कॉलेज की अधूरी मोहब्बत… सड़क किनारे जलेबी बेचती मिली… आगे जो हुआ, रुला देगा
जयपुर, राजस्थान का गुलाबी शहर, अपनी हलचल और रंग-बिरंगी गलियों के लिए मशहूर है। यहां की हर गली में एक कहानी छिपी होती है। इसी शहर में एक दिलचस्प कहानी बुनती है रवि और प्रिया की। यह कहानी केवल प्यार की नहीं, बल्कि समाज की कड़वी सच्चाई और इंसान की पहचान की भी है। आइए, जानते हैं इस कहानी को जो हमें सिखाती है कि हालात कभी भी इंसान की पहचान नहीं बनाते।
रवि की जिंदगी
रवि एक सफल बिजनेसमैन है। उसकी चमचमाती गाड़ी में बैठकर वह जयपुर की सड़कों पर चल रहा था। उसकी नजरें सड़क किनारे भटक रही थीं, शायद वह किसी छोटे से ठेले पर कुछ देसी खाने का स्वाद लेना चाहता था। सूरज ढल चुका था और ठंडी हवा ने जयपुर की सड़कों को और भी खुशनुमा बना दिया था। तभी उसकी नजर एक छोटे से ठेले पर पड़ी, जहां जलेबी की मिठास हवा में घुल रही थी।
ठेले पर एक लड़की सादे कपड़ों में, सिर पर दुपट्टा लिए, बड़े ही शांत और सादगी भरे अंदाज में ग्राहकों को जलेबी परोस रही थी। उसकी मुस्कान में एक अनकही कहानी थी। जैसे वह सिर्फ जलेबी नहीं, बल्कि अपने जीवन का एक हिस्सा परोस रही हो। रवि ने बिना सोचे अपनी गाड़ी ठेले के पास रोकी और स्टूल पर बैठ गया। उसने हल्की मुस्कान के साथ कहा, “मैडम, जरा एक प्लेट जलेबी बना दीजिए। लेकिन थोड़ा जल्दी।”
प्रिया से मुलाकात
लड़की ने सिर हिलाया और अपने हाथों से गरमा-गरम जलेबी को चाशनी में डुबोते हुए एक प्लेट में सजाने लगी। उसका हर काम इतना सहज था कि रवि उसकी सादगी में खो गया। जैसे ही उसकी नजर लड़की के चेहरे पर पड़ी, उसका दिल धक से रह गया। वह चेहरा, जो सालों पहले उसकी जिंदगी का सबसे खूबसूरत सपना हुआ करता था। कॉलेज के दिनों में, जब वह उसे चुपके से देखा करता था, उसकी हंसी, उसकी बातें, उसकी छोटी-छोटी हरकतें, सब कुछ रवि के दिल में बस गई थीं।
रवि ने धीरे से कहा, “माफ कीजिए मैडम, लेकिन मुझे लगता है मैं आपको कहीं से जानता हूं। क्या आपका नाम प्रिया है?” लड़की के हाथ एक पल के लिए रुक गए। उसकी सांसें भारी हो गईं और उसने जल्दी से कहा, “साहब, मैं तो एक साधारण सी लड़की हूं। आप जैसे लोग मुझे कैसे जान सकते हैं?” उसकी आवाज में एक हल्का सा डर था, जैसे कोई पुराना जख्म फिर से हरा होने वाला हो।
पुरानी यादें
रवि ने शांति से दोबारा पूछा, “क्या आपका नाम प्रिया है?” लड़की ने झिझकते हुए धीमी आवाज में कहा, “जी, मेरा नाम प्रिया ही है। लेकिन आप कौन हैं?” रवि ने हल्की मुस्कान के साथ कहा, “मैं रवि हूं। प्रिया, तुम्हारी ही क्लास में पढ़ता था। वही रवि जो तुम्हें चुपके-चुपके देखा करता था।”
प्रिया की आंखें चौड़ी हो गईं। उसने जल्दी से अपना चेहरा दुपट्टे से छुपाया। जैसे कोई पुरानी याद अचानक उसके दिल को चीर गई हो। वह ठेले की चीजें ठीक करने का बहाना करने लगी, लेकिन उसकी कांपती उंगलियां उसकी बेचैनी बयां कर रही थीं। रवि ने नरम स्वर में कहा, “प्रिया, मुझे बताओ तुम इस हाल में कैसे? कॉलेज में तो तुम वो लड़की थी जो अपने सपनों में जीती थी। आज सड़क किनारे जलेबी बेचते देख मेरा दिल कांप रहा है। तुम्हारे साथ क्या हुआ?”
