करोड़पति आदमी से गरीब बच्चों ने कहा… सर खाना नहीं खाइए। इस खाने में आपकी बीवी जहर मिलाई हुई है ।
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कहानी: सच की बेटी काव्या सिंह
बारिश आसमान से टूट कर गिर रही थी। सड़कों पर पानी बह रहा था और उसी भीगी रात में एक छोटी सी परछाई दौड़ रही थी। उसके पैर नंगे थे, कपड़े फटे हुए, बाल भीगे हुए थे और चेहरे से चिपके हुए। उसकी आँखों में डर था, मगर वह डर अपने लिए नहीं था, किसी और के लिए था। वह बार-बार खुद से कह रही थी—”माँ कहती थी अगर सच पता चल जाए तो चुप मत रहना।” इसी वाक्य ने उसकी रगों में हिम्मत भर दी थी। वह बच्ची थी काव्या, उम्र मुश्किल से ग्यारह साल, जिसने आज तय कर लिया था कि चाहे कुछ भी हो जाए, वह सच जरूर बोलेगी।
बरसात से भीगती गलियों से गुजरते हुए काव्या सड़क पार करती गई। गाड़ियों के हॉर्न, टायरों से उछलता पानी, लोग छाते लेकर भाग रहे थे, मगर उसे किसी की परवाह नहीं थी। उसकी आँखों के सामने बस एक ही जगह थी—नवाब कोर्ट रेस्टोरेंट। वहाँ शहर के सबसे अमीर लोग डिनर करने आते थे। आज वहाँ कोई जहर खाने वाला था।
रेस्टोरेंट के बाहर बड़े-बड़े लैंप जल रहे थे, गार्ड्स छाते पकड़े खड़े थे। हवा में इत्र और बारिश की मिली-जुली खुशबू थी। काव्या वहाँ पहुँची, साँसें तेज थीं, पूरी तरह भीग चुकी थी। कपड़े उसके शरीर से चिपक गए थे, लेकिन चेहरे पर डर नहीं था, बस हिम्मत थी। उसने अपने दिल को संभाला और गेट की तरफ बढ़ी। गार्ड ने रोका, “रुको, अंदर नहीं जा सकती।” लेकिन वह किसी की नहीं सुन रही थी। एक झटके से गार्ड का हाथ छुड़ाया और भीड़ के बीच से निकलती हुई तेजी से अंदर भागी।
अंदर रोशनी थी, संगीत था, महंगी हँसी थी। और उसी हँसी के बीच एक मासूम चीख गूंजी—”खाना मत खाइए!” पूरा हॉल ठहर गया। हर चेहरा उस गीली बच्ची की तरफ मुड़ गया। किसी ने कहा, “यह कौन है?” किसी ने कहा, “पागल लगती है।” लेकिन उसकी आँखों में जो डर था, उसने सबको खामोश कर दिया। टेबल नंबर नौ पर नीले सूट में बैठे थे समर प्रताप सिंह—शहर के बड़े बिजनेसमैन। उनके सामने प्लेट में गरम खाना था। काव्या उनके पास पहुँची, हाँफती हुई बोली, “खाना मत खाइए, उस खाने में जहर है।”
समर की उंगलियाँ हवा में थम गई। सबकी साँसें रुक गईं। “क्या कहा तुमने?” समर की आवाज धीमी लेकिन कांपती हुई थी। काव्या ने हिम्मत जुटाकर कहा, “तीन दिन पहले मैं आपके विला के बाहर बारिश से बचने के लिए झाड़ियों में छुपी थी। आपकी बीवी वहाँ किसी आदमी से कह रही थी कि समर को कल तक मर जाना चाहिए। उसने कहा था खाने में ‘डिजिटलिस्ट’ मिला दूंगी, किसी को पता नहीं चलेगा।”
पूरा रेस्टोरेंट एक पल को जड़ हो गया। वाशरूम का दरवाजा खुला, सफेद गाउन में एक महिला बाहर आई—इशिता सिन्हा। उसके चेहरे पर बनावटी हैरानी थी, पर आँखों में घबराहट की झलक थी। वह बोली, “यह बच्ची किसी आश्रम से भागी लगती है, मैनेजर इसे बाहर निकालो।” लेकिन समर का चेहरा पीला पड़ चुका था। उसने हाथ उठाया, “कोई इसे नहीं छुएगा।” वह धीरे से उठा, उसकी नजरें बच्ची पर टिकी थीं।
“तुम्हारा नाम क्या है?”
