जब इंस्पेक्टर ने DM को आम लड़की समझ कर थप्पड़ मारा फ़िर DM ने इंस्पेक्टर के साथ जो किया..

दोपहर के ठीक 12:00 बजे का समय था। जिले की डीएम प्रिया सिंह लाल रंग का सलवार सूट पहने बिल्कुल आम लड़की की तरह बाजार घूमने निकली थी। किसी को जरा भी अंदाजा नहीं था कि यह जिले की डीएम है। चलते-चलते उनकी नजर सड़क किनारे खड़े एक 55 साल के बुजुर्ग पर पड़ी जो एक छोटा सा गोले का ठेला लगाए खड़ा था। प्रिया को बचपन से ही गोले खाने का बेहद शौक था। बिना सोचे समझे वह मुस्कुराते हुए ठेले के पास गई और बोली, “अंकल, एक ऑरेंज गोला दीजिए।”

बूढ़े अंकल ने खुशी-खुशी तुरंत एक ऑरेंज गोला तैयार करके उनके हाथ में दे दिया। प्रिया गोला खाने ही वाली थी कि तभी बाजार में एक मोटरसाइकिल आकर पास रुकी। यह थाने का इंस्पेक्टर विजय कुमार था। उसने बाइक साइड में लगाई, हेलमेट उतारा और ठेले वाले से रूखे अंदाज में बोला, “अरे ओ बुड्ढे, जल्दी एक गोला दे।” अंकल ने थोड़े घबराते हुए फटाफट एक गोला तैयार करके उसे दे दिया।

भाग 2: अत्याचार का सामना

विजय कुमार वहीं खड़े-खड़े चूसने लगा। तभी उसकी नजर प्रिया सिंह पर पड़ी। उसे अंदाजा भी नहीं था कि यह कोई साधारण लड़की नहीं बल्कि जिले की डीएम है। वह हंसते हुए बोला, “क्या बात है? गोला तो बड़े मजे लेकर चूस रही हो। बहुत पसंद है क्या? कभी हमें भी पसंद कर लो। हम भी तो तुम्हारे प्यार के दीवाने हो सकते हैं।”

प्रिया ने उसकी बात नजरअंदाज करते हुए मुंह फेर लिया और गोला चूसना जारी रखा। विजय कुमार फिर बोला, “अरे शर्मा क्यों रही हो? दूसरा गोला चाहिए तो बोल देना, बनवा दूंगा।” गोला खत्म करने के बाद वह बिना पैसे दिए बाइक पर बैठ गया और इंजन स्टार्ट कर लिया। बूढ़े अंकल ने हिम्मत जुटाकर कहा, “सर, गोले के पैसे तो दीजिए।”

बस, इतना सुनते ही विजय कुमार का चेहरा तमतमा उठा। “किस बात के पैसे? ज्यादा होशियार बनेगा, तो तेरे ठेले का सामान यहीं फेंक दूंगा।” यह कहते-कहते उसने गुस्से में अंकल के गाल पर एक जोरदार थप्पड़ मार दिया। अंकल की आंखों में आंसू आ गए। होंठ कांपने लगे। लेकिन वे चुप रहे।

भाग 3: प्रिया का गुस्सा

यह सब देखकर प्रिया खुद को रोक ना सकी। वह बीच में आकर बोली, “इंस्पेक्टर साहब, आपने अंकल पर हाथ क्यों उठाया? आपको किसी गरीब पर हाथ उठाने का कोई अधिकार नहीं है। उन्होंने तो बस अपने हक के पैसे मांगे हैं। आपने गोला खाया है तो पैसे देना आपका फर्ज है।”

विजय कुमार ने घूरते हुए कहा, “तुम बीच में मत बोलो, समझी?” और अगले ही पल उसने प्रिया को भी एक थप्पड़ मार दिया। प्रिया थोड़ी लड़खड़ा गई, लेकिन खुद को संभालते हुए बोली, “आप अपनी हद पार कर रहे हैं। इंस्पेक्टर होने का मतलब यह नहीं कि आप गरीबों का हक मारकर खाएं। आप कानून के रक्षक हैं लेकिन खुद कानून तोड़ रहे हैं। सुधर जाइए वरना आपको इसका अंजाम भुगतना पड़ेगा।”

