जब इंस्पेक्टर ने आम लड़की समझकर IPS मैडम को थप्पड़ मारा, फिर जो हुआ उसने पूरे सिस्टम को हिला दिया…
कस्बे की सुबह थी, जब आर्मी कैप्टन रीता चौहान अपनी मां विमला देवी को लेकर पुरानी स्कूटी पर बाजार जा रही थी। उनकी बड़ी बहन, मीरा चौहान, इस कस्बे की आईपीएस थी। विमला देवी के चेहरे पर गर्व और खुशी दोनों साफ दिख रहे थे। उन्होंने अकेले ही अपनी दोनों बेटियों को पाल-पोषकर बड़ा किया था। मीरा का काम इतना व्यस्त था कि घर आने का समय कभी-कभी ही मिल पाता था।
जैसे ही रीता और उसकी मां कस्बे के बाहरी इलाके में पहुंचीं, उन्होंने देखा कि सड़क पर एक पुलिस बैरियर लगा हुआ था। जीप के बोनट पर पैर फैलाए इंस्पेक्टर विमल सिंह बैठा था, जबकि उसके दो हवलदार दीपक और सोनू लाठियों से आने-जाने वालों का चालान काट रहे थे और उनसे पैसे वसूल कर रहे थे।
रीता ने अपनी स्कूटी धीमी की और बैरियर पार करने की कोशिश की। तभी इंस्पेक्टर विमल सिंह ने हाथ उठाकर गरजते हुए कहा, “ए लड़की, स्कूटी साइड में लगा। कहां भाग रही है? बहुत जल्दी है क्या?”
रीता ने अपनी मां के साथ स्कूटी रोकी और बिना डर के बोली, “जी साहब, हम घर के लिए जरूरी सामान लेने जा रहे हैं। अगर कागज देखने हैं तो हमारे पास सारे कागज हैं।”
इंस्पेक्टर विमल सिंह ने उनकी ओर देखकर ठहाका लगाया। “ओ हो, बड़ी बहादुर बन रही है। और तेरे पीछे यह बूढ़ी कौन है? कहां से आ रही है?” एक हवलदार दीपक हंसते हुए बोला, “सर, शायद कोई नाटक कर रही है। चेहरे देखो, बड़ी शरीफ बनने का नाटक कर रही है।”
दूसरे हवलदार सोनू ने और भद्दे अंदाज में कहा, “सर, इस बुजुर्ग और लड़की की तो शक्ल ही देख लो। चोरी छिपे का मास्टर लग रही है।”
“बुजुर्ग” यह शब्द रीता के दिल में जैसे चुभ गया। उसकी आंखें गहरी हो गईं। उसने गहरी सांस लेकर जवाब दिया, “जुबान संभालकर बात कीजिए। यह मेरी मां है। हमारे पास सारे कागज मौजूद हैं। आप सिर्फ अपना काम करिए। किसी के बारे में ऐसे शब्द बोलना पुलिस वालों के मुंह से शोभा नहीं देता।”
इतना सुनते ही इंस्पेक्टर विमल सिंह गुस्से में आगबबूला हो गया और बोला, “अबे चुप! तेरी जैसी लड़की हमें बोलना सिखाएगी। तू हमें कानून मत सिखा। हमें अच्छी तरह पता है कौन शरीफ है और कौन नहीं। निकाल कागज।”
रीता ने स्कूटी की डिग्गी से लाइसेंस और कागज निकाले और इंस्पेक्टर को दिए। लेकिन विमल सिंह ने कागजों को बिना देखे हवा में उछाल दिया और गुर्राया, “अबे मूर्ख लड़की, हमें उल्लू बना रही है। नकली कागज दिखाकर सोच रही है कि ऐसे ही निकल जाएगी। हमसे चालाकी कर रही है।”
रीता को गुस्सा आया और बोली, “सर, हमारे चालान ही काट लीजिए। इस तरह से हमारे साथ बदतमीजी मत कीजिए।”
इंस्पेक्टर विमल सिंह ने आगे बढ़कर बिना किसी झिझक के एक जोरदार थप्पड़ रीता के चेहरे पर जड़ दिया। उसकी आवाज इतनी तेज थी कि पूरी सड़क पर सन्नाटा छा गया। रीता का सिर झटक गया और आंखों में आंसू तैर गए। एक आर्मी ऑफिसर, जिसने सीमा पर दुश्मनों की गोलियों का सामना किया था, आज अपने ही कस्बे में वर्दी पहने गुंडों के हाथों अपमानित हो रही थी।
उसकी मां विमला देवी चीख पड़ी और आगे बढ़कर बोली, “अरे मेरी बच्ची को क्यों मारा तुमने? भगवान से तो डरो!”
