खूबसूरत लड़की समझकर दरोगा ने बातामीजी की फिर लड़की ने जो किया देख कर रूह कांप जाएगी

एक शांत और सुहावनी सुबह थी जब सोनिया और उसकी मां शारदा देवी ट्रैक्टर पर फसल काटने के बाद वापस घर आ रही थीं। सोनिया कॉलेज की स्टूडेंट थी, जो अपनी मां का हाथ बटाने के लिए आई थी। उसकी बड़ी बहन शालिनी पुलिस विभाग की एक बड़ी आईपीएस अफसर थी। जैसे ही वे रामगढ़ गांव से बाहर शहर की तरफ बढ़ीं, उन्हें सड़क पर एक पुलिस बैरियर दिखाई दिया। जीप के बोनट पर पैर फैलाए इंस्पेक्टर आलोक सिंह बैठे थे, और सड़क पर दो हवलदार आने-जाने वालों से जबरन पैसे वसूल कर रहे थे।

पहली मुलाकात

सोनिया ने ट्रैक्टर धीमा किया और जब वे बैरियर के पास पहुंचे, तो इंस्पेक्टर आलोक सिंह ने हाथ उठाकर गरजते हुए कहा, “ए लड़की, ट्रैक्टर साइड में लगा। कहां भाग रही है? बहुत जल्दी है क्या?” सोनिया ने ट्रैक्टर रोक लिया और कहा, “जी साहब, हम फसल काटने के बाद घर जा रहे हैं। अगर कागजात दिखाने हैं तो हमारे पास सारे कागजात हैं।”

आलोक सिंह ने उसकी तरफ देखकर ठका लगाया। “ओहो, बड़ी बहादुर बन रही है। और तेरे पीछे यह बुढ़िया कौन है?” सोनिया ने कहा, “यह मेरी मां है।” एक सिपाही हंसकर बोला, “सर, जरूर कोई कांड करके आए हैं। इस बुढ़िया और लड़की की तो शक्ल ही देख लो। चोरी-चकारी की मास्टर लग रही है।”

सोनिया का दिल इस अपमान से चूर-चूर हो गया। उसने गहरी सांस लेकर जवाब दिया, “जुबान संभाल कर बात करो। यह मेरी मां है। हमारे पास सारे कागजात मौजूद हैं। अब सिर्फ अपना काम करो। किसी के बारे में ऐसे शब्द बोलना पुलिस वालों के मुंह से शोभा नहीं देता।”

संघर्ष की शुरुआत

इतने में इंस्पेक्टर आलोक सिंह गुस्से में आग सा भड़क उठा और बोला, “अबे चुप! तेरी जैसी लड़की हमें बोलना सिखाएगी? हमें कानून मत सिखा। हमें अच्छी तरह पता है कौन शरीफ है और कौन नहीं। निकाल कागज।” सोनिया ने लाइसेंस और कागजात निकालकर आलोक सिंह को दिए। आलोक सिंह ने कागजात को बिना देखे हवा में उछाल दिया और गिरा कर चिल्लाया, “अबे मूर्ख लड़की, हमें उल्लू बना रही है। नकली कागज दिखाकर सोचती है कि ऐसे ही निकल जाएगी।”

सोनिया को गुस्सा आ गया और बोली, “सर, हमारे चालान ही काट लीजिए। इस तरह हमारे साथ बदतमीजी मत कीजिए। इससे बेहतर है हमारा चालान ही काट दीजिए।” इतना सुनकर इंस्पेक्टर आलोक सिंह आगे बढ़ा और बिना किसी झिझक के एक जोरदार थप्पड़ सोनिया के चेहरे पर जड़ दिया। उसकी आवाज इतनी तेज थी कि पूरी सड़क पर सन्नाटा छा गया।

मां का दर्द

सोनिया की आंखों में आंसू आ गए। उसकी मां शारदा देवी चीख पड़ी और आगे बढ़कर बोली, “ए मेरी बच्ची को क्यों मारा तुमने? खुदा से तो डरो।” आलोक सिंह ने उन्हें धमकाया, “चुप बुढ़िया, ज्यादा बोलेगी तो तुझे भी ऐसे ही थप्पड़ मारेंगे।” दोनों सिपाहियों ने शैतानी हंसी के साथ कहा, “बड़ी तेज बन रही थी। देखो, सारी हेकड़ी निकल गई।”