“काव्या।”
“और तुम्हारी माँ?”
“रश्मि।”
यह सुनते ही समर का चेहरा जैसे जम गया। उसके होंठ कांपे, उसने धीमे से पूछा, “क्या तुम्हारे कंधे पर चाँद जैसा निशान है?” काव्या ने दुपट्टा सरकाया, कंधे पर पुराना जला हुआ निशान था। समर की आँखों में आँसू तैर गए। रश्मि ने बताया था बचपन में गर्म पानी गिर गया था। उसकी आवाज टूट गई, “रश्मि मेरी जिंदगी थी।”
रेस्टोरेंट में सब लोग अब फुसफुसा रहे थे। किसी ने वीडियो बनाना शुरू किया, पर समर ने सबको रोक दिया, “सब बाहर जाओ। यह पुलिस का मामला है।” गार्ड्स ने रेस्टोरेंट खाली कराया। अंदर बस दो लोग बचे—समर और वो बच्ची। बाहर बिजली गरज रही थी, लेकिन अंदर एक अलग सन्नाटा था। काव्या कुर्सी पर बैठी थी, भीगी हुई ठंडी साँसें। समर उसके पास आया, उसकी आँखों में देखकर बोला, “तुमने जो कहा वह बहुत बड़ा इल्जाम है। क्या तुम जानती हो इसका मतलब क्या है?”
काव्या बोली, “हाँ, मुझे पता है। पर मैंने जो देखा और सुना, वह सच है। माँ कहती थी अगर किसी की जान बचाने के लिए बोलना पड़े तो डरो मत।” समर के सीने में जैसे कुछ टूट गया। उसने धीरे से कहा, “अगर तुम रश्मि की बेटी हो तो तुम मेरी जिंदगी की सबसे बड़ी सच्चाई हो।”
कुछ पल चुप रहा, फिर मैनेजर को बुलाया, “यह प्लेट सील करो, पुलिस को बुलाओ।” बाहर सायरन की आवाज गूंजी, पुलिस पहुँच चुकी थी। समर ने काव्या को देखा, “अब डरना मत, अब कोई तुम्हें हाथ नहीं लगाएगा।” काव्या ने खिड़की से बाहर देखा, बारिश थम चुकी थी। सड़क पर पानी बहता जा रहा था, जैसे सारी गंदगी अपने साथ ले जा रहा हो। उसकी आँखों में अब डर नहीं, सुकून था क्योंकि उसने सच बोलकर किसी की जान बचा ली थी। और एक आदमी जिसे सब कुछ खो दिया था, उसे अपनी बेटी मिल चुकी थी।
रेस्टोरेंट के बाहर पुलिस की गाड़ियाँ खड़ी थीं, कैमरे चमक रहे थे, मीडिया के माइक हवा में उठे थे और लोगों की भीड़ बस एक सवाल पूछ रही थी—कौन है यह छोटी सी लड़की जिसने शहर के सबसे अमीर आदमी की जान बचा ली?
अंदर ताज विला का कमरा अब सन्नाटे में डूबा था। समर प्रताप सिंह खिड़की के पास खड़ा था, हाथ में रिपोर्ट की कॉपी थी और उसके सामने बैठी थी वही बच्ची—काव्या। उसकी आँखों में थकान थी, लेकिन डर नहीं। समर ने उसकी तरफ देखा, “काव्या, जो तुमने आज किया उसके लिए तुम्हारा धन्यवाद भी छोटा शब्द है। अगर तुम नहीं आती तो आज मेरी कहानी यही खत्म हो जाती।”
काव्या ने धीरे से कहा, “मैं तो बस वही कर रही थी जो माँ ने कहा था। सच छिपाना सबसे बड़ा पाप होता है।” समर की आँखें भर आईं। उसने कुर्सी खींची और बैठ गया। “तुम्हारी माँ रश्मि…” फिर कुछ देर चुप रहा। काव्या बोली, “क्या आप मेरी माँ को जानते थे?” समर की आँखें दूर देख रही थीं, जैसे अतीत का कोई पर्दा हट रहा हो। “बहुत करीब से… बहुत ईमानदार थी, बहुत सच्ची और बहुत प्यारी। पर जिंदगी ने हमें अलग कर दिया।”
काव्या ने धीमे स्वर में पूछा, “और फिर?” समर ने सिर झुका लिया, उसकी उंगलियाँ कांप रही थीं। “मैंने उसे खोजने की बहुत कोशिश की, पर वह कभी नहीं मिली। आज जब तुम्हें देखा तो लगा जैसे जिंदगी ने मुझे फिर वही मौका दिया है, जो मैंने सालों पहले खो दिया था।”
पुलिस इंस्पेक्टर अंदर आया, रिपोर्ट हाथ में थी। “सर, हमने खाने का टेस्ट कराया है। उसमें ‘डिजिटलिस्ट’ पाया गया है। एक दुर्लभ जहर। अगर आपने वह खाना खा लिया होता तो आपकी जान जा सकती थी।” कमरे में सन्नाटा छा गया। समर की आँखों में दर्द था, पर होठों पर एक हल्की मुस्कान आई। “तो यह सच था। मेरी पत्नी इशिता मुझे मारना चाहती थी।”
काव्या ने डरते हुए पूछा, “क्या अब वो आपको नुकसान पहुंचाएगी?”