विमल सिंह ने उन्हें धक्का देते हुए चिल्लाया, “चुप बूढ़ी! ज्यादा बोलेगी तो तुझे भी ऐसे ही थप्पड़ मिल जाएगा।”
हवलदार दीपक और सोनू दोनों शैतानी हंसी-हंसते हुए बोले, “हां हां, बड़ी तेज बन रही थी। देखो सारी तेजी निकल गई।”
अब रीता का खून खौल उठा। उसका हाथ थप्पड़ का जवाब देने के लिए उठा पर वहीं रुक गया। वह जानती थी कि अगर उसने इन गुंडों पर हाथ उठाया तो मामला और बिगड़ जाएगा। उसकी आंखें अंगारों की तरह जल रही थीं, पर होंठ बंद थे।
इंस्पेक्टर विमल सिंह चिल्लाते हुए बोला, “इन दोनों को जीप के अंदर ठूंस दो और ले चलो थाने। वहां हम बताएंगे कि पुलिस की पावर क्या होती है।”
गुंडों की तरह तीनों पुलिसकर्मी उन्हें धक्के देकर जीप में ठूंसने लगे। सड़क पर तमाशा देखने वालों की भीड़ जमा हो गई थी। कुछ लोग मोबाइल निकालकर वीडियो बना रहे थे, पर किसी की हिम्मत नहीं हुई कि आगे बढ़कर बोल सके।
इसी भीड़ में एक नौजवान लड़का चुपचाप पूरी घटना रिकॉर्ड कर रहा था। उसे अंदाजा भी नहीं था कि उसका यह वीडियो आने वाले वक्त में पुलिस की गुंडागर्दी के खिलाफ तूफान खड़ा करने वाला है।
जीप में रीता अपनी मां को सीने से लगाकर बैठी थी। विमला देवी रो रही थी और बेटी के चेहरे पर पड़े थप्पड़ के निशान देखकर सिसक रही थी। रीता की आंखें आसमान की तरफ टिकी थीं। चेहरे पर खामोशी थी लेकिन दिल में आग जल चुकी थी। वह जानती थी कि यह अपमान चुपचाप सहने वाली नहीं है।
थाने पहुंचते ही विमल सिंह मूछों पर ताव देता हुआ गरज उठा, “अबे हवालत में ठूस दो इन दोनों को। सुबह तक सारी अकड़ निकाल देंगे। फिर देखेंगे इनकी औकात।”
हवलदार दीपक और सोनू ने धक्के मारकर मां-बेटी को एक बदबूदार कोठरी में बंद कर दिया। दरवाजा बंद होते ही कोठरी की दीवारों में उनकी सिसकियों की गूंज गूंजने लगी। लेकिन इन पुलिस वालों को इस बात का पता नहीं था कि बाहर एक ऐसा तूफान था जिसकी कान में थोड़ी सी भी भनक लग गई तो उसके चपेट में थाने समेत इनकी पूरी जिंदगी तहस-नहस कर देने वाली थी।
विमला देवी ने रोते हुए कहा, “बिटिया, यह लोग हमें कहां बंद कर दिए? अब क्या होगा?” रीता ने अपनी मां को गले से लगा लिया। उसकी आंखों में भी आंसू थे, पर आवाज में फौलादी मजबूती थी। “मां, तुम चिंता मत करो। मैं हूं ना, बस थोड़ी देर की बात है, सब ठीक हो जाएगा।”
थाने में एक चाय वाला लड़का जो आईपीएस ऑफिस में भी चाय पहुंचाया करता था, उसने रीता को पहचान लिया। वह कांप गया। “अरे, यह तो आर्मी वाली मैडम है। आईपीएस मैडम की छोटी बहन।” लेकिन इंस्पेक्टर के खौफ से वह कुछ बोल नहीं पाया और चुपचाप वहां से खिसक गया।
थोड़ी देर बाद एक सब इंस्पेक्टर शराब के नशे में धुत होकर हवालत के पास आया। हाथ में बोतल लहराते हुए बोला, “बे कौन हो? तुम दोनों बड़ी भई भी बनी फिरती हो। बताती क्यों नहीं अपना असली नाम?”