सोनिया का खून खौल उठा। वह जानती थी कि अगर उसने उन पर हाथ उठाया तो मामला और बिगड़ जाएगा। आलोक सिंह चिल्लाते हुए बोला, “इन दोनों को गाड़ी के अंदर डालो और ले चलो थाने। वहां हम बताएंगे कि पुलिस की पावर क्या होती है।” सड़कों पर तमाशा देखने वालों की भीड़ जमा हो गई थी। कुछ लोग मोबाइल निकालकर वीडियो बना रहे थे, लेकिन किसी में हिम्मत नहीं थी कि आगे बढ़कर कुछ कहे।

थाने की काली रात

थाने पहुंचते ही आलोक सिंह गरजा, “अबे, हवालात में ठूंस दो इन दोनों को। सुबह तक सारी अकड़ निकाल देंगे। फिर देखेंगे इनकी औकात।” दोनों सिपाहियों ने सोनिया और उसकी मां को एक बदबूदार कोठरी में बंद कर दिया। शारदा देवी ने रोते हुए कहा, “बेटी, यह लोग हमें कहां बंद करके रख दिए? अब क्या होगा?”

सोनिया ने अपनी मां को गले लगाकर कहा, “मां, तुम फिक्र ना करो। बस थोड़ी देर की बात है। सब ठीक हो जाएगा।” शारदा देवी को सांस की बीमारी थी। उनका दम घुट रहा था। सोनिया मां की हालत देखकर घबरा गई। वह भागती हुई शोर मचाने लगी, “जल्दी मेरी मां को यहां से निकालो। उसका दम घुट रहा है। मर जाएगी।”

इंस्पेक्टर की बेरुखी

पास वाले दफ्तर में टांग पर टांग रखे बैठे इंस्पेक्टर आलोक सिंह आवाज सुनकर नजरअंदाज करता गया। फिर एकदम गुस्से से खड़ा हुआ और बोला, “ए लड़की, क्या तूने बकबक लगा रखी है? सारे सुकून की ऐसी की तैसी कर दी।” सोनिया ने कहा, “देखो, मेरी मां की हालत बहुत खराब है। वह सांस नहीं ले पा रही। उसे यहां से निकाल दें।”

इंस्पेक्टर आलोक सिंह ने शारदा देवी की तरफ देखा और फिर बोला, “यहीं मरने दे इस बुढ़िया को। वैसे भी दो-चार दिन में टपक ही जाना है। क्या करेगी इसको बचाकर?” सोनिया ने जब यह सुना तो वह अपने आप पर काबू ना रख पाई और इंस्पेक्टर के मुंह पर एक जोरदार थप्पड़ मार दिया।

प्रतिरोध का साहस

इंस्पेक्टर कुछ पल के लिए अपने चेहरे पर हाथ लगाकर अपने आप को देखता रहा कि एक इंस्पेक्टर को उसने थप्पड़ कैसे मार दिया। अब इंस्पेक्टर आग बबूला होकर सोनिया को उसकी छोटी सी पकड़ लिया और उसे घसीटते हुए दूसरी कोठरी में ले गया। “ए लड़की, तूने मौत को अपनी दावत दी है। ऐसा कभी नहीं हुआ कि इंस्पेक्टर आलोक सिंह पर किसी ने हाथ उठाया हो।”

सोनिया बोली, “देखो, तुम यह एक गैरकानूनी काम कर रहे हो और तुमने मेरी मां को बुरा भला कहा। इसलिए मैंने यह किया। तुम्हें यह करने का बिल्कुल हक नहीं है।” आलोक सिंह की आंखें लाल हो गईं। उसने एक जोरदार थप्पड़ सोनिया के मुंह पर मारा। “ए बड़ी आई, तू मुझे कानून सिखाएगी।”

