गर्भवती महिला काम मांगने पहुँची… सामने था उसका तलाकशुदा पति, फिर जो हुआ… | Heart Touching Story
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गर्भवती महिला काम मांगने पहुँची… सामने था उसका तलाकशुदा पति, फिर जो हुआ…
बारिश की हल्की बूँदें सुबह-सुबह शहर की गलियों को भिगो रही थीं। ठंडी हवा पुराने मकानों की खिड़कियों को हिला रही थी। एक छोटे से कमरे में राधिका बैठी थी—आठ महीने की गर्भवती, थकी हुई, लेकिन आँखों में जिद और डर दोनों। उसके पास बस एक पुराना बायोडाटा, कुछ सिक्के और उम्मीद थी। आज उसे एक बड़ी कंपनी का पता मिला था। बारिश में भीगते हुए, वह नौकरी की तलाश में निकल पड़ी।
दरवाजा बंद करते वक्त उसकी नजर एक फोटो फ्रेम पर पड़ी। उसमें वह और गोपाल—उसका पूर्व पति—मुस्कुरा रहे थे। तीन साल पहले दोनों ने प्रेम विवाह किया था। शुरुआत में सब अच्छा था, लेकिन समय के साथ गोपाल का बिजनेस डूब गया, पैसों की तंगी आई और रिश्ते में तनाव बढ़ा। छोटी-छोटी बातों पर झगड़े हुए और एक दिन गोपाल ने गुस्से में कह दिया, “तुम मेरी किस्मत की सबसे बड़ी गलती हो।” उस रात राधिका चुपचाप मायके चली गई। लेकिन वहाँ भी उसे अपनाने वाला कोई नहीं था। माता-पिता पहले ही गुजर चुके थे, भाई-बहन दूर हो गए। कुछ हफ्तों बाद कोर्ट में तलाक हो गया। राधिका ने बिना आँसू बहाए दस्तखत कर दिए।
अब, आठ महीने की गर्भवती राधिका अकेली थी। माँ बनने का सुख भी उसके लिए एक जंग जैसा था। उसे नौकरी चाहिए थी, चाहे कुछ भी हो। पहला ठिकाना पास की बेकरी था। मैनेजर ने हँसते हुए कहा, “यहाँ केक उठाना पड़ता है, आपसे नहीं होगा।” दूसरा ठिकाना सिलाई का कारखाना था, मालिक ने कहा, “बेटा, जब बच्चा होगा तो छुट्टी लेनी पड़ेगी, हमें ऐसे लोग नहीं चाहिए।” तीसरा किराना दुकान थी, दुकानदार ने बिना देखे ही मना कर दिया, “तुम्हें घर पर आराम करना चाहिए।”
हर जगह से मना सुनकर राधिका टूटने लगी। लेकिन बस स्टैंड पर बैठते हुए उसने अपने पेट पर हाथ रखते हुए कहा, “बेटा, मम्मी हार नहीं मानेगी। हम दोनों जीतेंगे।” बगल में बैठी एक बुजुर्ग महिला ने पूछा, “इतनी बारिश में कहाँ जा रही हो?” राधिका ने मुस्कुराकर कहा, “काम ढूंढ रही हूँ अम्मा।” अम्मा ने सिर हिलाया और एक पते का कागज दिया, “यहाँ जाओ, मालिक सख्त है, पर दिल छू जाए तो काम दे देता है।”
अगले दिन राधिका उसी कंपनी के गेट पर थी। दिल धड़क रहा था, आँखों में डर भी था और उम्मीद भी। रिसेप्शन पर जाकर बोली, “मैं नौकरी के लिए आई हूँ, प्लीज मालिक से मिलने दीजिए।” रिसेप्शनिस्ट ने शक की नजरों से देखा, “मैडम, हमारे बॉस बहुत सख्त हैं, पता नहीं रखेंगे भी या नहीं।” लेकिन कुछ मिनट बाद उसे अंदर बुला लिया गया।