विजय कुमार और भड़क गया। उसने फिर से प्रिया के गाल पर एक जोरदार थप्पड़ मारा और गुस्से में गोले के ठेले पर लात मार दी। ठेला पलट गया और दर्जनों रंग बिरंगे गोले की बोतलें सड़क पर बिखर गई। बाजार की भीड़ यह सब देख रही थी। लेकिन डर के मारे कोई आगे नहीं आया। डीएम प्रिया सिंह का गुस्सा अब चरम पर था। मगर वह जानती थी कि कानून को अपने हाथ में लेना उनके पद और सिद्धांतों के खिलाफ है। चाहती तो वही उसी समय इंस्पेक्टर को सबक सिखा सकती थी। लेकिन उन्होंने खुद को काबू में रखा।

भाग 4: न्याय की प्रतिज्ञा

संभलते हुए उन्होंने सख्त आवाज में कहा, “आप कानून के खिलाफ जा रहे हैं। आपने जो किया वह बहुत गलत है। मैं आपके खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करवाऊंगी और आपको सस्पेंड करवा कर रहूंगी। आप नहीं जानते मैं कौन हूं।”

इंस्पेक्टर विजय कुमार ने तिरस्कार से हंसते हुए जवाब दिया, “तेरी औकात है कि तू मुझ पर रिपोर्ट दर्ज करवाए। मैं इस थाने का इंस्पेक्टर हूं। चाहूं तो अभी के अभी तुझे गिरफ्तार कर सकता हूं। इसलिए ज्यादा जुबान मत चला, वरना जेल में चक्की पीसते-पीसते जिंदगी कट जाएगी।” यह कहकर विजय कुमार बाइक पर बैठा। इंजन स्टार्ट किया और वहां से निकल गया।

भाग 5: अंकल की चिंता

इधर ठेले पर बिखरी गोले की बोतलों को बुजुर्ग अंकल कांपते हाथों से समेट रहे थे। उनकी आंखें लाल थी और होठ थरथरा रहे थे। उन्होंने प्रिया से कहा, “बेटी, तुमने यह क्यों किया? मेरी वजह से उस इंस्पेक्टर ने तुम्हें भी मारा। वह बहुत दबंग है। कई दिनों से ऐसे ही मुझसे गोला खाता है और पैसे नहीं देता। हम दिन भर मेहनत करते हैं तभी घर का चूल्हा जलता है। पैसे नहीं मिलेंगे तो हम खाएंगे क्या?”

प्रिया ने उनकी आंखों में देखते हुए कहा, “अंकल, आपके साथ जो हुआ, वह बहुत गलत है और मैं इसका बदला लेकर रहूंगी। मैं उस इंस्पेक्टर को सस्पेंड करवाऊंगी। चाहे कुछ भी हो जाए।” अंकल ने धीरे से सिर हिलाया और कहा, “नहीं बेटी, तुम नहीं कर सकती। वह थाने का इंस्पेक्टर है। उसके खिलाफ कोई गया तो वह उल्टा उसी पर केस कर देता है। तुम घर चली जाओ।”

भाग 6: प्रिया का संकल्प

प्रिया ने दृढ़ स्वर में कहा, “अंकल, मैं घर तो जा रही हूं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि वह इंस्पेक्टर बच जाएगा। उसे पता भी नहीं कि मैं कौन हूं और जब पता चलेगा तब तक देर हो चुकी होगी।”

घर पहुंचकर प्रिया कुछ देर तक सोचती रही। फिर अचानक उनके मन में एक विचार आया। “अगर इंस्पेक्टर ऐसा है तो थाने के बाकी लोग सिपाही और एसएओ किस तरह का व्यवहार करते होंगे यह जानना जरूरी था ताकि पूरे सिस्टम का सच सामने लाया जा सके।” उन्होंने तुरंत पीले रंग की साड़ी पहनी, अपना चेहरा साधारण महिला की तरह सजाया और सरकारी पहचान छिपाकर सीधे थाने पहुंच गई।