प्रिया की कहानी
प्रिया की आंखों से आंसू छलक पड़े। वह फूट-फूट कर रोने लगी। उसकी हिचकियां रवि के दिल को चाक कर रही थीं। रवि ने धीरे से उसे संभाला और कहा, “प्रिया, प्लीज मुझे सब सच बता दो।” प्रिया ने कांपती आवाज में शुरू किया, “रवि, कॉलेज के बाद मेरे पिताजी ने मेरी शादी कर दी थी। मैं अपने पति के साथ बहुत खुश थी। उन्होंने मुझे बहुत प्यार किया। हमने एक छोटा सा घर बनाया, सपने देखे, लेकिन 2 साल बाद उनकी एक बीमारी ने उन्हें मुझसे छीन लिया।”
प्रिया की आवाज टूटने लगी। रवि की आंखें भी नम हो गईं। प्रिया ने सिसकते हुए आगे बताया, “उनके जाने के बाद मेरे ससुराल वालों ने मुझे घर से निकाल दिया। उनका कहना था कि मेरा कोई बच्चा नहीं तो मेरा वहां क्या काम? मुझे ताने सुनने पड़े, धक्के खाने पड़े। मैं मायके लौटी लेकिन वहां भैया-भाभी मुझे बोझ समझने लगे। पिताजी मुझे जयपुर ले आए। उन्होंने अपनी जमा पूंजी से यह जलेबी का ठेला लगवा दिया ताकि मैं अपने दम पर जी सकूं। अब पिताजी इतने बूढ़े हो चुके हैं कि कुछ कर नहीं सकते। 5 साल से मैं यही ठेला चला रही हूं। यही मेरी दुनिया है।”
रवि का समर्थन
रवि की आंखों में आंसू आ गए। उसने प्रिया की तरफ देखा, जिसकी आंखें अब भी आंसुओं से भरी थीं। लेकिन उसमें एक अजीब सी ताकत थी। प्रिया ने जबरन मुस्कुराकर कहा, “छोड़ो रवि, यह सब बीती बातें हैं। तुम बताओ तुम्हारी जिंदगी कैसी है? शादी हो गई ना?” रवि ने गंभीर होकर कहा, “मैंने आज तक शादी नहीं की।”
प्रिया चौकी क्यों? “तुम तो कॉलेज में इतने स्मार्ट थे। सब लड़कियां तुम्हें पसंद करती थीं।” रवि ने हल्के से हंसकर कहा, “क्योंकि जिससे मैं प्यार करता था, वो किसी और की हो गई थी।” प्रिया ने उसकी आंखों में देखा, “कौन थी वो?” रवि ने गहरी सांस ली और कहा, “वह तुम थी प्रिया, जिसके लिए मैंने आज तक किसी और को अपने दिल में जगह नहीं दी।”
भावनाओं का ज्वार
प्रिया का चेहरा सन्न रह गया। उसकी आंखों से आंसू टपकने लगे। उसकी जुबान जैसे जड़ हो गई थी। वह कांपती आवाज में बोली, “रवि, क्या तुम सचमुच मुझसे प्यार करते थे? मेरी वजह से तुमने इतने साल शादी नहीं की?” रवि ने हल्की मुस्कान के साथ कहा, “प्रिया, मैंने कॉलेज के पहले दिन से तुमसे प्यार किया था। तुम्हारी वो हंसी, तुम्हारी वो बेफिक्री, तुम्हारा वो हर दिन क्लास में देर से आना, सब कुछ मेरे दिल में बस गया था।”
“लेकिन एक बार तुमने मुझे डाल दिया था ना कि तुम मुझे ऐसे क्यों घूरते हो? उस दिन के बाद मेरी हिम्मत ही नहीं हुई कि मैं तुमसे अपने दिल की बात कह सकूं।” रवि की आंखें नम हो गईं। वह आगे बोला, “कॉलेज खत्म होने के बाद मैंने सोचा था कि मैं खूब मेहनत करूंगा, कुछ बनूंगा और फिर तुम्हारे घर जाकर तुम्हारा हाथ मांगूंगा। मैं विदेश चला गया। वहां दिन-रात मेहनत की। लेकिन जब लौटा तो पता चला कि तुम्हारी शादी हो चुकी है। उस दिन लगा जैसे मेरी सारी दुनिया खत्म हो गई। मैंने मां से कह दिया कि अब मैं कभी शादी नहीं करूंगा। क्योंकि मेरी दुल्हन किसी और की हो चुकी है।”
प्रिया का निर्णय
प्रिया के आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे। वह अपने दुपट्टे से आंखें पोछने की कोशिश कर रही थी। लेकिन उसकी सिसकियां रवि के दिल को चीर रही थीं। प्रिया ने खुद को संभालते हुए कहा, “रवि, अगर उस दिन तुमने अपने दिल की बात कह दी होती तो शायद मैं भी हां कह देती। क्योंकि शायद मैं भी तुम्हें मन ही मन चाहती थी।” यह सुनकर रवि की आंखों में एक चमक आ गई। उसने कहा, “तो क्या अब बहुत देर हो चुकी है प्रिया? क्या मैं अब भी तुम्हें अपना नहीं बना सकता?”