“नहीं बेटा, अब नहीं। अब उसके झूठ का पर्दा गिर चुका है।”
समर ने इंस्पेक्टर से कहा, “इशिता को हिरासत में ले लो।”
बाहर सायरन की आवाज गूंजी और एक वक्त में जिस औरत के नाम से पूरा शहर कांपता था, वह अब पुलिस की गाड़ी में बैठी थी। काव्या खिड़की से देख रही थी। जिस दुनिया को वह कभी दूर से देखती थी, आज वह उसी के अंदर खड़ी थी, पर अपनी सच्चाई के साथ।
रात का वक्त था, हवाएँ ठंडी थीं। समर ने कहा, “अब तुम मेरे साथ मेरे घर चलो।”
काव्या चौकी, “आपके घर?”
“हाँ, अब तुम अकेली नहीं हो। अब तुम मेरी जिम्मेदारी हो।”
वह मुस्कुरा दी, एक मासूम मुस्कान जो शायद कई सालों बाद आई थी।
गाड़ी में बैठते हुए उसने खिड़की से बाहर देखा, बारिश अब थम चुकी थी। लेकिन उसके भीतर जो डर था, वो भी कहीं दूर चला गया था।
विला सिंह हाउस पहुँचते ही नौकरानी ने दरवाजा खोला। अंदर हर चीज चमक रही थी—संगमरमर का फर्श, बड़े-बड़े शीशे। काव्या के लिए यह सब किसी सपने जैसा था, पर दिल में एक डर था कि कहीं सुबह यह सपना टूट ना जाए। समर ने उसकी तरफ देखकर कहा, “डरो मत, अब यह घर तुम्हारा भी है।” उसने नौकर से कहा, “इस बच्ची के लिए गर्म दूध और नए कपड़े लाओ।” और फिर धीरे से बोला, “अब तुम सो जाओ।”
रात के सन्नाटे में जब काव्या कमरे में अकेली थी, उसने तकिए में चेहरा छिपाया और आँखों से आँसू बह निकले। वो आँसू दुख के नहीं, राहत के थे। शायद पहली बार किसी ने उसे नाम से पुकारा था। पहली बार किसी ने कहा था, “तुम अब अकेली नहीं हो।” वह धीरे से फुसफुसाई, “माँ, मैंने आज सच कहा। अब शायद तुम गर्व करोगी ना।”
अगली सुबह अखबारों की सुर्खियाँ बस एक ही थी—गरीब बच्ची ने बचाई अरबपति की जान। भिखारिन या भगवान के दूत? हर चैनल, हर रिपोर्टर उस बच्ची का नाम पूछ रहा था—काव्या सिंह। मगर समर के लिए वह सिर्फ एक नाम नहीं थी, वह उसकी दुनिया का अधूरा हिस्सा थी जो अब पूरा हुआ था।
दोपहर को मीडिया ने सवाल पूछा, “सर, क्या आप इस बच्ची को गोद ले रहे हैं?”
