चौराहे पर दरोगा की अकड़ ढही… सामने खड़ा था माँ का वीर बेटा आर्मी ऑफिसर!.
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चौराहे पर दरोगा की अकड़ ढही – माँ के वीर बेटे की इज्जत की लड़ाई
चिलचिलाती दोपहर थी। सड़क किनारे सब्जियों की ताजगी की खुशबू हवा में घुली थी। सरोज देवी अपने छोटे से ठेले पर ताजातरीन सब्जियां सजा रही थीं। उनके माथे पर पसीना था, लेकिन चेहरे पर संतुष्टि थी। यही ठेला उनकी रोजीरोटी थी, इसी से वे अपने बेटे अर्जुन की पढ़ाई और घर का खर्च चलाती थीं।
सरोज देवी का बेटा अर्जुन वर्मा इस समय सैकड़ों किलोमीटर दूर सीमा पर देश की रक्षा कर रहा था। आर्मी ऑफिसर अर्जुन के चेहरे पर सख्ती और आंखों में देशभक्ति की चमक थी। माँ की मेहनत और बेटे की जिम्मेदारी दोनों अपने-अपने मोर्चे पर डटे थे।
लेकिन एक दिन सब बदल गया। दरोगा मनोहर शुक्ला अपनी अकड़ और रुतबे के साथ मोटरसाइकिल से उतरा। उसकी नजर सीधे सरोज के ठेले पर पड़ी। भीड़ में सन्नाटा छा गया। लोगों ने फुसफुसाना शुरू किया – कुछ होने वाला है। मनोहर ने ठेले के पास आकर ऊंची आवाज में कहा, “ए औरत! तुझे दिखता नहीं, यहां ठेला लगाकर जाम करती है? यह सड़क कोई तेरे बाबू की नहीं है। यहां मेरा राज चलता है। एक मिनट में अंदर करवा दूंगा। समझी?”
सरोज देवी ने डरते-डरते हाथ जोड़कर कहा, “दरोगा साहब, बस थोड़ी देर की बात है। भीड़ कम होते ही मैं ठेला हटा दूंगी। रोजी-रोटी का सवाल है, मेरी मजबूरी समझिए।” लेकिन मनोहर के चेहरे पर कोई नरमी नहीं थी। उसने और ऊंची आवाज में कहा, “तुझे पता भी है मैं कौन हूं? एक बार कहा तो ठेला उठाना पड़ेगा, जुबान मत चलाना मेरे सामने।”
सरोज ने हिम्मत की और बोली, “साहब, यहां और भी लोग दुकान लगाते हैं, आप उन्हें क्यों नहीं हटाते? सिर्फ मुझे ही क्यों?” इतना सुनते ही मनोहर का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया। उसने बिना कुछ सोचे सरोज के गाल पर जोरदार थप्पड़ जड़ दिया। थप्पड़ की आवाज इतनी तेज थी कि भीड़ सन्न रह गई। ठेले पर रखे बर्तन खड़खड़ाकर हिल गए। मनोहर ने ठेले को जोर से लात मार दी। सब्जियां इधर-उधर बिखर गईं। सरोज के चेहरे पर दहशत की लकीरें खिंच गईं। भीड़ तमाशा देख रही थी, लेकिन कोई आगे नहीं आया। सब जानते थे मनोहर की शान और उसका रुतबा।
सरोज की आंखों से आंसू छलक पड़े। उनकी मेहनत, उनकी रोजीरोटी – सब एक झटके में मिट्टी में मिल गई। मनोहर बाइक स्टार्ट करते हुए बोला, “कल से अगर यह ठेला दिखा, तो सीधे थाने के अंदर कर दूंगा।” कहकर वह भीड़ को धक्का देता हुआ निकल गया।
लोग धीरे-धीरे बिखरने लगे। किसी ने अफसोस जताया, कोई खामोशी से चलता बना। सरोज जमीन पर बिखरी सब्जियां समेटने लगीं। उनकी आंखों से लगातार आंसू बह रहे थे, लेकिन होंठों से आवाज नहीं निकल रही थी।
