कौन लेगा धर्मेंद्र की करोड़ों की दौलत? परिवार में दरार गहरी हुई!

धर्मेंद्र का जाना: एक युग का अंत और पारिवारिक विरासत की नई चुनौती

जब कोई बड़ा इंसान इस दुनिया से विदा होता है, तो वह केवल अपना नाम पीछे नहीं छोड़ता, बल्कि एक ऐसी खामोशी भी छोड़ जाता है जो कई सच्चाइयों को उजागर कर देती है। धर्मेंद्र जी का जाना भी कुछ ऐसा ही है। पर्दे पर वह एक हीरो थे, लेकिन असल जिंदगी में वह एक पहाड़ जैसे मजबूत इंसान थे। अब जब वह हमारे बीच नहीं हैं, तो उनके परिवार में छुपी हुई भावनाएं और कड़वाहटें सामने आने लगी हैं।

धर्मेंद्र की विरासत

धर्मेंद्र ने अपने पीछे केवल यादें और अनगिनत हिट फिल्में नहीं छोड़ीं, बल्कि एक विशाल आर्थिक साम्राज्य भी छोड़ा है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, उनकी कुल संपत्ति लगभग 335 से 450 करोड़ रुपये के बीच आंकी गई है। यह संपत्ति केवल बैंक खातों में पड़ा पैसा नहीं है, बल्कि इसमें शामिल हैं मुंबई की महंगी जमीनें, लोनावाला का विशाल फार्म हाउस, और देश भर में फैले उनके रेस्टोरेंट और निवेश।

अब जब परिवार का मुखिया नहीं रहा, तो यह सवाल उठ खड़ा हुआ है कि इस साम्राज्य का बंटवारा कैसे होगा। क्या यह बंटवारा शांतिपूर्ण होगा या फिर पुरानी कड़वाहटें फिर से उभरेंगी? जब बात करोड़ों की संपत्ति की आती है, तो अक्सर रिश्तों में दरारें पड़ने में देर नहीं लगती।

लोनावाला का फार्म हाउस: भावनात्मक धरोहर

धर्मेंद्र का लोनावाला का फार्म हाउस उनकी दिल के सबसे करीब था। यह कोई साधारण छुट्टी मनाने की जगह नहीं है, बल्कि यह एक भावनात्मक धरोहर है। धर्मेंद्र ने अपने जीवन के कई साल यहीं बिताए, खेती करते हुए और पहाड़ों के नज़ारों का आनंद लेते हुए। इसकी कीमत आज के समय में 100 करोड़ रुपये से भी ज्यादा हो सकती है।

इस फार्म हाउस का असली हकदार कौन होगा? क्या यह प्रकाश कौर और उनके बेटों सनी और बॉबी के पास रहेगा या फिर हेमा मालिनी और उनकी बेटियां भी इसमें अपना हिस्सा मांगेंगी? खबरें हैं कि धर्मेंद्र इस जमीन के एक हिस्से पर एक भव्य रिसॉर्ट बनाने का सपना देख रहे थे। अगर यह प्रोजेक्ट आगे बढ़ता है, तो यह फार्म हाउस केवल रहने की जगह नहीं बल्कि एक सोने की खान बन जाएगा।

जूहू का आइकॉनिक बंगला

दूसरी ओर, जूहू का वह आइकॉनिक बंगला है जिसे देओल परिवार का मुख्यालय माना जाता है। गांधीग्राम रोड पर स्थित यह बंगला केवल एक घर नहीं है, बल्कि इसमें सनी सुपर साउंड नाम का डबिंग स्टूडियो और प्रीव्यू थिएटर भी है। इसकी कीमत ₹150 करोड़ तक हो सकती है।

हालांकि, 2023 में बैंक ऑफ बड़ौदा ने इस बंगले की नीलामी का नोटिस जारी किया था क्योंकि सनी देओल पर लगभग ₹56 करोड़ का कर्ज बकाया था। यह साफ कर देता है कि देओल परिवार संपत्ति के मामले में अमीर तो है, लेकिन नकद पैसों की किल्लत से जूझ रहा है। अब जब धर्मेंद्र नहीं रहे, तो बैंक का दबाव फिर से बढ़ सकता है।