रीता ने उसकी तरफ नफरत से देखा पर कुछ बोली नहीं। वह शराबी दरोगा कुछ उल्टा सीधा बकता हुआ चला गया। धीरे-धीरे रात गहराने लगी। हवालत के अंदर मच्छरों की भिनभिनाहट, सीलन की बदबू और घुटन बढ़ती जा रही थी। विमला देवी को अस्थमा की शिकायत थी। उस घुटन भरे माहौल में उनका दम घुटने लगा। वह जोर-जोर से खांसने लगी।
रीता घबरा गई। उसने दरवाजा पीटना शुरू कर दिया। “कोई है, दरवाजा खोलो। मेरी मां की तबीयत खराब हो रही है। प्लीज, किसी डॉक्टर को बुलाइए।” उसने बार-बार आवाज दी। पर उसकी आवाज थाने के शोर में दब कर रह गई। बाहर से एक सिपाही की आवाज आई, “अबे चुपचाप पड़ी रह। ड्रामा मत कर। सुबह से पहले कोई दरवाजा नहीं खुलेगा।”
पूरी रात रीता अपनी मां का सिर गोद में रखकर बैठी रही। वह अपनी मां की पीठ सहलाती रही। उन्हें हिम्मत देती रही। सुबह होते-होते उसकी आंखें रोश और बेबसी से लाल हो चुकी थीं। अभी तक कस्बे के किसी भी बड़े अधिकारी को खबर नहीं थी कि एक आर्मी ऑफिसर और आईपीएस की बहन की मां एक अंधेरी कोठरी में कैद है।
दूसरी तरफ कस्बा प्रशासन में हड़कंप मचना शुरू हो गया था। मीरा चौहान सुबह से अपनी मां और बहन को फोन कर रही थी। पर दोनों का फोन बंद आ रहा था। उसने अपने ड्राइवर को घर भेजा तो पता चला कि वे सुबह से ही बाहर निकली हैं और लौटी नहीं। मीरा का दिल किसी अनहोनी की आशंका से बैठने लगा।
तभी सोशल मीडिया पर वह वीडियो किसी ने पोस्ट कर दिया। पुलिस की गुंडागर्दी, मां-बेटी के साथ सरेआम बीच रास्ते पर बदसलूकी की और जीप में ठूंस कर ले जाया गया। वीडियो आग की तरह फैलने लगा। लोग पुलिस के खिलाफ गुस्से भरे कमेंट कर रहे थे।

यही वीडियो WhatsApp ग्रुप्स के जरिए घूमता हुआ मीरा के पीए के पास पहुंचा। उसने वीडियो देखा और उसके पैरों तले जमीन खिसक गई। उसने आईपीएस के केबिन का दरवाजा खटखटाया। मीरा उस वक्त एक जरूरी मीटिंग में थी। उसने इशारे से पीए को रोका। लेकिन पीए की आंखों में जो घबराहट थी, उसे देखकर मीरा ने मीटिंग रोक दी और पास वाले कमरे में गई और बोली, “क्या बात है, विकास? सब ठीक तो है?”
