गरीब लड़की ने कांपते भिखारी को सिर्फ कंबल दिया, बदले में जो मिला इंसानियत हिल गया |

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गरीब लड़की और कांपते भिखारी की कहानी: इंसानियत का सबसे बड़ा इनाम

शहर की हलचल भरी शाम थी। सड़कों पर कोहरा छाया हुआ था, और हर कोई जल्दी-जल्दी अपने घर की ओर बढ़ रहा था। इसी भागदौड़ के बीच, एक साधारण सी गरीब लड़की रिया, अपनी टूटी-फूटी झोपड़ी में अपनी बीमार मां के पास बैठी थी। रिया की उम्र सिर्फ बीस साल थी, लेकिन उसकी आंखों में जिम्मेदारी और चिंता साफ नजर आ रही थी। उसकी मां को तेज बुखार था, चेहरा पीला पड़ चुका था। रिया अपनी मां के माथे पर गीला कपड़ा रख रही थी और भगवान से बार-बार प्रार्थना कर रही थी कि मां जल्दी ठीक हो जाए।

रिया की मां ने धीरे से पूछा, “बेटी, तू कहां जाएगी? तेरे पास पैसे कहां हैं?” रिया ने अपनी मां को यकीन दिलाया कि उसने दिनभर मजदूरी करके कुछ पैसे जमा किए हैं, और उन्हीं पैसों से वह दवाई लाएगी। रिया ने अपनी गुल्लक उठाई और उसमें से कुल ₹500 निकाले। यही ₹500 उसकी पूरी जमा-पूंजी थी। रिया ने पैसे अपनी साड़ी के पल्लू से बांध लिए और मां को विश्वास दिलाया कि वह जल्दी लौट आएगी।

बाहर दिसंबर की ठंडी हवाएं चल रही थीं, जो रिया के डर को और बढ़ा रही थीं। रिया सोच रही थी कि क्या ये ₹500 उसकी मां को बचाने के लिए काफी होंगे या नहीं। थोड़ी देर बाद रिया शहर के पौश इलाके में पहुंच गई। वहां सब कुछ चमचमाता हुआ था—बड़ी-बड़ी इमारतें, महंगी गाड़ियां, और एक आलीशान मॉल। रिया ने ऐसा मॉल सिर्फ फिल्मों में देखा था। उसकी आंखों में हैरानी थी, लेकिन उसके दिल में बस मां की चिंता थी।

रिया को मॉल के सामने बनी दवाई की दुकान पर जाना था। जैसे ही वह दुकान के अंदर जाने लगी, उसकी नजर एक बूढ़े आदमी पर पड़ी। वह आदमी बहुत गरीब दिख रहा था, ठंड से कांप रहा था। वह दुकानदार से भीख मांग रहा था, “बेटा, मुझे बहुत ठंड लग रही है। कोई फटा-पुराना कपड़ा दे दो। तुम्हारी जिंदगी बदल जाएगी।” लेकिन दुकानदार ने गुस्से में उस आदमी को दुकान से बाहर धक्का देकर निकाल दिया। वह बूढ़ा आदमी जमीन पर गिर गया। रिया यह सब देखकर बहुत दुखी हुई, लेकिन उसे अपनी मां की दवाई की याद आ गई। उसने सोचा, अगर उसने अपने पैसे उस बूढ़े पर खर्च कर दिए तो मां की दवाई कैसे आएगी?

रिया ने दुकानदार को कहा कि उसने गलत किया, लेकिन दुकानदार ने उसे अनसुना कर दिया। रिया की आंखों में आंसू आ गए। वह बिना दवाई लिए वापस लौटने लगी। लेकिन उसका दिल उसे रोक रहा था। वह अपनी मां की दवाई को भूलकर उस बूढ़े आदमी की मदद करने का फैसला करती है। रिया उस आदमी को अपने साथ लेकर एक पुरानी कपड़े की दुकान पर जाती है। उसके पास सिर्फ ₹500 थे। उसने दुकानदार से एक मोटा कंबल मांगा, लेकिन दुकानदार ने कहा कि कंबल ₹800 का है। रिया ने दुकानदार से भीख मांगी कि उसके पास यही आखिरी पैसे हैं और उसकी मां बीमार है। दुकानदार को रिया की दयालुता देखकर दया आ गई और उसने ₹500 में कंबल दे दिया।