मां की पुकार

वहां अंधेरी कोठरी से शारदा देवी लगातार आवाजें लगा रही थी, “छोड़ दो मेरी बेटी को। छोड़ दो सोनिया।” सोनिया के कानों में जब यह आवाज पहुंची तो वह उठकर इंस्पेक्टर के पैरों में गिर गई। “देखो, तुम मेरे साथ जो मर्जी कर लो। मैं कुछ नहीं कहूंगी। बस मेरी मां को छोड़ दो। उसे अस्पताल ले जाओ। उसकी तबीयत खराब है। उसका दम घुट जाएगा। मर जाएगी।”

लेकिन इंस्पेक्टर आलोक सिंह ने हंसते हुए कहा, “मर जाएगी। मरने दे साली को। धरती से कुछ तो बोझ कम होगा।” मां के बारे में यह शब्द सुनकर सोनिया के वजूद में बिजली दौड़ गई। तभी उसके जहन में अपनी बहन आईपीएस शालिनी का ख्याल आया। सोनिया एकदम से खड़ी हुई और इंस्पेक्टर से कहने लगी, “देखो, मेरे साथ जो करना है कर लो। लेकिन मेरी मां को जल्दी अस्पताल ले जाओ। अगर उसे कुछ हो गया तो तुम और तुम्हारे पूरे थाने के पुलिस वाले जिंदगी भर उसकी सजा भुगतेंगे। सबके सबकी वर्दी उतर जाएगी।”

पुलिस की गुंडागर्दी

इंस्पेक्टर आलोक सिंह ने जब यह सुना तो वह ठहाके मार के हंसने लगा और घमंड के साथ बोला, “तो दो टके की छोकरी हमारी वर्दियां उतरवाएगी। अब मरने दे इस बुढ़िया को। मैं भी देखता हूं कि किसकी इतनी हिम्मत है जो इंस्पेक्टर आलोक सिंह पर हाथ उठा सके।” आलोक सिंह ने उसे पीछे कमरे में धक्का देकर बोला, “यह बुढ़िया इतनी जल्दी नहीं मरने वाली। पहले उसे ठिकाने लगाता हूं। फिर देखता हूं तुझे।”

इंस्पेक्टर कमरे से बाहर निकल आया और बाहर से कुंडी लगा दी। सोनिया अंदर से दरवाजा पीटने लगी। “खोलो दरवाजा। मुझे मेरी मां के पास जाना है।” लेकिन इंस्पेक्टर अपने दफ्तर में जाकर सुकून से बैठ गया। इतने में शारदा देवी की आवाजें भी आने लगीं। इंस्पेक्टर आलोक सिंह ने जब यह सुना तो बोला, “आ तेरी कि, पता नहीं कब मरने वाली है यह बुढ़िया। कब से चिल्ला रही है।”

बुढ़िया की मौत

यह कहकर आलोक सिंह वहीं दफ्तर में ही आंखें बंद करके सो गया। कुछ समय बाद जब इंस्पेक्टर आलोक सिंह की आंख खुली तो बोला, “यह बुढ़िया चुप कैसे बैठी है? वहीं जाकर देखता हूं।” इंस्पेक्टर अंधेरी कोठरी की तरफ जाने लगा और जैसे ही वह वहां पहुंचा तो शारदा देवी नीचे जमीन में पड़ी थी। इंस्पेक्टर ने झुककर देखा कि क्या सांसे चल रही हैं। लेकिन शारदा देवी की सांसे रुक चुकी थीं।

यह देखकर आलोक सिंह घमंड भरी हंसी के साथ हंसने लगा। “ए बुढ़िया, गुजर गई है क्या तू? हां हां हां, बद मुश्किल से जान छोड़ी है तूने बुढ़िया। चलो जाकर तेरी बेटी को यह खबर सुनाता हूं। देखता हूं कि वह कैसे हमारी वर्दियां उतरवाएगी। बहुत मजा आएगा उसे तड़पता देखकर।”

न्याय का समय

यह कहकर इंस्पेक्टर आलोक सिंह हंसते हुए और घमंड के साथ वहां से निकला और सोनिया को जिस कमरे में बंद किया था, दरवाजे की कुंडी खोलकर अंदर आया। अंदर आते ही आलोक सिंह जोर-जोर से हंसने लगा। सोनिया ने जैसे ही इंस्पेक्टर की तरफ देखा, वह भागती हुई आलोक सिंह के पास आई। “मेरी मां की तबीयत कैसी है? मुझे उनसे मिलने दो। मैं हाथ जोड़ती हूं।”