विकास ने लड़खड़ाती आवाज में कहा, “मैडम, एक वीडियो है।” मीरा ने फोन हाथ में लिया और वीडियो प्ले किया। जैसे-जैसे वीडियो आगे बढ़ा, मीरा के चेहरे का रंग बदलने लगा। उसकी शांत आंखों में पहले हैरानी, फिर गुस्सा और फिर एक भयानक तूफान उभर आया।
जब उसने इंस्पेक्टर विमल सिंह को अपनी फौजी बहन रीता के गाल पर थप्पड़ मारते देखा, तो उसके हाथ कांपने लगे। फोन उसके हाथ से छूटते-छूटते बचा। उसकी मां, उसकी प्यारी मां जिसे उसने कभी ऊंची आवाज में बात तक नहीं की थी। सड़क पर गिड़गिड़ा रही थी और उसकी छोटी बहन, उसकी लाडली रीता जो देश की शान थी, आज सड़क पर बेबस खड़ी थी।
मीरा की आंखों में आंसू भर आए। लेकिन उसने फौरन खुद को संभाला। वह एक आईपीएस थी। उसे इस वक्त भावनाओं में बहने का कोई हक नहीं था। उसके अंदर की बेटी और बहन तड़प रही थी। पर उसके अंदर का अवसर जाग चुका था। उसने अपने दांत भींचे। उसकी सांसें तेज हो गई थीं। उसने मीटिंग में मौजूद अफसरों से कहा, “यह मीटिंग यहीं खत्म होती है। आप सब जा सकते हैं।”
सबके जाने के बाद उसने अपने पीए से कहा, “विकास, पता लगाओ यह किस थाने का मामला है और मेरी मां और बहन इस वक्त कहां हैं। मुझे हर एक मिनट की रिपोर्ट चाहिए।” उसकी आवाज में जो ठंडक और गुस्सा था, उसे सुनकर पीए की रूह कांप गई। उसने समझा कि आज कस्बे में एक ऐसा तूफान आने वाला है जो कई लोगों की वर्दियां और कुर्सियां उड़ा देगा।
मीरा कुर्सी पर बैठ गई और सोचने लगी, “मेरी मां जिसने हमें पालने के लिए अपनी पूरी जिंदगी लगा दी और मेरी बहन जो देश के लिए जान हथेली पर रखकर घूमती है। उनके साथ यह सलूक आज इस कस्बे की आईपीएस होने का असली मतलब मैं इन वर्दी वाले गुंडों को बताऊंगी। आज इंसाफ होगा और ऐसा होगा कि उनकी आने वाली नस्लें भी याद रखेंगी।”
थाने के भीतर रात किसी भयानक सपने की तरह गुजरी थी। सुबह की पहली किरण जब हवालत की छोटी सी जाली से छनकर अंदर आई तो उसे कोई उम्मीद नहीं बल्कि और ज्यादा बेबसी मिली। विमला देवी की हालत अब और बिगड़ चुकी थी। उनका सांस लेना मुश्किल हो रहा था और वह लगभग बेहोश थीं। रीता ने उनका सिर अपने घुटनों पर रख रखा था। उसकी आंखें सूझकर लाल हो चुकी थीं। रात भर की मिन्नतों के बाद भी किसी ने एक गिलास पानी तक नहीं दिया था।
एक सिपाही पास से गुजरा। रीता ने फिर से हिम्मत जुटाई। “भाई साहब, प्लीज एक बार डॉक्टर को बुला दीजिए। मेरी मां की जान खतरे में है।”
सिपाही ने नफरत भरी नजर से उसे देखा। बोला, “हम अपराधियों के लिए डॉक्टर नहीं बुलाते। मर जाए तो एक गिनती कम होगी।”
यह शब्द रीता के दिल में किसी जहरीले खंजर की तरह उतर गए। उसे लगा जैसे किसी ने उसकी आत्मा पर चोट की हो। फिर भी वह चुप रही। उसकी आंखों में अब आंसू नहीं बल्कि एक फौजी का ठंडा गुस्सा था जो ज्वालामुखी की तरह फटने का इंतजार कर रहा था।
इसी बीच थाने के बाहर का माहौल बदलने लगा था। वह वायरल वीडियो अब केवल कस्बे में नहीं बल्कि पूरे प्रदेश में फैल चुका था। तमाम सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर लोग लिख रहे थे, “क्या यही है सिस्टम का असली चेहरा? अगर यह आईपीएस की फैमिली है तो आम आदमी का क्या होगा?”
मीडिया चैनलों को भी खबर लग चुकी थी। रिपोर्टर्स की गाड़ियां थाने के बाहर जमा होने लगीं। किसी को अंदर जाने की इजाजत नहीं थी। लेकिन कैमरे लगातार बाहर से हर हरकत को कैद कर रहे थे। थाने का इंस्पेक्टर विमल सिंह इस सब से बेखबर अपने ऑफिस में बैठा चाय की चुस्कियां ले रहा था। उसे लग रहा था कि उसने दो आवारा औरतों को सबक सिखाकर बड़ा कदम उठाया है।
तभी उसका मोबाइल बजा। स्क्रीन पर नाम चमक रहा था। ईएसपी साहब। उसने अकड़ कर फोन उठाया। “जय हिंद सर।” दूसरी तरफ से ईएसपी साहब की घबराई हुई और गुस्से से भरी आवाज आई, “विमल, तुम्हारे थाने में बीती रात कोई खास गिरफ्तारी हुई है?”
