एक लड़का, एक विधवा और बर्फीली पहाड़ियों में मोहब्बत का खतरनाक खेल
रात के 11:00 बज रहे थे और मनाली से कुल्लू की ओर जाती सुनसान सड़क पर आरव की बाइक धीमी लड़खड़ाती रफ्तार से बढ़ रही थी। बर्फ की हल्की फुहारों ने हवा में एक तीखी ठंड घोल दी थी। इतनी कि हर सांस एक चुनौती सी लग रही थी। आरव दिल्ली का एक जुनूनी फोटोग्राफर था। मनाली तो कुछ मनमोहक फोटोशूट के इरादे से आया था, पर प्रकृति के मिजाज ने उसकी सारी योजनाएं धरी की धरी छोड़ दी थीं। दिनभर का सुहावना मौसम अब एक बर्फीले बवंडर में बदल चुका था।
होटल की बुकिंग रद्द हो चुकी थी, मोबाइल की बैटरी दम तोड़ रही थी और नेटवर्क का तो नामोनिशान भी नहीं था। चारों ओर बस घना अंधेरा था, जिसे चीरती हुई उसकी बाइक की हेडलाइट किसी छोटे जुगनू सी लग रही थी। नियति को शायद कुछ और ही मंजूर था। जैसे ही उसने एक तीखा मोड़ लिया, टायर पंक्चर होने की छर्रर की आवाज के साथ बाइक का संतुलन बिगड़ा। आरव ने किसी तरह उसे संभाला और सड़क किनारे खड़ा कर दिया।
भाग 2: मायरा का घर
चारों ओर निगाह दौड़ाई। सिर्फ बर्फ से ढके पाइन के विशालकाय पेड़ और दूर कहीं टिमटिमाती पीली रोशनी की एक क्षीण किरण। उसने हेलमेट उतारा। ठंडी हवा के झोंके उसके चेहरे से टकराए और होठों को सुखा गए। शायद कोई घर है, उसने खुद से कहा और उस रोशनी की दिशा में बर्फ में ढसते कदमों से आगे बढ़ने लगा। हर कदम के साथ उम्मीद की एक नई किरण उसके भीतर जगमगा रही थी। करीब 10 मिनट की जद्दोजहद के बाद वह एक छोटे पुराने पहाड़ी मकान के सामने पहुंचा। लकड़ी की मोटी दीवारों वाला वह घर जिसके रोशनदानों से हल्की सुनहरी रोशनी छनकर बाहर आ रही थी।
आरव कुछ पल हिचका। फिर दरवाजे पर अपनी ठंडी उंगलियां रखी और धीरे से खटखटाया। अंदर से एक महिला की आवाज आई जिसमें सतर्कता और हल्की झुंझुलाहट थी, “कौन है इतनी रात को?”
“मैं रास्ते में फंस गया हूं। मेरी बाइक पंक्चर हो गई है। बस थोड़ी देर रुक जाऊं। बाहर बहुत ठंड है,” आरव ने अपनी कांपती हुई आवाज में कहा। अंदर कुछ पल की चुप्पी छाई रही। फिर वही आवाज लौटी, इस बार थोड़ी सख्त। “यहां कोई ठहरने की जगह नहीं है। आप आगे बढ़ जाइए।”
“मैडम, आगे तो कुछ दिख ही नहीं रहा। प्लीज, मैं बस थोड़ी देर आग के पास बैठ जाऊंगा,” आरव ने लगभग गिड़गिड़ाते हुए कहा। फिर अंदर से कदमों की आहट आई। दरवाजा धीरे से खुला और सामने आई एक महिला। 30 के आसपास की उम्र, गहरी थकी हुई आंखें और कंधे पर लाल ऊनी शॉल। यह मायरा थी।
“आप सच में अकेले हैं?” मायरा ने उसकी ओर घूरते हुए पूछा। आरव ने सिर हिलाया। “हां, बस मैं और मेरी किस्मत।” मायरा के होठों पर एक हल्की सूखी मुस्कान फैली। “ठीक है, अंदर मत आइए लेकिन दरवाजे के पास आग है। बैठ जाइए।” वह अंदर चली गई और कुछ ही पलों में सूखी लकड़ियां और माचिस लेकर लौटी। “लो, आग जला लो।”
भाग 3: पहली बातचीत