भाग 7: थाने में घुसपैठ

वहां मौजूद सिपाही और अधिकारी नहीं जानते थे कि यह कोई साधारण महिला नहीं बल्कि जिले की डीएम है। थाने में कदम रखते ही उनकी नजर अंदर बैठे एसएओ रोहन मेहता पर पड़ी। प्रिया सीधे उनके पास गई और बोली, “इंस्पेक्टर विजय कुमार कहां है? मुझे उनके खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करानी है। उन्होंने सड़क पर गोला बेचने वाले एक बूढ़े आदमी पर अत्याचार किया। उसका ठेला गिरा दिया और पैसे नहीं दिए। जब मैंने विरोध किया तो मुझे भी थप्पड़ मारा और गंदी बातें कही। जो उन्होंने किया वह कानून के खिलाफ है। इसलिए मैं यहां रिपोर्ट लिखवाने आई हूं। आप तुरंत कार्रवाई कीजिए।”

रोहन मेहता ने कुर्सी से उठते हुए सख्त लहजे में कहा, “तुम क्या कह रही हो? मैं अपने इंस्पेक्टर के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करूं। वह इस थाने का इंस्पेक्टर है और उसने कोई बड़ा गुनाह नहीं किया है। अगर उसने एक गोला खा लिया और पैसे नहीं दिए तो क्या हुआ? ₹10 की चीज है। इस पर इतना बवाल मचाने की क्या जरूरत है? जाओ यहां से। वरना धक्के मारकर निकाल दूंगा।”

भाग 8: प्रिया का साहस

प्रिया ने शांत लेकिन दृढ़ स्वर में कहा, “देखिए सर, आपको रिपोर्ट लिखनी ही पड़ेगी। मुझे कानून मत सिखाइए। कानून कहता है कि किसी पर भी हाथ उठाना और उसकी रोजी रोटी पर चोट करना अपराध है। आपने अगर कार्रवाई नहीं की तो मैं आप पर भी कार्रवाई करवाऊंगी।”

रोहन मेहता यह सुनकर तिलमिला उठा। “क्या कहा तुमने? तुम मेरे ऊपर कार्रवाई करोगी? तुम्हारी इतनी औकात है।” उसकी आंखों में गुस्से की लाली थी। वह मेज पर हाथ मारते हुए बोला, “मैं इस थाने का एसएओ हूं। चाहूं तो अभी के अभी तुम्हें अंदर डाल सकता हूं। इसलिए मुझे गुस्सा मत दिलाओ। चुपचाप यहां से निकल जाओ। वरना अंजाम बहुत बुरा होगा। समझी?”

इतना कहकर उसने गुस्से में एक जोरदार थप्पड़ प्रिया सिंह के गाल पर मार दिया। प्रिया थोड़ी लड़खड़ाई लेकिन खुद को संभाल लिया। अब वह पूरी तरह समझ चुकी थी कि इन दोनों अफसरों को सस्पेंड करना जरूरी है। वह दरवाजे की तरफ बढ़ी लेकिन जाते-जाते दरवाजे पर रुककर पलटी और ठंडी सख्त आवाज में बोली, “आप लोग जानते नहीं कि मैं आपके साथ क्या कर सकती हूं। मैं आप दोनों को सस्पेंड करवा कर रहूंगी। और याद रखिए मेरी बात को हल्के में मत लेना।”

भाग 9: सबूत की तलाश

इतना कहकर प्रिया थाने से बाहर निकल गई। थाने में मौजूद सिपाही और एसएओ रोहन मेहता एक दूसरे को देखने लगे। रोहन के मन में हल्का सा शक आया। “आखिर यह औरत है कौन? जिस अंदाज में बात कर रही थी, कहीं कोई बड़ी हंसती तो नहीं।” लेकिन अगले ही पल उसने खुद से कहा, “अरे छोड़ो, आजकल की लड़कियां बस अकड़ में रहती हैं,” और उसने बात को टाल दिया।

