गरीब समझकर किया अपमान ! अगले दिन खुला राज— वही निकला होटल का मालिक 😱 फिर जो हुआ…
सुबह के ठीक 11:00 बजे, शहर के सबसे बड़े पांच सितारा होटल में एक बुजुर्ग साधारण कपड़े पहने, धीरे-धीरे होटल की ओर बढ़ रहे थे। उनका नाम था मोहनलाल। उनके हाथ में एक पुराना सा झोला था, लेकिन जैसे ही वह होटल के गेट पर पहुंचे, गार्ड के माथे पर तुरंत शिकन आ गई। गार्ड ने सामने आकर रास्ता रोकते हुए कहा, “बाबा, आप यहां कहां आ गए? क्या काम है आपका यहां?”
मोहनलाल ने हल्की मुस्कान के साथ कहा, “बेटा, मेरी यहां बुकिंग है। बस उसी के बारे में पूछना था।” गार्ड ने हंसते हुए अपनी साथी से कहा, “अरे, देखो तो बाबा कह रहे हैं इनकी यहां बुकिंग है।” गार्ड ने फिर मोहनलाल से कहा, “बाबा, देखो आपसे जरूर कोई गलती हुई है। शायद आपको किसी ने गलत पता दे दिया है क्योंकि यह होटल बहुत ही लग्जरी है। बड़े-बड़े बाबू लोग आते हैं यहां। कोई आम आदमी इसे अफोर्ड नहीं कर सकता।”
उपेक्षा का सामना
इतने में होटल की रिसेप्शनिस्ट प्रिया सक्सेना ने यह बातचीत सुन ली। उसने अपनी नजरें मोहनलाल पर डाली। सिर से पांव तक उन्हें देखा और होठों पर हल्की मुस्कान तैर गई। वह मुस्कान स्वागत की नहीं बल्कि ताने और उपेक्षा की थी। प्रिया ने कहा, “बाबा, मुझे नहीं लगता कि आपकी कोई बुकिंग इस होटल में होगी। यह होटल बहुत महंगा है। शायद आप गलत जगह आ गए हैं।”
मोहनलाल ने उसी सहजता से जवाब दिया, “बेटी, एक बार चेक तो कर लो। शायद मेरी बुकिंग यहीं हो।” प्रिया ने लापरवाही से कंधे उचकाए और कहा, “ठीक है बाबा, इसमें समय लगेगा। आप वेटिंग एरिया में जाकर बैठ जाइए।” मोहनलाल ने सिर हिलाया और धीरे-धीरे वेटिंग एरिया की ओर बढ़े। लॉबी में मौजूद कई गेस्ट उन्हें अजीब नजरों से घूर रहे थे।
तानों का सामना
किसी ने धीरे से कहा, “लगता है मुफ्त का खाना खाने आया है।” कोई और बोला, “इसकी तो औकात भी नहीं है कि यहां का एक गिलास पानी भी खरीद सके।” मोहनलाल ने यह सब सुन लिया। लेकिन वे चुप रहे। वह कोने में रखी एक कुर्सी पर बैठ गए। झोला जमीन पर रखा और दोनों हाथ छड़ी पर टिका कर खामोश बैठे रहे।
लॉबी का माहौल अजीब हो चुका था। लोग चाय और कॉफी की चुस्कियां लेते हुए उन्हीं की तरफ इशारा करके बातें बना रहे थे। किसी छोटे बच्चे ने अपनी मां से मासूमियत से पूछा, “मम्मी, यह बाबा यहां क्यों बैठे हैं? यह तो होटल वाले जैसे नहीं दिखते।” मां बच्चे से बोली, “बेटा, सब किस्मत की मार है। जब किस्मत साथ न दे तो हर किसी की सुननी पड़ती है।”
प्रिया का तिरस्कार
इसी बीच प्रिया फिर से वहां से गुजरी। उसने अपने साथी स्टाफ से कहा, “पता नहीं मैनेजर साहब क्या कहेंगे? ऐसे लोगों को यहां बैठाना भी रिस्क है। होटल की इमेज खराब हो रही है।” साथी ने हंसते हुए कहा, “कोई बात नहीं। कुछ देर बाद यह खुद ही उठकर चला जाएगा।”