इंस्पेक्टर ने धत्ते करते हुए कहा, “तुझे उस बुढ़िया से मिलने के लिए अब अगले जन्म का इंतजार करना होगा।” हां, सोनिया ने यह सुना, तो उसके वजूद से जैसे जान निकल गई। “कहां है मेरी मां? क्या हुआ उसको? ठीक तो है ना?” इंस्पेक्टर आलोक सिंह हंसते हुए बोला, “मर गई साली। बुढ़िया कोने में पड़ी-पड़ी।”

यह सुनकर सोनिया के पैरों तले जमीन निकल गई। सोनिया जोर-जोर से आवाजें लगाती हुई “मां, मां” अंधेरी कोठरी की तरफ जाने लगी। वहां पहुंचकर उसने देखा कि शारदा देवी नीचे जमीन पर पड़ी हैं। मां को इस तरह नीचे पड़ा देखकर सोनिया का दिल फटने लगा। वह एकदम से शारदा देवी के पास बैठकर बोली, “मां, मां, आंखें खोलो मां। क्या हुआ तुझे मां? देखो, मैं सोनिया हूं। मैं आ गई हूं। कुछ तो बोलो मां।”

इंस्पेक्टर की बर्बरता

लेकिन वह कहां कुछ बोलने वाली थी? वह तो दुनिया छोड़कर जा चुकी थी। उसकी आंखों से आंसू बहने लगे। “मां, एक बार जवाब दे। मैं आपको अस्पताल ले जाऊंगी।” इतने में इंस्पेक्टर आलोक सिंह वहां आकर बोला, “ऐ छोकरी, बुढ़िया गुजर चुकी है। क्या ड्रामेबाजी लगा रखी है तूने?” तभी इंस्पेक्टर ने कांस्टेबल को आवाज लगाई। “दो कांस्टेबल भागते हुए आए। इस बुढ़िया को यहां से उठाकर ले जाओ और ठिकाने लगाओ। और कोई कुछ पूछे तो कहना एक्सीडेंट में मारी गई।”

न्याय की आवाज

सिपाहियों ने जल्दी से शारदा देवी को उठाकर ले जाने लगे। सोनिया शोर मचाने लगी, “छोड़ो मेरी मां को, कहां ले जा रहे हो?” लेकिन उन्होंने एक ना सुनी और उसे अपने साथ ले गए। जब सोनिया पीछे आने लगी तो इंस्पेक्टर ने एकदम सोनिया का हाथ पकड़ लिया। “तू कहां जाने लगी है? जानेमन, तूने तो हमारी वर्दियां उतरवानी थी।”

सोनिया जो मां के घिसम में थी, उसने जोश में इंस्पेक्टर को गले से पकड़ लिया। “तू मेरी मां का कातिल है। अब तुम्हारे सहित इस पूरे थाने का एक-एक बंदा इसकी सजा भुगतेगा। कोई नहीं बचेगा।” आलोक सिंह ने कहा, “अबे जा रे छुईमुई। किससे जाकर शिकायत करेगी तू? डीएम से या फिर एसडीएम से? क्या कहेगी जाकर कि मेरी मां को मार डाला?”

शालिनी का आक्रोश

इंस्पेक्टर आलोक सिंह ने। “हां हां हां, वे सब मेरे भाई हैं। कोई हाथ नहीं लगा सकता मुझ पर।” सोनिया ने कहा, “मैं जाकर जिससे कहूंगी, उसके बाद तुम सब उल्टे लटक जाओगे और तुम्हें तुम्हारी नानी याद आ जाएगी।” आलोक सिंह हंसते हुए बोला, “उफ, मैं तो डर गया। इंस्पेक्टर आलोक सिंह डर गया। मैं जाने तो तुम्हें जरूर देता अगर तुम मामूली सी भी मेरे टक्कर की होती। तुम एक खूबसूरत और जवान लड़की हो। यूं ही बाहर जाकर किसी और का निशाना बनोगी। क्यों ना मैं ही सही।”