आरव ने ठिठुरती उंगलियों से आग जलायी। धीरे-धीरे पीली लपटें उठीं। उसकी सुन्न उंगलियों को गर्मी पहुंचाने लगी। मायरा अंदर चली गई, पर उसकी परछाई बार-बार खिड़की से झांकती रही। जैसे वह यह सुनिश्चित कर रही हो कि अजनबी आरव अपनी सीमा में रहे। करीब आधे घंटे बाद मायरा फिर बाहर आई। उसके हाथ में एक प्लेट थी। “लो, खा लो। लगता है भूखे हो।”
“आप क्यों तकलीफ कर रही हैं?” आरव ने हैरत से पूछा।
“तकलीफ तो तब होती है जब इंसान मदद मांगे और हम मुंह मोड़ लें,” मायरा ने सादगी से कहा। दोनों मुस्कुराए। यह उस बर्फीली रात की पहली सच्ची मुस्कान थी जिसने उनके दिलों में धीरे-धीरे एक अनकही गर्माहट छोड़ दी। खाना खाने के बाद मायरा बोली, “अगर चाहो तो अंदर वाले कमरे में रुक सकते हो। बाहर बर्फ बढ़ रही है।”
आरव झिचका, “नहीं, मैं यहीं ठीक हूं।” तभी अचानक एक तेज हवा का झोंका आया और बर्फ के साथ बारिश की बूंदें भी गिरने लगीं। आग बुझ गई और आरव ठंड से थरथराने लगा। मायरा ने दरवाजा खोला और देखा आरव भीग चुका था। “एक बोरी ओढ़े कांप रहा था। अंदर आ जाओ। जिद मत करो।” मायरा ने लगभग आदेश देते हुए कहा।
भाग 4: करीब आते रिश्ते
“नहीं, मैं…” आरव ने फिर मना करना चाहा।
“अब बहस मत करो, अंदर चलो।” मायरा की आवाज में एक अजीब सी ममता थी, जिसने आरव को भीतर खींच लिया। अंदर एक छोटा साधारण कमरा था। बीच में एक पुरानी चारपाई बिछी थी। कोने में कुछ बकरियां बंधी थीं और एक मोमबत्ती की लौ पूरे कमरे को एक रहस्यमय पीली रोशनी दे रही थी। मायरा ने उसे एक तौलिया दिया और कहा, “कपड़े बदल लो, वरना बीमार पड़ जाओगे।”
आरव ने अपने बैग से सूखे कपड़े निकाले और बदल लिए। फिर वह चारपाई पर बैठ गया। मायरा ने उसे एक मोटी रजाई दी। “लो, इसे थोड़ी गर्मी मिलेगी।” वह खुद जमीन पर बैठ गई।
“आप यहां ठंडी जमीन पर क्यों बैठ रही हैं?” आरव ने पूछा। मायरा ने हल्की मुस्कान के साथ कहा, “आदत है।” उसकी आवाज में एक अनकहा इतिहास छिपा था। रात के करीब 2:00 बजे होंगे। जब बाहर बर्फ गिरनी बंद हुई। कमरे में सन्नाटा था। मोमबत्ती की लौ डगमगा रही थी। उसकी परछाइयां दीवारों पर नाच रही थीं।
आरव ने धीरे से पूछा, “आप यहां अकेली रहती हैं?” मायरा कुछ पल चुप रही। फिर बोली, “हां, अकेली।” उसकी आवाज में एक दर्द था जो शब्दों से कहीं ज्यादा गहरा था। आरव ने कुछ नहीं कहा। बस उसकी तरफ देखा और अपनी नजरें झुका ली। धीरे-धीरे बातचीत शुरू हुई। मौसम से लेकर जिंदगी तक। वे दोनों अजनबी थे, पर एक दूसरे की मौजूदगी में उन्हें अजीब सा सुकून मिल रहा था।

भाग 5: एक अनकही कहानी
इसी सन्नाटे में एक हल्की सी मुस्कुराहट एक अनकहा एहसास उनके बीच पनपने लगा। पर इस रात की कहानी यहीं खत्म नहीं हुई थी। क्योंकि जो कुछ अगली सुबह होता, वह सब कुछ बदल देने वाला था। सुबह की ठंडी साफ हवा कमरे में घुसाई थी। मायरा ने आंखें खोलीं। खिड़की के बाहर सफेद बर्फ की एक नई बेदाग चादर बिछी थी। वह पलट कर देखती है तो आरव चारपाई पर लेटा है। रजाई में लिपटा हुआ। उसके चेहरे पर नींद में एक सुकून भरी मुस्कान थी। शायद सालों बाद किसी को इतनी गहरी चिंता मुक्त नींद आई थी।