मोहनलाल यह सब सुन रहे थे। पर वह एक शब्द ना कह सके। वह सिर्फ इंतजार कर रहे थे कि कोई उनकी बात सुने। एक घंटे तक वह यूं ही बैठे रहे। कभी घड़ी देखते, कभी रिसेप्शन की तरफ नजर डालते। उन्हें उम्मीद थी कि कोई आएगा और कहेगा, “हां बाबा, आपकी बुकिंग है।” लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
मोहनलाल का धैर्य
मोहनलाल ने धीरे से कुर्सी का सहारा लिया और खड़े हो गए। उन्होंने रिसेप्शन की तरफ देखा और कहा, “बेटी, अगर तुम व्यस्त हो तो अपने मैनेजर को बुला दो। मुझे उनसे भी कुछ जरूरी बात करनी है।” प्रिया ने मन ही मन सोचा, “अब इसे मैनेजर से भी मिलना है।” फिर अनमने ढंग से फोन उठाया और होटल मैनेजर विक्रम सिंह को कॉल लगाया।
उसने कहा, “सर, एक बुजुर्ग आपसे मिलना चाहते हैं।” विक्रम ने दूर से मोहनलाल को देखा और फोन पर हंसते हुए कहा, “क्या यह हमारे गेस्ट हैं या बस ऐसे ही चले आए हैं? मेरे पास अभी टाइम नहीं है। इन्हें बैठने दो। थोड़ी देर में खुद चले जाएंगे।” प्रिया ने वही आदेश दोहराया और मोहनलाल को और थोड़ी देर बैठने का आदेश दिया।
सूरज का सम्मान
मोहनलाल ने गहरी सांस ली और फिर से उसी कोने की कुर्सी पर बैठ गए। सारी नजरों का बोझ उनके कंधों पर था। लेकिन उनकी आंखों में अब भी वहीं सब्र था। मानो कह रहे हों, “सच को छिपाया जा सकता है पर रोका नहीं जा सकता।” लॉबी में मोहनलाल अब भी बैठे थे। समय धीरे-धीरे बीत रहा था। लेकिन उनके लिए हर मिनट किसी पहाड़ की तरह भारी हो रहा था।
इसी बीच रिसेप्शनिस्ट प्रिया सक्सेना दोबारा उनके पास आई। उसने रूखी आवाज में कहा, “बाबा, आपको थोड़ा और इंतजार करना पड़ेगा। मैनेजर साहब अभी भी बिजी हैं।” मोहनलाल ने मुस्कुराकर सिर हिलाया और बोले, “ठीक है बेटी, मैं इंतजार कर लूंगा।”
उसी समय होटल का मैनेजर विक्रम सिंह अपने केबिन में बैठा हुआ किसी विदेशी क्लाइंट से फोन पर बातें कर रहा था। उसके चेहरे पर घमंड साफ झलक रहा था। फोन रखते ही रिसेप्शन से प्रिया का दोबारा कॉल आया। प्रिया ने कहा, “सर, वो बुजुर्ग अब भी लॉबी में बैठे हैं। आप एक बार उनसे मिल लीजिए।” विक्रम ने हंसते हुए कहा, “बैठा रहने दो। थोड़ी देर में थक जाएगा और खुद चला जाएगा। मेरे पास ऐसे फालतू लोगों के लिए वक्त नहीं है।”
सूरज की पहल
तभी वहां एक छोटा कर्मचारी आया। नाम था सूरज वर्मा। वह होटल का बेल बॉय था। उसने मोहनलाल को देखा। लॉबी में सब उनका मजाक उड़ा रहे थे। लेकिन सूरज की आंखों में उनके लिए सम्मान था। वह धीरे से पास आकर बोला, “बाबा, आप कब से बैठे हैं? क्या किसी ने आपकी मदद नहीं की?” मोहनलाल ने मुस्कुराकर उसकी ओर देखा और कहा, “बेटा, मैं मैनेजर से मिलना चाहता हूं पर लगता है वह व्यस्त हैं।”
सूरज का चेहरा कस गया। वह बोला, “बाबा, आप चिंता मत करो। मैं अभी उनसे बात करता हूं।” मोहनलाल ने सिर हिलाया। “तुम्हारा बहुत धन्यवाद। भगवान तुम्हें सुखी रखे।”
विक्रम का अहंकार