प्रिया ने झट से कहा, “पागल हो गए हो रवि, तुम जानते हो तुम कौन हो और मैं कौन? तुम बड़े घर के हो, तुम्हारे पास पैसा, इज्जत सब कुछ है और मैं… मैं तो सड़क किनारे जलेबी बेचती हूं। मेरे पास तुम्हें देने को कुछ नहीं।” रवि ने तुरंत कहा, “मुझे कुछ नहीं चाहिए प्रिया, मुझे सिर्फ तुम चाहिए। मैं तुम्हें अपने घर ले जाना चाहता हूं, अपनी पत्नी बनाना चाहता हूं।”

समाज का सामना
प्रिया ने चेहरा दुपट्टे में छुपाते हुए कहा, “नहीं रवि, तुम किसी और से शादी कर लो। मैं तुम्हारे लायक नहीं। मैं वो लड़की हूं जिसे सबने बोझ समझा, जिसे सबने ठुकरा दिया। मैं तुम्हारा भविष्य बर्बाद नहीं कर सकती।” रवि ने धीरे से उसका हाथ पकड़ा और कहा, “प्रिया, तुम मेरी किस्मत हो। तुम्हारे बिना मेरा कोई भविष्य नहीं। तुम आज भी मेरे दिल में वैसी ही हो जैसी कॉलेज में थी। तुम्हारी वो सादगी, तुम्हारी वो हिम्मत। यह सब आज भी मेरे लिए वही मायने रखता है।”
प्रिया ने गुस्से में हाथ छुड़ाया। “यह सब फिल्मी बातें छोड़ो। रवि, जाओ। अपनी गाड़ी में बैठो और घर चले जाओ। और हां, जलेबी खाकर जाना। तुमने कहा था ना तुम्हें बहुत भूख लगी है।” रवि ने मुस्कुरा कर कहा, “खा लूंगा प्रिया और कल फिर आऊंगा अपनी मां के साथ। तुम्हें अपनी दुल्हन बनाकर ले जाऊंगा।”
नया सफर
प्रिया एकदम चौंक गई। “रवि, तुम सचमुच पागल हो गए हो। मैंने मना कर दिया ना।” रवि ने उसके कान में धीरे से कहा, “तुम्हें मुझसे शादी करनी ही होगी। और हां, कल मेरे लिए एक प्लेट जलेबी बचा कर रखना।” रवि ने जलेबी खाई, प्रिया को देखकर मुस्कुराया और अपनी गाड़ी में बैठकर चला गया। लेकिन प्रिया वहीं ठहरी रही। उसकी आंखें उस रास्ते को देखती रही, जहां रवि की गाड़ी गायब हो गई थी। उसका दिल बार-बार पूछ रहा था, “क्या सचमुच रवि आएगा? क्या वह मुझे अपनाएगा? क्या मैं इस लायक हूं?”