उधर प्रिया सिंह पहले ही चालाकी से खेल चुकी थी। जब वह थाने में दाखिल हुई थी, उसी समय उन्होंने अपने मोबाइल की रिकॉर्डिंग ऑन कर दी थी। थाने में हुई हर बात, हर धमकी, हर थप्पड़ की आवाज, सब उनके फोन में रिकॉर्ड हो चुका था। यह अब उनका पहला सबूत था।

भाग 10: प्रेस मीट की तैयारी

सुबह होते ही प्रिया ने तुरंत एसपी, डीएसपी और आईपीएस अधिकारियों को अपने ऑफिस बुलाया। उन्होंने सीधा कहा, “कल जिले के सबसे बड़े हॉल में प्रेस मीट होगी। मैं इंस्पेक्टर विजय कुमार और एसएओ रोहन मेहता के खिलाफ कार्रवाई करूंगी और उन्हें सस्पेंड कराऊंगी। यह देखिए पहला सबूत।”

उन्होंने मोबाइल रिकॉर्डिंग चला दी। कमरे में सन्नाटा छा गया। एसपी सुनील वर्मा ने गंभीर स्वर में कहा, “मैडम, यह सबूत तो आपने दिखा दिया मगर इंस्पेक्टर को सस्पेंड करने के लिए उसके खिलाफ भी ठोस सबूत चाहिए।” प्रिया ने आत्मविश्वास से कहा, “हां, मुझे पता है। लेकिन चिंता मत कीजिए। मैं वह सबूत भी लेकर आऊंगी और कल मीडिया के सामने पेश करूंगी।”

भाग 11: फुटेज की खोज

अगली सुबह प्रिया उसी बाजार में पहुंची जहां बूढ़े अंकल गोला बेचते थे। वहां एक छोटी सी मोबाइल की दुकान थी जिसके बाहर सीसीटीवी कैमरा लगा था। उन्होंने दुकान मालिक से बात की और उस दिन की फुटेज चेक करने को कहा। और हां, कैमरे में सब कैद था। इंस्पेक्टर विजय कुमार का ठेले पर लात मारना, अंकल को थप्पड़ मारना और भीड़ का सन्नाटा।

प्रिया ने वह फुटेज अपने मोबाइल में सेव कर ली और सीधा ऑफिस लौट आई। प्रेस मीटिंग का समय हो चुका था। जिले के सबसे बड़े हॉल के बाहर मीडिया की गाड़ियां लाइन से खड़ी थी। अंदर बड़े-बड़े नेता, पत्रकार और पुलिस अफसर मौजूद थे। सबके चेहरों पर एक ही सवाल था। आज आखिर क्या होने वाला है?

भाग 12: सच्चाई का उद्घाटन

तभी हॉल का माहौल शांत हो गया। स्टेज पर डीएम प्रिया सिंह माइक के पास पहुंची। उनकी नजर पूरे हॉल पर घूमी और फिर उन्होंने गहरी आवाज में कहा, “आज मैं यहां एक सच्चाई उजागर करने आई हूं और दो ऐसे अफसरों का चेहरा बेनकाब करने आई हूं जो कानून के रक्षक बनकर कानून का मजाक उड़ा रहे हैं।” हॉल में कैमरों के फ्लैश चमके।

प्रिया ने आगे कहा, “हम सब मानते हैं कि पुलिस जनता की रक्षा के लिए है। लेकिन जब यही पुलिस जनता को डराने लगे, उनके अधिकार छीनने लगे, तो यह ना केवल शर्म की बात है बल्कि अपराध है। मैं आज आपको ऐसे ही दो अधिकारियों के कारनामे दिखाने जा रही हूं।”