सूरज तेज कदमों से मैनेजर के केबिन की ओर गया। दरवाजे पर पहुंचते ही उसने नॉक किया और अंदर चला गया। विक्रम सिंह ने इशारे से पूछा, “क्या बात है?” सूरज ने आदर से कहा, “सर, लॉबी में एक बुजुर्ग बैठे हैं। वह आपसे मिलना चाहते हैं।” विक्रम ने भौें चढ़ाई और ठंडी आवाज में बोला, “सूरज, तुम्हें कितनी बार कहा है कि फालतू लोगों से दूर रहो। वह कोई गेस्ट नहीं है। शायद भूला भटका कोई आया है।”
सूरज ने धीरे से कहा, “लेकिन सर, उन्होंने कहा है कि उन्हें आपसे जरूरी बात करनी है।” विक्रम हंस पड़ा। “अरे जरूरी बात? तुमने अंदाजा भी है यहां कितने करोड़ का कारोबार होता है और तुम मुझे ऐसे बाबा से मिलवाना चाहते हो?” सूरज चुप रहा लेकिन अंदर से दुखी था। उसने सोचा, “इंसान को उसकी शक्ल देखकर कैसे ठुकराया जा सकता है? क्या बड़े पद पर बैठने से किसी को इंसानियत भूल जानी चाहिए?”
मोहनलाल का धैर्य
विक्रम ने सख्त आवाज में कहा, “सूरज, तुम अपना काम करो। यह मामला तुम्हारे बस का नहीं है।” सूरज ने सिर झुकाया और बाहर चला आया। लॉबी में लौटते ही उसने मोहनलाल की ओर देखा। उनकी आंखों में धैर्य अब भी था। सूरज उनके पास बैठ गया और बोला, “बाबा, मैंने कोशिश की लेकिन मैनेजर साहब अभी नहीं मिलना चाहते।”
मोहनलाल ने मुस्कुराकर उसके कंधे पर हाथ रखा और बोले, “कोई बात नहीं बेटा। तुमने कोशिश की। यही मेरे लिए काफी है।” सूरज की आंखें भर आईं। उसे महसूस हुआ कि यह बुजुर्ग कोई आम इंसान नहीं है। उनकी सादगी में एक अजीब सी ताकत छिपी थी।
समय का पहिया
लॉबी का माहौल अब और भी भारी हो चुका था। लोगों के ताने और ठहाके, मोहनलाल की खामोशी और सूरज की बेचैनी सब मिलकर एक अजीब तस्वीर बना रहे थे। करीब 1 घंटा बीत चुका था। मोहनलाल अब भी उसी कुर्सी पर बैठे थे। उन्होंने धीरे से आंखें बंद की और सोचा, “धैर्य रखना ही असली ताकत है। लेकिन अब समय आ गया है कि सच्चाई सामने आए।”
होटल की घड़ी ने 12:30 बजाए। मोहनलाल अब और चुपचाप बैठ नहीं पाए। उन्होंने धीरे से अपनी छड़ी उठाई, झोला कंधे पर टांगा और रिसेप्शन की तरफ बढ़ गए। लॉबी में बैठे कई लोगों ने फिर से ताने कसे। “देखो, देखो बाबा अब मैनेजर से लड़ने जा रहे हैं।” रिसेप्शन पर खड़ी प्रिया सक्सेना ने उन्हें आते देखा। उसने झुंझुलाकर कहा, “बाबा, आपको कहां कहा ना? इंतजार कीजिए। मैनेजर अब भी बिजी हैं।”

विक्रम से सामना
मोहनलाल ने उसकी ओर देखा और नरम आवाज में बोले, “बेटी, बहुत इंतजार कर लिया। अब मैं खुद ही उनसे बात कर लूंगा।” इतना कहकर मोहनलाल सीधा मैनेजर विक्रम सिंह के केबिन की ओर बढ़े। लॉबी में खामोशी छा गई। सबकी नजरें उसी तरफ टिक गईं। हर कोई देखना चाहता था कि आगे क्या होने वाला है।
जैसे ही मोहनलाल ने केबिन का दरवाजा खोला, विक्रम अपनी घूमने वाली कुर्सी पर अकड़ के साथ बैठा था। उसने भौहे चढ़ाते हुए कहा, “हां बाबा, बताइए, इतना शोर क्यों मचा रखा है? क्या काम है आपको?” मोहनलाल ने धीरे से झोला खोला और उसके अंदर से एक लिफाफा निकाला। उसे आगे बढ़ाते हुए बोले, “यह मेरी बुकिंग और होटल से जुड़ी कुछ डिटेल है। कृपया एक बार देख लीजिए।”