मायरा के चेहरे पर भी हल्की मुस्कान आई। वह उठी, आग जलाई, चाय का पानी रखा और खुद खिड़की के पास जाकर बाहर देखने लगी। धूप की हल्की किरणें बर्फ पर गिर रही थीं। पर उसके दिल में अब भी एक पुरानी ठंडक थी। उसी वक्त आरव की आवाज आई, “गुड मॉर्निंग।”
मायरा पलट कर बोली, “उठ गए? ठंड तो कम नहीं हुई।” आरव मुस्कुराया। “पर आपकी वजह से रात आसान हो गई।” दोनों हंस पड़े। यह पहली बार था जब उस छोटे से घर में किसी की खुलकर हंसी गूंजी थी।
मायरा ने पूछा, “अब क्या सोच रहे हो? बाइक बनवाने जाओगे?” आरव ने कहा, “हां, लेकिन मैं सोच रहा हूं पहले चाय पी लूं।” “ठीक है, तुम्हारे लिए बना दी है,” मायरा ने कहा। दोनों आग के पास बैठकर चाय पीने लगे। बातें शुरू हुईं। छोटी-छोटी बातें हुईं पर दिल के पास तक पहुंचती हुई।
आरव ने बताया कि वह दिल्ली से है, एक फोटोग्राफर है और यहां बर्फ की तस्वीरें लेने आया था। मायरा ने बताया कि वह यहीं मनाली के एक गांव में पैदा हुई। “बचपन से यहीं रह रही हूं। मेरी मां कुछ साल पहले गुजर गई और मेरे पति…” उसने बस इतना कहा, “वो अब नहीं है।” आरव चुप रहा। उसने और कुछ नहीं पूछा।
भाग 6: एक नया रिश्ता
बातों-बातों में वे दोनों समय का ध्यान ही भूल गए। दोपहर हो चुकी थी। आरव ने कहा, “मायरा, अगर बुरा ना मानो तो क्या मैं शाम तक यहीं रह सकता हूं? बर्फ अभी पिघली नहीं है।” वह बोली, “रुकने की क्या जरूरत है? लेकिन अगर सच में जाना मुश्किल है तो ठहर जाओ।”
शाम होने लगी। बाहर फिर हल्की बर्फ गिरने लगी थी। आरव ने अपने कैमरे से कुछ तस्वीरें लीं। घर की, आग की, खिड़की से झांकती मायरा की, सब कुछ जैसे किसी फिल्म का हिस्सा था। जिसमें हर फ्रेम एक कहानी कह रहा था। रात में मायरा ने कहा, “खाना तैयार है।” आरव ने कहा, “आज मैं मदद करूंगा।”
दोनों साथ में रसोई में गए। लकड़ी की आग पर रोटियां सेंकीं। बर्फ गिरने की आवाज, आग की हल्की चरचराहट और उनके बीच कुछ अनकहा सा माहौल। वे दोनों जैसे वक्त के बाहर चले गए थे। एक ऐसे पल में जहां सिर्फ वे थे और उनकी बढ़ती हुई नजदीकियां। खाना खाकर दोनों कमरे में लौटे।
आरव ने धीरे से पूछा, “मायरा, अगर मैं कल चला गया तो क्या तुम्हें अकेलापन नहीं लगेगा?” वह बोली, “अकेलापन तो बहुत पुराना दोस्त है। तुम्हारे जाने से बस वह फिर लौट आएगा।” आरव ने उसकी आंखों में देखा, वे आंखें जिनमें दर्द भी था और एक अनकही चाह भी।
आरव ने धीरे से कहा, “अगर मैं कहूं कि मैं कल नहीं जाना चाहता?” कमरे में सन्नाटा छा गया। बाहर हवा की आवाज बढ़ने लगी थी। मायरा ने धीरे से कहा, “हर आने वाला एक दिन चला जाता है आरव और मैं किसी से उम्मीद नहीं रखती।”
भाग 7: प्यार का एहसास