भागने की कोशिश

सोनिया ने जब यह सुना तो उसने इधर-उधर देखा कि आगे पीछे कोई है तो नहीं। फिर एकदम तेजी से भागती हुई थाने से बाहर निकल आई। तभी इंस्पेक्टर आलोक सिंह ने शोर मचा दिया, “लड़की भाग गई है। पकड़ो, पकड़ो।” ऑफिस में बैठे दो सिपाही सोनिया को पकड़ने के लिए उसके पीछे दौड़े। पीछे से आलोक सिंह ने आवाज लगाई, “लड़की निकलनी नहीं चाहिए। पकड़ के जल्दी ले आओ उसे मेरे पास।”

ट्रैफिक के बीच से होती हुई सोनिया बड़ी मुश्किल से दौड़ रही थी। उसे पकड़ने के लिए दो सिपाही उसके पीछे आ रहे थे। सोनिया लोगों के बीच से होती हुई इधर-उधर देखने लगी कि कोई उसे कॉल करा दे और वह अपनी बहन आईपीएस शालिनी को यह सब बता सके। तभी सोनिया को एक बड़ी गोल्ड ज्वेलरी की दुकान दिखी। वह भागते हुए दुकान के अंदर चली गई।

महेश सेठ का सहयोग

सोनिया अब थक चुकी थी और जोर-जोर से सांस लेने लगी। दुकान का मालिक महेश सेठ एक ऊंची कुर्सी पर बैठा था। जब उसने सोनिया को ऐसे भागते हुए दुकान के अंदर आते देखा तो वह समझ गया कि यह लड़की किसी मुसीबत में है। महेश सेठ जल्दी से अपनी कुर्सी से उठा और सोनिया के पास आया। “देखो, मुझे एक कॉल करनी है। बहुत जरूरी है। मेरे पीछे पुलिस लगी है।”

महेश सेठ बोला, “अच्छा अच्छा, ठीक है। पहले तुम शांत हो जाओ, बैठ जाओ। मैं कॉल करवा देता हूं।” महेश सेठ ने उसे कुर्सी पर बिठा दिया और सोनिया के हाथ में एक पानी का गिलास पकड़ा दिया। “जल्दी पानी पियो पहले।” सोनिया हाफती कांपती पानी पीने लगी। बाहर पुलिस वाले सोनिया को ढूंढने के लिए इधर-उधर बार-बार चक्कर लगा रहे थे।

पुलिस की खामोशी

महेश सेठ की नजर जब शीशे से बाहर सड़क पर पड़ी थी, तो वह सोनिया से बोला, “बाहर पुलिस आ गई है। खामोश हो जाओ।” सोनिया चुप हो गई। महेश सेठ बोला, “बताओ, क्या मामला है? क्यों पुलिस वाले तुम्हारे पीछे पड़े हैं?” सोनिया ने सब कुछ महेश सेठ को बता दिया। यह सब सुनकर महेश सेठ बोला, “ओहो, बहुत बुरा हुआ तुम्हारे साथ। लेकिन वो घटिया इंस्पेक्टर कौन था? क्या तुम उसका नाम जानती हो?”

सोनिया बोली, “हां, उसे मैं कैसे भूल सकती हूं? आलोक सिंह।” महेश सेठ ने जैसे ही यह नाम सुना, तो एकदम बोला, “क्या इंस्पेक्टर आलोक सिंह?” सोनिया बोली, “हां, लेकिन क्या हुआ?” महेश सेठ बोला, “कुछ नहीं, तुम जरा यहां बैठो। मैं अभी आता हूं।”

योजना का निर्माण

2 मिनट में कमरे से बाहर आकर महेश सेठ ने किसी से कॉल पर बात की और फिर अंदर आकर बोला, “चलो आओ, यहां से जल्दी निकलना होगा। वरना पुलिस किसी भी वक्त यहां पर छापा मार सकती है।” सोनिया बोली, “लेकिन तुम मुझे एक कॉल करवा दो तो इसकी नौबत ही नहीं आएगी।” महेश सेठ ने उसकी बात पर ध्यान नहीं दिया और उसे कुछ और कहने का मौका नहीं दिया।