विक्रम का अपमान
विक्रम ने हंसते हुए लिफाफा हाथ में लिया लेकिन खोले बिना ही टेबल पर पटक दिया। उसकी हंसी में अहंकार साफ झलक रहा था। उसने कहा, “बाबा, जब किसी इंसान की जेब में पैसे नहीं होते तो उसे बुकिंग जैसी बड़ी-बड़ी बातें करना बिल्कुल बेकार है। मुझे आपके जैसे लोगों की शक्ल देखकर ही पता चल जाता है कि आपके पास कुछ नहीं है। यह होटल आपके बस का नहीं है। बेहतर होगा आप यहां से चले जाएं।”
मोहनलाल ने उसकी आंखों में देखा। उनकी आवाज अब गहरी और गंभीर हो चुकी थी। उन्होंने कहा, “बेटा, बिना देखे कैसे तय कर लिया? एक बार इन कागजों को देख तो लो। सच्चाई अक्सर वैसी नहीं होती जैसी दिखती है।” विक्रम कुर्सी पर पीछे झुक गया और जोर से हंसते हुए बोला, “बाबा, मुझे किसी कागज को देखने की जरूरत नहीं है। मैं सालों से इस होटल को संभाल रहा हूं। लोगों की शक्ल देखकर ही पहचान लेता हूं कि किसकी क्या औकात है। आपकी शक्ल कहती है आपके पास कुछ भी नहीं है।”
मोहनलाल का संदेश
यह सुनकर लॉबी में बैठे कुछ गेस्ट भी हंसने लगे। मोहनलाल ने गहरी सांस ली। लिफाफा टेबल पर रखा और शांत स्वर में बोले, “ठीक है, जब तुम्हें यकीन नहीं है, तो मैं चला जाता हूं। लेकिन याद रखना जो तुमने आज किया है, उसका नतीजा तुम्हें भुगतना पड़ेगा।” इतना कहकर उन्होंने दरवाजे की ओर कदम बढ़ाए। पीछे बैठे गेस्ट फुसफुसाए, “वाह, मैनेजर ने सही किया। ऐसे लोगों को यहीं सबक मिलना चाहिए।”
मोहनलाल होटल से बाहर निकल गए। उनकी धीमी चाल और झुकी हुई कमर ने पूरे स्टाफ के बीच एक अजीब सा सन्नाटा छोड़ दिया। लेकिन विक्रम अपनी कुर्सी पर बैठा मुस्कुराता रहा। उसके चेहरे पर गर्व और तिरस्कार का मिलाजुला भाव था। इसी बीच बेल बॉय सूरज वर्मा उस लिफाफे की तरफ बढ़ा।
सूरज की खोज
उसने धीरे से उसे उठाया और चुपचाप अपने सर्वर कंप्यूटर की ओर चला गया। कंप्यूटर स्क्रीन पर उसने लॉगिन किया और फाइलें खोलना शुरू किया। लिफाफे में लिखी डिटेल्स के आधार पर उसने होटल का पुराना रिकॉर्ड खंगाला। कुछ ही देर में उसकी आंखें चौड़ी हो गईं। स्क्रीन पर जो जानकारी थी, उसने सूरज को हिला कर रख दिया।
रिकॉर्ड में साफ लिखा था, “मोहनलाल होटल के 65% शेयर होल्डर संस्थापक सदस्य।” सूरज की सांसे तेज हो गईं। उसने फॉरेन प्रिंटर से रिपोर्ट निकाली। कागज हाथ में लिए वह भागता हुआ मैनेजर के केबिन में पहुंचा। अंदर विक्रम अब भी किसी क्लाइंट से फोन पर बात कर रहा था।
विक्रम का अहंकार
सूरज ने धीरे से कहा, “सर, यह रिपोर्ट देखिए। यह वही बुजुर्ग हैं जो यहां आए थे। यह हमारे होटल के असली मालिक हैं।” विक्रम ने फोन रखते हुए सूरज की तरफ देखा और भौहें चढ़ा ली। “सूरज, तुम्हें कितनी बार कहा है। मुझे ऐसे लोगों की रिपोर्ट्स में दिलचस्पी नहीं है। यह सब फालतू बातें हैं।”
