छिपा हुआ जीनियस: जब सफाईकर्मी ने हल किया असंभव सवाल

अर्जुन 22 साल का युवक था, जिसने गरीबी और अकेलेपन में अपना जीवन बिताया। बचपन में ही माता-पिता को खो दिया और हालात ने उसे मज़बूर कर दिया कि वह दिल्ली की गलियों में मजदूरी करके अपना पेट पाले। किस्मत ने उसे आईआईटी दिल्ली की इमारतों में सफाई का काम दिया। जहां छात्र किताबों और लेक्चर में व्यस्त रहते थे, वहीं अर्जुन झाड़ू और बाल्टी उठाए गलियारों की सफाई करता। लेकिन उसके भीतर एक ऐसा दिमाग छिपा था, जो जीनियस से कम नहीं था।

जब आईआईटी के प्रोफेसर विक्रम सिंह ने छात्रों को एक बेहद कठिन गणितीय सवाल हल करने की चुनौती दी, तो पूरी यूनिवर्सिटी उस पर माथापच्ची कर रही थी। अर्जुन ने चुपचाप उस सवाल को हल कर दिया। प्रोफेसर हैरान रह गए। धीरे-धीरे अर्जुन की असाधारण प्रतिभा सामने आने लगी। मगर उसका अतीत और उसका गुस्सा बार-बार उसके रास्ते में रुकावट बनते।

कभी पुराने दुश्मनों से भिड़ंत के चलते जेल की सलाखों के पीछे जाना पड़ा, तो कभी अदालत में खुद अपना केस लड़ना पड़ा। कोर्ट में जब उसने अपने ज्ञान और आत्मविश्वास से सबको चौंका दिया, तब भी उसका अतीत उसे जेल की सजा दिला गया।

लेकिन यहीं से अर्जुन की जिंदगी बदलने लगी। प्रोफेसर विक्रम ने उसे एक शर्त पर जेल से बाहर निकाला—कि वह पढ़ाई करेगा और एक मनोचिकित्सक से थेरेपी लेगा। डॉक्टर अमित शर्मा ने उसकी जिंदगी की गहराइयों में झांक कर उसके घावों को छुआ। अर्जुन ने पहली बार अपना दर्द किसी से साझा किया और अपने अतीत को स्वीकारना शुरू किया।

साथ ही उसकी मुलाकात प्रिया से हुई, जिसने उसे सच्चे रिश्तों और प्यार की अहमियत समझाई। लेकिन डर और आत्मग्लानि के कारण अर्जुन ने खुद को उससे दूर कर लिया। उसका मन बार-बार सवाल करता—क्या वह अपने सपनों और रिश्तों का हकदार है?

धीरे-धीरे अमित और प्रोफेसर के मार्गदर्शन से अर्जुन ने अपने डर को पार करना शुरू किया। उसने समझा कि किताबें ज्ञान देती हैं, लेकिन जिंदगी का असली सबक दर्द, रिश्तों और संघर्ष से मिलता है।

कहानी का यह मोड़ अर्जुन के लिए निर्णायक था—क्या वह अपनी असाधारण प्रतिभा को दुनिया के सामने लाकर इतिहास रचेगा, या फिर अपने डर और अतीत के बोझ तले दबकर रह जाएगा?

यह सिर्फ अर्जुन की नहीं, बल्कि उन सभी की कहानी है जो अपनी परिस्थितियों से लड़ते हुए सपनों को जीने की हिम्मत जुटाते हैं।

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