“कूड़ा बीनने वाला बच्चा निकला मैथ्स का जीनियस! पूरा स्कूल दंग…”
Buổi sáng vàng và một thế giới khác
सुबह का समय था। बच्चे अपनी साफ-सुथरी यूनिफॉर्म पहनकर, हंसते-खेलते स्कूल की ओर भाग रहे थे। उनके चेहरों पर मासूमियत और उत्साह की चमक थी। लेकिन उसी भीड़ से कुछ दूरी पर, एक दुबला-पतला लड़का, फटे हुए कपड़ों में, एक बड़ा सा बोरा लिए सड़क किनारे झुका हुआ था।
उसका नाम था आरव।
13 साल का यह लड़का, गरीबी और संघर्ष का जीता-जागता उदाहरण था। उसके बाल धूल से भरे हुए थे, हाथों पर खरोचें थीं, और चेहरे पर 25 साल की मजबूरी का बोझ। लेकिन उसकी आंखों में एक अजीब सी चमक थी। यह चमक किसी साधारण बच्चे की नहीं थी। यह चमक उस जीनियस की थी, जो परिस्थितियों के खिलाफ लड़ते हुए भी अपने सपनों को नहीं छोड़ता।
आरव रोज सुबह स्कूल के बच्चों को देखकर मुस्कुराता था। उसे स्कूल बहुत पसंद था। लेकिन गरीबी ने उसकी पढ़ाई का हक छीन लिया था। वह दूर खड़ा स्कूल की खिड़कियों से अंदर झांकता था, जैसे किसी और दुनिया को देख रहा हो।
दुनिया का सबसे कठिन सवाल
उस दिन स्कूल के अंदर, मैथ्स का पीरियड था। क्लास में दाखिल हुए प्रोफेसर विवेक शेखावत। वह शहर के सबसे सख्त और इंटेलिजेंट टीचर थे। कहा जाता था कि उनकी क्लास में गलती की कोई जगह नहीं होती।
उन्होंने ब्लैकबोर्ड पर एक बेहद कठिन और उलझा हुआ सवाल लिखा। यह सवाल इतना जटिल था कि इसे हल करना कॉलेज के बच्चों के लिए भी मुश्किल होता।
“यह दुनिया का सबसे कठिन सवाल है। जो इसे हल करेगा, उसका नाम इस स्कूल के इतिहास में सुनहरे अक्षरों में लिखा जाएगा,” विवेक सर ने गंभीर आवाज में कहा।
क्लास में हलचल मच गई। बच्चे पेन और कॉपी लेकर सवाल हल करने में जुट गए। लेकिन सवाल इतना कठिन था कि 20 मिनट बीतने के बाद भी किसी ने सही उत्तर नहीं निकाला।
“इसे अपनी कॉपी में उतार लो। जो इसे कल तक हल करेगा, उसे इनाम मिलेगा,” सर ने कहा और क्लास खत्म कर दी।
स्कूल की छुट्टी हो चुकी थी। बच्चे अपने बैग झुलाते हुए गेट से बाहर निकल रहे थे। लेकिन बाहर एक ही बच्चा था, जो कहीं नहीं जा रहा था। वह था आरव।

खिड़की से झांकती उम्मीद
स्कूल खाली हो चुका था। आरव धीरे-धीरे खिड़की के पास गया। उसने ब्लैकबोर्ड पर लिखे सवाल को ध्यान से देखा। हर एक सिंबल, हर एक संख्या, हर एक पैटर्न को उसने अपने दिमाग में बिठा लिया।
“यह मुश्किल है, पर नामुमकिन नहीं,” उसने खुद से कहा।
अपना बोरा उठाकर वह दौड़ता हुआ अपनी झुग्गी की ओर चला गया।
झुग्गी में गणित का जादू
आरव का घर झुग्गियों की अंतिम कतार में था। टूटा हुआ दरवाजा, लीक करता छप्पर, और अंदर एक मिट्टी का चूल्हा। लेकिन यह घर गरीब भले था, पर आरव के सपनों की दुनिया इससे कहीं बड़ी थी।