सूरज ने फिर कोशिश की। “लेकिन सर, यह रिपोर्ट साफ बताती है कि मोहनलाल हमारे होटल के मालिक हैं। अगर हमसे कोई गलती हो गई है तो…” विक्रम ने बीच में ही बात काट दी। उसने रिपोर्ट को अपनी तरफ सरका कर देखा। फिर बिना पढ़े ही उसे वापस सूरज की ओर धकेल दिया। उसकी आवाज में अहंकार पहले से और ज्यादा था।
सूरज का निर्णय
उसने कहा, “मुझे यह सब बकवास नहीं चाहिए। तुम्हें मैंने कहा है ना, अपना काम करो। यह होटल मेरी मैनेजमेंट स्किल से चलता है। किसी पुराने बाबा की दान दक्षिणा से नहीं।” सूरज हैरान रह गया। उसके चेहरे पर गहरी बेचैनी थी। वह रिपोर्ट हाथ में लेकर वापस निकल गया।
लॉबी में आते ही उसने मोहनलाल को याद किया। उनकी आंखों की गहराई, उनका धैर्य उसे लगा यह मामला अब सिर्फ होटल तक सीमित नहीं है। यह इंसानियत की परीक्षा है। धीरे-धीरे शाम होने लगी। गेस्ट अपने-अपने कमरों में चले गए। स्टाफ अपने काम में लग गया। लेकिन सूरज के दिल में हलचल बढ़ती गई।
मोहनलाल की वापसी
उसे यकीन था, “कल का दिन इस होटल की तस्वीर बदल देगा।” अगली सुबह का नजारा बिल्कुल अलग था। होटल के हर कोने में हलचल थी। स्टाफ आपस में धीरे-धीरे फुसफुसा रहे थे। किसी ने कहा, “कल जो बाबा आए थे, शायद उनके बारे में कोई बड़ी बात है।” दूसरे ने जवाब दिया, “हां, सुना है वह होटल के बड़े शेयर होल्डर हैं।”
यह खबर धीरे-धीरे पूरे होटल में फैल चुकी थी। लेकिन किसी को अब भी भरोसा नहीं हो रहा था। सबके मन में सवाल था, “क्या सच में वह बुजुर्ग इस आलीशान होटल के मालिक हो सकते हैं?”
मोहनलाल का आगमन
10:30 बजते ही लॉबी का माहौल अचानक बदल गया। होटल के मुख्य द्वार से वही साधारण कपड़े पहने बुजुर्ग मोहनलाल अंदर आए। लेकिन इस बार वह अकेले नहीं थे। उनके साथ एक सूट-बूट पहना अधिकारी था, जिसके हाथ में काले रंग का ब्रीफ केस था। सभी की नजरें एक ही पल में उसी दिशा में टिक गईं।
गार्ड, रिसेप्शनिस्ट, वेटर सब सन्नाटे में खड़े रह गए। कल जिन्हें सब ने अनदेखा किया था, आज वही शख्स होटल में किसी सम्राट की तरह प्रवेश कर रहे थे। मोहनलाल ने सीधे हाथ से इशारा किया, “मैनेजर को बुलाओ।” आवाज में अब कोई नरमी नहीं थी बल्कि एक आदेश की कठोरता थी।
विक्रम की घबराहट
थोड़ी ही देर में विक्रम सिंह बाहर आया। उसके चेहरे पर हल्की घबराहट थी। लेकिन अहंकार अब भी बाकी था। वह आधा मुस्कुरा कर बोला, “जी, बोलिए बाबा। आज फिर आ गए।” मोहनलाल ने उसकी आंखों में देखा और ठंडी आवाज में कहा, “विक्रम सिंह, मैंने कल ही कहा था तुम्हें अपने कर्मों का नतीजा भुगतना पड़ेगा। आज वह दिन आ गया है।”
विक्रम सकपका गया। उसने हंसी में बात टालने की कोशिश की। मोहनलाल के साथ आए अधिकारी ने ब्रीफ केस खोला। उसमें से मोटी फाइल निकाली और सबके सामने टेबल पर रख दी। उसने जोर से कहा, “यह डॉक्यूमेंट्स साफ बताते हैं। इस होटल के 65% शेयर मोहनलाल के नाम पर हैं। असल मालिक वही हैं।”