महेश सेठ ने उसे गाड़ी में बिठाया और गाड़ी वहां से तेजी से निकाल कर ले गया। गाड़ी अब उसी तरफ जाने लगी जहां से सोनिया भाग कर आई थी। देखते ही देखते महेश ने गाड़ी को उसी थाने के पास लाकर खड़ा कर दिया। सोनिया थाने की तरफ देखती हुई बोली, “यहां क्यों ले आए हो?” महेश सेठ ने कोई जवाब नहीं दिया और जोर-जोर से हंसने लगा।

इंस्पेक्टर की बर्बरता का अंत

इतने में थाने से इंस्पेक्टर आलोक सिंह बाहर गाड़ी की तरफ आने लगा। महेश सेठ गाड़ी से निकल कर बाहर खड़ा हो गया। इंस्पेक्टर आलोक सिंह ने करीब आकर बोला, “हां, ले आया है माल?” महेश मुस्कुराते हुए बोला, “क्यों नहीं इंस्पेक्टर साहब, आप हमारे दो नंबर के काम में इतना साथ देते हो, तो मेरा भी कुछ बनता है।” यह कहकर दोनों जोर-जोर से हंसने लगे।

सोनिया गाड़ी में बैठी यह सब देख रही थी। वह समझ गई कि वह गलत आदमी के पास चली गई। तभी सिपाहियों ने सोनिया को गाड़ी से बाहर निकाला और आलोक सिंह की गाड़ी में डाल दिया। आलोक सिंह जल्दी से आकर गाड़ी में बैठा और तेजी से गाड़ी वहां से निकाल कर ले गया। सोनिया पीछे बैठी जोर-जोर से चिल्लाने लगी, “छोड़ो मुझे। कहां ले जा रहे हो? बचाओ मुझे। यह इंस्पेक्टर देखो कहां ले जा रहा है।”

अंतिम क्षण

लेकिन गाड़ी पूरी तरह बंद होने की वजह से सोनिया की आवाज बाहर नहीं जा पा रही थी। आलोक सिंह की गाड़ी शहर से मीलों दूर एक सुनसान जगह पर ले आई। जहां सड़क के आखिर में एक पुरानी सी हवेली थी। आलोक सिंह ने जल्दी से उस हवेली के पास गाड़ी रोकी और सोनिया को गाड़ी से उतार कर खींचता हुआ हवेली के अंदर ले जाने लगा।

सोनिया चिल्लाने लगी, “इस सुनसान जगह पर क्यों ले आए हो? छोड़ दो मुझे।” आलोक सिंह जबरदस्ती उसे पकड़ कर हवेली के अंदर ले गया। एक बंद पुराने से कमरे का दरवाजा खोला और सोनिया को अंदर धक्का देते हुए बोला, “तुम यहां रुको। रात को तुम्हारे पास आऊंगा।” यह कहकर इंस्पेक्टर आलोक सिंह ने जल्दी से दरवाजा बंद किया। कुंडी लगाई और बाहर निकला।

शालिनी की खोज

कमरे के अंदर काफी अंधेरा था। सोनिया डरी सहमी दरवाजा पीट रही थी। “कोई है? कोई है?” लेकिन उस सुनसान वीरान इलाके में जहां किसी इंसान का नाम व निशान भी नहीं था, वहां उसकी आवाज कौन सुनने वाला था? वह दरवाजा पीट-पीट कर थक गई और वहीं बैठ गई।

सोनिया की बड़ी बहन आईपीएस शालिनी काफी समय से अपनी मां शारदा देवी और अपनी बहन सोनिया को कॉल कर रही थी। लेकिन उनका नंबर बंद आ रहा था। तभी शालिनी ने अपने मोबाइल से फैजान राव का नंबर डायल किया जो उनका पड़ोसी था। “हां फैजान, मेरे घर जाकर देखो तो सही, मेरी मां का नंबर नहीं लग रहा। सब खैरियत तो है?”