आरव बोला, “लेकिन मैं अलग हूं।” उसकी आवाज में एक सच्चाई थी जो सीधे दिल को छू गई। मायरा कुछ पल उसे देखती रही। फिर धीरे से बोली, “दिल की बातें मत करो आरव, यह पहाड़ बहुत सुनते हैं। पर किसी को जवाब नहीं देते।” लेकिन अब देर हो चुकी थी। उनके बीच का फासला खत्म हो चुका था।
आरव पास आया और मायरा ने पहली बार उसकी आंखों में खुद को देखा। आग की लपटें झिलमिला रही थीं। मोमबत्ती बुझने को थी और उस रात पहाड़ों की ठंड जैसे कुछ पल के लिए थम गई थी। वो रात उन दोनों के लिए किसी कहानी जैसी थी। जहां किसी को किसी की जरूरत महसूस हुई। वे एक दूसरे में खो गए। बिना किसी वादे, बिना किसी डर के।
भाग 8: सुबह की किरणें
सुबह जब आरव उठा तो बाहर धूप थी। मायरा खिड़की के पास खड़ी थी। चाय की भाप में उसका चेहरा और भी खूबसूरत लग रहा था। वह मुस्कुराई, “उठ गए? आज बर्फ नहीं, सूरज निकला है।” आरव ने कहा, “हां, शायद किसी ने दुआ की होगी।” मायरा बोली, “शायद।”
आरव ने बाइक ठीक कराने की बात की। मायरा ने उसे आर टू आंसू दिए और कहा, “ले जाओ, काम आ जाएंगे।” आरव ने कहा, “पैसे वापस दूंगा।” वह बोली, “कभी लौटे तो दे देना।” आरव बाहर निकला। बर्फ पिघल रही थी। उसने बाइक की तरफ देखा। फिर घर की तरफ मायरा दरवाजे पर खड़ी थी। उसकी नजरों में एक अजीब सी बेचैनी थी।
आरव ने कहा, “मैं शाम तक लौट आऊंगा।” वह बस मुस्कुराई। “कहानी की शामें अक्सर लौटने नहीं देतीं।” आरव हंसा, “मैं जरूर आऊंगा,” और वह चला गया। मायरा देर तक दरवाजे पर खड़ी रही। उसके हाथ में एक पुरानी तस्वीर थी जिसमें वह और एक आदमी थे जो आरव से हूबहू मिलता था।
भाग 9: अतीत का सामना
वह तस्वीर उसने अपनी अलमारी में रखी और उनकी आंखों में आंसू आ गए। “इतनी एक जैसी शक्ल, क्या यह सिर्फ इत्तेफाक है?” उसने खुद से कहा या फिर अतीत लौट आया है। बाहर बर्फ फिर गिरने लगी थी और हवा में अब सिर्फ ठंड नहीं थी बल्कि एक पुराना राज फिर से जाग उठ था।
रात गहराती जा रही थी। बाहर बर्फ अब हल्के-हल्के गिर रही थी और कमरे के अंदर सिर्फ एक दिया जल रहा था। मायरा और आरव एक ही रजाई में बैठे थे। चुपचाप जैसे बोलने के लिए अब कुछ बचा ही ना हो। उन दोनों के बीच बस सांसों की भाप थी जो ठंडी हवा में मिलकर एक अजीब सी गर्माहट बना रही थी।
मायरा ने धीमे से कहा, “तुम जानते हो आरव? मुझे हमेशा डर लगता है कि कहीं कोई खूबसूरत पल आखिरी ना बन जाए।” आरव मुस्कुराया। उसकी उंगलियां धीरे से मायरा के हाथों पर टिक गईं। “तो फिर हर पल को ऐसे जी लो जैसे आखिरी हो।” उसके शब्दों में वह सुकून था जो सिर्फ प्यार दे सकता है।
भाग 10: यादों का सफर
उन दोनों की नजरों में वही बर्फ पिघलने लगी थी जो बाहर गिर रही थी। कमरा अब ठंडा नहीं लग रहा था। मायरा ने धीरे से सिर उसके कंधे पर रख दिया। आरव ने उसकी उंगलियों को थाम लिया। उन दोनों के बीच अब कोई वाक्य नहीं था। बस एक खामोशी थी जो सब कह रही थी।