समर ने मुस्कुरा कर कहा, “मैं उसे बेटी बना रहा हूँ, क्योंकि उसने मुझे जिंदगी दी है।”
उस दिन विला के दरवाजे पर लोगों की भीड़ थी, लेकिन अंदर बस एक रिश्ता जन्म ले चुका था—एक पिता जिसने अपनी बेटी खो दी थी और एक बेटी जिसने कभी पिता देखा नहीं था।
रात को समर बालकनी में बैठा था, उसने चाँद की ओर देखा और कहा, “रश्मि, अगर तुम सुन रही हो, तो जान लो तुम्हारी बेटी अब अकेली नहीं है। वह सच की बेटी है, और सच अब मेरे घर में बस चुका है।”
काव्या ने कमरे की खिड़की से बाहर झांका, आसमान में वही चाँद था जो उसकी माँ की कहानियों में होता था। उसने मुस्कुरा कर कहा, “माँ, अब मुझे डर नहीं लगता, क्योंकि अब मेरे पास कोई है जो मुझे बेटी कहता है।”
सुबह की हल्की धूप खिड़कियों से झांक रही थी। काव्या अब सिंह विला के उस कमरे में थी, जहाँ कभी समर की बेटी खेला करती थी। दीवारों पर खिलौने, बिस्तर पर टेडी बीयर और खिड़की पर वही गुलाबी पर्दा जो हवा के साथ झूल रहा था। काव्या ने धीरे से टेडी को उठाया, उसे सीने से लगाया—शायद उसे लगा जैसे माँ की गोद फिर मिल गई हो।
नीचे हॉल में समर पुलिस इंस्पेक्टर और वकील के साथ बैठा था। टेबल पर रिपोर्ट रखी थी। मीडिया अब इस केस को सदी का रहस्य कह रही थी, क्योंकि किसी को यकीन नहीं हो रहा था कि एक 11 साल की बच्ची ने शहर के सबसे बड़े व्यापारी की जान बचाई और अब वही बच्ची उसकी जिंदगी का सबसे बड़ा सच बन चुकी थी।
इंस्पेक्टर ने कहा, “सर, हमने कुछ सबूत जुटाए हैं। वह बच्ची जो खुद को रश्मि की बेटी बताती है, उसका नाम तो काव्या है, पर उसका कोई आधिकारिक रिकॉर्ड नहीं है। हमने डीएनए टेस्ट के लिए सैंपल भेज दिया है। कल तक रिपोर्ट आ जाएगी।”
समर ने सिर झुका लिया, उसकी आँखों में चिंता थी। वह सोच रहा था, अगर यह बच्ची सच में रश्मि की बेटी निकली तो किस्मत ने उसे वापस लौटा दिया है और अगर नहीं निकली तो क्या वो उसे फिर खो देगा। वह खिड़की से बाहर देख रहा था। बारिश के बाद की मिट्टी की खुशबू हवा में घुली थी और उसे लगा जैसे रश्मि की कोई अधूरी बात हवा में तैर रही हो।
उसी वक्त काव्या नीचे आई, वह सफेद फ्रॉक में थी, बाल खुले और आँखों में वही मासूम चमक। उसने धीरे से पूछा, “आप मुझे स्कूल भेजेंगे ना?”
समर मुस्कुरा दिया, “हाँ, अब तुम सब सीखोगी, पढ़ोगी और जो बनना चाहो वो बनोगी।”
काव्या ने सिर झुका लिया, “माँ कहती थी अगर पढ़ लोगी तो दुनिया तुम्हें झुका नहीं पाएगी।”
समर की आँखों से आँसू गिर पड़े, “तुम्हारी माँ बिल्कुल सही कहती थी।”
दोपहर तक न्यूज़ चैनल्स पर बस यही खबर थी—समर सिंह ने उस बच्ची को बेटी मान लिया है जिसने उसकी जान बचाई। कुछ लोग तारीफ कर रहे थे, तो कुछ कह रहे थे यह सब पब्लिसिटी है। समर ने टीवी बंद किया। उसे पता था कि दुनिया सिर्फ देखती है, समझती नहीं।
शाम होते-होते इंस्पेक्टर फिर आया, हाथ में एक सील बंद लिफाफा था। रिपोर्ट आ चुकी थी। कमरा अचानक भारी हो गया। काव्या दरवाजे पर खड़ी थी, उसकी आँखों में सवाल थे। समर के हाथ कांप रहे थे। जब उसने लिफाफा खोला, अंदर एक लाइन लिखी थी—”डीएनए मैच पॉजिटिव। काव्या रश्मि और समर की ही बेटी है।”
उस पल जो चुप्पी छाई, उसमें सिर्फ दिल की धड़कनें सुनी जा सकती थीं। समर ने धीरे से नजर उठाई, उसकी आँखें काव्या से मिलीं। वह कुछ कह नहीं पाया, बस आगे बढ़ा और उसे सीने से लगा लिया। काव्या ने अपने छोटे हाथों से उसे कसकर पकड़ा, उसकी आँखों से आँसू बहे पर होठों पर मुस्कान थी। वह बोली, “अब माँ खुश होंगी ना?”