उधर सीमा पर अर्जुन वर्मा अपनी ड्यूटी निभा रहा था। तभी उसके पास सुरेश नाम के पड़ोसी का फोन आया – “कल दरोगा मनोहर शुक्ला ने आपकी मां के साथ बहुत बुरा किया। थप्पड़ मारा, ठेला तोड़ दिया, धमकी देकर चला गया।” सुनते ही अर्जुन की आंखों में खून उतर आया। उसने छुट्टी की अर्जी डाली और घर लौट आया।
माँ ने बेटे को गले लगा लिया। आंखों में आंसू थे, लेकिन बेटे को देखकर चेहरा खिल उठा। अर्जुन ने धीरे से कहा, “माँ, मैं आ गया।” सरोज ने सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, “बेटा, दरोगा से पंगा मत लेना, वह खतरनाक आदमी है।” अर्जुन के मन में यह बात गहराई तक बैठ चुकी थी कि जिसने उसकी मां को रुलाया है, उसे हिसाब जरूर देना होगा।
अर्जुन ने एक अनोखा फैसला लिया। वह आर्मी वर्दी में नहीं, बल्कि साधारण कपड़ों में अपनी मां के साथ ठेले पर बैठ गया। लोग हैरान थे – यह नौजवान कौन है? किसी को पता नहीं था कि यही अर्जुन है, जो सीमा पर देश की रक्षा करता है।
दोपहर फिर वही भीड़। तभी दूर से बाइक की आवाज गूंजी। दरोगा मनोहर शुक्ला आ गया। उसने ठेले पर खड़े होकर चिल्लाया, “ए औरत! कल क्या कहा था, भूल गई क्या? ठेला हटा ले। आज फिर आ गई। बड़ी अकड़ है तेरे अंदर।” सरोज सहमी, लेकिन अर्जुन ने कदम आगे बढ़ाया। उसने शांत स्वर में कहा, “दरोगा साहब, आप किसी के साथ ऐसी बदतमीजी नहीं कर सकते। ठेला लगाने से आपको क्या परेशानी है?”
मनोहर ने अर्जुन की कॉलर पकड़ ली और गुर्राते हुए बोला, “तू मुझे समझाएगा? जानता है मैं कौन हूं?” फिर गुस्से में एक जोरदार थप्पड़ अर्जुन के चेहरे पर जड़ दिया। भीड़ में सनसनी फैल गई। लेकिन अर्जुन ने कोई जवाब नहीं दिया, सिर्फ मां की तरफ देखा और चुपचाप ठेले के पास खड़ा हो गया। मनोहर अकड़ते हुए चला गया।
अर्जुन ने ठान लिया था कि इस थप्पड़ का जवाब मिलेगा, लेकिन कानून के दायरे में रहकर। अगली सुबह अर्जुन साधारण कपड़े पहनकर थाने पहुंचा। सिपाही ने पूछा, “किधर जा रहे हो?” अर्जुन ने कहा, “रिपोर्ट लिखवाने आया हूं। दरोगा मनोहर शुक्ला ने मेरी मां के साथ बदतमीजी की है।” सिपाही उसे एसएचओ के कमरे में ले गया। अर्जुन ने सारी बात बताई। एसएचओ ने लंबी सांस लेकर कहा, “रिपोर्ट तो लिख देंगे, लेकिन खर्चा आएगा।” अर्जुन ने हैरानी से कहा, “रिपोर्ट तो फ्री में लिखी जाती है, 5000 किस बात के?” एसएचओ ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया, “यह दुनिया ऐसे ही चलती है। काम कराना है तो कीमत चुकानी पड़ेगी।”
अर्जुन बाहर आया, दरवाजे पर मनोहर मिल गया। मनोहर ताना मारते हुए बोला, “क्या हुआ? रिपोर्ट लिखवा ली या जेब खाली हो गई?” अर्जुन ने घूरते हुए कहा, “जिस तरह से तुमने मेरी मां के साथ किया है, उसका हिसाब तुम्हें लिया जाएगा।” मनोहर बोला, “कानून का हिसाब? तेरी औकात क्या है? जा बेटा, घर जा और अपनी मां के आंसू पोछ। यहां तेरी दादागिरी नहीं चलेगी।” इतना कहकर उसने अर्जुन को धक्का दिया और चला गया।