आरव ने दीवार पर कोयले से स्कूल वाले सवाल को लिखा। दीवार पर पहले से ही पुराने इक्वेशंस की इबारतें थीं। उसने सवाल के हर हिस्से पर ध्यान दिया।
पहले एक रास्ता गलत निकला, फिर दूसरा। लेकिन आरव रुका नहीं। चार घंटे की मेहनत के बाद, आखिरकार उसने सही सॉल्यूशन निकाल लिया।
“हो गया!” उसने खुशी से कहा।
स्कूल में छुपा हुआ चमत्कार
अगले दिन, सुबह-सुबह आरव स्कूल पहुंचा। स्कूल अभी खाली था। उसने मौका देखकर दीवार कूदकर क्लासरूम में प्रवेश किया। ब्लैकबोर्ड साफ किया और अपने अनोखे अंदाज में सवाल का सॉल्यूशन लिख दिया।
पूरा बोर्ड सवाल के सही समाधान से भर गया। एक-एक स्टेप परफेक्ट था। उसने अपना नाम नहीं लिखा और जल्दी से बाहर निकल गया।
9:00 बजे स्कूल शुरू हुआ। बच्चे क्लास में पहुंचे। जब टीचर शेखावत ने ब्लैकबोर्ड देखा, तो वह हैरान रह गए।
“यह किसने किया?” उन्होंने चिल्लाते हुए पूछा।
लेकिन कोई जवाब नहीं आया।
“जिसने भी किया है, सामने आए। मैं उसे इनाम दूंगा,” उन्होंने कहा।
लेकिन क्लास में सन्नाटा था। यह सवाल सॉल्व देखकर हर कोई दंग था।
सच की तलाश
टीचर शेखावत की बेचैनी बढ़ती जा रही थी। उन्होंने ठान लिया कि वह इस रहस्य को सुलझाकर ही रहेंगे।
दोपहर के समय, वह स्कूल के पिछले गेट से बाहर निकल गए। उनकी नजरें झुग्गियों और कूड़े के ढेरों पर थीं।
एक छोटी गली में, उन्होंने कुछ बच्चों को प्लास्टिक छांटते हुए देखा। “तुम में से कोई सुबह स्कूल के पास था?” उन्होंने पूछा।
एक बच्चे ने धीरे से कहा, “सर, वो आरव होगा शायद।”
आरव का सच
टीचर ने आरव की झोपड़ी ढूंढ निकाली। जैसे ही उन्होंने अंदर कदम रखा, वह स्तब्ध रह गए। दीवारों पर कोयले से लिखे समीकरण, त्रिकोणमिति के निशान, और जटिल कैलकुलेशन थे। यह किसी गरीब के घर की दीवारें नहीं थीं, यह किसी जीनियस का दिमाग था।
“यह सब तुमने किया?” टीचर ने कांपते हुए पूछा।
आरव ने सिर झुका लिया। “सर, मैंने कुछ गलत तो नहीं किया ना?”
टीचर की आंखें भर आईं। उन्होंने कहा, “गलत? तुमने तो वह किया है, जो बड़े-बड़े प्रोफेसर भी नहीं कर सकते।”
नया सफर
टीचर ने आरव से वादा किया कि वह उसे स्कूल में पढ़ाएंगे। “तुम्हें सिर्फ मौका चाहिए, और मैं वह मौका तुम्हें दूंगा,” उन्होंने कहा।
अगले दिन, स्कूल ने आरव को स्कॉलरशिप दी। उसे पढ़ाई के लिए फ्री एडमिशन मिला।
आरव ने धीरे-धीरे खुद पर विश्वास करना शुरू किया। वह कूड़ा बीनने वाले एक साधारण बच्चे से देश के सबसे बड़े गणितज्ञ बनने की ओर बढ़ चला।
सपने सच होते हैं
आरव की कहानी यह सिखाती है कि टैलेंट किसी अमीरी या गरीबी का मोहताज नहीं होता। सही मौका मिलने पर एक गरीब बच्चा भी दुनिया बदल सकता है।
“सपने सच होते हैं, बस उन्हें देखने की हिम्मत होनी चाहिए।”
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