गरीब बुजुर्ग को बिना पैसे खाना खिलाने वाले वेटर को होटल से धक्के देकर निकाला गया..

शहर का सबसे भव्य और आलीशान होटल — ग्रैंड रीगल, उस रात पहले से कहीं अधिक जगमगा रहा था। बाहर से लेकर अंदर तक रोशनी की चकाचौंध, हाथ में वाइन के गिलास लिए महंगे सूट पहने लोग, और कोने में बजता धीमा वायलिन म्यूज़िक — सब कुछ इस रात को खास बना रहा था।

होटल का मुख्य हॉल किसी शाही दरबार से कम नहीं लग रहा था। हर मेहमान की चाल में आत्मविश्वास था, हर बात में पैसे की गूंज। इनमें कोई बड़ा उद्योगपति था, कोई विदेशी डेलीगेट, तो कोई किसी मल्टीनेशनल कंपनी का सीईओ। इसी चकाचौंध के बीच अचानक दरवाजा खुला और एक दुबला-पतला, कमज़ोर बुजुर्ग अंदर दाखिल हुए।

उनकी उम्र लगभग 75 साल रही होगी। सफेद, बिखरे हुए बाल, कांपते हाथों में लकड़ी की एक पुरानी लाठी, और बदन पर एक फटी हुई सी धोती-कुर्ता। पांव में घिसे हुए चप्पल थे जो चलते वक्त कराहते जैसे लग रहे थे। उनकी आंखों में थकान थी, पर एक गहराई भी — कुछ ऐसा जो समय ने गढ़ा था।

हॉल में एक पल को सन्नाटा छा गया। कुछ मेहमान हँसने लगे।

“यह भिखारी यहाँ कैसे आ गया?”

“लगता है सिक्योरिटी सो रही है।”

कुछ ने नाक सिकोड़ ली, कुछ ने मुंह फेर लिया। पर वो बुजुर्ग बिना किसी प्रतिक्रिया के सीधा एक कोने की खाली मेज की ओर बढ़े और चुपचाप बैठ गए। उन्होंने किसी से कुछ नहीं कहा। केवल निगाहें खाने की प्लेटों पर टिक गईं।

वेटर खड़े देख रहे थे, मगर किसी में पास जाकर कुछ पूछने की हिम्मत नहीं हो रही थी। तभी होटल मैनेजर, उम्र लगभग 40, महंगे सूट में, घमंड से भरा हुआ, गुस्से से उनके पास आया।

“किसने इस आदमी को अंदर आने दिया?” उसने कड़कते हुए कहा।

“निकालो इसे बाहर। हमारे होटल की इमेज खराब हो जाएगी।”

अचानक, स्टाफ में से एक युवा वेटर — उम्र लगभग 24, साधारण लेकिन साफ यूनिफॉर्म में — बुजुर्ग की ओर बढ़ा। उसकी आंखों में करुणा थी। उसने देखा बुजुर्ग के होंठ सूखे हैं और पेट भूखा।

बिना कुछ कहे, वह वेटर रसोई में गया और गरम खाने की एक प्लेट लेकर आया।

“बाबा, थोड़ा खा लीजिए,” उसने धीरे से कहा।

बुजुर्ग की आंखों में आंसू छलक आए। कांपते हाथों से प्लेट उठाई और फुसफुसाया — “बेटा, भगवान तेरा भला करे।”

लेकिन यह दृश्य मैनेजर से सहन नहीं हुआ। वह तमतमाया हुआ दौड़ता आया और सबके सामने चिल्लाया, “तुमने इस आदमी को खाना कैसे दे दिया? बाहर निकलो अभी के अभी!”

वेटर की आंखें भर आईं, मगर उसने धीरे से कहा — “सर, मैंने सिर्फ इंसानियत निभाई है। अगर ये गुनाह है, तो मैं ये गुनाह बार-बार करूंगा।”

मैनेजर ने गार्ड को बुलाया और उस वेटर को होटल से धक्का देकर निकाल दिया। वह लड़का सड़क पर अकेला खड़ा था — हाथ कांपते हुए, आंखें नम, दिल टूटा हुआ।

अगली सुबह ग्रैंड रीगल फिर से जगमगा रहा था। पिछली रात की घटना को किसी ने याद नहीं किया। मैनेजर अपनी कुर्सी पर संतुष्ट बैठा था। तभी होटल के सामने लंबी-लंबी काली गाड़ियों का काफिला आकर रुका।

सिक्योरिटी गार्ड्स वॉकी-टॉकी लिए दौड़ पड़े। सबको लगा कोई बड़ा बिजनेसमैन या मंत्री आया है।

मैनेजर टाई ठीक करता हुआ बाहर आया। लेकिन जो देखा, वह हैरान कर देने वाला था।

कल रात वाला वही बुजुर्ग अब शानदार सूट में, चमकते जूतों के साथ सीढ़ियां चढ़ते हुए होटल में दाखिल हो रहे थे। उनके पीछे-पीछे सुरक्षाकर्मी, सामने होटल का पूरा स्टाफ झुककर खड़ा।

मैनेजर की हालत खराब थी।

बुजुर्ग ने बिना किसी से कुछ कहे सीधे कॉन्फ्रेंस हॉल की ओर कदम बढ़ाए, जहाँ पहले से होटल के डायरेक्टर और जनरल मैनेजर उनका स्वागत करने को खड़े थे।

“सर, आपके आने से हमें गर्व महसूस हो रहा है।”

अब सारी सच्चाई सामने थी। वो कोई भिखारी नहीं, बल्कि होटल चेन के मालिक, मिस्टर रमन अग्रवाल थे — जिन्होंने एक रात पहले सिर्फ इंसानियत की परीक्षा ली थी।

बुजुर्ग बोले —
“मैंने कल एक इम्तिहान लिया था। देखना चाहता था कि क्या इस चमकते होटल में दिल भी उतने ही रोशन हैं। अफसोस, ज़्यादातर लोग उस इम्तिहान में फेल हो गए। लेकिन एक लड़का पास हुआ।”

हॉल में सन्नाटा पसर गया।

मैनेजर के चेहरे का रंग उड़ गया। तभी बुजुर्ग ने सहायक को इशारा किया और कुछ ही मिनट में वही युवा वेटर अंदर आया — डरा-सहमा लेकिन सिर ऊँचा किए।

“बेटा,” बुजुर्ग बोले, “तुमने जो किया, वह सिर्फ सेवा नहीं थी, वह इंसानियत थी। और यही इस होटल की असली शान है।”

इसके बाद उन्होंने घोषणा की:

“आज से यह लड़का इस होटल का नया मैनेजर होगा। और जो लोग इंसानियत को भूल चुके हैं, उनके लिए इस होटल में कोई जगह नहीं।”

मैनेजर को उसी समय निलंबित कर दिया गया। उसका चेहरा पीला पड़ चुका था।

हॉल में तालियों की गूंज उठी। कई मेहमान वेटर के पास जाकर बोले — “आज तुमने सिखाया कि असली लग्जरी दूसरों की मदद करने में होती है।”

वेटर की आंखों से आंसू बह निकले। वो फूट-फूटकर रो पड़ा। बुजुर्ग ने उसके कंधे पर हाथ रखकर कहा —
“याद रखो बेटा, होटल की शान उसकी सजावट से नहीं, वहां काम करने वाले दिलों से होती है। और तुम्हारा दिल सबसे बड़ा है।”

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