मोहल्ले के कुछ नौजवान अर्जुन के पास आए – “भाई, हम सब तेरे साथ हैं। उस दरोगा ने सालों से हमें दबा रखा है। अगर तू खड़ा होगा तो हम सब तेरे पीछे रहेंगे।” अर्जुन ने कहा, “ध्यान रखना, जो भी होगा कानून के खिलाफ नहीं होगा। लेकिन अन्याय का हिसाब जरूर होगा।”
शाम को खबर आई कि मनोहर ने फिर एक ठेले वाले को पीट दिया है। अर्जुन मौके पर पहुंचा। देखा कि मनोहर एक गरीब आदमी के ठेले को लात मार रहा है। अर्जुन ने पहली बार सीधे मनोहर की कलाई पकड़ ली। भीड़ सन्न रह गई। मनोहर छूटने की कोशिश करने लगा, लेकिन अर्जुन की पकड़ लोहे जैसी थी। अर्जुन ने उसकी आंखों में आंखें डालकर कहा, “मैं वही हूं जिसकी मां के आंसू तूने देखे थे। अब यह इलाका तेरी गुंडागर्दी और नहीं सहेगा।” भीड़ में हलचल मच गई। पुलिस को फोन कर दिया गया। भीड़ अर्जुन के साथ खड़ी हो गई। माहौल बिगड़ गया, थाने से फोर्स आना पड़ा। पुलिस ने दोनों को अलग किया, लेकिन यह घटना मनोहर के अहंकार पर गहरी चोट कर गई।
अर्जुन ने तय कर लिया कि वह खामोश नहीं बैठेगा। गांव की चौपाल पर लोगों को इकट्ठा किया। “अगर आज आवाज नहीं उठाई तो कल हमारी बारी होगी। हमें सच को सामने लाना होगा और इसके लिए हमें एकजुट होना होगा।” लोग असमंजस में थे, लेकिन धीरे-धीरे युवक आगे आए – “हम तुम्हारे साथ हैं।”
मनोहर ने रात को अपने आदमियों से अर्जुन के घर पत्थरबाजी करवाई। बच्चे डर गए, माहौल दहशत से भर गया। लेकिन अर्जुन डरा नहीं। उसने दरवाजा खोलकर कहा, “अगर हिम्मत है तो सामने आओ।” कोई सामने नहीं आया।
अगली सुबह अर्जुन सीधे थाने गया। मनोहर बोला, “आ गया तू? गांव वालों को भड़काने का काम कर रहा है? यह तेरी फौज नहीं है।” अर्जुन बोला, “मैं किसी को भड़का नहीं रहा, बस सच बोल रहा हूं। तुम वर्दी का इस्तेमाल जुल्म के लिए कर रहे हो।” मनोहर ने सिपाहियों को आदेश दिया – “अर्जुन को बाहर निकाल दो।” जाते-जाते अर्जुन ने कहा, “जिस दिन तुम्हारा सच सामने आएगा, तुम्हारी वर्दी तुम्हें बचा नहीं पाएगी।”
मनोहर ने गांव के गरीब परिवार के बेटे को चोरी के झूठे केस में फंसा दिया। अर्जुन ने गांव वालों को इकट्ठा किया – “अगर आज हम चुप रहे तो कल हमारे बच्चों की भी यही हालत होगी। मनोहर चाहता है कि हम डर कर जीते रहें। अब उसका असली चेहरा सामने लाना है।” लोगों ने सवाल किया, “हम करेंगे क्या? उसके पास ताकत भी है और सरकारी मोहर भी।” अर्जुन ने कहा, “सच सबसे बड़ी ताकत है। हमें बस इसे सामने लाने का तरीका चाहिए।”
अर्जुन ने युवाओं से कहा कि मनोहर की हर हरकत पर नजर रखो, गवाही इकट्ठी करो। मनोहर को पता चल गया कि अर्जुन उसकी जड़ें खोद रहा है। उसने कुछ लोगों को भेजा, जो रात के अंधेरे में अर्जुन पर हमला करने वाले थे। अर्जुन अकेला खेत जा रहा था, चारों ओर से लोग घेरकर उस पर टूट पड़े। अर्जुन ने सैन्य ट्रेनिंग के चलते कुछ वार रोके, लेकिन दुश्मन ज्यादा थे। गांव के युवक पहुंचे, हमलावरों को खदेड़ दिया। अर्जुन घायल हुआ, लेकिन उसकी आंखों में दृढ़ता थी।
