।

“साहब, आप मेरी माँ को कैसे जानते हैं? आप रो क्यों रहे हैं?”

यशवर्धन ने काँपते हाथों से सुमन का हाथ थामा—”मुझे तो बताया गया था कि तुम और बच्चा अब इस दुनिया में नहीं हो।” सुमन की आँखों में शिकायत, दर्द, लेकिन सुकून भी था।

आर्यन को समझ नहीं आ रहा था कि इतना बड़ा आदमी उसकी माँ के सामने रो क्यों रहा है। उसने पूछा—”अगर वह आपकी पत्नी है तो मैं कौन हूँ?”

“तुम मेरे बेटे हो, आर्यन। मेरा अपना खून।”

आर्यन के चेहरे पर खुशी नहीं, गुस्सा और दर्द था—”अगर मैं आपका बेटा होता तो हम सड़कों पर भीख नहीं माँग रहे होते। जब मेरी माँ को बुखार था, आप कहाँ थे?” आँसू बह निकले। “मेरी माँ ने बताया था कि मेरे पिता मर चुके हैं और मेरे लिए वह मर ही चुके हैं।”

यशवर्धन का सिर शर्म से झुक गया—”मैं मुजरिम हूँ। 12 साल पहले मैंने दूसरों की बातों में आकर तुम्हारी माँ पर शक किया था। मुझे बताया गया था कि तुम जन्म लेते ही मर गए थे। अगर मुझे पता होता कि तुम जिंदा हो…”

“तो आप हमें अपना लेते? मशीन ठीक करने के बाद ही आपको बेटा याद आया?”

आईसीयू का दरवाजा खुला। डॉक्टर बोले—”पेशेंट की हालत बहुत नाजुक है। ओ नेगेटिव ब्लड चाहिए, ब्लड बैंक में नहीं है। अगर एक घंटे में खून नहीं मिला तो बचा नहीं पाएंगे।”

“मेरा ब्लड ग्रुप ओ नेगेटिव है। मेरा खून लीजिए। बस सुमन को बचा लीजिए।”

6. खून का रिश्ता

यशवर्धन ने अपना खून दिया। आर्यन बाहर काँच के पार देख रहा था—उस आदमी के शरीर से नली के जरिए खून की एक-एक बूंद सुमन की जिंदगी की डोर बन रही थी। वही खून जिसे कभी उन्होंने अहंकार में ठुकरा दिया था। आज वही खून सबसे कीमती दौलत को बचाने का जरिया बन गया था।

करीब दो घंटे बाद डॉक्टर बाहर आए—”बधाई हो, सुमन जी अब खतरे से बाहर हैं।” यशवर्धन दीवार का सहारा लेकर खड़े हो गए, आँखों से आँसू बह निकले। आर्यन और यशवर्धन ने एक-दूसरे को देखा—कोई शब्द नहीं, लेकिन आँखों में शांति थी।

आईसीयू में सुमन होश में आ चुकी थी। उसने दोनों को साथ देखा, होठों पर फीकी मुस्कान तैर गई। यशवर्धन घुटनों पर बैठ गए—”मुझे माफ कर दो सुमन। मैंने दौलत के नशे में तुम्हें और आर्यन को खो दिया।”

सुमन ने काँपते हाथ से यशवर्धन के सिर पर हाथ रखा। “इंसान से गलती होती है, माफ करना ही हमें इंसान बनाता है। इन्होंने आज अपनी जान पर खेलकर मेरी जान बचाई है।”

आर्यन ने धीरे से यशवर्धन के कंधे पर हाथ रखा—”आपने मेरी माँ को बचाया। मैं सब कुछ भूलने को तैयार नहीं हूँ, लेकिन कोशिश करूंगा।”

यह एक नई शुरुआत थी। यशवर्धन ने बेटे को गले लगा लिया—”मैं कसम खाता हूँ, जिस दुनिया ने तुम्हें जूते साफ करने वाला कहा, कल वही दुनिया तुम्हारे जूतों की आहट सुनकर खड़ी हो जाएगी। चलो घर चलते हैं।”