फैजान घर से बाहर निकला और देखा घर पर ताला लगा था। उसने कहा, “मैं तुम्हारे घर के बाहर हूं लेकिन दरवाजे पर ताला लगा हुआ है।” यह सुनकर शालिनी बहुत परेशान हो गई। उसने उसी वक्त घर जाने का फैसला किया। आईपीएस शालिनी अपनी गाड़ी में बैठी और कमांडोस की टीम के साथ अपने शहर की तरफ निकल गई।

गुमशुदगी की रिपोर्ट

गाड़ी में बैठी हुई वह लगातार अपनी मां और बहन के बारे में सोचती रही। “कहां चली गई हैं वह दोनों?” कुछ देर बाद शालिनी अपनी गाड़ी में कमांडोस की टीम के साथ घर के बाहर पहुंची। घर पर लगे ताले को देखा और इधर-उधर लोगों से पूछने लगी। लेकिन किसी को उनके बारे में कोई खबर नहीं थी।

कमांडोस ने घर का ताला तोड़ा और अंदर की अच्छी तरह तलाशी ली। मगर अंदर कोई मौजूद नहीं था। शालिनी एक आईपीएस अफसर थी। उसने खुद ही पूरे शहर में मां और बहन की तलाश शुरू कर दी। शालिनी अपनी मां और बहन की गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखवाने उसी थाने में पहुंची।

इंस्पेक्टर की घबराहट

इंस्पेक्टर आलोक सिंह अपने ऑफिस में बैठा चाय पी रहा था। जैसे ही उसने शालिनी की वर्दी पर लगे स्टार्स और कमांडोस को देखा तो समझ गया कि कोई आईपीएस अफसर है। आलोक सिंह ने झट से चाय का कप टेबल पर रखा। इंस्पेक्टर आलोक सिंह खड़ा होकर सैल्यूट मारा। “जी मैडम, हुक्म कीजिए। कैसे आना हुआ?”

शालिनी बोली, “मेरी मां और बहन लापता हैं। उनकी गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखवानी है।” इंस्पेक्टर बड़े प्यार और अदब से बोला, “क्यों नहीं? अभी लिखते हैं। लेकिन अगर आपके पास उनकी कोई तस्वीर हो तो उन्हें ढूंढने में आसानी हो जाएगी।”

तस्वीर का खुलासा

शालिनी बोली, “तस्वीर तो नहीं। अच्छा रुको। जरा मोबाइल में देखती हूं।” वह मोबाइल की गैलरी में तस्वीर ढूंढने लगी। “ओह हां, मिल गई। यह रही।” इंस्पेक्टर आलोक सिंह ने बड़े प्यार से कहा, “जल्दी दिखाइए।” और जैसे ही शालिनी ने अपना मोबाइल इंस्पेक्टर के हाथ में दिया, सोनिया और शारदा की तस्वीर देखकर इंस्पेक्टर का चेहरा उड़ गया। उसके हाथ कांपने लगे।

शालिनी बोली, “क्या हुआ? ठीक तो हो तुम?” इंस्पेक्टर के दिल की धड़कन तेज हो गई और चेहरे से पसीना टपकने लगा। शालिनी ने कठोर आवाज में कहा, “क्या हुआ? बताओ क्या है यह सब?” इंस्पेक्टर ने कांपती आवाज में कहा, “एक मैडम, हम उन्हें जल्द ढूंढ निकालेंगे। आप जाइए।”

शक की लकीरें

शालिनी को इंस्पेक्टर पर थोड़ा शक हुआ लेकिन बोली, “जल्दी ढूंढो उन्हें।” आलोक सिंह ने घबराते हुए कहा, “जी मैडम, बहुत जल्द निकाल लेंगे। आप फिक्र मत कीजिए।” शालिनी वहां से चली गई। इंस्पेक्टर वहीं कुर्सी पर बैठा अपने सर को पकड़ने लगा। “यह क्या कर दिया तुमने आलोक? वह लड़की और बुढ़िया आईपीएस अफसर की बहन और मां थी। अब क्या करूं? क्या करूं?”

