एयरपोर्ट पर बुजुर्ग को भिखारी समझकर लाइन से हटा दिया… 10 मिनट बाद सीधा PM का कॉल आया

मुंबई एयरपोर्ट पर सुबह के लगभग 11 बजे का समय था। भीड़ हमेशा की तरह व्यस्त, अफरा-तफरी मची हुई, हर कोई अपनी फ्लाइट पकड़ने की जल्दी में था। कोई फोन पर बात कर रहा था, कोई टिकट चेक कर रहा था, कोई बच्चों को संभाल रहा था। इसी भीड़ में एक 75-78 साल के बुजुर्ग चुपचाप एक लाइन में खड़े थे। उनके कपड़े सामान्य से भी पुराने थे, एक हाथ में फटा सा कपड़े का बैग, हल्की मैली सी शर्ट और घिसे हुए जूते।

उनकी सादगी को देखकर कई लोगों की निगाहें उनकी ओर मुड़ीं। कानाफूसी शुरू हो गई — “ये कौन है?” “एयरपोर्ट पर भिखारी?” “इतनी गंदी हालत में यहां क्या कर रहा है?”

कुछ लोग हंसने लगे। एक महिला ने अपने बच्चे से कहा, “बेटा, दूर रहो इससे। ये गंदे लोग न जाने कहां से आ जाते हैं।”

बुजुर्ग ने किसी को जवाब नहीं दिया। बस अपनी जेब से टिकट निकाला और अपने हाथ में कसकर पकड़े खड़े रहे।

थोड़ी देर में एयरलाइन की एक स्टाफ — प्रिया — आई और कड़क आवाज में बोली,
“बाबा, आप क्या कर रहे हैं यहां? यह लाइन यात्रियों के लिए है। आप जैसे लोग यहां नहीं आ सकते।”

बुजुर्ग ने विनम्रता से जवाब दिया,
“बेटी, मेरे पास टिकट है, देख लो।”

प्रिया हंस पड़ी। आसपास के लोग भी खिलखिलाने लगे।
“आपके पास टिकट?” वह बोली, “आप जैसे लोग तो झूठ बोलते हैं। हटिए, नहीं तो गार्ड बुलाना पड़ेगा।”

बुजुर्ग ने कुछ नहीं कहा। लेकिन तभी एक सुरक्षा गार्ड आया और बुजुर्ग को धक्का देते हुए बोला,
“चलो बाबा, बाहर निकलो। यह कोई खाना बांटने की जगह नहीं है।”

बुजुर्ग लड़खड़ाए, उनके हाथ से लिफाफा गिर गया जिसमें टिकट था। आंखों में आंसू आ गए लेकिन उन्होंने कोई शिकायत नहीं की। झुके, टिकट उठाया और किनारे जाकर खड़े हो गए।

भीड़ चुपचाप तमाशा देखती रही। कोई आगे नहीं आया। किसी ने मदद का हाथ नहीं बढ़ाया।

लेकिन फिर अचानक कुछ ही मिनटों में एयरपोर्ट का माहौल पूरी तरह से बदल गया।

तेज सायरन, वॉकी-टॉकी पर संवाद, दौड़ते अधिकारी। तीन सीनियर अधिकारी सीधे काउंटर की तरफ आए और चिल्लाए,
“वो बुजुर्ग कहां हैं? तुरंत ढूंढो उन्हें!”

पूरा हॉल ठहर गया। हर कोई चौंक गया।

अधिकारी बोले,
“तुम लोगों को अंदाजा भी है, किसे तुमने अपमानित किया है? यह आम आदमी नहीं, यह देश के रिटायर्ड युद्ध नायक हैं। प्रधानमंत्री के विशेष आमंत्रण पर दिल्ली जा रहे थे।”

प्रिया और गार्ड का चेहरा सफेद हो गया। अधिकारी ने डांटते हुए कहा,
“जिसे तुमने लाइन से निकाला, वो इस देश के लिए लड़े हैं, खून बहाया है। और तुमने उन्हें भिखारी समझकर धक्का दे दिया?”

भीड़ सन्न हो गई। अब सबकी निगाहें बुजुर्ग की ओर थीं। बुजुर्ग वहीं कोने में खड़े थे, सिर झुका हुआ, आंखों में आंसू और हाथ में वही पुराना टिकट।

एक अधिकारी भागते हुए उनके पास पहुंचे, झुककर बोले,
“सर, हमें माफ कर दीजिए। हमें नहीं पता था यह सब होगा। पीएम ऑफिस से कॉल आया है। आप हमारे गेस्ट हैं।”

बुजुर्ग ने शांत स्वर में कहा,
“मैं तो बस एक यात्री की तरह खड़ा था। किसी से झगड़ा नहीं किया।”

भीड़ में पहले जो लोग हंस रहे थे, अब शर्मिंदा खड़े थे। प्रिया और गार्ड की आंखों से आंसू बह रहे थे।

अचानक लाउडस्पीकर से घोषणा हुई —
“प्रधानमंत्री का विशेष संदेश अभी सार्वजनिक किया जाएगा।”

सब खड़े हो गए। एयरपोर्ट डायरेक्टर फोन पर बात कर रहे थे। फिर एक अधिकारी ने स्पीकर ऑन कर दिया।

प्रधानमंत्री की आवाज आई —
“सर, आपको जो अपमान झेलना पड़ा, उसके लिए देश शर्मिंदा है। आपने देश की सेवा की है, और ऐसे अपमान का हकदार कोई नहीं। जिन्होंने आपको अपमानित किया है, उन पर तुरंत कार्यवाही की जाएगी। देश को आप पर गर्व है।”

पूरा हॉल तालियों से गूंज उठा। मगर यह तालियां खुशी की नहीं, पश्चाताप की थीं।

बुजुर्ग की आंखों से आंसू बह निकले। लेकिन उन्होंने अपने धैर्य को थामा और बोले,
“मैं किसी सजा की मांग नहीं करता। गलती उनसे नहीं, इस सोच से है जो हमें इंसानों को उनके कपड़ों से आंकना सिखाती है।”

एक पत्रकार ने झिझकते हुए पूछा,
“सर, अगर बुरा ना मानें तो आप कौन हैं? आपने क्यों नहीं बताया कि आप इतने बड़े सम्मानित व्यक्ति हैं?”

बुजुर्ग मुस्कराए,
“अगर मैं बताता, तो मुझे सम्मान डर से मिलता। पर मैं देखना चाहता था, क्या अब भी इंसानियत जिंदा है।”

लोग सिसकने लगे। एक महिला जो पहले अपने बच्चे को उनसे दूर कर रही थी, अब रोते हुए बोली,
“बेटा, आज से कभी किसी को उसके कपड़ों से मत आकना।”

तभी सेना की एक टुकड़ी एयरपोर्ट पर पहुंची। सिपाहियों ने बुजुर्ग को सलामी दी। वह दृश्य देखकर हर आंख नम हो गई।

बुजुर्ग ने एक आखिरी बात कही,
“कभी मत भूलना, असली गरीबी पैसों की नहीं, सोच की होती है। और अगर हमने इंसानियत खो दी, तो समझो सब कुछ खो दिया।”

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