होटल का माहौल बदलता है
पूरा स्टाफ स्तब्ध रह गया। प्रिया सक्सेना के हाथ कांपने लगे। लॉबी में मौजूद गेस्ट्स ने एक दूसरे को देखा और फुसफुसाए, “यह तो सच में मालिक हैं। हमसे कितनी बड़ी भूल हो गई।” मोहनलाल ने अपनी छड़ी जमीन पर टिका दी। उनकी आवाज अब तेज और दृढ़ थी।
“विक्रम सिंह, आज से तुम इस होटल के मैनेजर नहीं रहोगे। तुम्हारी जगह अब सूरज वर्मा इस पद को संभालेगा।” विक्रम गुस्से से कांपते हुए बोला, “आप होते कौन हैं मुझे हटाने वाले? यह होटल मैं सालों से चला रहा हूं।”
सच्चाई का सामना
मोहनलाल गरजते हुए बोले, “यह होटल मैंने बनाया है। इसकी नींव मेरी मेहनत से रखी गई थी। मैं चाहूं तो तुम्हें एक पल में बाहर का रास्ता दिखा सकता हूं। पर दंड स्वरूप तुम्हें फील्ड का काम दिया जा रहा है। अब वही काम करो जो तुमने दूसरों से करवाया है।”
मोहनलाल ने सूरज को पास बुलाया। उन्होंने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा, “तुम्हारे पास धन नहीं था लेकिन दिल में इंसानियत थी। यही असली काबिलियत है। इसलिए तुम इस पद के हकदार हो।” सूरज की आंखों से आंसू बह निकले। वह भावुक होकर बोला, “साहब, मैंने तो बस इंसानियत निभाई थी।”
मोहनलाल का संदेश
मोहनलाल मुस्कुराए। “यही सबसे बड़ी योग्यता है बेटा।” फिर उन्होंने रिसेप्शनिस्ट प्रिया सक्सेना की ओर देखा। उनकी नजर इतनी कठोर थी कि प्रिया कांप गई। मोहनलाल बोले, “प्रिया, तुम्हारी यह गलती पहली है इसलिए तुम्हें माफ कर रहा हूं। लेकिन याद रखना, इस होटल में कभी किसी को उसके कपड़ों से मत आंकना। हर इंसान की इज्जत बराबर है।”
प्रिया ने हाथ जोड़ लिए और रोते हुए कहा, “मुझे माफ कर दीजिए। आगे से ऐसा कभी नहीं होगा।” मोहनलाल ने चारों तरफ देखा और ऊंची आवाज में कहा, “सुन लो सब लोग। यह होटल सिर्फ अमीरों का नहीं है। यहां इंसानियत ही असली पहचान होगी। जो भी अमीर गरीब का फर्क करेगा, वह इस जगह पर रहने लायक नहीं होगा।”
अंत में
लॉबी में मौजूद गेस्ट्स ने जोरदार तालियां बजाई। हर कोई मोहनलाल को सम्मान की नजरों से देख रहा था। जो कल तक उन्हें तुच्छ समझ रहे थे, आज वही उनके आगे झुक गए। मोहनलाल ने अंत में कहा, “असली अमीरी पैसे में नहीं, सोच में होती है। अगर सोच बड़ी हो तो इंसान खुद ही बड़ा बन जाता है।”
इतना कहकर वह अधिकारी के साथ होटल से बाहर निकल गए। पीछे खड़े स्टाफ और गेस्ट्स देर तक उनकी ओर देखते रहे और मन ही मन सोचते रहे, “मालिक ऐसा होना चाहिए जो दूसरों को उनकी इंसानियत से पहचाने, ना कि उनके कपड़ों से।”
उस दिन के बाद होटल का माहौल पूरी तरह बदल गया। स्टाफ अब हर गेस्ट के साथ सम्मान से पेश आता। लोग कहते, “मोहनलाल ने सिर्फ होटल नहीं बनाया बल्कि इंसानियत की नींव भी रखी।”
निष्कर्ष
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