समर ने कहा, “बहुत, क्योंकि अब उन्होंने तुम्हें मुझे लौटा दिया है।”
अगले दिन मीडिया विला के बाहर जुटी थी। हर कैमरा उस पल को कैद करना चाहता था, जब समर ने अपनी बेटी को आधिकारिक रूप से अपनाया। वह बालकनी में आया, काव्या उसके बगल में थी। उसने कहा, “मैं बस एक बात कहना चाहता हूँ—यह बच्ची मेरी बेटी ही नहीं, मेरा जमीर है। जिसने मुझे याद दिलाया कि सच्चाई सिर्फ अदालत में नहीं, दिल में भी होती है।”
लोग ताली बजाने लगे। काव्या के चेहरे पर वही मुस्कान थी जो किसी टूटे इंसान को जोड़ देती है।
उस रात जब सब सो चुके थे, समर बालकनी में बैठा आसमान की तरफ देख रहा था। चाँद के आसपास बादल थे। उसने धीरे से कहा, “रश्मि, अब मैं वादा करता हूँ, तुम्हारी बेटी को वही जिंदगी दूंगा जो तुमने उसके लिए मांगी थी। अब कोई उसे भूखा या बेबस नहीं देखेगा।”
अंदर कमरे में काव्या ने तकिए में सिर छिपाया, धीरे से बोली, “माँ, अब मैं सच की बेटी हूँ। और सच हमेशा जीतता है।” वह सो गई, लेकिन उसकी मुस्कान में एक पूरी कहानी थी जो अब दुनिया सुनने वाली थी।
सुबह की हल्की धूप विला के शीशों पर गिर रही थी। बाहर मीडिया अब भी डेरा डाले थी। हर कैमरा इस कहानी का अंत जानना चाहता था, क्योंकि अब यह सिर्फ एक खबर नहीं, इंसानियत की मिसाल बन चुकी थी।
अंदर समर अपने ऑफिस रूम में बैठा था, टेबल पर रश्मि की पुरानी तस्वीर रखी थी। उस तस्वीर को देखते हुए उसने कहा, “रश्मि, आज तुम्हारा सपना पूरा हो गया। तुम्हारी बेटी अब सुरक्षित है और मैं उसे कभी अकेला नहीं छोड़ूंगा।”
शाम को सिंह विला के बाहर गरीब बच्चों का एक छोटा सा स्कूल खुला। उसका नाम रखा गया “रश्मि आशा केंद्र”—जहाँ कोई बच्चा भूखा या अनपढ़ नहीं रहेगा।
काव्या बच्चों के बीच खड़ी थी, उसने वही बात दोहराई जो उसकी माँ ने कही थी—”अगर सच बोलना मुश्किल लगे तो डर से मत भागना, बस खुद से झूठ मत बोलना।”
समर दूर खड़ा सब देख रहा था, उसकी आँखें भर आईं। वह जानता था कि अब उसकी दुनिया पूरी हो चुकी है, क्योंकि उसकी बेटी ने सिर्फ उसका नाम नहीं, उसकी सोच भी अमर कर दी थी।
रात को जब काव्या ने आसमान की तरफ देखा तो चाँद के चारों ओर हल्की रोशनी थी। उसने आँखें बंद की और कहा, “माँ, अब मुझे डर नहीं लगता, क्योंकि मैंने देख लिया है कि सच के रास्ते पर दर्द तो होता है, पर मंजिल हमेशा खूबसूरत होती है।”
यह थी सच की बेटी काव्या सिंह की कहानी।
अगर आपको यह कहानी पसंद आई हो तो इंसानियत और सच्चाई को आगे बढ़ाएं।
जय हिंद, जय भारत।
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