7. घर की वापसी

अगली सुबह अखबारों की हेडलाइन बदल चुकी थी—”वर्मा कॉरपोरेशन का खोया वारिस मिला, फुटपाथ से महल तक का सफर।” लेकिन यशवर्धन के लिए यह खबर नहीं थी, यह उनकी जिंदगी की वापसी थी। उन्होंने पत्नी और बेटे को डिस्चार्ज करवाया। वर्मा मेंशन के गेट पर स्टाफ की लाइन लगी थी। वही गार्ड जिसने कल आर्यन को धक्का दिया था, आज सिर झुकाए खड़ा था।

आर्यन ने मुस्कुराते हुए गार्ड के कंधे पर हाथ रखा—”डरिए मत, किसी की नौकरी खाना मेरा काम नहीं है।” गार्ड रो पड़ा। यशवर्धन का सीना गर्व से चौड़ा हो गया—उनका बेटा सिर्फ दिमाग से जीनियस नहीं, दिल से भी राजा था।

वर्मा मेंशन की वह रात दिवाली जैसी थी। 12 सालों से सन्नाटा और उदासी थी, आज खुशियों के दीये जल रहे थे। सुमन व्हीलचेयर पर बैठकर अपने परिवार को एक होते देख रही थी।

8. सम्मान और वादा

एक हफ्ते बाद वर्मा कॉरपोरेशन ने भव्य प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाई। वही हॉल, वही मीडिया, वही घमंडी इंजीनियर। मंच पर यशवर्धन खड़े थे, बगल में उनका बेटा आर्यन। शानदार ब्लैक सूट में, लेकिन आँखों में वही सादगी।

यशवर्धन बोले—”कुछ दिन पहले लगा था कि सब कुछ खो दिया है। लेकिन उस एक नाकामी ने मुझे मेरी जिंदगी की सबसे बड़ी कामयाबी से मिलवा दिया। मिलिए मेरे बेटे और कंपनी के कानूनी वारिस से—आर्यन वर्मा।”

तालियों की गड़गड़ाहट गूँज उठी। कैमरों की फ्लैश लाइट्स आर्यन के चेहरे पर चमकने लगी। आर्यन माइक के पास आया, पोडियम के नीचे झुका, एक पुरानी गंदी बूट पॉलिश की पेटी निकालकर सबके सामने टेबल पर रख दी।

“लोग अपनी डिग्रियाँ दीवारों पर टांगते हैं, मैं अपना यह डिब्बा हमेशा अपनी मेज पर रखूँगा। ताकि मुझे याद रहे कि मैं कौन हूँ और कहाँ से आया हूँ। मैंने सीखा कि इंसान की कीमत उसके कपड़ों या जूतों से नहीं, उसके हुनर और नियत से होती है। यह कंपनी अब सिर्फ मुनाफा नहीं कमाएगी, बल्कि उन लोगों को मौका देगी जिनके पास हुनर है पर पहचान नहीं। असली हीरा अक्सर कोयले की खान में मिलता है।”

9. मुकद्दर का सिकंदर

अगले ही पल शेयर बाजार में वर्मा कॉरपोरेशन के शेयर आसमान छूने लगे। लेकिन इस बार वजह कोई मशीन नहीं, बल्कि वह भरोसा था जो आर्यन ने अपनी ईमानदारी से जगाया था।

वक्त का पहिया पूरा घूम चुका था। वह लड़का जो कल तक दूसरों के जूतों की धूल झाड़ता था, आज एक विशाल साम्राज्य का ताज पहन चुका था। लेकिन महल की नरम कालीनों पर चलते हुए भी उसने अपने पैर जमीन पर ही रखे। सच ही कहा है—कीचड़ में खिला कमल ही सबसे पवित्र होता है। और जब तकदीर और कर्म मिल जाएँ, तो एक मोची भी मुकद्दर का सिकंदर बन जाता है।

समाप्त

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