जब इंस्पेक्टर ने IPS की मां को आम औरत समझकर थप्पड़ जड़ दिया, फिर इंस्पेक्टर के साथ क्या किया

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जब इंस्पेक्टर ने IPS की मां को आम औरत समझकर थप्पड़ जड़ दिया — फिर क्या हुआ?

सुबह का समय था। शहर के एक पुराने मोहल्ले में रहने वाली रूपा देवी, उम्र लगभग 60 साल, आज रोज़ की तरह जल्दी उठीं। वे एक साधारण महिला थीं—पुराने कपड़े, पैरों में घिसी हुई चप्पलें, चेहरे पर उम्र की लकीरें, मगर आंखों में आत्मसम्मान की चमक। वे अपनी बेटी दिव्या शर्मा के लिए ताजे फल खरीदने बाजार जा रही थीं। दिव्या शर्मा, जो इस जिले की तेजतर्रार आईपीएस अधिकारी थी, अपने कर्तव्य में इतनी व्यस्त रहती थी कि मां खुद ही सारे घर के काम निपटाती थीं।

आज रूपा देवी बाजार के लिए निकलीं तो कोई भी यह अंदाजा नहीं लगा सकता था कि वे जिले की सबसे बड़ी पुलिस अफसर की मां हैं। बाजार में भीड़ थी, सड़क पर गाड़ियां दौड़ रही थीं। रूपा देवी ने सड़क पार करने की कोशिश की, तभी अचानक एक पुलिस की गाड़ी तेजी से उनके सामने आ गई। गाड़ी भले ही वक्त पर रुक गई, लेकिन हल्का धक्का लगने से वे सड़क पर गिर पड़ीं।

गाड़ी से एक पुलिस इंस्पेक्टर उतरा—नाम था विक्रम सिंह। वह अपने रुतबे और घमंड के लिए बदनाम था। भीड़ जमा हो गई, मगर किसी ने आगे बढ़कर मदद नहीं की। विक्रम सिंह गुस्से से तमतमाया हुआ, बिना कुछ पूछे, सीधे रूपा देवी के पास आया और उनके गाल पर जोरदार थप्पड़ जड़ दिया। “देखकर नहीं चल सकती बुढ़िया! हमारी गाड़ी के सामने मरने आई थी क्या? ये सड़क तेरे बाप की है क्या?” भीड़ में कुछ लोग हंसने लगे, कुछ चुप रहे। रूपा देवी का चेहरा शर्म और दर्द से लाल हो गया, आंखों में आंसू आ गए।

रूपा देवी ने कांपती आवाज़ में कहा, “सॉरी साहब, मुझे सच में नहीं दिखा…” मगर इंस्पेक्टर का गुस्सा कम नहीं हुआ। उसने दूसरा थप्पड़ भी मार दिया। “जब तुझे सड़क पार करना नहीं आता, तो चलती क्यों है?” विक्रम सिंह चिल्लाया। रूपा देवी मन ही मन सोच रही थीं—अगर इस इंस्पेक्टर को पता होता कि मैं आईपीएस दिव्या शर्मा की मां हूं, तो इसका चेहरा देखने लायक होता। लेकिन उन्होंने अपनी बेटी का नाम नहीं लिया, वे चुपचाप वहां से उठीं और घर लौट आईं।

भीड़ में एक युवा लड़का, जो रूपा देवी को जानता था, मोबाइल से पूरी घटना रिकॉर्ड कर रहा था। वीडियो में साफ दिख रहा था कि इंस्पेक्टर एक असहाय बुजुर्ग महिला को थप्पड़ मार रहा है। लड़का सीधे एसपी ऑफिस गया, जहां दिव्या शर्मा काम कर रही थीं। उसने दिव्या को वीडियो दिखाया। वीडियो देखते ही दिव्या की आंखों में खून उतर आया। उन्होंने देखा कि उनकी मां को सड़क पर थप्पड़ मारा जा रहा है, और कोई रोकने वाला नहीं है।

दिव्या का गुस्सा चरम पर पहुंच गया। उन्होंने लड़के से वीडियो मांगा, “तुम चिंता मत करो, तुम्हारा नाम कहीं नहीं आएगा।” लड़का संतुष्ट होकर चला गया। शाम को दिव्या घर पहुंचीं। मां को देखते ही गले लग गईं। “मां, आपके साथ जो हुआ, वो गलत था। आपने मुझे बताया क्यों नहीं?” रूपा देवी बोलीं, “बेटा, मैं नहीं चाहती थी कि तू परेशान हो। सोचा, चुप रह जाऊं।” दिव्या ने दृढ़ स्वर में कहा, “नहीं मां, ऐसे लोगों को माफ नहीं किया जा सकता। ये सिर्फ आपके साथ नहीं, किसी के साथ भी हो सकता है। अब इंसाफ होगा।”

अगली सुबह दिव्या ने साधारण साड़ी पहनी, बाल बांधे और बिना पहचान बताए थाने पहुंच गईं। विक्रम सिंह ने उन्हें आम औरत समझकर तिरस्कार से देखा। “रिपोर्ट लिखवानी है? यहां रिपोर्ट के पांच हजार लगते हैं, पैसे लाए हो?” दिव्या हैरान रह गईं—यह वही इंस्पेक्टर था जिसने मां को थप्पड़ मारा और अब रिश्वत भी मांग रहा है। उन्होंने शांत स्वर में कहा, “रिपोर्ट लिखवाने के लिए कोई पैसा नहीं लगता, यह गैरकानूनी है।”