मां का समर्थन
अगले दिन रवि घर पहुंचते ही अपनी मां के सामने खड़ा हो गया। उसकी मां शांता देवी, एक सादगी भरी औरत थीं, जिन्होंने हमेशा अपने बेटे की खुशी को सबसे ऊपर रखा। रवि ने गंभीर स्वर में कहा, “मां, मुझे शादी करनी है। मुझे अपना घर बसाना है।” मां की आंखें खुशी से भर आईं। “सालों से रवि शादी के नाम पर चुप्पी साध लेता था। बेटा, यह अचानक कैसे?” मां ने कांपती आवाज में पूछा।
रवि ने मां की आंखों में देखा और सारी कहानी खोल दी। “कल मुझे वह प्रिया मिली जिसके लिए मैंने शादी से इंकार किया था। उसने कॉलेज के दिनों की बात बताई। कैसे वह प्रिया की एक झलक के लिए तरसता था। कैसे उसकी छोटी-छोटी बातें उसे दुनिया की सबसे खूबसूरत चीज लगती थीं। कैसे प्रिया की शादी की खबर ने उसका दिल तोड़ दिया था। और कैसे कल जयपुर की सड़क किनारे उसी प्रिया को उसने जलेबी बेचते देखा। अकेली, टूटी हुई, लेकिन अपनी मेहनत से जिंदगी संभालती हुई।”
मां का निर्णय
मां ने रवि की आंखों में उसके प्यार की सच्चाई पढ़ ली। उन्होंने बिना देर किए रवि के सिर पर हाथ रखा और कहा, “बेटा, अगर तेरा दिल सच्चा है तो तुझे तेरा प्यार जरूर मिलेगा। मैं तेरे साथ हूं। हम प्रिया को अपनी बहू बनाएंगे।” रवि की आंखें चमक उठी। “मां, क्या मैं आपको आज ही प्रिया के पास ले चलूं?” मां ने मुस्कुरा कर कहा, “चल बेटा, आज तेरा सपना पूरा करने का वक्त है।”
प्रिया के ठेले पर
रवि अपनी मां को लेकर प्रिया के ठेले पर पहुंचा। जयपुर की उस सड़क पर सुबह की रौनक छाई थी। प्रिया जैसे सुबह से रवि का इंतजार कर रही थी। उसकी आंखें बार-बार रास्ते की तरफ उठ रही थीं। रवि ने हंसकर कहा, “मैडम, एक प्लेट जलेबी बनाइए लेकिन आज थोड़ा स्पेशल, मेरी मां भी आपके ठेले पर आई हैं।”
प्रिया की नजर मां की तरफ उठी। शांता देवी ने प्रिया का हाथ पकड़ा और प्यार से कहा, “बेटी, तुमने कल मेरे बेटे को मना किया। लेकिन मैं तुम्हें मनाने नहीं आई हूं। अपनी बहू बनाने आई हूं।” प्रिया का दिल जोर से धड़कने लगा। उसकी आंखों से आंसू टपकने लगे। “मां जी, आप क्या कह रही हैं? मैं सड़क किनारे जलेबी बेचती हूं। आपके घर की बहू बनने लायक नहीं।”
नया जीवन
मां ने प्रिया के सिर पर हाथ रखकर कहा, “बेटी, इंसान की कीमत उसका दिल तय करता है, हालात नहीं। तुम्हारी मेहनत, तुम्हारी सच्चाई, तुम्हारी हिम्मत। यह सब तुम्हें सबसे खास बनाती है। रवि ने तुम्हें चुना है और मैंने तुम्हें अपनी बहू मान लिया है।” प्रिया ने रवि की तरफ देखा। “रवि, क्या तुम सचमुच मुझसे शादी करना चाहते हो? क्या तुम अपनी जिंदगी बर्बाद करने को तैयार हो?”
रवि ने तुरंत कहा, “प्रिया, मेरी जिंदगी तब बर्बाद होती अगर तुम मेरी जिंदगी में ना आती। तुम मेरी दुनिया हो।” मां ने प्रिया के बूढ़े पिता को बुलाया, जो पास ही एक छोटे से कमरे में रहते थे। मां ने हाथ जोड़कर कहा, “भाई साहब, आज से आपकी बेटी मेरी बहू है। हम इसे धूमधाम से अपने घर ले जाएंगे।”
शादी की तैयारी
प्रिया के पिताजी की आंखें भर आईं। उन्होंने कांपते हुए कहा, “बहन जी, आपने मेरी बेटी को इज्जत दी। आपने उसे नई जिंदगी दी। आप भगवान जैसी हैं।” मां ने उन्हें गले लगाया और कहा, “अब आपकी बेटी हमारी बेटी है। कल से शादी की तैयारियां शुरू होंगी।”
अगले दिन रवि प्रिया को जयपुर के सबसे बड़े बाजार जोहर बाजार ले गया। उसने प्रिया के लिए लाल रंग की कढ़ाई वाली साड़ी, सोने के गहने और चमचमाती चप्पलें खरीदीं। “ब्यूटी पार्लर ले जाकर कहा, ‘कल तुम जयपुर की सबसे खूबसूरत दुल्हन बनोगी।’” शादी की तैयारियां जोरों पर थीं। रवि ने कोई कसर नहीं छोड़ी।