प्रिया ने अपने पीछे लगे बड़े स्क्रीन की तरफ इशारा किया। एक टेक्नशियन ने लैपटॉप से वीडियो कनेक्ट किया। वीडियो शुरू होते ही हॉल में सन्नाटा छा गया। रिकॉर्डिंग में थाने के अंदर की बातचीत सुनाई दे रही थी। रोहन मेहता का अहंकारी स्वर “मैं अपने इंस्पेक्टर के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करूं। तुझ में इतनी औकात है?” निकल रहा था।

भाग 13: वीडियो का असर

फिर थप्पड़ की तेज आवाज गूंजी। हॉल में मौजूद लोग चौंक गए। रिकॉर्डिंग साफ थी। हर धमकी, हर बदतमीजी सब कुछ कैद था। प्रिया ने कहा, “यह है हमारे एसएओ रोहन मेहता। यह व्यक्ति जो कानून का पालन करवाने की शपथ लेकर आया था, उसने कानून को अपने जूतों तले रौंद दिया।”

अब प्रिया ने दूसरा वीडियो चलवाया। यह बाजार का फुटेज था। भीड़ के बीच इंस्पेक्टर विजय कुमार बूढ़े अंकल के ठेले के पास खड़ा था। उसने गोला लिया, पैसे नहीं दिए। अंकल को थप्पड़ मारा और फिर ठेले पर लात मार दी। सड़क पर गोले की बोतलें बिखर गई। अंकल घुटनों के बल बैठकर उन्हें समेटने लगे।

भाग 14: जन जागरूकता

यह नजारा देखकर हॉल में बैठे कई लोग खुद को रोक नहीं पाए। कुछ की आंखों में गुस्सा था। कुछ की आंखें नम हो गई। प्रिया ने कहा, “यह है इंस्पेक्टर विजय कुमार। इनकी वर्दी का मतलब जनता की सेवा नहीं बल्कि जनता का शोषण है। यह वे लोग हैं जो अपने पद का इस्तेमाल गरीबों को डराने और उनका हक मारने में करते हैं।”

प्रिया के यह शब्द सुनकर आगे की पंक्ति में बैठे कुछ वरिष्ठ पुलिस अफसर बेचैन हो उठे। एसपी सुनील वर्मा ने माइक मांगकर कहा, “मैडम, यह आरोप गंभीर हैं और सबूत साफ-साफ दिखाई दे रहे हैं। कानून के मुताबिक हमें तत्काल विभागीय जांच शुरू करनी होगी और अगर जांच में यह सही पाया गया तो दोनों अधिकारियों का निलंबन तय है।”

भाग 15: सजा का समय

प्रिया ने तुरंत जवाब दिया, “एसपी साहब, सबूत साफ है और कानून की किताब भी साफ कहती है। धारा 166 ए के तहत कोई भी सरकारी कर्मचारी अगर अपने अधिकार का दुरुपयोग करता है तो यह दंडनीय अपराध है। इसके अलावा धारा 323 मारपीट, धारा 504 जानबूझकर अपमान और धारा 506 धमकी भी इन दोनों पर लागू होती है।”

हॉल में बैठे पत्रकार तेजी से नोट्स लेने लगे। प्रिया ने एक कागज उठाया। “यह है मेरा आधिकारिक आदेश। विभागीय जांच शुरू होने तक एसएओ रोहन मेहता और इंस्पेक्टर विजय कुमार को तत्काल प्रभाव से निलंबित किया जाता है। साथ ही आज ही दोनों के खिलाफ एफआईआर दर्ज होगी।”

भाग 16: न्याय की जीत

उनकी आवाज में इतनी दृढ़ता थी कि हॉल में बैठे दोनों आरोपी अधिकारियों के चेहरे पीले पड़ गए। एएसपी ने अपने अधीनस्थ को इशारा किया। दो पुलिसकर्मियों ने आगे बढ़कर विजय कुमार और रोहन मेहता को खड़े होने के लिए कहा। विजय कुमार ने धीमे स्वर में कहा, “मैडम, एक मिनट, हमसे गलती हो गई।” लेकिन प्रिया ने बीच में रोक दिया।