थोड़ी देर बाद मायरा ने धीमे से कहा, “कभी-कभी लगता है अगर वक्त यहीं रुक जाए तो…” आरव ने उसकी तरफ देखा, मुस्कुराया और कहा, “वक्त नहीं रुकता मायरा, लेकिन यादें कभी नहीं जातीं।” उनकी बातें धीरे-धीरे फुसफुसाहट में बदल गईं। दिए की लौ कांप रही थी और बाहर हवाओं ने बर्फ को और तेज कर दिया था।
आरव ने रजाई के अंदर उसके हाथों को कसकर पकड़ लिया। उसकी धड़कनों में ठंड और गर्मी दोनों एक साथ चल रहे थे। मायरा ने आरव की आंखों में देखा। वे आंखें जो किसी किताब की तरह थीं जिसमें हर लफ्ज में प्यार लिखा था। उस पल उन दोनों ने कुछ नहीं कहा। बस एक दूसरे की आंखों में उतर गए जैसे उन्हें अपने जवाब वहीं मिल गए हों।
भाग 11: विदाई का समय
धीरे-धीरे रात गुजर गई। सुबह की हल्की किरणें खिड़की से अंदर आई और आरव ने फुसफुसाते हुए कहा, “मुझे आज जाना होगा।” नीचे वाले गांव तक मायरा ने सिर उठाया। उसकी आंखें नम थीं। “फिर लौट आओगे ना?” आरव ने मुस्कुराकर उसकी पेशानी चूमी। “मनाली छोड़ने का मन नहीं करता लेकिन मैं वादा करता हूं लौटूंगा।”
आरव दरवाजे से बाहर निकला। बर्फ में उसके कदमों के निशान धीरे-धीरे धुंधले होते गए। मायरा खिड़की पर खड़ी रही। ठंडी हवा उसके बालों से खेलती रही और उसकी हथेलियों में अब भी आरव की गर्मी बाकी थी।
भाग 12: इंतजार की रात
दिन गुजर गया। शाम हुई। लेकिन आरव नहीं लौटा। पहाड़ों में बर्फबारी बढ़ती गई और मायरा के इंतजार की सांसे ठहरती गईं। रात को उसने दरवाजा खोला। बाहर वही जगह थी जहां उन्होंने आग जलाई थी। वह राख अब भी हल्की गर्म थी। वहीं पर आरव का स्कार्फ पड़ा था। मायरा के हाथ कांपे। उसने उसे उठाया और सीने से लगा लिया।
सुबह जब गांव वाले खबर लेकर आए तो बताया कि पहाड़ी के मोड़ पर एक बाइक मिली है। बर्फ में दबी हुई। “राइडर नहीं बच पाया।” मायरा के चेहरे पर कोई शोर नहीं था। बस एक शांत मुस्कान थी। वह धीरे से बोली, “उसने कहा था ना, यादें कभी नहीं जातीं।”
भाग 13: एक नई शुरुआत
कुछ दिनों बाद मनाली की उसी पहाड़ी सड़क पर एक छोटा सा कैफे खुला। उसका नाम था “आरव एंड मायरा। मोमेंट्स ऑफ स्नो।” हर शाम वहां दिए जलते हैं। ठंडी हवा चलती है और कोने की दीवार पर टंगी है वह तस्वीर जहां आरव और मायरा एक दूसरे को देख रहे हैं और नीचे लिखा है “वक्त नहीं रुकता पर कुछ पल हमेशा ठहर जाते हैं।”
प्यार अधूरा हो तो भी पूरा लगता है क्योंकि कुछ रिश्ते मुकम्मल नहीं होते। वह बस यादों में हमेशा जिंदा रहते हैं।
अंत
इस तरह, आरव और मायरा की कहानी एक अनकही प्रेम कहानी बन गई। एक बर्फीली रात ने उन्हें जोड़ा, और एक छोटे से घर ने उनकी यादों को हमेशा के लिए संजो लिया। प्यार का एहसास कभी खत्म नहीं होता, वह हमेशा हमारे साथ रहता है, भले ही हम अपने प्रियजनों को खो दें। प्यार की यही खूबसूरती है।
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