केबिन का दरवाजा खुला और सामने गोपाल था—उसका पूर्व पति। वक्त जैसे थम गया। राधिका के हाथ में पकड़ा बायोडाटा काँपने लगा। गोपाल ने चश्मा उतारकर ऊपर से नीचे तक देखा, “तुम?” आवाज में हैरानी कम, ठंडापन ज्यादा था। राधिका ने गहरी साँस ली, “हाँ, नौकरी के लिए आई हूँ।” गोपाल ने कुर्सी पर पीछे झुकते हुए धीमी हँसी छोड़ी, “इस हालत में?” उसकी नजर राधिका के पेट पर थी।
कुछ पलों का सन्नाटा। राधिका ने जवाब दिया, “क्योंकि मेरे पेट का बच्चा मोहताज नहीं होगा और मैं भी नहीं।” गोपाल ने बायोडाटा देखा, “यहाँ सख्त नियम हैं, पूरी तरह फिट होना पड़ता है।” राधिका ने सीधा कहा, “मैं बीवी बनकर नहीं, इंसान बनकर आई हूँ। बस काम चाहिए।” गोपाल के चेहरे पर सख्ती थी, लेकिन दिल में कहीं हल्की सी चुभन भी। वह कुर्सी से उठा, खिड़की की तरफ चला गया, बारिश को देखता रहा। फिर धीरे से बोला, “एक हफ्ते का ट्रायल दूँगा। अगर काम संभाल लिया तो रह सकती हो।”
राधिका ने हल्की मुस्कान दी, “मैं सिर्फ हफ्ता नहीं, पूरी जिंदगी संभाल सकती हूँ।” ऑफिस से निकलते वक्त उसके कदम भारी थे, लेकिन दिल में आग थी। यह नौकरी अब सिर्फ कमाई का जरिया नहीं, इज्जत की लड़ाई थी। अगले दिन ऑफिस में सबकी नजरें उसके पेट पर थी। कुछ कर्मचारी फुसफुसा रहे थे, “यह प्रेग्नेंट है, काम कैसे करेगी?” HR मैनेजर ने ठंडे स्वर में कहा, “मैडम, आपको फाइल करनी है और मीटिंग के लिए डाटा तैयार करना है।” कुर्सी पर बैठते ही पीठ में दर्द उठा, लेकिन राधिका ने बिना शिकायत काम शुरू कर दिया।
दोपहर में वाटर कूलर पर पानी पीने गई तो जूनियर स्टाफ ने ताना मारा, “दीदी, घर पर आराम करने का टाइम नहीं मिला क्या?” राधिका ने मुस्कुराकर कहा, “आराम तो जिंदगी में बाद में भी हो सकता है, इज्जत कमाने का टाइम अभी है।” शाम को गोपाल अपने केबिन से निकला, राधिका के टेबल के पास आकर खड़ा हुआ। देखा, सारी फाइलें करीने से लगी हैं, डाटा तैयार है। “लगता है, मेहनत की है,” गोपाल ने अनजाने में थोड़ा नरम स्वर में कहा। “मेहनत तो करनी ही पड़ेगी, बच्चा मुझे देखकर कहे कि उसकी माँ हार मानने वालों में नहीं है।” राधिका ने सीधा जवाब दिया।
दिन के अंत में मीटिंग थी। गोपाल ने डाटा प्रेजेंट किया, क्लाइंट ने कहा, “इंप्रेसिव वर्क, किसने तैयार किया?” गोपाल ने हल्की आवाज में कहा, “राधिका।” कमरे में तालियाँ बजी, राधिका की आँखें भर आईं। लेकिन यह सिर्फ पहला दिन था, पहली छोटी सी जीत।
अगले दिन गोपाल ने ऐसा काम दिया जो सबसे मुश्किल था—आउटडोर प्रोजेक्ट, जिसमें घंटों खड़े रहना, बारिश-धूप झेलना था। HR ने कहा, “मैडम, आज आपको साइट विजिट करनी है।” राधिका समझ गई, यह गोपाल की परीक्षा है। उसने सिर हिलाया, “ठीक है।” इवेंट सिटी के सबसे बड़े आउटडोर हॉल में थी। तेज धूप, पेट का बोझ, लेकिन राधिका ने रुकना मंजूर नहीं किया। हर स्टॉल पर जाकर वर्कर से बात की, सामान चेक किया, टाइम नोट किया। दोपहर में एक वर्कर बोला, “मैडम, बैठ जाइए, आपकी हालत में इतना काम ठीक नहीं।” राधिका ने मुस्कुराकर कहा, “अगर मैं बैठ गई, तो मेरे बच्चे को कौन बताएगा कि उसकी माँ ने हार मान ली थी।”