“गलती तब होती है जब अनजाने में कुछ गलत हो जाए। लेकिन आप लोगों ने जानबूझकर गरीब का हक मारा, कानून तोड़ा और फिर उसे धमकाया। यह गलती नहीं अपराध है।” जैसे ही दोनों अधिकारियों को पुलिस ने बाहर ले जाया, हॉल में मौजूद पत्रकार उनके पीछे भागे। कैमरे चमकने लगे, सवालों की बौछार हुई।

भाग 17: अंतिम संदेश

प्रिया ने माइक से आखिरी बात कही, “यह मामला केवल दो अफसरों का नहीं है। यह एक संदेश है कि इस जिले में कानून सबसे ऊपर है। चाहे वह डीएम हो, एसपी हो, एसएओ हो या इंस्पेक्टर, अगर कानून तोड़ेगा तो सजा मिलेगी।”

अगले ही दिन जिला पुलिस मुख्यालय में एक विशेष टीम बनाई गई। विभागीय जांच पुलिस अधीक्षक के अधीन एक टीम ने दोनों अधिकारियों के खिलाफ गवाहों के बयान लिए। गोला वाले अंकल ने अपने बयान में सब कुछ विस्तार से बताया। एफआईआर दर्ज हुई थाने में लेकिन अलग थाना क्षेत्र में। दोनों के खिलाफ धारा 166 ए, 323, 504, 506 के तहत मामला दर्ज हुआ।

भाग 18: पुनर्मिलन

निलंबन आदेश की पुष्टि राज्य पुलिस मुख्यालय से आई कि जांच पूरी होने तक दोनों को निलंबित रखा जाएगा और वे किसी भी पुलिस ड्यूटी में शामिल नहीं होंगे। कुछ दिन बाद प्रिया खुद बाजार में पहुंची और बूढ़े अंकल के ठेले पर गई। अंकल ने उन्हें देखते ही हाथ जोड़ दिए। “बेटी, भगवान तुम्हें खुश रखे। तुम्हारी वजह से हमें न्याय मिला।”

प्रिया ने मुस्कुराते हुए कहा, “अंकल, यह मेरा फर्ज था। अब आपका ठेला कोई नहीं गिरा पाएगा और अगर कोई कोशिश करेगा तो सीधा जेल जाएगा।” उन्होंने अंकल को नया ठेला गिफ्ट किया और एक गोला खरीदा। प्रिया ने मीडिया को अंतिम बयान दिया। “हमारा देश तभी सुरक्षित होगा जब कानून का पालन सभी के लिए बराबर होगा। चाहे वह आम आदमी हो या वर्दी में बैठा अधिकारी।”

भाग 19: एक नई शुरुआत

इस घटना ने न केवल प्रिया की जिंदगी को बदल दिया, बल्कि पूरे जिले में एक नई चेतना भी जागृत की। लोग अब पुलिस को डरने के बजाय उनके खिलाफ बोलने लगे। प्रिया कुमारी ने साबित कर दिया कि अगर कोई इंसान अपनी जिम्मेदारियों को निभाने में सक्षम है, तो वह किसी भी अन्याय के खिलाफ खड़ा हो सकता है।

इस प्रकार, इंसानियत की जीत हुई और एक नई कहानी की शुरुआत हुई, जहां हर किसी को उसके अधिकार मिल�� और समाज में एक नया बदलाव आया। प्रिया की यह कहानी न केवल एक महिला की शक्ति को दर्शाती है, बल्कि यह भी बताती है कि कानून का पालन करना और उसकी रक्षा करना सभी का कर्तव्य है।

भाग 20: अंत में

इसलिए, हमेशा याद रखें कि अन्याय के खिलाफ खड़ा होना और अपनी आवाज उठाना किसी भी व्यक्ति का अधिकार है। न्याय की यह लड़ाई कभी खत्म नहीं होती; यह आगे बढ़ती रहती है, जब तक कि हर किसी को उसका हक न मिल जाए।

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