गांव के बुजुर्ग बोले, “बेटा, हम बूढ़े हो चुके हैं, अब लड़ने की ताकत नहीं बची। लेकिन तू अगर आगे बढ़ेगा तो हम तेरा साथ देंगे।” अर्जुन ने कहा, “आपका आशीर्वाद ही सबसे बड़ी ताकत है। असली लड़ाई सबूत और सच से जीतनी है।”
युवाओं ने मनोहर की गतिविधियों पर नजर रखी। पता चला कि मनोहर रात में चोरी छिपे ट्रकों को गांव से गुजरने देता है, जिनमें अवैध सामान होता है। अर्जुन ने यह सबूत इकट्ठा किए, तस्वीरें और वीडियो बनाए। मनोहर को शक हो गया, उसने पंचायत बुलाई – “यह सब फौजी अर्जुन के कारण हो रहा है। अगर यह चला गया तो सब ठीक हो जाएगा।” अर्जुन बोला, “अगर मेरी वजह से मुसीबत आ रही है तो मैं चला जाता हूं, लेकिन सच को कोई रोक नहीं सकता।”
रात को बच्चे अर्जुन के पास आए – “चाचा, अगर आप चले गए तो मनोहर हमें खा जाएगा। आप ही हमारी ढाल हो।” अर्जुन का दिल पसीज गया, उसने ठान लिया कि चाहे कितनी भी मुश्किल आए, पीछे नहीं हटेगा।
मनोहर ने नकली वारंट तैयार करवाया, अर्जुन को गिरफ्तार करवा दिया। अर्जुन ने कहा, “अगर मुझे पकड़कर तुम्हें लगता है कि सच दब जाएगा तो ले जाओ।” गांव वाले सहम गए, महिलाएं रोने लगीं, लेकिन अर्जुन की आंखों में आत्मविश्वास था।
युवाओं ने सबूत इकट्ठा किए, फाइल और पेनड्राइव जिला अधिकारी को सौंप दी। अधिकारी डर रहे थे, लेकिन सबूत इतने ठोस थे कि उन्हें कार्रवाई करनी पड़ी। प्रशासन की गाड़ियां गांव में आईं, मनोहर के सामने दस्तावेज रखे – “अवैध व्यापार, रिश्वतखोरी, धमकाने जैसे अपराध। अब तुम्हारी असली जगह जेल है।”
गांव में पहली बार आजादी की हवा चली। मनोहर को हथकड़ियां लगीं, महिलाएं पत्थर फेंकने लगीं, बच्चे नारे लगाने लगे, बुजुर्गों की आंखों में सुकून के आंसू थे। प्रशासन ने अर्जुन को भी रिहा कर दिया। गांव लौटा तो लोग उसे देखने उमड़ पड़े। अर्जुन ने कहा, “यह जीत मेरी नहीं, तुम्हारी है। अगर तुम सब मिलकर ना खड़े होते तो सच सामने नहीं आता।”
गांव में फिर शांति लौट आई। मनोहर और उसके गुर्गों को जेल भेज दिया गया। अर्जुन ने शिक्षा और न्याय की नींव रखी – “हमारी असली ताकत एकता है। अगर हम मिलकर सच का साथ देंगे तो कोई भी हमें कभी दबा नहीं पाएगा।”
सूरज ढलते समय जब गांव के चौक में लोग इकट्ठा हुए तो सबकी नजर अर्जुन पर थी। उसने कहा, “आज से यह गांव डर से आजाद है। अंधेरा चाहे कितना भी गहरा क्यों न हो, एक छोटी सी रोशनी भी उसे मिटा देती है।”
कहानी यहीं खत्म होती है, लेकिन इससे मिलने वाला सबक हमेशा जिंदा रहेगा – अन्याय के खिलाफ अगर हम सब साथ खड़े हो जाएं तो सबसे बड़ा जालिम भी हार मानने पर मजबूर हो जाता है।
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