पारिवारिक समीकरण

धर्मेंद्र की दो शादियां बॉलीवुड की सबसे चर्चित कहानियों में से एक रही हैं। 1954 में प्रकाश कौर से शादी करने के बाद, 1980 में उन्होंने हेमा मालिनी को अपनी पत्नी बनाया। यह सिर्फ एक लव स्टोरी नहीं थी, बल्कि एक बड़ा विवाद भी था। कहा जाता है कि हिंदू मैरिज एक्ट की बंदिशों से बचने के लिए धर्म परिवर्तन जैसी बातें भी उठी थीं, हालाँकि धर्मेंद्र ने हमेशा इससे इंकार किया।

भारतीय कानून के तहत, ईशा और अहाना देओल को अपने पिता की संपत्ति में उतना ही हक मिलता है जितना सनी और बॉबी देओल को। अगर धर्मेंद्र ने कोई वसीयत नहीं छोड़ी है, तो उनकी पूरी संपत्ति उनके छह बच्चों और पहली पत्नी प्रकाश कौर के बीच बराबर-बराबर बांटनी चाहिए।

हेमा मालिनी का दृष्टिकोण

हेमा मालिनी ने हमेशा एक गरिमामय दूरी बनाए रखी है। उन्होंने कई साक्षात्कारों में यह स्पष्ट किया है कि उन्हें धर्मेंद्र की संपत्ति या पैसे से कोई लालच नहीं है। वह अपनी मेहनत से अपना अलग साम्राज्य खड़ा कर चुकी हैं। वह करोड़ों की मालकिन हैं और अपनी बेटियों की परवरिश भी स्वाभिमान से की है।

हाल ही में ईशा देओल का अपने पति भरत तख्तानी से तलाक हुआ है। एक सिंगल मदर के रूप में अपनी जिंदगी नए सिरे से शुरू करना आसान नहीं होता। ऐसे नाजुक वक्त में पिता का साया सिर से उठ जाना ईशा के लिए दोहरी मार है।

संपत्ति का बंटवारा: संभावनाएं और चुनौतियां

धर्मेंद्र ने शायद अपनी लिक्विड एसेट्स यानी नकद, जेवर, और निवेश का एक बड़ा हिस्सा अपनी बेटियों के नाम किया हो सकता है। जबकि रियल एस्टेट यानी जमीन-जायदाद बेटों के पास रह सकती है। सनी और बॉबी का रुख इस पूरे मामले में बहुत मायने रखता है।

पिछले कुछ सालों में, खासकर “गदर 2” की सफलता के बाद, हमने देखा है कि सौतेले भाई-बहनों के रिश्तों पर जमी बर्फ पिघलने लगी है। ईशा देओल ने अपने भाइयों की फिल्मों की स्क्रीनिंग रखी और सनी ने भी ईशा के मुश्किल वक्त में उनका साथ देने की बात कही। यह नया भाईचारा शायद इस संपत्ति विवाद को कोर्ट कचहरी के ड्रामा में बदलने से रोक सकता है।

निष्कर्ष

धर्मेंद्र का जाना एक युग का अंत है, लेकिन यह एक नए अध्याय की शुरुआत भी है। वह एक ऐसे चुंबक थे जिन्होंने दो विपरीत ध्रुवों, दो अलग परिवारों को एक साथ बांधे रखा। अब जब वह नहीं रहे, तो यह देखना होगा कि क्या ये दोनों परिवार बिखर जाएंगे या फिर अपने पिता की इज्जत बचाने के लिए एकजुट रहेंगे।

आने वाले महीने महत्वपूर्ण होंगे। वसीयत का खुलना, बैंकों के नोटिस और वकीलों की बैठकों के बीच हमें यह देखने को मिलेगा कि क्या देओल परिवार उसी मजबूती से खड़ा रहता है जिसके लिए वे पर्दे पर जाने जाते हैं। फिलहाल चारों ओर एक खामोशी है, लेकिन यह खामोशी तूफान से पहले की है या फिर एक समझदारी भरे समझौते की, यह तो वक्त ही बताएगा।

धर्मेंद्र की असली विरासत उनकी दौलत नहीं, बल्कि वो प्यार है जो उन्होंने करोड़ों दिलों में छोड़ा है। उम्मीद यही है कि उनका परिवार उस प्यार का मान रखेगा और दौलत की चमक में रिश्तों को फीका नहीं पड़ने देगा।

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