शाम को इवेंट परफेक्ट था। क्लाइंट ने कहा, “यह किसने मैनेज किया?” गोपाल ने कहा, “राधिका।” तालियाँ बजी, गोपाल की नजर में गर्व था। रात में ऑफिस में सब चले गए, राधिका फाइलें समेट रही थी। गोपाल आया, “तुमने आज अच्छा काम किया।” राधिका ने बिना देखे जवाब दिया, “यह नौकरी मुझे जरूरत से मिली है, एहसान से नहीं।” गोपाल ने धीमे स्वर में कहा, “तुम्हें घर छोड़ दूँ?” राधिका ने कहा, “मैं घर खुद जा सकती हूँ, अब मैं किसी पर बोझ नहीं।”
कंपनी को करोड़ों का कॉन्ट्रैक्ट चाहिए था, लेकिन क्लाइंट मुश्किल था। गोपाल ने टीम से पूछा, “यह प्रेजेंटेशन कौन देगा?” सब पीछे हट गए। राधिका ने कहा, “मैं दूँगी।” मीटिंग में राधिका ने लैपटॉप खोला, “सर, यह सिर्फ एक प्रोडक्ट नहीं, एक जिम्मेदारी है।” उसकी आवाज में भरोसा था। क्लाइंट ने कहा, “मिस राधिका, आपने मुझे विज़न बेचा है। डील पक्की।” तालियाँ गूंज उठीं। गोपाल के चेहरे पर मुस्कान थी।
एक दिन ऑफिस कैफे में विक्रम अरोड़ा—लंदन से आया नया लीडर—ने राधिका से कहा, “आप बहुत स्ट्रांग हैं।” राधिका ने हँसते हुए कहा, “अगर खुद नहीं खड़े होंगे तो कोई खड़ा नहीं करेगा।” विक्रम की आँखों में चमक थी, गोपाल दूर से देख रहा था। राधिका का बेटा एक साल का हुआ, विक्रम भी पार्टी में आया, बेटे को गिफ्ट दिया। गोपाल को यह दृश्य चुभ गया। पार्टी के बाद गोपाल ने कहा, “राधिका, मैं तुम्हें खोना नहीं चाहता।” राधिका ने जवाब दिया, “यह मेरी जिंदगी है, मुझे वो इंसान चाहिए जो अच्छे-बुरे वक्त में साथ दे।”
कुछ हफ्ते बाद एक तूफानी रात, राधिका का बेटा तेज बुखार में तप रहा था। विक्रम लंदन में था, राधिका ने गोपाल को फोन किया। गोपाल ने बिना देर किए बेटे को अस्पताल पहुँचाया। डॉक्टर ने कहा, “अगर एक घंटा और लेट होते तो स्थिति बिगड़ सकती थी।” हॉस्पिटल में राधिका ने कहा, “रिश्ता वही सच्चा होता है, जो मुश्किल वक्त में बिना बुलाए साथ खड़ा हो।”
कुछ महीने बाद, एक छोटी सी शादी—बस परिवार, कुछ दोस्त और छोटा सा बच्चा। विक्रम भी आया, मुस्कुराकर कहा, “तुमने सही फैसला लिया, खुश रहो।” गोपाल ने राधिका से कहा, “मुझे माफ करो, भरोसा दो।” राधिका ने कहा, “भरोसा बनाना वक्त लेता है, लेकिन अब हम साथ हैं।”
अब राधिका कंपनी की क्रिएटिव हेड थी, गोपाल उसका सम्मान करता था। दोनों ने मिलकर नए प्रोजेक्ट्स किए, बेटे को प्यार दिया। राधिका ने साबित कर दिया कि वह बोझ नहीं, ताकत है। प्यार और भरोसा ही हर रिश्ते की असली नींव है।
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