धूमधाम से शादी
अगले दिन बारात के साथ रवि का पूरा परिवार प्रिया के छोटे से घर पहुंचा। जयपुर की गलियां इस अनोखी शादी की चर्चा से गूंज रही थीं। लोग फुसफुसा रहे थे, “एक अमीर लड़का सड़क किनारे जलेबी बेचने वाली लड़की से शादी कर रहा है।” शादी धूमधाम से हुई। प्रिया दुल्हन के जोड़े में ऐसी लग रही थी जैसे कोई राजकुमारी।
रवि ने प्रिया के पिताजी को भी अपने घर ले लिया। “यह मेरे भी पिताजी हैं। मैं इनकी सेवा करूंगा,” उसने कहा। रवि का परिवार प्रिया को सराहने लगा। रवि ने जयपुर में अपना बिजनेस और बड़ा किया और प्रिया ने भी उसके साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम शुरू किया।
खुशहाल परिवार
कुछ साल बाद प्रिया ने एक प्यारी सी बेटी को जन्म दिया। रवि ने अपनी बेटी को गोद में उठाकर कहा, “अब मेरा परिवार पूरा हो गया। मेरी दुनिया पूरी हो गई।” लेकिन प्रिया के दिल में एक सवाल अब भी बाकी था। एक दिन उसने रवि से कहा, “रवि, क्या मैं अपनी पुरानी ससुराल जा सकती हूं? जहां मुझे बेइज्जत करके निकाला गया था।”
पुरानी ससुराल की यात्रा
रवि ने उसकी आंखों में देखा, मुस्कुराया और कहा, “तुम्हारी हर ख्वाहिश मेरे लिए हुकुम है। कल हम वहां जरूर जाएंगे।” अगले दिन रवि, प्रिया और उनकी छोटी सी बेटी उस गांव पहुंचे जहां प्रिया की पुरानी ससुराल थी। वो घर जहां उसे ताने सुनने पड़े थे। जहां उसे धक्के मारकर निकाला गया था।
प्रिया के कदम भारी थे, लेकिन उसका दिल मजबूत था। वो आज उस दरवाजे पर खड़ी थी। अपने प्यार, अपनी बेटी और अपनी नई इज्जत के साथ। दरवाजा खुला। ससुराल वालों के चेहरों पर पहले हैरानी थी, फिर शर्मिंदगी। प्रिया ने अपनी बेटी को गोद में संभालते हुए कहा, “याद है तुमने कहा था कि मेरा इस घर में क्या काम? जिसका कोई नहीं, उसका यहां कोई मतलब नहीं। उस दिन मैं सचमुच अकेली थी। लेकिन आज मेरे पास सब कुछ है। एक पति जो मुझे मेरे दिल से चाहता है। एक बेटी जो मेरी जान है और एक घर जहां मुझे इज्जत और प्यार मिला।”
अंत
ससुराल वालों की नजरें झुकी हुई थीं। उनकी जुबान खामोश थी। प्रिया ने शांत स्वर में कहा, “मैं यहां बदला लेने नहीं आई। मैं बस दिखाना चाहती थी कि वक्त बदलता है। जिसे तुमने मिट्टी समझा, वही आज किसी की दुनिया बन गई।” रवि ने प्रिया का हाथ थामा और कहा, “चलो प्रिया, अब तुम्हें कुछ साबित करने की जरूरत नहीं। जो तुम्हारे अपने हैं, वो तुम्हारे साथ हैं।”
प्रिया ने अपनी बेटी को चूमा और बिना किसी गिलेश शिकवे के अपने उस पुराने दर्द को उसी दरवाजे पर छोड़ दिया। वो रवि के साथ लौट गई। उनकी मुस्कुराहट उनकी जिंदगी बन चुकी थी। उनकी रूह को सुकून मिल चुका था।
सच यही है। वक्त देर से ही सही, हर किसी को उसका हक देता है। सच्चा प्यार चाहे कितना भी समय बीत जाए, मुकम्मल होकर रहता है। यह थी रवि और प्रिया की कहानी, अधूरी थी लेकिन पूरी होने से कोई रोक न सका।
निष्कर्ष
दोस्तों, क्या आज भी लोग किसी को उनके हालात देखकर ठुकराते हैं? क्या इंसान की पहचान उसके हालात से होती है या उसके दिल से? अगर आपको कभी हालात की वजह से ठुकराया गया, तो कमेंट में जरूर बताएं। अगर कहानी आपके दिल को छू गई, तो वीडियो को लाइक करें, शेयर करें और हमारे चैनल कहानी सागर को सब्सक्राइब करें। अगली कहानी में फिर मिलेंगे। जय हिंद!
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