वह कुछ देर यूं ही सोचता रहा। फिर बोला, “उस लड़की सोनिया को भी जल्द से जल्द रास्ते से हटाना होगा। अगर वह जिंदा रही तो सब और वह तो मुझे बर्बाद कर देगी। सोनिया को भी ठिकाने लगाता हूं। किसी को पता भी नहीं चलेगा कि दोनों कहां गई। ना रहेगा बांस, ना बजेगी बांसुरी।” यह कहकर इंस्पेक्टर जल्दी से घबराहट में अपनी गाड़ी की तरफ भागा और गाड़ी में बैठकर तेजी से उसी जगह की ओर निकल गया जहां उसने सोनिया को कैद कर रखा था।

कहानी का मोड़

अब आने वाला था कहानी का सबसे बड़ा मोड़। वही वीडियो जो एक नौजवान ने शारदा देवी और सोनिया का बनाया था। जब इंस्पेक्टर आलोक सिंह उन्हें घसीटते हुए गाड़ी में डालकर थाने ले गया था। नौजवान ने वह वीडियो सोशल मीडिया पर अपलोड कर दिया। पुलिस की गुंडागर्दी, मां-बेटी पर दिन-दहाड़े जुल्म। यह वीडियो आग की तरह फैल गया और शालिनी के पड़ोसी फैजान ने वह वीडियो देख लिया।

उसने एक पल की भी देरी के बिना वह वीडियो आईपीएस शालिनी को WhatsApp कर दिया। शालिनी ने जैसे ही वीडियो देखा और अपनी मां और बहन का सड़क पर अपमान होते देखा, उसका खून खौल उठा। उसने तुरंत गाड़ी थाने की तरफ मोड़ ली। कमांडोस की टीम उसके पीछे निकल पड़ी।

थाने में कार्रवाई

थाने पहुंचकर उन्होंने पूरे थाने की तलाशी ली। लेकिन ना इंस्पेक्टर आलोक सिंह मिला और ना ही सोनिया और शारदा। वहीं आलोक सिंह अब आबादी से मीलों दूर उसी सुनसान हवेली के बाहर पहुंच चुका था। वह पागलों की तरह सोनिया को ठिकाने लगाने के लिए अंदर की ओर भागा। अंदर जाते ही आलोक सिंह कमरे में दाखिल हुआ और बोला, “ए लड़की, मरने के लिए तैयार हो जा। अगर तू जिंदा रही, तो मैं नहीं बचूंगा।”

अंतिम मुठभेड़

इधर शालिनी और कमांडोस की टीम उसे ट्रैक करते हुए हवेली पहुंच गई। कमांडोस ने आते ही इंस्पेक्टर आलोक सिंह को वहीं दबोच लिया। सोनिया रो-रो कर अपनी बड़ी बहन शालिनी को सब कुछ बता दी। शालिनी इंस्पेक्टर के करीब आई और उसे एक जोरदार थप्पड़ मारा। फिर सोनिया आगे बढ़ी और उसने भी आलोक सिंह के मुंह पर एक करारा तमाचा जड़ दिया।

शालिनी ने उन सभी पुलिस वालों की वर्दी उतरवा दी जिन्होंने उसकी मां और बहन के साथ जुल्म किया था। यह कहानी हमें यह सिखाती है कि कभी भी अन्याय, शक्ति का घमंड और सत्ता का दुरुपयोग ज्यादा देर तक नहीं टिकता। झूठ और जुल्म चाहे जितना ताकतवर क्यों ना लगे, सच्चाई और इंसाफ आखिरकार जीत ही जाते हैं।

निष्कर्ष

यह कहानी केवल मनोरंजन और शिक्षा के उद्देश्य से बनाई गई है। इसमें दिखाए गए सभी पात्र, घटनाएं और संवाद काल्पनिक हैं। किसी भी वास्तविक व्यक्ति, संस्था या घटना से इनका कोई संबंध नहीं है। कृपया इसे केवल कहानी के रूप में देखें और इसका आनंद लें। हम किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाना नहीं चाहते।

अगर आप सोनिया की जगह होते तो क्या करते? कमेंट बॉक्स में हमें जरूर बताएं और ऐसी ही प्रेरणादायक कहानी देखने के लिए हमारे चैनल को सब्सक्राइब और वीडियो को एक लाइक जरूर करें। धन्यवाद!

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