गरीब बूढ़े को धक्के मारे फटीचर समझकर बिजनेस क्लास से निकाला, पर वो पूरी एयरलाइन का मालिक निकला

.

“गरीब बूढ़े को फटीचर समझकर बिजनेस क्लास से निकाला, पर वह एयरलाइन का मालिक निकला”

एयरपोर्ट की चकाचौंध और एक बूढ़े की बेबसी

मुंबई का आलीशान टी2 एयरपोर्ट अपनी चकाचौंध और रौनक के लिए मशहूर है। रात के 9 बजे का समय था। बाहर मूसलाधार बारिश हो रही थी, लेकिन एयरपोर्ट के भीतर की दुनिया अलग ही चमक रही थी।

महंगे ब्रांड्स की दुकानें, चमचमाते फर्श, और स्टाइलिश कपड़े पहने लोग—हर कोई अपनी ही दुनिया में व्यस्त था। कोई सेल्फी ले रहा था, तो कोई लैपटॉप पर काम कर रहा था। इसी भीड़ में एक बूढ़ा आदमी, दयाल शर्मा, धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा था।

दयाल जी की उम्र लगभग 70 साल थी। उन्होंने एक पुरानी, फीकी पड़ चुकी कॉटन की जैकेट पहन रखी थी। कंधे पर साधारण कपड़े का झोला और पैरों में घिसी हुई चप्पलें थीं। उनके सफेद बाल बिखरे हुए थे और चेहरे की झुर्रियों में जिंदगी के संघर्षों की कहानी साफ झलक रही थी।

बिजनेस क्लास की लाइन

दयाल जी ने आकाशगंगा एयरलाइंस के बिजनेस क्लास काउंटर की ओर कदम बढ़ाए। इकोनॉमी क्लास की लाइन लंबी थी, लेकिन बिजनेस क्लास की लाइन लगभग खाली थी।

दयाल जी ने हिचकिचाते हुए बिजनेस क्लास के रेड कार्पेट पर कदम रखा। वह झोला नीचे रखकर जेब से एक मुड़ा हुआ ई-टिकट निकालने लगे।

काउंटर पर बैठी लड़की, जिसका नाम प्रिया था, कंप्यूटर स्क्रीन पर व्यस्त थी। उसने बिना नजर उठाए ही कहा, “इकोनॉमी की लाइन वहां है, बाबा जी।”

दयाल जी ने धीमी आवाज में कहा, “बेटी, मेरी टिकट…”

प्रिया ने झुंझलाकर नजर उठाई। एक साधारण बूढ़े आदमी को बिजनेस क्लास की लाइन में देखकर उसकी त्योरियां चढ़ गईं। उसने व्यंग्यात्मक लहजे में कहा, “बाबा जी, आपको सुनाई नहीं दिया? इकोनॉमी की लाइन उस तरफ है। यहां क्यों टाइम खराब कर रहे हैं?”

दयाल जी ने कांपते हाथों से टिकट बढ़ाया। “बेटी, मेरी टिकट बिजनेस क्लास की ही है। मुंबई से दिल्ली जाना है।”

प्रिया ने टिकट को ऐसे पकड़ा जैसे वह कोई गंदा कागज हो। लेकिन जैसे ही उसने टिकट देखा, वह चौंक गई। टिकट असली था। सीट नंबर 1ए—बिजनेस क्लास।

बूढ़े की बेइज्जती

टिकट देखकर प्रिया और काउंटर पर खड़े समीर ने एक-दूसरे की ओर देखा। दोनों के चेहरे पर हल्की हंसी थी। समीर, जो खुद को बहुत मॉडर्न समझता था, हंसते हुए बोला, “क्या बात है, बाबा जी? लॉटरी लगी है क्या? या किसी ने मजाक में टिकट दे दिया?”

पीछे खड़े कुछ लोग यह तमाशा देखकर हंसने लगे।

दयाल जी का चेहरा शर्म से लाल हो गया। उन्होंने खुद को संभालते हुए कहा, “बेटा, यह टिकट मैंने अपनी मेहनत की कमाई से खरीदा है।”

प्रिया ने नकली हमदर्दी दिखाते हुए कहा, “देखिए बाबा जी, बिजनेस क्लास में बड़े-बड़े लोग होते हैं। आप वहां असहज महसूस करेंगे। मैं आपकी सीट इकोनॉमी में बदल देती हूं। आपको पैसे भी वापस मिल जाएंगे। वहां आप जैसे और भी लोग होंगे।”

दयाल जी ने धीमी आवाज में कहा, “बेटी, मेरे जैसे लोग मतलब? क्या साधारण दिखने वाला इंसान आराम से सफर नहीं कर सकता?”