“क्या?” इंस्पेक्टर ने सीना चौड़ा करके कहा, “हां सर, दो औरतें पकड़ी थीं। स्कूटी पर थीं। अकड़ दिखा रही थीं। शक हुआ तो हवालत में डाल दिया। सुबह तक सारी गर्मी निकल जाएगी।”
ईएसपी की आवाज अब दहाड़ में बदल गई। “बर्बाद कर दिया तुमने। वह दो औरतें कोई और नहीं, इस कस्बे की आईपीएस मीरा चौहान की मां और उनकी आर्मी ऑफिसर बहन हैं। और वह वीडियो पूरे प्रदेश में घूम रहा है। मुख्यमंत्री तक बात पहुंच गई है। तुमने आईपीएस की फैमिली को हवालत में डाला और उनके साथ बदतमीजी की। थप्पड़ मारा। किस अधिकार से, बेवकूफ?”
इंस्पेक्टर विमल सिंह के हाथ से फोन लगभग छूट गया। उसके चेहरे का रंग उड़ गया। जैसे किसी ने उसका सारा खून निचोड़ लिया हो। उसने लड़खड़ाती आवाज में कहा, “सर, सर, हमें पता नहीं था। उन्होंने बताया नहीं सर, हमसे गलती हो गई। माफ कर दीजिए सर।”
ईएसपी ने चीखते हुए कहा, “तुम्हें अब जवाब मुख्यमंत्री और चीफ सेक्रेटरी को देना पड़ेगा। अभी इसी वक्त उन्हें बाहर निकालो और अगर उन्हें कुछ हुआ तो मैं तुम्हें जिंदा जमीन में गाड़ दूंगा।” फोन कट चुका था। इंस्पेक्टर विमल सिंह की दुनिया घूम गई थी। वह पागलों की तरह अपनी कुर्सी से उठा और हवालत की तरफ भागा। “चाबी लाओ। जल्दी खोलो दरवाजा।”
सिपाही दौड़ा-दौड़ा चाबी लेकर आया। दरवाजा खोला गया। अंदर का मंजर देखकर इंस्पेक्टर की रूह कांप गई। रीता नीचे जमीन पर बैठी थी। उसकी गोद में उसकी मां बेहोश पड़ी थी। इंस्पेक्टर दौड़ते हुए अंदर गया और हाथ जोड़कर गिड़गिड़ाने लगा, “मैडम, मैडम, हमको माफ कर दीजिए। हमें सच में नहीं पता था कि आप कौन हैं? आपने बताया क्यों नहीं?”
रीता ने कोई जवाब नहीं दिया। उसने बस अपनी मां की नब्ज़ टटोली। वह बहुत धीमी चल रही थी। उसने इंस्पेक्टर की तरफ ऐसी नजरें की कि वह कांप गया। “जल्दी एंबुलेंस बुलाओ।” उसकी आवाज में एक फौजी का हुक्म था।
इंस्पेक्टर ने कांपते हाथों से मोबाइल निकाला और एंबुलेंस को फोन किया। 5 मिनट के अंदर एंबुलेंस थाने पहुंच गई। विमला देवी को स्ट्रेचर पर लिटाया गया। रीता भी उनके साथ एंबुलेंस में बैठ गई। जैसे ही वह लोग थाने से बाहर निकले, मीडिया ने उन्हें घेर लिया। कैमरों की फ्लैशलाइट और सवालों की बौछार शुरू हो गई।
“मैडम, क्या यह सच है कि आपको पुलिस ने मारा और रात भर हवालत में रखा? क्या आप जानबूझकर अपनी पहचान छिपा रही थीं? क्या आप दोषियों के खिलाफ कार्रवाई करेंगी?”