रिया ने वह कंबल उस बूढ़े आदमी को दे दिया और कहा, “अब आपको ठंड नहीं लगेगी।” बूढ़ा आदमी भावुक होकर बोला, “बेटी, मेरी बात याद रखना, मैं तुम्हारी जिंदगी बदल दूंगा।” रिया ने कहा कि उसे कुछ नहीं चाहिए, बस बाबा ठीक रहें। रिया ने बताया कि उसकी मां बीमार है और उसने अपनी मां की दवाई के पैसे उसे दे दिए हैं। यह सुनकर बूढ़ा आदमी चुप हो गया। उसने अपनी जेब से एक फटा हुआ लिफाफा निकाला और रिया को दिया। “इस लिफाफे में एक पता है। जब भी तुम्हें मेरी मदद की जरूरत हो, यहां आ जाना।”

रिया वह लिफाफा लेकर चली गई। वह वापस दवाई की दुकान पर गई, लेकिन पैसे नहीं थे। निराश होकर वह घर लौटने लगी। उसकी मां ने बिना दवाई के देखकर सब समझ लिया। रिया ने सब कुछ मां को बता दिया। मां ने उसे गले लगाकर कहा, “बेटी, तुमने जो किया वह सही था। इंसानियत सबसे बड़ा धर्म है।”

अगली सुबह रिया की मां की तबीयत और खराब हो गई। रिया उन्हें अस्पताल लेकर गई। डॉक्टर ने कहा कि ऑपरेशन करना पड़ेगा और इसके लिए बहुत पैसे लगेंगे। रिया टूट गई। उसे बूढ़े बाबा का लिफाफा याद आया। वह तुरंत उस पते पर गई। पता शहर के सबसे बड़े बंगले का था। गार्ड ने उसे रोक लिया, “यहां कोई बूढ़ा आदमी नहीं रहता। यह देश के सबसे बड़े कारोबारी अविनाश सेठ का घर है।” रिया वापस जाने लगी। तभी बंगले के अंदर से एक आदमी आया और बोला, “तुम रिया हो? मिस्टर अविनाश सेठ तुम्हें बुला रहे हैं।”

रिया हैरान थी। वह अंदर गई और देखा कि वही बूढ़ा आदमी, जिसे उसने कंबल दिया था, आलीशान सूट में बैठा था। रिया की आंखों में अविश्वास था। अविनाश सेठ ने कहा, “हां, मैं ही वह बूढ़ा भिखारी था। मेरा नाम अविनाश सेठ है। मैंने अपनी दौलत का असली हकदार ढूंढने के लिए यह नाटक किया था। मेरे बेटे ने मुझे सिर्फ पैसों के लिए धोखा दिया था। इसलिए मैंने उसे घर से निकाल दिया। जब मैंने देखा कि तुम अपनी मां की दवाई के पैसों से मुझे कंबल दे रही हो, तो समझ गया कि तुम ही मेरी दौलत की सही हकदार हो।”

अविनाश सेठ ने रिया को एक फाइल दी जिसमें उसकी मां का अस्पताल का बिल और ऑपरेशन का खर्च शामिल था। उन्होंने बताया कि रिया की मां का इलाज हो चुका है और वह अब ठीक हो रही है। अविनाश सेठ ने कहा, “आज से यह सारी संपत्ति और कारोबार तुम्हारा है।” रिया अवाक थी। वह जिस आदमी को कल तक भिखारी समझ रही थी, वह आज देश के सबसे बड़े कारोबारी के रूप में उसके सामने था।

रिया ने अविनाश सेठ के पैर छुए और कहा, “बाबा, आपने मुझे सब कुछ दे दिया।” अविनाश सेठ ने रिया के सिर पर हाथ रखा और कहा, “नहीं बेटी, तुमने मुझे मेरा परिवार लौटा दिया। तुमने मुझे वह दिया जो मेरे अपने बेटे ने छीन लिया था।”

रिया ने रोते हुए कहा, “बाबा, मुझे यह सब नहीं चाहिए। मैंने तो बस अपनी मां की दवाई के लिए कुछ पैसे बचाए थे। मुझे तो बस मेरी मां वापस मिल जाए।” अविनाश सेठ रिया की मासूमियत से और भी ज्यादा प्रभावित हुए। उन्होंने उसे अपने पास बिठाया और कहा, “बेटी, मैं चाहता हूं कि मेरी संपत्ति और कारोबार ऐसे इंसान के हाथों में जाए जो इंसानियत को सबसे ऊपर रखता है।”

दोस्तों, यह कहानी हमें सिखाती है कि अच्छे कर्मों का फल हमेशा अच्छा ही होता है। अगर आप अपने दिल में दया और प्रेम रखते हैं, तो आपकी जिंदगी में हमेशा खुशियां ही आती हैं। इंसानियत सबसे बड़ा धर्म है। अगर यह कहानी आपके दिल को छू गई हो, तो इसे जरूर शेयर करें।

समाप्त

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