समीर अब बदतमीजी पर उतर आया। “अरे बाबा जी, समझ नहीं रहे हैं। वह जगह आपके लिए नहीं है। आप वहां फिट नहीं बैठेंगे!”

यह कहते हुए समीर ने दयाल जी का झोला उठाकर एक तरफ फेंक दिया। झोले से एक पुरानी डायरी और दवाइयों की शीशी बाहर गिर गई।

दयाल जी की आंखों में आंसू आ गए। उन्होंने कांपती आवाज में कहा, “मैंने सारी जिंदगी मेहनत की। सोचा था, इस उम्र में एक बार आराम से सफर करूंगा। लेकिन लगता है, सुकून सिर्फ अमीरों के लिए है। एक गरीब का कोई सम्मान नहीं।”

फ्लाइट मैनेजर का आगमन

तभी एक दमदार आवाज गूंजी, “यहां क्या हो रहा है?”

भीड़ हट गई और एक आदमी आगे बढ़ा। उसने एयरलाइन की वर्दी पहन रखी थी। उसकी नेमप्लेट पर लिखा था, “आलोक वर्मा, फ्लाइट मैनेजर।”

आलोक ने प्रिया और समीर से पूछा, “क्या हो रहा है?”

प्रिया ने घबराते हुए कहा, “सर, यह बाबा जी बिजनेस क्लास का टिकट लेकर आए हैं। लेकिन मिस्टर राठौर को अर्जेंट जाना है। हम इन्हें समझा रहे हैं कि इकोनॉमी में शिफ्ट हो जाएं।”

आलोक ने दयाल जी की तरफ देखा। वह तुरंत उनके पास गया और उनका सामान उठाया।

“बाबा जी, आप ठीक हैं? मुझे बताइए, क्या परेशानी है?”

दयाल जी ने अपनी नम आंखों से कहा, “बेटा, मैंने टिकट खरीदा है। लेकिन ये लोग कहते हैं कि मैं इस सीट के लायक नहीं हूं।”

आलोक ने उनके टिकट को देखा। जैसे ही उसने नाम पढ़ा, उसके हाथ कांप गए।

“दयाल शर्मा…”

दयाल शर्मा की असली पहचान

आलोक ने तुरंत वॉकी-टॉकी पर कंट्रोल रूम से संपर्क किया।

“फ्लाइट एजी 101 पर पैसेंजर दयाल शर्मा, सीट 1ए। मुझे इनका पीएनआर स्टेटस कंफर्म करो।”

दूसरी तरफ से जवाब आया, “सर, यह फाउंडर फ्लैग्ड पीएनआर है। यह पैसेंजर आकाशगंगा एयरलाइंस के फाउंडर हैं।”

आलोक ने वॉकी-टॉकी बंद किया। वह तुरंत अटेंशन की मुद्रा में खड़ा हो गया और दयाल शर्मा को सैल्यूट किया।

“सर, हमें आपके आने की सूचना नहीं थी। प्लीज, हमें माफ कर दीजिए।”

यह सुनकर प्रिया और समीर के होश उड़ गए।

दयाल शर्मा का फैसला

दयाल जी ने गहरी सांस ली। उन्होंने प्रिया और समीर की ओर देखा।

“तुम दोनों को पता है कि मैंने यह एयरलाइन क्यों शुरू की थी? ताकि हर आम इंसान भी आसमान में उड़ने का सपना देख सके। लेकिन तुमने आज साबित कर दिया कि हम अपने मूल उद्देश्य से भटक गए हैं।”

उन्होंने विक्रम राठौर की ओर देखा। “और तुम, विक्रम, तुम सिर्फ तमाशा देख रहे थे। शायद तुम खुश हो रहे थे कि मेरी कंपनी का स्टाफ कितना घमंडी है। लेकिन याद रखना, इंसानियत और इज्जत सबसे बड़ी चीज है।”

उन्होंने आलोक वर्मा की ओर मुड़ते हुए कहा, “आलोक, इन दोनों को सस्पेंड करो। और स्टाफ की जांच करो। जो लोग दूसरों की इज्जत करना नहीं जानते, उन्हें यहां काम करने का कोई हक नहीं।”

नई शुरुआत

उस दिन के बाद आकाशगंगा एयरलाइंस का पूरा कल्चर बदल गया। हर काउंटर पर एक बोर्ड लगाया गया, जिस पर लिखा था:

“यहां हर यात्री वीआईपी है।”

दयाल शर्मा ने साबित कर दिया कि असली ताकत दूसरों को इज्जत देने और उनकी मदद करने में है।

सीख

“इंसान की पहचान उसके कपड़ों से नहीं, बल्कि उसके दिल और उसके कर्मों से होती है।”

.
.