गरीब रिक्शे वाले ने अमीर लड़की की मदद की थी, बदले में लड़की ने जो किया किसी ने सोचा नहीं था…

बरसात की हल्की बूंदें शहर की भीड़भाड़ वाली सड़कों को और भी अफरा-तफरी से भर रही थीं। हर कोई अपने-अपने ठिकानों तक जल्दी पहुंचने की जद्दोजहद में था। भीड़, ट्रैफिक और हॉर्न का शोर जैसे रोज़मर्रा की आदत बन गया था।

उसी सड़क पर एक चमचमाती काली कार अचानक बीचों-बीच बंद हो गई। कार में बैठी युवती बार-बार चाबी घुमाकर इंजन स्टार्ट करने की कोशिश कर रही थी, मगर नतीजा सिफर। चारों ओर से हॉर्न और लोगों की झुंझलाहट उसे और परेशान कर रही थी। यह युवती थी रिया, शहर के मशहूर उद्योगपति अग्रवाल साहब की इकलौती बेटी।

रिया के लिए यह स्थिति अनजानी थी। अमूमन ड्राइवर और स्टाफ उसके हर काम में खड़े रहते थे, मगर आज ड्राइवर छुट्टी पर था और फोन भी स्विच ऑफ। उसने सर्विस सेंटर कॉल करने की कोशिश की पर नेटवर्क बार-बार काट रहा था। रिया की आंखों में पहली बार असहायता झलक रही थी।

इसी बीच, एक पुराना ई-रिक्शा सड़क पार से आता दिखा। उसका चालक, गोपाल, गरीब परिवार से था। उसने भीड़ को चीरते हुए रिक्शा रोका और रिया की खिड़की पर दस्तक दी।

रिया ने खिड़की थोड़ी नीचे की और बोली –
“हां, क्या बात है?”

गोपाल ने शांत स्वर में कहा –
“मैडम, गाड़ी बीच सड़क पर खड़ी है, लोगों को परेशानी हो रही है। अगर आप चाहें तो मैं इसे धक्का देकर साइड कर दूं।”

रिया ने पहले सोचा, यह गरीब आदमी पैसे मांगने आया होगा। मगर मजबूरी में उसने हामी भर दी। गोपाल ने पूरी ताकत से कार धक्का दिया। उसके पैर कीचड़ में फिसलते रहे, कपड़े भीग गए, पर उसने हार नहीं मानी। आखिरकार कार सड़क के किनारे लग गई और ट्रैफिक सुचारू हो गया।

रिया ने चैन की सांस ली और पर्स से पांच सौ के दो नोट निकालकर खिड़की से आगे बढ़ाए –
“यह लो, तुम्हारी मेहनत का इनाम।”

गोपाल ने हाथ पीछे खींच लिया और गंभीर आवाज़ में कहा –
“मैडम, इंसानियत पैसों पर नहीं तोली जाती। मैंने मदद इसलिए की क्योंकि आप मुश्किल में थीं, न कि इनाम के लिए।”

इतना कहकर वह अपने रिक्शे की ओर लौट गया। रिया के हाथ में नोट वैसे ही रह गए। पहली बार उसके दिल को महसूस हुआ कि इस भीड़ में कोई ऐसा भी है जिसे पैसे से खरीदा नहीं जा सकता।

दूसरा पड़ाव

कुछ दिनों बाद रिया ऑफिस की एक अर्जेंट मीटिंग के लिए जा रही थी। ड्राइवर फिर नहीं आया, इसलिए उसने सोचा किसी रिक्शे से निकल जाना ही बेहतर है। तभी उसे वही पुराना रिक्शा दिखा। वही चालक – गोपाल।

रिया रिक्शे में बैठ गई। उसके पास एक भारी चमड़े का बैग था जिसमें कंपनी की फाइलें और पेमेंट वाउचर थे। जल्दबाजी में जब वह ऑफिस पहुंची तो बैग रिक्शे में ही भूल गई।

गोपाल को यह बैग बाद में मिला। उसने सोचा – “काफी कीमती लगता है।” मां और बहन ने सुझाव दिया कि बैग खोलकर देखें, शायद पैसे हों जो सुनीता की शादी में काम आ जाएं।

मगर गोपाल ने साफ कहा –
“सुनीता, तेरी शादी बेईमानी के पैसों से नहीं होगी। चाहे मुझे दिन-रात रिक्शा चलाना पड़े, लेकिन मैं दूसरों का हक छीनकर तुझे दुल्हन नहीं बनाऊंगा।”

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