रीता ने किसी सवाल का जवाब नहीं दिया। उसकी नजरें सिर्फ अपनी मां पर थीं। उसने बस इतना कहा, “पहले इन्हें अस्पताल ले चलिए, बाकी बातें बाद में।”
अस्पताल पहुंचते-पहुंचते विमला देवी की हालत और नाजुक हो गई। उन्हें सीधे आईसीयू में भर्ती किया गया। डॉक्टर ने बताया कि उन्हें घुटन और मानसिक आघात की वजह से सीवियर अस्थमा अटैक आया है। उनकी उम्र को देखते हुए स्थिति चिंताजनक है। यह सुनकर अब तक पत्थर बनी हुई रीता टूट गई। वह अस्पताल के कॉरिडोर में एक बेंच पर बैठकर अपने आंसुओं को रोकने की नाकाम कोशिश कर रही थी।
तभी वहां मीरा चौहान पहुंची। उसने अपनी बहन को इस हालत में देखा, तो दौड़कर उसे गले से लगा लिया। दोनों बहनें एक-दूसरे से लिपटकर रो पड़ीं। “दीदी, रीता, यह सब कैसे हुआ? तूने मुझे फोन क्यों नहीं किया?” मीरा ने सिसकते हुए पूछा।
रीता ने रोते हुए कहा, “दीदी, उन्होंने हमारा फोन छीन लिया था और मां… दीदी, मां को कुछ हो गया तो मैं खुद को कभी माफ नहीं कर पाऊंगी।”
मीरा ने अपनी बहन के आंसू पोछे। “कुछ नहीं होगा मां को और जिन्होंने यह किया है, उन्हें भी अब कुछ नहीं होगा। क्योंकि उनकी जिंदगी की सबसे बड़ी सजा अब शुरू होने वाली है।”
कुछ देर बाद ईएसपी, डीआईजी और कस्बे के तमाम बड़े अफसर अस्पताल पहुंचे। एसएसपी ने आगे बढ़कर हाथ जोड़े। “मैडम, हम बहुत शर्मिंदा हैं। आपकी पहचान ना जान पाना हमारी बहुत बड़ी भूल थी। हमने इंस्पेक्टर, दरोगा और दोनों हवलदारों को तुरंत सस्पेंड कर दिया है। एफआईआर भी दर्ज कर ली गई है।”
मीरा ने उनकी तरफ देखा। उसकी आंखों में आंसू नहीं बल्कि लावा दहक रहा था। “एसपी साहब, यह भूल नहीं गुनाह है और पहचान जानकर इज्जत देना अगर आपके सिस्टम की आदत है तो यह सिस्टम नहीं, गुलामी है। मेरी बहन ने अपनी पहचान इसलिए छिपाई थी ताकि वह देख सके कि आप लोग एक आम इंसान के साथ क्या करते हैं। और आज उसने वह देख लिया। मारपीट, गलत व्यवहार, अपमान और मौत के मुंह में धकेलना।”
एसपी ने सिर झुका लिया। “हमसे गलती हुई। मैडम, हमें माफ कर दीजिए।”
मीरा की आवाज सख्त हो गई। “माफी से मेरी मां ठीक नहीं हो जाएंगी। सुधार तब होगा जब आप समझेंगे कि पुलिस की ताकत वर्दी से नहीं, इंसानियत से होती है।”
तभी डॉक्टर ने आकर बताया कि विमला देवी की हालत अब स्थिर है। पर उन्हें कुछ दिन आईसीयू में रखना होगा। यह सुनकर दोनों बहनों ने राहत की सांस ली। उसी शाम मीरा ने अपने कार्यालय से एक स्पेशल प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाई।
मीरा खुद मीडिया के सामने आई और बोली, “हां, यह सच है कि कल रात मेरी मां और मेरी बहन के साथ पुलिस ने बदसलूकी की। लेकिन यह कहानी सिर्फ मेरी नहीं है। यह इस कस्बे के हर उस आम नागरिक की कहानी है जो रोज थानों में जिल्लत झेलता है। इसलिए आज मैं सिर्फ उन पुलिस वालों के खिलाफ नहीं बल्कि इस सड़े हुए सिस्टम के खिलाफ जंग का ऐलान कर रही हूं।”
“पूरे कस्बे की पुलिस को अब संवेदना और मानवता की ट्रेनिंग दी जाएगी। हर थाने का आकस्मिक निरीक्षण होगा और जहां भी ऐसी शिकायतें मिलेंगी, सिर्फ सस्पेंशन नहीं, सीधी बर्खास्तगी होगी।”
पूरा प्रदेश गूंज उठेगा। एक आईपीएस जिसने अपने परिवार के अपमान को सिस्टम सुधार का हथियार बना लिया था।
तो दोस्तों, यह कहानी केवल मनोरंजन और शिक्षा के उद्देश्य से बनाई गई है। इसमें दिखाए गए सभी पात्र, घटनाएं और संवाद काल्पनिक हैं। किसी भी वास्तविक व्यक्ति, संस्था या घटना से इनका कोई संबंध नहीं है। कृपया इसे केवल कहानी के रूप में देखें और इसका आनंद लें। हम किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाना नहीं चाहते।
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