विक्रम सिंह मेज पर हाथ पटक कर बोला, “अगर रिपोर्ट लिखवानी है तो पैसे दो, वरना निकलो यहां से। ज्यादा जुबान चलाओगी तो बाहर फेंकवा दूंगा।” थाने में मौजूद लोग तमाशा देख रहे थे। दिव्या ने सख्त आवाज में कहा, “कानून मत सिखाइए, रिपोर्ट लिखना आपका फर्ज है, एहसान नहीं।” विक्रम सिंह हंस पड़ा, “तू मुझे कानून सिखाएगी? तेरी औकात क्या है? एक फटीचर साड़ी में आई है, मुझे धमका रही है?”

दिव्या का चेहरा गुस्से से लाल हो गया, लेकिन उन्होंने खुद को काबू में रखा। वे थाने से बाहर निकल गईं और सीधे डीएम सुजीत सिंह के ऑफिस पहुंचीं। डीएम को वीडियो दिखाया—पहला, जिसमें उनकी मां को थप्पड़ मारा गया; दूसरा, जिसमें थाने में रिश्वत मांगी जा रही थी। डीएम का चेहरा सख्त हो गया। “मैडम, आपकी मां के साथ जो हुआ, वह किसी के साथ नहीं होना चाहिए। आज शाम चार बजे मीटिंग होगी, उसमें फैसला लिया जाएगा।”

शाम को जिले के सबसे बड़े सभागार में मीडिया, पुलिस अधिकारी, नेता—सब मौजूद थे। डीएम ने मंच से कहा, “हमारे ही विभाग के एक इंस्पेक्टर ने एक असहाय महिला पर हाथ उठाया और कानून का मजाक उड़ाया।” स्क्रीन पर वीडियो चलाया गया—भीड़ के सामने रूपा देवी को थप्पड़, रिश्वत की मांग। हॉल में सन्नाटा छा गया, फिर गुस्से की लहर दौड़ गई। डीएम ने घोषणा की, “इंस्पेक्टर विक्रम सिंह को तत्काल प्रभाव से सस्पेंड किया जाता है, विभागीय जांच होगी, दोषी पाए जाने पर जेल भी जाना पड़ेगा।”

मीडिया ने यह खबर लाइव चला दी। शहर में हलचल मच गई। उसी शाम दो सिपाही विक्रम सिंह को गिरफ्तार करने पहुंचे। विक्रम सिंह गरज पड़ा, “जानते नहीं हो मैं कौन हूं? मुझे बड़े नेताओं का सहारा है, अगर छेड़ा तो पूरा शहर जला दूंगा!” तभी दरवाजे पर कड़क आवाज गूंजी—“अब तुम्हारी दबंगई नहीं चलेगी!” लाल साड़ी में, आंखों में आग लिए दिव्या शर्मा खड़ी थीं।

विक्रम सिंह हंसा, “तो तुम हो वो औरत जिसने मेरे खिलाफ रिपोर्ट की? सोचती हो, मुझे सस्पेंड करके जीत गई?” दिव्या ने ठंडे स्वर में कहा, “रिश्वतखोरी, महिलाओं पर अत्याचार, कानून का दुरुपयोग—अब तुम्हारी वर्दी तुम्हें नहीं बचा सकती।” विक्रम सिंह ने गुस्से में रिवॉल्वर उठाया, “कोई पास मत आए वरना गोली मार दूंगा!” सिपाही डर गए, लेकिन दिव्या पीछे नहीं हटीं। वे तेजी से आगे बढ़ीं, उसके हाथ से रिवॉल्वर छीन लिया और एक जोरदार तमाचा मारा—“यह थप्पड़ सिर्फ मेरी मां के लिए नहीं, पूरे सिस्टम के लिए है।”

सिपाहियों ने विक्रम सिंह को पकड़कर हथकड़ी लगा दी। मामला कोर्ट में गया। दिव्या ने सबूत पेश किए—वीडियो, गवाह, रिकॉर्डिंग। विक्रम सिंह के बचने के सारे रास्ते बंद हो गए। जज ने फैसला सुनाया—“इंस्पेक्टर विक्रम सिंह को भ्रष्टाचार, महिला उत्पीड़न और कानून के दुरुपयोग का दोषी पाते हुए 10 साल की सजा दी जाती है।”

कोर्ट रूम तालियों से गूंज उठा। बाहर भीड़ नारे लगाने लगी—“आईपीएस दिव्या शर्मा जिंदाबाद!” दिव्या शाम को घर लौटीं। मां रूपा देवी ने गले लगाकर कहा, “बेटी, आज मुझे गर्व है कि तू मेरी संतान है। तूने सिर्फ मेरा नहीं, पूरे समाज का सम्मान बचाया है।” दिव्या मुस्कुराई, “मां, यह तो बस शुरुआत है। जब तक समाज से भ्रष्टाचार और अन्याय खत्म नहीं हो जाता, मेरी लड़ाई जारी रहेगी।”

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